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Tuesday, July 19, 2011

मायनों, विन्ची या कांग्रेस, कोई अंतर है? एक दृष्टि डालें और बताएं, क्या इन्हें सत्ता सौंपी जानी चाहिए?

मित्रों पीड़ा सहने की शक्ति अब नहीं रही| अब जो करना है, वो कर डालें| आज के बाद मेरा क्या अंत होगा, अब यह सोचने का समय नहीं है|
कुछ विशेष बातें आपके समक्ष रख रहा हूँ| शायद कुछ विषय में तीखी भाषा का उपयोग हो जाए| इसकी मुझे चिंता नहीं|

अब देश में काला धन चाहे आए या न आए, भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन सफल हो या न हो, जन लोकपाल बने या न बने| सब बातें पीछे हैं| सबसे पहले एक ऐसी हस्ती का चरित्र देश के सामने आना आवश्यक है, जिसके सामने प्रधान मंत्री हो या राष्ट्रपति, सब बौने हैं| जो इस देश की बागडोर पूरे तरीके से अपने हाथ में ले चुकी है| जिसके कारनामों के कारण भारत देश का नीति निर्धारण, यहाँ तक कि अर्थव्यवस्था तक पर इटैलियन माफिया का कब्ज़ा हो गया है| जो हस्ती भारत के सुरक्षा मामलों तक घुस चुकी हो| और तो और ख़ुफ़िया तंत्र तक उसके क़दमों में लोट चूका हो|

समझ रहे होंगे किसकी चर्चा हो रही है...

वैसे तो मायनों का दखल भारत की राजनीति में उस समय से है, जब राजीव गांधी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी पहुँच गया था| अब ये कहानी तो पुरानी हो चुकी है कि किस प्रकार वह रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी की एजेंट बनी, कब उसने भारत की नागरिकता स्वीकार की, इंदिरा गांधी की मृत्यु के समय उसकी क्या भूमिका रही, भारतीय पिता होने के बाद भी राहुल व प्रियंका आज तक इतालवी नागरिक क्यों हैं, किस आधार वे आज भारत में रह रहे हैं, आदि आदि?

आज मैं अपने मन की कुछ शंकाएँ यहाँ रख रहा हूँ| कृपया कहीं कोई गलती हो तो संशोधन करें|

बोफोर्स घोटाले के समय राजीव गांधी का नाम एक फ्रांसीसी मैगजीन में उनके चित्र के साथ छापा था| चित्र के नीचे कुछ राशि लिखी थी, जो उनके स्विस खाते में जमा हुई| यह राशि थी 2.5 BILLION FRENKEN (130 BILLION in Rupee)

यह किस्सा तो अब भारत के जागरूक नागरिक जानते ही हैं, किन्तु अभी तक इस परिवार को इसके लिए कटघरे में खडा नहीं किया गया|
खैर यह बाद की बात है| पहले तो यह देखा जाना चाहिए कि कुअत्रोची का इसमें क्या हाथ था?
इस समय भारत की सुपर प्राइम मिनिस्टर, इटली के ट्यूरिन शहर से हैं| इन कुअत्रोची महाशय का स्थान भी यहीं हैं| बोफोर्स की खरीद इसी के द्वारा क्यों करवाई गयी? यह व्यक्ति बीच में क्यों दल्ला बना? इस सबके बाद राजीव गांधी मायनों से क्यों खफा हुए?

दरअसल फ्रांसीसी मैगजीन में अपना नाम आने के कारण राजीव गांधी इस सब से खफा थे| किन्तु क्या करें, प्यार का मारा था| अब प्यार का मारा था या पत्नी से प्रताड़ित था, यह राज तो उनके साथ ही चला गया| प्रताड़ित इसलिए कि जब बोफोर्स सौदे में उनका नाम आया तो उनकी नाराजगी मायनी के लिए एक बहुत बड़ा खतरा थी| यह व्यक्ति उसके रास्ते का काँटा बन रहा था|
यह नहीं भूलना चाहिए कि खच्चरों के इस परिवार में वह अकेला ऐसा व्यक्ति था, जिसने यह स्वीकार किया था कि वह एक रुपये की सहायता देता है तो जनता तक पंद्रह पैसे पहुँचते हैं|

शंका यहाँ यह है कि जिस परिवार से निकली एक प्रधानमंत्री को उसके सुरक्षा कर्मियों द्वारा ही गोली मार कर हत्या करने पर अपराधियों को शीघ्र ही मृत्यु दंड दिया गया, वहीँ उस महिला के सुपुत्र की हत्या की कड़ी अभी तक उलझी हुई क्यों है? आजतक उसका रहस्य क्यों नहीं पता चल रहा?

बस इतना पता चल सका कि राजीव गांधी लिट्टे द्वारा एक बम विस्फोट में मरा|
किन्तु राजीव की हत्या से एक दिन पहले कुअत्रोची लिट्टे के जन कमांडो से क्यों मिला था?
बोफोर्स का सारा मामला साफ़ होने के बाद भी आज तक कुअत्रोची क्यों नहीं पकड़ा गया?

केजीबी की धूर्त एजेंट, क्या डायन भी है? सास और पति की हत्या की गुत्थी पूरी तरह से अभी तक क्यों नहीं सुलझी? किस आधार पर इसे भारतीय स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है?


कुछ समय पहले तक पूरी दुनिया में केवल एक ही हिन्दू राष्ट्र था, नेपाल| आज वह भी हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा|
नेपाल के एक मंदिर में जब पुजारी ने मायनों को अन्दर प्रवेश करने से रोका तो इस बात पर राजीव गांधी नेपाल से ही खफा हो गए|
यह आदमी शायद इतना बुरा नहीं था, किन्तु भारत में इससे बड़ा मुर्ख कोई नहीं हुआ| मंदिर के नियमानुसार वहाँ केवल शुद्ध शाकाहारी सनातनी ही प्रवेश कर सकते थे| अत: इन्हें एक इसाई महिला (जो पता नहीं क्या क्या खाती हो) का प्रवेश स्वीकार नहीं था| इसका दंड पूरे नेपाल को भुगतना पडा| धरती का सबसे शांत एवं एक बहुत ही सुन्दर व सुखी देश आज सेक्युलर बन चूका है| आज यह देश हिंसा की आग में जल रहा है|
राजीव गांधी की नाराजगी के चलते उन्हें ज्ञानेंद्र जैसा व्यक्ति मिल गया, जो नेपाल के पूरे राजघराने को ही नष्ट कर देना चाहता था और एक धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक नेपाल बनाना चाहता था|
आज के नेपाल की हालत पर तो आप भी तरस खाते होंगे| क्या से क्या हो गया?
नेपाल की ऐसी दुर्दशा होगी, यह तो नेपाल ने भी नहीं सोचा होगा| इसमें ज्ञानेंद्र तो केवल एक मोहरा था, सूत्रधार तो कोई और ही रहा|


योजना बड़ी गहरी थी मायनों की|
लम्बे समय से अफगानिस्तान पर रूसी और अमरीकी दृष्टि पड़ी हुई थी| अरब देशों से आने वाली तेल सप्लाई के लिए अफगानिस्तान सबसे उपयुक्त क्षेत्र है| सोवियत संघ से सटे होने के कारण रूस के लिए अफगानिस्तान किसी तेल के कूएँ से कम नहीं था| वर्षों तक अफगानिस्तान पर रूसी कब्ज़ा रहा| रूस की बढती शक्ति अमरीका के लिए चिंता का विषय थी| ओसामा जैसे आतंकी को अमरीका ने ही खडा किया था, ताकि वह अफगानिस्तान से रूसी सेनाओं को भगाने के लिए लड़े| किन्तु ओसामा द्वारा अमरीका में ही आतंकी हमले करने के कारण अमरीका ने अफगानिस्तान पर भारी बमबारी शुरू कर दी| सोवियत संघ तो पहले ही टूट चूका था| चेचन्या के विद्रोह का कारण भी अमरीका ही रहा|
इधर रूस की नज़र नेपाल पर भी पड़ी| मायनों को तो पहले से ही नेपाल से खुन्नस थी| और आगे की कहानी आप जानते ही हैं|
पाकिस्तान तो पहले से ही अमरीकी प्रभाव में जी रहा है|

इन सबके बीच एक और देश चीन भी है, जो नेपाल को समाप्त कर वहाँ अपना वर्चस्व ज़माना चाहता है| ताकि भारत को घेरने के लिए सारे द्वार खुल जाएं|
भारत अब तीन ओर से असुरक्षित है| एक ओर पाकिस्तान, उधर रूस, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार|| बांग्लादेश भी इसी श्रेणी में गिना जाएगा| श्रीलंका पहले से ही अस्थिर है| बंगाल की खाड़ी तक चीन कब्ज़ा जमा चूका है| उधर बढ़ता चीनी साम्राज्य भारत के लिए खतरा हो सकता है| ताइवान पहले से ही चीन का उपनिवेश बन चूका है| तिब्बत को चीन पहले ही कब्ज़ा चूका है| भारत के अन्दर ही अरुणाचल प्रदेश पर चीन अपना अधिकार जता रहा है| इसके लिए वह सतत प्रयास भी कर रहा है| इन्ही प्रयासों का परिणाम है कि आज पूर्वोत्तर का पूरा क्षेत्र भारत विद्रोह के लिए खडा हो चूका है| अब मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापूर, मॉरिशस व इंडोनेशिया का नंबर भी लगने वाला है| ऐसे में भारत सभी दिशाओं से शत्रुओं से घिरा होगा| अमरीका को भी अपना मित्र राष्ट्र समझने की भूल कदापि न करें| वह भी कश्मीर समस्या को केवल इसलिए नहीं सुलझा रहा, ताकि इस बहाने वह कश्मीर में अपने सैन्य शिविर स्थापित कर सके, जैसे अफगानिस्तान, ईराख व ईरान आदि देशं में किये हैं| इनके द्वारा वह धरती की तीन महाशक्तियों रूस, चीन और भारत तीनों पर दृष्टि रख सकता है|
ऐसे समय में मायनों को हर ओर से मलाई मिल रही है| फिर भारत हो या नेपाल, दोनों जाएं भाड़ में, इसे इन सबसे कोई लेना देना नहीं है|
भारत के गुप्तचर विभाग को दोष देना बेमानी होगा| RAW विश्व के श्रेष्ठतम ख़ुफ़िया विभागों में से एक है| इसकी सूचनाए कभी गलत नहीं हुईं| जब जब RAW  ने चीन व पाकिस्तान के सम्बन्ध में कोई सूचना दी है, तो वह सत्य ही सिद्ध हुई, किन्तु इस पूतना ने कभी इस पर ध्यान ही नहीं दिया| भारत के ख़ुफ़िया विभागों को तो बाबा रामदेव व अन्ना हजारे तक सीमित कर दिया| वरना क्या वजह रही कि ख़ुफ़िया तंत्रों द्वारा प्राप्त समस्त जानकारियों को अनदेखा कर  दिया गया? इतने वर्षों में भारत की सुरक्षा को लेकर क्या प्रयास किया गया? क्यों नहीं कोई कदम पाकिस्तान व चीन के विरुद्ध उठाया गया?

जब जब कांग्रेस शासन में रही, सारे आतंकी हमले सार्वजनिक स्थानों पर हुए| भारत की आम जनता ही इन हमलों का शिकार हुई| किन्तु भाजपा के शासन में तो संसद पर ही आतंकी हमला हो गया|
अर्थात जब सत्ता में हैं तो आम नागरिकों को मारेंगे किन्तु जब सत्ता के बाहर हैं तो सत्ता में बैठे मंत्रियों को ही निशाना बना डाला|


एक बात ध्यान में रखें, पूरी पृथ्वी पर भारत का कोई भी मित्र राष्ट्र इस समय नहीं है| क्योंकि हर ओर से लुटने के बाद भी भारत निरंतर सोना उगा रहा है| भौगोलिक दृष्टि से भारत आज भी सबसे अमीर देश है| चाहे वह खनीज सम्पदा की बात हो, चाहे वह खेती की बात हो, चाहे वह ज्ञान की बात हो| भारत देश की जलवायु ही कुछ ऐसी है|

मायनों तो है ही विदेशी, वह तो अपना काम कर ही रही है, बाकी मंत्री क्या बोलेंगे? ऐसा लगता है कि इसने शायद मंद मोहन सिंह का कोई MMS बना रखा है| धमकी देती होगी कि मेरी बात नहीं मानी तो सबको दिखा दूँगी|
इस व्यक्ति को सरदार कहना सरदारों का अपमान है| ये मर जाएगा लेकिन मरते मरते भारत को डूबा जाएगा|, ठीक उसी प्रकार जैसे राजस्थान में मरते मरते भैरो सिंह शेखावत भाजपा को डूबा गया|

उत्तर प्रदेश में पग पग पर मदरसे खुल गए हैं| बच्चे बच्चे के हाथ में आधुनिक हथियार हैं| विशेषकर गोरखपुर में AK47 भी मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं|
नेपाल के रास्ते भारत में नकली नोटों का कारोबार ISI के द्वारा चलाया ही जा रहा है| वहां भारत का 500 का नोट 150 रुपये में मिल रहा था और वही नोट उत्तर प्रदेश में 250 का मिल रहा था| इस पूरे प्रकरण में भी मायनों का ही हाथ है| इस विषय  से सम्बंधित मैं एक पोस्ट पहले ही लिख चूका हूँ|                    यहाँ देखें...



अभी चिदंबरम महाशय कहते हैं कि मुंबई में 31 महीने बाद कोई धमाका हुआ है| इसका अर्थ यह कदापि न निकालें कि बाकी हमले इन्होने रोक लिए|
दरअसल नेपाल के रास्ते भारत में नकली नोटों के कारोबार का पर्दाफ़ाश होने के कारण ISI के पास इतना पैसा ही नहीं था कि वह भारत में आतंकी हमले करवाए|

यह औरत भारत के लिए डायन का रूप लेकर आई है| इसने अपने पूत विन्ची में भी वही इतालवी संस्कार भरे हैं, जो इसे प्राप्त हैं| इसका यहाँ टिका रहना भारत के लिए बर्बादी का सबसे बड़ा कारण बन सकता है|
और बेचारी भारत की जनता, इसे तो इतना कुछ पता भी नहीं चलता| वे भी क्या करें? अपना खर्चा पानी जुगाड़ने में ही इनका पूरा जीवन निकल जाता है| वहाँ से मुक्त हों तभी तो भारत के नाम पर विचार करें|


अब इतना कुछ होने के बाद भी क्यों मैं रौल विन्ची के नाम पर विचार करूँ?
वह आदमी जो अपने बाप का उपनाम (गांधी) छोड़, अपने मौसा का सरनेम (विन्ची) का उपयोग करता है| वह व्यक्ति जो बलात्कारी है| कुछ कुछ याद आ रहा है, २००६ में अमेठी के एक गेस्ट हाउस में अपने छ: फिरंगी दोस्तों के साथ मिलकर...
बलात्कार की शिकार लड़की एवं उसका परिवार आज तक गायब है| पुलिस में कोई केस कभी दर्ज ही नहीं हो पाया|
वह व्यक्ति जो भारत की तुलना अफगानिस्तान व पाकिस्तान से करता है|
कहता है कि वहां तो रोज़ हे बम धमाके होते हैं, यहाँ तो एक दो ही होते हैं| ऐसा आदमी क्या देश चलाएगा, जो पहले ही बता चूका है कि उसके राज में कभी कभी बम धमाके होते रहेंगे?
हम भारत को महाशक्ति बनाने की बात सोच रहे हैं और वो अफगानिस्तान व पाकिस्तान की तुलना में भारत की स्थिति कुछ बेहतर जानकर संतुष्ट है|
उत्तर प्रदेश में चुनावों का मौसम हो तो वहां के किसानों से यारी दोस्ती बढाता है, किन्तु यह भूल जाता है कि महाराष्ट्र में उसकी अपनी सरकार है| महाराष्ट्र का विदर्भ वह क्षेत्र है, जहाँ भारत की सबसे अधिक किसान आत्म हत्याएं होती हैं| क्या विन्ची कभी इन किसानों से अपनी यारी दिखाएगा?


चिदमबरम साहब (?) का कहना है कि मुंबई में ३१ महीने बाद कोई धमाका हुआ है|
महाशय, ये भी बता दें कि अगला धमाका अब कहाँ और कितने समय बाद होगा? ताकि हम पहले से सचेत हो जाएं और स्वयं अपनी प्राण रक्षा कर लें| क्योंकि आपसे तो हमारी सुरक्षा होनी नहीं| हमारी जान के दुश्मन पाकिस्तान बाद में पहले तो आप ही हैं|


यह कांग्रेस केवल हमारी खून पसीने की कमाई से ही नहीं, हमारे खून से भी खेलती है|
निठारी काण्ड, जिसके अंतर्गत छोटे छोटे मासूम बच्चों को किडनैप कर उनके शरीर के अंगों (किडनी, लीवर आदि) विदेशों में बेचने जैसे घृणित कृत्य को एक बलात्कार का केस बनाकर इसकी सम्पूर्ण जांच को एक अलग ही दिशा में मोड़ दिया| इससे जुड़े सभी पुराने केसों की सारी फाइलों को जला दिया गया, जिसे मीडिया में भी दिखाया गया था, किन्तु अगले ही दिन ये सारी ख़बरें मीडिया से गायब हो गयीं|

मैं पहले भी कह चूका हूँ, फिर कह रहा हूँ कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी यदि विन्ची को देश की जनता युवराज के रूप में देखती है, उसके अन्दर भारत का अगला प्रधान मंत्री देखती है तो यह जनता बम धमाकों में मरने योग्य ही है| जो खुद अपनी जान का दुश्मन बन बैठा हो, उसे भला कौन बचा सकता है?


मित्रों इस सम्पूर्ण विवरण में कुछ बेतुके बिंदु भी दिखाई पड़ सकते हैं, जैसे अफगानिस्तान नेपाल आदि देशों का ज़िक्र, अमरीका, रूस व चीन का खतरा आदि| अब इनसे मायनों का क्या सम्बन्ध? किन्तु सभी बिन्दुओं को मिलाकर देखा जाए तो परिणाम एक ही निकलता है, जो बहुत भयंकर होगा|

अंत में जाते जाते दिग्गी सिंह के लिए एक चेतावनी...



ये दिग्गी तो पागल हो गया यार...
सच में इतना पागल हो गया  अपनी जान दाँव पर लगा के बैठा है|
इसका पागलपन देखो.. बुद्धिहीनता देखो कि जिस कांग्रेस और मायनों के तलवे चाटता हुआ इतना बोल रहा है, ये अभी तक उन्हें नहीं पहचान पाया..
वो मायनों जो अपने ख़ास पति की ना हुई, पता नहीं ये कैसे उस पर भरोसा करे बैठा है..
ऐसा लगता है कि अब यदि कोई नेता किसी धमाके की भेंट चढ़ेगा तो शायद यही होगा| और धमाका करवाने वाले कौन होंगे, यह बताने की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है|

क्योंकि जब राजीव के समय भाजपा लहर चल रही थी, तब कांग्रेस के पास केवल एक ही हथियार था, सहानुभूति के वोट| उस समय की जरुरत और मायनों की महत्वाकांक्षा के आगे राजीव खड़ा था, और उसकी मौत से अच्छा विकल्प और क्या था? सो राजीव गाँधी बना बलि का बकरा..
आज फिर हवा कांग्रेस के खिलाफ है.. एक और बाबा, दूसरी और अन्ना, फिर आतंकवाद .. इन सब के बीच आखिरी सांस लेती कांग्रेस| अब मरती क्या न करेगी ... कोई तो भेंट चढ़ेगा इसकी जिसके जरिये ये सांस लेने की कौशिश करे|

अब कांग्रेस की पहली कौशिश होगी कि किसी तरह लोगों का ध्यान बाबा और आतंकवाद से हटायें.. और कैसे न कैसे भाजपा और संघ को भी लपेटे में लें|
कांग्रेस को साफ़ दिख रहा है कि मध्य प्रदेश में ये न तो चुनाव जीत सकता है न ही कांग्रेस में जान फूंक सकता है| इस धटना के द्वारा एक तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को पुनः जीवित करने के लिए नया विकल्प दिया जा सकता है, दूसरा इसकी मौत का ठीकरा सीधा संघ पर फोड़ दे| संघ को अगर कटघरे में लायेंगे तो साथ साथ भाजपा भी आएगी और दुश्मन कमजोर हो जाएगा| एक तीर से दो शिकार|
 कांग्रेस पूरी मिडिया को सारी चीजों से हटा के संघ के खिलाफ खड़ा कर देगी, और भारत के बुद्धूजीवी मेन मुद्दे (काला धन और आतंकवाद) से हट के इसी में उलझ के रह जाएंगे|
दिग्गी को ये तो पता है कि रौल बेवक़ूफ़ है, पर लगता है की वो ये भूल गया की इसकी माँ एक चालाक लोमड़ी है..
तात्पर्य यही है कि भारत के वो बुद्धूजीवी लोग जो मिडिया की कही बातों पर ही विश्वास करते हैं कहीं कांग्रेस के इस झांसे में ना आ जाएँ| वो ये जान लें की आज की स्थिति ये साफ़ बता रही है की इस दिग्गी का असर हम पर ना हो... ना तो इसके जीते जी और ना इसके मरने पर....


19 comments:

  1. जब जब कांग्रेस शासन में रही, सारे आतंकी हमले सार्वजनिक स्थानों पर हुए| भारत की आम जनता ही इन हमलों का शिकार हुई| किन्तु भाजपा के शासन में तो संसद पर ही आतंकी हमला हो गया|
    अर्थात जब सत्ता में हैं तो आम नागरिकों को मारेंगे किन्तु जब सत्ता के बाहर हैं तो सत्ता में बैठे मंत्रियों को ही निशाना बना डाला|


    परीक्षित तथ्यों को झुठलाना कठिन है
    पर यहाँ आसानी से हो रहा है ||

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  3. हाल ही में मुम्बई बम विस्फ़ोटों के बाद सोनिया गाँधी के साथ वहाँ दौरे पर गए इन महाशय ने “आतंकवादियों के खिलाफ़ त्वरित कार्रवाई” करने का बयान दिया… (ये और बात है कि इनकी त्वरित कार्रवाई, इतनी त्वरित है कि अभी तक अफ़ज़ल गुरू की मृत्युदण्ड की फ़ाइल गृह मंत्रालय से होकर सिर्फ़ 2 किमी दूर, राष्ट्रपति भवन तक ही नहीं पहुँची है)।
    (Copy to Suresh Chiplunkar Blog)

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  4. आपके हर लेख से राजीव दीक्षित की झलक मिल जाती है। यानि हर बार उनकी बातों का इस्तेमाल करते ही हैं, ऐसा लगता है। वैसे इसमें बुराई नहीं है। इस बार भी ऐसा ही लगा। वह बलि चढ़ने की बात शानदार लगी। लगभग बातों से सहमत और इन सबको भगाने की बात से सहमति। अमेरिका और कुछ देशों जैसे चीन, पुर्तगाल, फ्रांस, पाकिस्तान, इंग्लैंड से सख्त नफ़रत करता हूँ लेकिन रूस फिर भी इन सबसे बेहतर है। लेकिन भरोसा किसी पर करने लायक नहीं है।

    आपके लेखों से मुझे बार बार एकांगी सोच का आभास होता है और सोच है भी एकांगी। आप बस कुछ लोगों पर ही लिखते हैं। दायरा बढ़े तो बेहतर होगी।

    हाँ, ये बुद्धूजीवी शब्द निरर्थक है। भाषा और व्याकरण की दृष्टि से इस शब्द का महत्व नहीं है।

    आपके ब्लाग पर गलती से टिप्पणी कर दी। आप चाहें तो नहीं भी छाप सकते हैं।

    राजीव गाँधी का पक्षपात लग रहा है कहीं-कहीं। मैं उसे भी दोषी मानता हूँ। 84 से 89 तक प्रधानमंत्री रहा है वह और वह भी बहुत ज्यादा मतों से। एक रूपये वाली बात पहली बार उसने की क्योंकि 85-86 के पहले एक रूपये अधिक हुआ करते थे और सबके पास होते भी नहीं होंगे क्योंकि आज भी बहुतों के पास दस रूपये नहीं हैं।

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  5. वैसे राहुल नामक राक्षस बलात्कार वाले मामले में जीत चुका है। मुकद्दमा हुआ था और सब कुछ राहुल के पक्ष में हुआ था।(जहाँ तक मुझे याद है)
    अधिक जानकारी के लिए bhadas4media.com पर खोज लें यानि सर्च कर लें।

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  6. चन्दन भाई, लेख के अंतिम में मैंने स्त्रोत दिया है| राजिव भाई का इस प्रकार का कोई व्याख्यान नहीं सुना| यदि हो तो कृपया बताएं|
    ये तो मैंने खुदने ही कुछ बिन्दुओं को एक साथ रख कर विचार किया|
    अपने बड़े भाई से इस विषय में बात की| मैंने उनका नाम दिया है|
    फिर भी आप जैसा सोचना चाहें, आप इसके लिए स्वतंत्र हैं|

    दायरा बहुत बड़ा है किन्तु पहले मैं मुद्दे से नहीं भटकना चाहता| जो समस्या सबसे बड़ी है, पहले उसे समाप्त किया जाए तो बेहतर होगा|
    बुद्धूजीवी नामक कोई शब्द ही नहीं है, यह तो ईजाद किया गया है, उन लोगों के लिए जो स्वयं को सबसे बुद्धिमान समझते हैं, किन्तु अक्ल दो कौड़ी कि नहीं होती|

    ब्लॉग पर किसी के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है| होता तो मोडरेशन लगा देता| मुझे किसी प्रकार की टिपण्णी का कोई डर नहीं है|
    राजीव गांधी बहुत बड़ा दोषी था| यहाँ तक कि इस पूरे खानदान में से कोई अच्छा व्यक्ति कभी निकला ही नहीं|

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  7. मैंने आभास या झलक की बात ज्यादा कही है। जैसे अमेरिका पाकिस्तान और काश्मीर वाला मुद्दा सुलझाना नहीं चाहता, यह बात ज्यों-की-त्यों सुनी है। व्याख्यान है- भारत पर विदेशी आक्रमण और कारगिल युद्ध। शायद और कहीं भी हो। ध्यान नहीं है। शायद सीटीबीटी वाले में भी कुछ कहा है उन्होंने इसपर। बहुत सारे गलत तथ्य और गलत आकलन उन्होंने पेश किए हैं, यह अब बता सकता हूँ क्योंकि आपको बता दूँ कि फ्रांस के वैज्ञानिक के साथ शोध करने की बात कहने वाले सम्माननीय राजीव भाई की जाँच में उस वैज्ञानिक को फ्रांसीसी(फ्रेंच नहीं बोलना चाहिए क्योंकि यह शब्द अंग्रेजों ने बनाया है, भारत में हम ई लगाकर या याई लगाकर कहते हैं) में ही मेल कर दिया था और कुछ कुछ बातें तो ऐसे ही पता चल गईं जो किसी को भी पता चल सकती हैं। यह बता दूँ कि फ्रांस के किसी वैज्ञानिक को उनके बताए समय में नोबेल मिला ही नहीं है। इसके लिए माफ़ी चाहूंगा कि उनकी बात कर दी।

    उल्लिखित बड़े भाई का पहला पन्ना देखते ही डर लगा। अंग्रेजी और सचिन देखकर ही बन्द कर दिया।

    बुद्धूजीवी शब्द आपका ईजाद किया है लेकिन ईजाद करने पर शब्द का अर्थ होना चाहिए न? बुद्धू यहाँ कर्ता है और इस शब्द का अर्थ सही नहीं होगा। इसलिए कहा था। बाकी आपकी इच्छा।

    माडरेशन पहले था। यही सोचकर लिखा था।

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  8. सार्थक पोस्ट .बढ़िया लिखा है.

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  9. MMS(Man Mohan Singh), अच्छा सोचा है एम एम एस मतलब मनमोहन सिंह्।

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  10. बहुत सही कहा आपने ! आप के एक एक बात सत्य है ! पर हम भी क्या करें हिन्दू जाती तो नपुंसक हो गयी हैं !
    सिर्फ गाल बजाने के अलावा कुछ नहीं कर सकती !
    यदि एक आदमी आगे बढ़ने वाला मिलेगा तो सौ आदमी उसकी टांग पकड़ कर पीछे खीचने वाले भी मिलेंगे |

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  11. अभी आपने क्या भारत सरकार की सलाहकार समिति द्वारे पारित
    सांप्रदायिक हिंसा निरोधक कानून के प्रारूप को देखा है जिसकी अध्यक्ष सोनिया गाँधी है ?
    इस कानून का प्रारूप प्रिवेंशन आफ कम्युनल एंड टार्गेटेड वायोलेंस बिल 2011 में दिया गया है |
    इस कानून में बहुसंख्यक अर्थात हिन्दू को अपराधी तथा अल्पसंख्यक को निरपराध मान कर दंड का विधान किया गया है |
    इसके अनुसार अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी व्यक्ति कभी भी तनाव हिंसा या उपद्रव के लिया उत्तरदायी नहीं होगा |
    यह कानून अपराध को निर्धारण करने का अधिकार भी अल्पसंख्यक समूह को देता है वह बताएगा की हिन्दुओं की किस बात से उसे पीड़ा पहुंची है और उसका यह अपराध दंडनीय होगा |
    ऐसे अपराधी की संपत्ति जब्त की जा सकती है | उसे देश निकाला दिया जा सकता है |
    इस कानून के पक्षपात की भावना इसके उपबंध ७४ से भली भाँती प्रकट होती है |
    इसमें कहा गया है यदि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के विरुद्ध सामुदायिक हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया है
    तो उस व्यक्ति को तब तक दोषी समझा जाएगा जब तक वह नयायालय में स्वयं को निर्दोष सिद्ध नहीं कर देता |

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  12. इससे यह स्पष्ट होता है की सरकार इस कानून से दंगों को रोकना नहीं चाहती
    अपितु इसाई तथा मुसलमानों को दंगा करने कराने का कानूनी अधिकार देना चाहती है |
    इस कानून से उन्हें कुछ भी करने की स्वतन्त्रता दे कर उन्हें निर्भय बनाना चाहती है |
    सरकार की दृष्टि में सांप्रदायिक दंगे सिर्फ हिन्दू करते है इसलिए हर दृष्टि से उन्हें ही दण्डित करना इस कानून का उद्देश्य है |

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  14. namskar g
    यह तो साबित हो चूका है कि अब हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की प्रखर अभिव्यक्ति को कुचलकर ही सेकुलर की पगडंडी तैयार की जा सकती है। अगर फिर भी यकीं न आये तो एक बार दिल्ली के 10 जनपथ से होकर आइये।

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  15. इन तीन महीनों में इस देश में जो कुछ भी हुआ है चाहे वो अन्ना का अनशन हो या रामलीला मैदान से रामदेव की सभा को आधी रात में बल प्रयोग द्वारा भंग किया जाना,
    इस बात की सूचक है की जनता की सोच अब इन सत्तानशीनों तक पहुच चुकी है और इनमें एक भय का संचार भी हो चुका है
    जिसकी परिणति थी रामलीला मैदान में दिल्ली पुलिस का आधी रात में नृत्य | सदियों की गुलामी ने हमारी मानसिकता को हद से ज़्यादा सहनशील बना दिया है |
    आज़ादी के बाद भी हमारी लोकतंत्रात्मक सत्ता ने इसे न सिर्फ़ पोषित ही किया है अपितु इस सहनशीलता का फायदा उठाते हुए खुद को समृद्ध भी किया है |
    लेकिन इसका अर्थ यह नही निकाला जाना चाहिए की यह सब यूँ ही जारी रहेगा और हम भगवान के आसरे बैठे रहेंगे |
    ज़रूरत सिर्फ़ एक बात की है की इस लौ को बुझने ना दिया जाए | बिना संघर्ष के कुछ भी हासिल नहीं होता |
    और यहाँ तो लड़ना भी है इन घाघ और पीढ़ियों से सत्ता का सुख भोग रहे नेताओं से |
    सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है की अब हमारा सत्ता प्रतिष्ठान भयभीत है और इस भय को कायम रखना होगा तभी कुछ हासिल होगा |

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  16. हमेशा की तरह एक बार फिर आक्रामक तेवर . देश को इस समय ऐसे तेवर वाले लोगों की जरुरत भी है. आपने जो भी लिखा है यदि पूरा सच है तो स्थिति बहुत ही भयानक है. मदन शर्मा जी आप की खबर भी यदि पुख्ता है तो वह भी भविष्य के लिए खतरनाक सावित हो सकता है.

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  17. A beautiful post with truth revealed brutally. Great going !

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  18. bhaiya ab jo karnataka mein jo hua hai use bhi likh do .. TIMES NOW dekhte ho ke nahi ..

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