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Monday, December 26, 2011

चीनी मकडजाल, अब बल व तकनीक के साथ-साथ टेलीकॉम का भी इस्तेमाल



सभी दिशाओं से भारत को घेरने के मंसूबे पालने वाला चीन अपनी गतिविधियों में सफल होता दिखाई दे रहा है| उत्तर पूर्वी व पूर्वी क्षेत्र पहले ही आतंक में है| बंगाल की खाड़ी में भी चीन अपना कब्ज़ा जमा चूका है| कश्मीर मामले में पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाने वाला चीन हर क्षेत्र में पाकिस्तान की मदद के लिए तत्पर दिखाई दे रहा है| चीन पहले ही पाकिस्तान को मिसाइल टेक्नोलॉजी, नाभिकीय प्रौद्योगिकी, लड़ाकू विमान व अन्य उन्नत अस्त्र बाँट चूका है| भारतीय सीमाओं पर चीन का दबाव बढ़ता जा रहा है| अपनी सीमा चौकियों को भी चीन धीरे धीरे भारतीय सीमा के समीप ला रहा है| साथ ही चीनी घुसपैठ के किस्से भी आसानी से सुने जा सकते हैं| कुछ समय पहले तो हमारी सीमाओं में घुसकर चीनी सैनिकों ने पहाड़ों व चट्टानों पर चीन लिख डाला था|
खैर हमारे बेचारे प्रधानमंत्री शायद अभी तक इन सब बातों से अनजान हैं| तभी को अस्थाई शान्ति को बनाए रखने के भ्रम में बड़ी संख्या में सड़क परियोजनाएं, बाँध निर्माण परियोजनाएं, पॉवर प्लांट स्थापना, टेलीकॉम एक्सचेंज जैसे अधिकाँश काम केवल चीनी कम्पनियों को दिए आ रहे हैं|
भारत के भीतर सभी संवेदनशील स्थानों पर अपनी पकड़ बनाए रहने के लिए चीनी कम्पनियां औने-पौने दामों पर सभी प्रकार की परियोजनाए हथिया रही हैं| पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार ने तो बहुत सी ऐसी परियोजनाओं की ओर इशारा भी किया था जो किसी न किसी संवेदनशील क्षेत्र से जुडी हैं और चीनी कम्पनियों ने अति अल्प लागत में टेंडर भरे| वहीँ दूसरी ओर बहुत सी ऐसी परियोजनाएं जिन्हें पूरा करने में चीन दक्ष है व साथ ही इस काम में चीनी कम्पनियां भारी मुनाफा भी कमा सकती थीं, किन्तु वहां चीन ने कोई टेंडर नहीं भरा जहाँ हमारा कोई संवेदनशील प्रतिष्ठान नहीं है|
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में वेतरना बाँध का टेंडर बहुत सस्ती दर पर इसलिए भरा क्योंकि वहाँ समीप ही हमारा मिग लड़ाकू विमान असेम्बली केंद्र है, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर है व देवलाली का तोपखाना (अर्टिलीयरी सेंटर) भी है| इसी प्रकार कावेरी-गोदावरी बेसिन में सीज्मिक सर्वे का टेंडर उसने इतनी सस्ती दर पर इसलिए भरा ताकि वह वहाँ के हमारे नौसैनिक प्रतिष्ठानों पर निगरानी रख सके|
तकनीकी रूप से तो चीन ने पूरे भारत में अपनी पकड़ बना ही ली है| दैनिक जीवन में काम आने वाली चीज़ों पर भी अब चीनी कम्पनियों ने अपना अधिपत्य जमा लिया है| चीन को पता चलना चाहिए कि भारत में पतंग उड़ाई जाती है तो बस चीनी पतंग व मांजा बाज़ार में उपलब्ध है| यहाँ होली-दीवाली मनाई जाती है तो अगले त्यौहार पर चीनी पटाखे, मोमबत्तियां, बिजली के बल्ब व होली के रंग व पिचकारी बाज़ार में आसानी से सस्ते दामों पर मिल जाएंगे| यहाँ तक कि एम् आर ऍफ़ जैसी कम्पनियों ने भी यह कहकर घुटने टेक दिए कि चीनी कम्पनियां हमसे कहीं अधिक सस्ती दर पर टायर बना कर भारतीय बाज़ारों में बेच रही हैं, अत: हम भी अपनी फैक्ट्रियां अब भारत से निकाल कर चीन में स्थापित कर रहे हैं|
अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम दिनों में मनमोहन सिंह के अरुणाचल दौरे के समय चीन ने रात दो बजे चीन में भारतीय महिला राजदूत को जगाकर यह धमकी दी कि अपने प्रधानमन्त्री से कहो कि "वह तवांग जिले में न जाएं|"
तवांग एक बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र है| इसके एक तरफ भूटान की सीमा लगती है तो दूसरी ओर तिब्बत की| तवांग एक प्रतिष्ठित बौद्ध केंद्र है| तिब्बत पर अपने नियंत्रण को सुदृढ़ करने के लिए चीन इसे हथियाना चाहता है| वरना क्या वजह थी कि हमारी राजदूत को रात दो बजे उठाकर यह धमकी देने की कि हमारे देश का ही प्रधानमन्त्री हमारे देश के किसी जिले में न जाए| सबसे बड़ी बात तो यह कि मनमोहन ने भीगी बिल्ली की तरह डरकर तवांग जाने का अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया|
इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी भारत सरकार चीन कि ओर से निश्चिन्त हो आँख मूँद कर सो रही है| जब जागती है तो कभी बाबा रामदेव को चोर साबित करती है तो कभी अन्ना को भ्रष्टाचारी| अब तो उन्हें भगोड़ा भी कह डाला| यदि कोई सरकार की नींद में खलल डाले तो उसे आधी रात में पीट-पीट कर दिल्ली शहर से खदेड़ दिया जाता है|
जिस देश ने हमे खत्म करने के मंसूबे पाल रखे हैं, हमारी सरकार आँख मूँद कर अपनी सारी व्यापारिक सुविधाएं उसे ही देते चली जा रही है| रिलायंस का पावर प्लांट हो या बीएसएनएल अथवा एयरटेल का टेलीफोन एक्सचेंज, सब चीन के हाथ में है| भारत के 35 प्रतिशत से अधिक पावर प्लांट व टेलीफोन एक्सचेंज चीनी ही लगा रहे हैं| इस प्रकार तो चीन हमारे देश में किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति की फोन पर होने वाली बातें सुन सकता है| यहाँ तक कि उसे टेप भी कर सकता है| यह एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है| हमारे देश में टेलीकॉम के क्षेत्र में फैलता चीनी मकडजाल हमारे लिए एक गंभीर मुद्दा है| इसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं| इसका कारण यह है कि हमने जो सी-डॉट के स्वीचिंग सिस्टम या टेलीफोन एक्सचेंज बनाए थे, वे अब बेकार हो गये हैं| क्योंकि यह टेलीकॉम की प्रथम जनरेशन थी जो अब पुरानी हो चुकी है| इसके बाद न तो हमने द्वितीय जनरेशन (2G) को विकसित किया है और न ही तृतीय जनरेशन (3G) को| ये सारे प्रोजेक्ट हमने आँख बंद कर चीन को सौंप दिए| हम 2G व 3G का ABC भी नहीं जानते वहीँ चीन ने 4G शुरू कर दिया| आश्चर्य तब हुआ जब भारत में 3G की विफलता के बाद भी चीन 4G लौंच करना चाहता है| किन्तु शर्म की बात ये हैं कि भारत सरकार ने चीनी कम्पनियों को यह सुविधा दे दी|
प्रारम्भ में मुझे यह कोरी अफवाह ही लगी थी क्योंकि मैं भी टेलीकॉम में काम कर रहा इंजिनियर हूँ और मेरा कार्य क्षेत्र 3G ही हैं| मुझे नहीं लगता था कि इस समय भारत में 4G की कोई गुंजाइश है| कोई भी कम्पनी इस प्रोजेक्ट में अपने हाथ नहीं जलाना चाहेगी| किन्तु उस समय बहुत आश्चर्य हुआ जब कुछ दिनों पहले मेरे ही एक मित्र को गुडगाँव में रिलायंस 4G के प्रोजेक्ट पर नौकरी मिली, जिसे एक चीनी कंपनी ही चला रही है| जब मैंने उससे पूछा कि यह कैसे सम्भव है? अभी तक तो भारत में पूरी तरह से 3G का काम भी नहीं हुआ, ऐसे में 4G कैसे लौंच किया जा सकता है? इस पर आश्चर्य तो उसे भी था किन्तु सबकुछ सामने ही घट रहा था|
क्या कारण है की 3G में घाटा खाने के बाद भी चीनी कम्पनियां 4G के पीछे पडी हैं| इस काम में निश्चित रूप से उन्हें भारी नुकसान होने वाला है| इससे यह साफ़ है कि ज़रूर चीनी सरकार इस काम के लिए चीनी कम्पनियों को मदद कर रही है| क्या हमारी सरकारों को इतनी सी बात पल्ले नहीं पड़ रही? क्या उन्हें किसी भी चीनी षड्यंत्र की गंध आनी बंद हो गयी या सच में ही भारत को चीन के हाथों बेच डालने के सपने सरकार ने बुन लिए हैं?
चीन समय पर भारत में 3G तो विकसित कर नहीं पाया तो ऐसे में वह 4G में अपने हाथ क्यों जला रहा है? इसका सीधा सा उत्तर यही है कि इस प्रकार भारत की जासूसी उसके लिए बहुत सरल हो जाएगी| मेरा विश्वास मानिये टेलीकॉम के सहारे किसी भी देश की खुफिया जानकारी निकालना मुश्किल काम नहीं है| इस प्रकार वह 4G में अमरीका को भी टक्कर दे सकेगा|
मुझे समझ नहीं आता कि सारी दुनिया में अपना लोहा मनवा चुके भारतीय इंजीनियरों पर आखिर उनके देश की सरकार ही विश्वास क्यों नहीं करती? अब तक पावर प्लांट अथवा टेलीकॉम के क्षेत्र में हमने जो उपलब्धियां विकसित की हैं, उन्हें आगे नहीं बढ़ाया तो परिस्थितियाँ इतनी अप्रासंगिक हो जाएंगी कि हम इस क्षेत्र में सदा के लिए चीन पर आश्रित हो जाएंगे| यह हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है| परिस्थितियाँ चिंताजनक हैं व भयंकर भी हो सकती हैं|

Wednesday, December 21, 2011

आओ मनमौनी बाबा, आज तुम्हे थोडा अर्थशास्त्र पढाएं


कौन कहता है कि मनमोहन अर्थशास्त्री है? कौन उनके नाम के आगे "डॉ." की उपाधि लगाता है?
कौन है वह, ज़रा सामने तो आए?
समाज में इस तरह की अफवाहे फैलाने का दंड तो मिलना ही चाहिए|


मनमोहन का अर्थशास्त्र, अभी आपके सामने प्रस्तुत है| मैंने अर्थशास्त्र नहीं पढ़ा है| Economics का "E" भी नहीं जानता| किन्तु अपना हिसाब किताब तो खुद ही कर लेता हूँ| उसके अनुसार ही कुछ गुस्ताखी कर रहा हूँ|


मनमौनी ने अभी रूस यात्रा की| यात्रा का मुख्य कारण था रूस के साथ किया गया एक रक्षा समझौता| जिसके अंतर्गत 20 हज़ार करोड़ की लागत से मनमौनी ने रूस से 42 सुखोई विमान खरीदे हैं| अव्वल तो मुझे इसकी ज़रूरत ही नहीं लगती| मैंने अपनी पिछली पोस्ट में भी लिखा था कि जब भारत अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस, त्रिशूल जैसी अत्याधुनिक मिसाइलें बना सकता है तो ये टुच्चे-मुच्चे लड़ाकू विमान उसके लिए कौनसी बड़ी बात है? रक्षा मंत्रालय की ओर से पहले इस दिशा में एक कारण यह दिया गया था कि DRDO (Defense Research & Development Organisation) ने 22 साल की मेहनत से जो अपना खुदका लड़ाकू विमान तैयार किया था उसे भारतीय वायु सेना ने अयोग्य घोषित कर दिया| अत: भारत लड़ाकू विमान बनाने में असक्षम है इस बात को मानते हुए अमरीका, रूस, फ्रांस आदि देशों से भारत रक्षा समझौते कर रहा है|
यह माना जा सकता है कि वह विमान अयोग्य हो, आखिर DRDO का काम कैसे चलता है यह सब जानते हैं| किन्तु क्या यह बात मानने में आती है कि इतनी भारी भरकम मिसाइलें बनाने वाला देश लड़ाकू विमान तक नहीं बना सकता? जिस देश के पास डॉ. कलाम जैसे वैज्ञानिक हों, उनके लिए सुखोई, मिग जैसे विमान क्या हैं?


चलिए एक बार यह भी मान लिया कि सच में भारत देश इस काम के लिए नालायक है| इस कारण विदेशों से ये विमान खरीदने पड़ेंगे| और इसीलिए पहले रूस से 20 हज़ार करोड़ का समझौता हुआ और बाद में फ्रांस से 10 हज़ार करोड़| मतलब कुल 30 हज़ार करोड़|
हमे विदेशों से ये विमान खरीदने हैं, मगर कितने? क्या जितनों की ज़रूरत है उतने खरीदना ज़रूरी है? क्या एक-दो विमान खरीद कर उनकी नक़ल तैयार नहीं की जा सकती? मुझे नहीं लगता कि भारतीय वैज्ञानिक और इंजिनियर इतने नालायक हैं कि नकल भी न कर सकें|
यदि ऐसा किया होता तो 30 हज़ार करोड़ का काम फ़ोकट में हो जाता|


अब ज़रा एक नज़र अर्थशास्त्र पर -


यदि 42 सुखोई न खरीद कर वैसे ही किसी पुराने सुखोई की नक़ल तैयार की जाती तो कितना खर्च आता और उससे क्या-क्या लाभ होते?
इसके लिए मैंने 30 हज़ार करोड़ का एक प्रोजेक्ट बनाया| अब मेरे पास दो विकल्प थे
या तो एक करोड़ लोगों को लेकर 30 हज़ार करोड़ का निवेश किया जाता, जिसमे प्रत्येक के हिस्से में 30 हज़ार रुपये आते| किन्तु यह अधिक कारगर न लगा तो मैंने दूसरा विकल्प सोचा|
यदि 30 हज़ार लोगों को साथ लेकर 30 हज़ार करोड़ खर्च किये जाएं तो प्रत्येक के हिस्से में एक एक करोड़ का निवेश आता है| किसी एक अच्छे वैज्ञानिक को पांच-दस लाख रुपये देकर किसी विमान की नक़ल तैयार कराई जाती| मुझे नहीं लगता कि इस काम में इससे अधिक खर्च आता| बल्कि हमारे बड़े से बड़े वैज्ञानिक यह काम फ़ोकट में ही करने को तैयार हो जाएंगे| बस जो तकनीकी खर्चा आएगा, वह झेलना पड़ेगा|
नक़ल तैयार होने के बाद तो यह काम कुछ भी नहीं रह जाएगा| यकीन मानिए, छोटा-मोटा ही सही किन्तु मैं भी एक इंजिनियर ही हूँ| विमान के आकार-प्रकार और तकनीकी का पता चलने के बाद में उसकी डुप्लीकेट कॉपी बनाना अधिक कठिन नहीं होगा| क्योंकि अब बाकी तो केवल असेम्बलिंग का काम ही बचा न| फिर भी यदि मुझ पर विश्वास न हो तो किसी अच्छे Aeronautical Engineer से संपर्क किया जा सकता है| एक वैज्ञानिक के बाद बाकी बचे 29,999 लोगों में ऐसे केवल 999 Engineers जुगाड़ना भारत सरकार के लिए कोई बड़ी बात नहीं है| इन इंजीनियर्स में कुछ Aeronautical होंगे, कुछ Electronics, कुछ Mechanical, कुछ Electrical, कुछ Metallurgy बस|
चलिए वैज्ञानिक एक नहीं पांच चाहिए तो चार इंजीनियर्स कम किये जा सकते हैं| प्रोजेक्ट 30,000 लोगों से बाहर नहीं जाएगा|
99 बड़े व अनुभवी इंजीनियर्स को 50,000 रुपये मासिक वेतन पर रखा जाए| ध्यान रहे, यह कोई बड़ी बात नहीं है| प्रत्येक के खाते में एक करोड़ रुपये हैं| चूंकि कुल विमानों की संख्या 42 है, इस हिसाब से हमारे पास करीब सवा दो अनुभवी इंजिनियर प्रति विमान के हिसाब से होंगे| जो इन सबके लिए सुपरवाइज़री करेंगे|
करीब दो सौ मध्यम क्रम के इंजीनियर्स को करीब 30-35 हज़ार के मासिक वेतन पर रखा जा सकता है| इस श्रेणी के हमारे पास करीब पांच इंजिनियर प्रति विमान के हिसाब से होंगे जो विमानों के किन्ही मुख्य हिस्सों पर ध्यान देंगे|
फिर निम्न वर्ग के 700 नए इंजीनियर्स को करीब 25,000 रुपये के मासिक वेतन पर रखा जा सकता है| इनकी उपलब्धता हमारे पास करीब 17 इंजीनियर्स प्रति विमान होगी| जो विमान के एक, दो या तीन भागों का काम सम्भालेंगे|
इंजीनियर्स के बाद करीब 5000 या इससे अधिक Technicians को करीब 15,000 के मासिक वेतन पर रख करीब 120 या अधिक Technicians प्रति विमान पर काम लिया जा सकता है, जो विमान का बाकी तकनीकी काम संभाल सकते हैं|
सबसे अंत में करीब 23,000-24,000 हज़ार अन्य छोटे-मोटे कर्मचारियों को करीब 10,000 रुपये के मासिक वेतन पर रख लिया जाए, जिससे कि हमारे पास करीब 570 अन्य कर्मचारी प्रति विमान उपलब्ध हों|
कुछ लोगों को शंका हो सकती है कि यह काम आखिर कितने दिन चलेगा| मैं कहता हूँ कि पूरा जीवन चलता रहेगा| याद रहे, प्रत्येक व्यक्ति के खाते में एक करोड़ रुपये हैं| सबसे अधिक वेतन पाने वाले इंजीनियर्स को 50,000 मासिक मिल रहा है| इस हिसाब से वह करीब 16-17 वर्षों तक यह काम कर सकता है| ठीक है, जब वेतन बढाने की बारी आए तब भी कोई चिंता नहीं| 30 हज़ार करोड़ का ब्याज इतना होगा कि ये Money Rotation जीवन भर चलता रहेगा| ये इतना धन है कि विमान को बनाने के लिए लगने वाले Raw Materials का खर्चा भी निकल सकता है| शायद थोडा बहुत ऊपर से लगाना पड़ जाए| इसमें कोई बड़ी बात नहीं है| विदेशों में इतने रुपये फूंकने से यह कहीं बेहतर है| अमरीका, रूस, फ्रांस आदि देश इसे अपने खर्चे के हिसाब से मुनाफा कमा कर बेचते हैं| हमारा माल व मजदूरी उनसे कहीं अधिक सस्ते हैं| इन देशों में मिलने वाला माल व मजदूरी हम भारतीयों के लिए कम से कम दस गुना महंगे हैं|
शायद कुछ लोगों को इस प्रकार तैयार विमानों की गुणवत्ता पर शंका हो| कोई बात नहीं इस शंका को दूर करने के लिए दो उपाय किये जा सकते हैं| एक तो इस प्रोजेक्ट में किसी भी प्रकार के आरक्षण की कोई संभावना न रखी जाए, जिससे की बेहतरीन वैज्ञानिक व इंजीनियर्स यह काम सम्भालें न की भीख में नौकरी पाने वाले, आरक्षण के द्वारा गुणी लोगों का हक़ मारने वाली जमात| दूसरा उपाय, एक से डेढ़ लाख रूपये मासिक पाने वाले बीस-पचास अति अनुभवशाली इंजीनियर्स को और रखा जा सकता है| चिंता न कीजिये, धन बहुत है| इसकी कोई कमी भारत देश में नहीं है|


आंकड़ों में थोड़ी बहुत ऊंच-नीच हो सकती है, मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूँ| कोई अच्छा अर्थशास्त्री इसमें संशोधन कर सकता है|


अब बताइये कि 30,000 करोड़ के इस रक्षा समझौते में किसी को क्या फायदा हुआ? सारा फायदा विदेशों को और हमारे खाते में केवल नुकसान| यदि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री अपना थोडा सा अर्थशास्त्र उपयोग में ले सकें तो 30,000 लोगों को रोज़गार भी मिल जाएगा|


ध्यान रहे चीनी ऐसा कर चुके हैं| साल 2009 में इंधन ख़त्म होने की वजह से एक अमरीकी विमान को चीन में उतारना पडा था| आधिकारिक रूप से इस विमान को मुक्त करने में चीन ने दस दिन लगा दिए और इन दस दिनों में चीन ने इस विमान की पूरी जन्मकुंडली बनाकर वैसे पचासों विमान खड़े कर दिए|
जब चीन यह काम कर सकता है तो मात्र 400 करोड़ की लागत से "चंद्रयान" बनाने वाले दिग्गज भारतीयों के लिए यह कौन सी बड़ी बात है?
अभी तो 400 करोड़ में एक विमान खरीद रहे हैं, जबकि हम भारतीय 400 करोड़ में चंद्रयान जैसा उपगृह बना चुके हैं, जिसे देख अमरीकी आँखें भी फटी रह गयीं थीं|
मुझे तो लगता है कि भारत देश को एक अत्याधुनिक लड़ाकू विमान खडा करने में अधिक से अधिक चालीस-पचास करोड़ का खर्चा आएगा या शायद उससे भी कम|


और यही अर्थशास्त्र यदि अन्य दिशाओं में भी लगाया जाए तो भारत हर वो निर्माण करने में सक्षम है, जिसकी इस समय दुनिया को आवश्यकता है| हमे तो नक़ल करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है| भारत सब कुछ खुद करने में ही सक्षम है| फिर न हमे रक्षा समझौतों की ज़रूरत होगी, न वाल मार्ट की और न ही अन्य विदेशी समानों की जो हमारे घरों तक पर अपना कब्ज़ा जमा चुके हैं|
सोचिये ज़रा, यदि इन सब विदेशी वस्तुओं का भी बहिष्कार हम भारतीय कर दें तो अपनी अर्थव्यवस्था व निर्माण से कितने ही भारतीयों को अच्छा ख़ासा रोज़गार मिल सकता है|
जब केवल लड़ाकू विमान बनाने में ही 30,000 भारतीयों को काम मिल रहा है तो सभी क्षेत्रों में स्वावलंबी होने पर कितने ही भारतीयों को रोज़गार मिलेगा| शायद काम इतना बढ़ जाएगा कि लोग कम पड़ जाएंगे| भारत देश में कोई भी बेरोजगार नहीं होगा|

नोट : आज भी हम भारतीय यह मानते हैं कि 17 दिसंबर 1903 में राईट बंधुओं ने पहला विमान बना कर अमरीका के दक्षिण कैरोलीना के समुद्री तटों पर उड़ाया जो 120 फुट की ऊंचाई तक उड़ने के बाद नीचे गिर गया था| जबकि इससे आठ वर्ष पहले एक मराठी श्री शिवकर बापूजी तलपडे ने सन 1895 में मुंबई के चौपाटी के समुद्री तट पर एक विमान बना कर उड़ाया था जो 1400 फुट की ऊंचाई तक उड़ा और सुरक्षित नीचे उतार लिया गया| मज़े की बात इसमें कोई भी चालक नहीं था| इस महान वैज्ञानिक ने इसे ज़मीन से ही नियंत्रित कर उड़ाया था| उससे भी अधिक मज़े की बात यह है कि इसकी प्रेरणा उन्होंने महर्षि भारद्वाज के विमानशास्त्र से ली जो भारद्वाज मुनि कई हज़ार साल पहले लिख चुके हैं| बाद में अंग्रेजों ने झांसा देकर उनसे इस विमान का डिजाइन हथिया लिया| इस घटना के कुछ ही समय पश्चात श्री शिवकर बापूजी तलपडे की रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी| किन्तु मैकॉले मानस पुत्र इस सच्चाई को आज तक हमारे पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं कर पाए| जबकि आज तक राईट बंधुओं का गुणगान गाए जा रहे हैं|

Sunday, December 18, 2011

Come on HINDUS, Lets Enjoy...CHEERS

आओ हिन्दुओं जश्न मनाएं| इससे ज्यादा हम कर भी क्या सकते हैं?
देखिये अभी हफ्ते बाद क्रिसमस आने वाला है| पता नहीं कितने ही मुर्ख बधाइयां देने आएँगे| फिर हफ्ते बाद नया(?) साल| इस बार मूर्खों की तादात और भी बढ़ जाएगी| शाम को मैक डोनाल्ड, पिज्जा हट, रात भर डिस्को-पार्टी, मस्ती, बीयर, सिगरेट, बाइक्स, रॉक म्यूजिक के साथ साथ HAPPY NEW YEAR का उद्घोष, और भी पता नहीं क्या क्या...
अंग्रेजों ने आधी दुनिया पर राज किया था, किन्तु गुलामी का सबसे ज्यादा असर हम भारतीयों पर ही हुआ है| अंग्रेज़ बनने की होड़ मची है| अँगरेज़ तो सोच रहे होंगे की फालतू ही दो सौ सालों तक अपने घर से दूर झक मारी| यदि मैकॉले पहले ही पैदा हो गया होता तो अंग्रेज़ इंग्लैण्ड में बैठकर ही हिन्दुस्तान चलाते|

हमारे आदरणीय(?), पूजनीय(?), सम्मानीय(?) प्रधानमन्त्री श्री(?) श्री(?)......100000000......8 मनमौनी सिंह का रूस दौरा हुआ| क्यों हुआ वो बाद में|
पहले तो उनके रूसी दौरे के दो दिन बाद ही इस्कॉन के संस्थापक "ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद" द्वारा रचित "भगवत गीता एज इट इज" को रूस में प्रतिबंधित कर देने की तैयारी हो रही है| कल सोमवार तक अदालत का अंतिम निर्णय भी आ जाएगा| रूसियों का देश है, वो चाहे जो कर सकते हैं| किन्तु उनका यह कहना कि "गीता एक उग्रवाद को बढ़ावा देने वाली किताब है जिससे केवल कलह-कलेश फैलता है", अनुचित है और सहन करने लायक नहीं है| उसपर मनमौनी का यह कहना कि हम रूस के इस फैसले की कड़ी निंदा करते हैं, आग में घासलेट डालने का काम करता है| उनसे इससे अधिक अब कोई अपेक्षा भी नहीं रह गयी| निंदा ही करनी है तो वह तो मैं भी कर सकता हूँ, फिर मुझे ही प्रधानमंत्री बना दो| शायद निंदा से ऊपर उठकर कुछ तो कर ही लेंगे|
खैर यहाँ किसी को खबर नहीं है| इस साल के जून से ही रूस में भगवत गीता पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए कार्यवाही चल रही है| मॉस्को के 15000 हिन्दुओं व कई इस्कॉन अनुयायियों ने भारत के प्रधानमंत्री की रूस यात्रा को देखते हुए उनसे गुहार लगाईं थी कि वे गीता पर प्रतिबन्ध को रोकने के लिए कोई कूटनीतिक प्रयास करें| अब क्या कूटनीतिक प्रयास हो सकते थे वो भी बाद में|
पहले तो ये कि जब पिछले साल अमरीका के एक पादरी फादर जॉन्स ने 9/11 को "कुरआन बर्न डे" ही कह दिया था, तब दुनिया के सभी सत्तर इस्लामी मुल्कों में आग लग गयी थी| बारिश कहीं हो रही थी और छतरियां कहीं और खुल गयी थी| खैर ये भी उन मुल्कों का एक सकारात्मक कदम था| कम से कम अपने धर्म ग्रंथों के अपमान को सहन तो नहीं करते|
हिन्दुओं के वश में ऐसा कुछ नहीं है| कुछ हिन्दू तो ये स्यापा पा रहे हैं कि रूसियों का देश है, वे जो चाहे कर सकते हैं| हम क्यों चिंता करें? कुछ का तो यह भी कहना है कि जब 85 प्रतिशत हिन्दू गीता पढना तो दूर उसे खरीदते तक नहीं हैं तो हम क्यों चिंता करें गीता की|
कम से कम ऐसे ठन्डे (सेक्युलर और शांतिप्रिय) हिन्दुओं को तो गीता अवश्य ही पढनी चाहिए| यदि गीता पढी होती तो गीता के इस अपमान पर महाभारत अवश्य हो जाता|

खैर इन मूर्खों पर ध्यान देने से अच्छा है, पहले ये जाने कि मनमौनी का रूस दौरा क्यों हुआ था?
दरअसल मनमोहन सिंह ने रूस के साथ एक रक्षा समझौता किया था| जिसके लिए वे रूस से 20 हज़ार करोड़ की लागत से 42 सुखोई विमान खरीदने गए थे| रूस की अर्थव्यवस्था भारत जैसे देशों को अपने हथियार बेचने से चलती है| चाहे जंगी जहाज गोबोंचोव हो या मिग और सुखोई जैसे विमान| अमरीका और रूस जैसे देशों का धंधा ही यह है| यहीं से मनमोहन कुछ कूटनीतिक प्रयास कर सकते थे, जिनकी चर्चा ऊपर की गयी है| इस रक्षा समझौते के चलते अपने नाक, आँख, कान, हाथ, टांग सब ऊपर रखे जा सकते थे| किन्तु मनमौनी के लिए इतनी दलेरी संभव नहीं|
अब कुछों के मन में प्रश्न आ सकता है कि ये विमान रूस से नहीं खरीदते तो कहाँ से आते? किसी से लेने की कोई ज़रूरत ही नहीं है| एक ओर तो भारतीय वैज्ञानिक अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें बना लेते हैं, वहीँ दूसरी ओर टुच्चे टुच्चे विमान व जहाज बनाने में भारत असक्षम है| क्या ये बात मानने में आती है? चलो यह भी मान लिया कि ये सब भारत में नहीं बन सकता, तो भी 42 विमान खरीदने की क्या ज़रूरत है? एक खरीदो और बाकी 41 क्या 4100 उसकी देखा देखा बना लो| भाई नक़ल तो कर सकते हैं, अब इतना गया गुज़रा देश भी नहीं है हमारा| 2009 में जब एक अमरीकी लड़ाकू विमान को इंधन ख़त्म होने के कारण चीन में उतारना पडा तो आधिकारिक रूप से उसे छोड़ने के लिए चीन ने दस दिन लगा दिए| इन दस दिनों में चीन ने उस विमान की सारी जन्म कुंडली बना कर वैसे पचासों विमान खड़े कर दिए| जब चून्धी आँखों वाले चार फुटिए ऐसा कर सकते हैं तो हम तो उनसे कहीं बेहतर हैं न|

दूसरी घटना पाकिस्तान से आए 151 हिन्दुओं की है, जो भारत में ही यहाँ-वहां भटक रहे हैं| इन शरणार्थियों के लिए अब भारत में ही कोई जगह नहीं बची है| ये पाकिस्तान दुबारा जाना नहीं चाहते| क्योंकि वहां न केवल इनकी जान को खतरा है, बल्कि इनकी बहन-बेटियों की इज्ज़त भी खतरे में है| कईयों ने अपने स्वजनों व इज्ज़त को खोया है| किन्तु भारत में बांग्लादेश से आए 5-6 करोड़ मुसलमान शरणार्थियों के लिए तो जगह है किन्तु इन 151 हिन्दुओं के लिए नहीं| कभी दिल्ली में बैठी सरकार इन्हें भगा देती है तो कभी उत्तर प्रदेश की माया इन्हें नोएडा से फटकार कर निकाल देती है| कल शाम को उत्तर प्रदेश पुलिस ने नोएडा के एक मंदिर में शरणार्थी इन हिन्दुओं को जबरन बाहर निकाल कर एक हाइवे पर छोड़ दिया| कड़कती सर्दी में इनका क्या होगा, इसकी चिंता किसी को नहीं है| बांग्लादेशी मुसलामानों को तो सरकार राशन कार्ड व वोटर आई डी कार्ड देना चाहती है, जबकि इन हिन्दुओं के लिए सर छुपाने की जगह तक नहीं|

अंत में जाते-जाते एक अनुरोध - कृपया कोई हिन्दू मुझे MERRY CHRISTMAS अथवा HAPPY NEW YEAR जैसे शब्द न कहें| अन्यथा औपचारिकता के लिए SAME TO YOU भी नहीं कह सकूँगा|

Thursday, November 17, 2011

सी.बी.आई. को चिदंबरम की खुली धमकियां| जियो डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी...

कांग्रेस की संगत का असर देश की प्रमुख जांच एजेंसी सी.बी.आई. पर साफ़ दिखाई दे रहा है| यहाँ तक कि हरामखोरी भी सीख डाली| खैर गुरु चेले की लड़ाई में गुरु अपने पास एक न एक ऐसा गुप्त हथियार तो रखता ही है जिससे कि कभी चेला गुरु के सामने सर उठाने की कोशिश करे तो उसका सर कुचला जा सके|


जैसा कि हम सब जानते ही हैं कि राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला व 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, सभी में डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने सरकार का जीना हराम कर रखा है| यहाँ तक कि देश कि सर्वोच्च जांच एजेंसी सी.बी.आई. की नाक में भी नकेल कस रखी है| सी.बी.आई से वही काम करवा रहे हैं जो यह एजेंसी करना ही नहीं चाहती| जब सुप्रीम कोर्ट का हथोडा सर पर पड़ेगा तो कोई क्या करेगा?

करीब दो सप्ताह पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने सी.बी.आई. को यह आदेश दे दिया था कि वह तीन दिन के अन्दर 2G घोटाले में चिदंबरम का नाम आने सम्बन्धी सभी फाइलें डॉ. स्वामी को सौंप दे| बारह दिन निकलने के बाद भी जब डॉ. स्वामी को वे फाइलें नहीं मिलीं तो उन्होंने फिर से विशेष अदालत के जज श्री ओ.पी.सैनी से इससे सम्बंधित पूछताछ की| ऐसे में स्पेशल कोर्ट ने सी.बी.आई. को जम कर लताड़ा| जैसा कि आजकल सरकार भी ऐसी नित नयी फटकारें सुप्रीम कोर्ट द्वारा खाती ही रहती है| सी.बी.आई. पर कांग्रेस की संगत का सबसे बुरा असर यही हुआ है|
फटकार पड़ने के बाद सी.बी.आई. के वकील ए.के.सिंह ने १७ नवम्बर तक सभी सम्बंधित फाइलें डॉ. स्वामी को सौंपने का आश्वासन सुप्रीम कोर्ट को दे दिया है|

2G घोटाले के चलते डॉ. स्वामी की कृपा से पहले ही अच्छी खासी शख्सीयतें तिहाड़ वास कर ही रही हैं, साथ ही स्मरण रहे कि डॉ. स्वामी यह भी कह चुके हैं कि एक बार सभी फाइलें उनके हाथ लगते ही पंद्रह दिन के भीतर चिदंबरम भी तिहाड़ दर्शन कर लेगा| अब ऐसे समय में सी.बी.आई. के पाले में गेंद को देखकर उसे चुप रखना चिदंबरम की सबसे बड़ी मजबूरी थी|
अभी कुछ दिन पहले ही अहमदाबाद में हुए एक कार्यक्रम में जनता को संबोधित करते समय डॉ. स्वामी ने कहा कि सी.बी.आई. का वर्तमान निदेशक उनका शिष्य रह चूका है, जिसने उन्हें बताया था कि चिदंबरम ने सी.बी.आई. को खुली धमकी दी है कि 2G घोटाले में उससे सम्बंधित कोई भी फ़ाइल यदि डॉ. स्वामी तक पहुंची तो वह सम्बंधित अधिकारियों की सीआर खराब कर देगा|
अब यह तो कभी बताने की जरुरत ही नहीं कि सी.बी.आई. गृह मंत्रालय के अधीन है| साथ ही यह भी बताने की जरुरत नहीं कि चिदंबरम अथवा कांग्रेस सी.बी,आई, का आखिर क्या बिगाड़ लेंगे?
किसी भी आई.पी.एस. अधिकारी की सीआर खराब हो जाने से उसका पूरा करियर चौपट हो सकता है| इसके अच्छे खासे उदाहरण सी.बी.आई. के पूर्व संयुक्त निदेशक श्री यू.एन.विश्वास हैं, जिन्होंने चारा घोटाले सम्बंधित कड़ी जांच में कांग्रेस तक कि चूलें हिला दी थीं| अब इसका दंड तो उन्हें मिलना ही चाहिए, आखिर कांग्रेस से जो पंगा ले लिया| अत: जांच पूरी होने के बाद उनके अगले प्रोमोशन को रोक दिया गया व साथ ही सीनियर होने के बावजूद उन्हें सी.बी.आई. के निदेशक के पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया| इतने से भी पेट नहीं भरा तो ऐसी परिस्थितियाँ खड़ी कर दीं कि श्री विश्वास अपनी पेंशन पाने के लिए अंत तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे| इतना ही नहीं चारा घोटाले में जांच सम्बन्धी अन्य आई.ए.एस. अधिकारियों के भी प्रोमोशन रोक दिए गए|
इसी प्रकार याद होगा जब देश की पहली महिला आई.पी.एस. अधिकारी किरण बेदी के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया गया था| राजिव गांधी का चालान काटने व इंदिरा गांधी की गाडी नो पार्किंग से उठाने का दंड उन्हें कभी तिहाड़ जेल में पोस्टिंग के रूप में मिला तो कभी उनको छोड़कर उनसे दो वर्ष जूनियर ऑफिसर को दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाकर मिला|

खैर ये सब तो कांग्रेसी तानाशाही की दास्तानें हैं, अधिकतर तो जानते ही हैं|
मुख्य बात ये है कि डॉ. स्वामी के दावों के कारण चिदंबरम व सोनिया के हलक से पानी भी नहीं उतर रहा| डॉ. स्वामी का दावा है कि 2G घोटाले में चिदंबरम ने करीब दस हज़ार करोड़ रुपये की दलाली खाई है| डॉ. स्वामी का यह भी कहना है कि तात्कालिक वित्तमंत्री व वर्तमान गृहमंत्री के अनुमोदन व हस्ताक्षर से युक्त दस्तावेज स्पेक्ट्रम घोटाले में उनकी मिलीभगत साबित करते हैं। सोनिया को यह डर है कि यदि चिदंबरम पकड़ा गया तो उसके पचास हज़ार करोड़ का भांडा भी फूटा ही समझो|

डॉ. स्वामी न होते तो पता नहीं कौन कांग्रेस की काली करतूतों का पर्दाफाश करता व कौन भाजपा के लिए सत्ता के गलियारों तक पहुँचने का रास्ता साफ़ करता? खैर अभी भी भाजपा सजग हो जाए तो उसे वह गौरवपूर्ण स्थान मिल सकता है जिसकी वह अधिकारी है|

अंत में जाते-जाते एक खबर यह भी है कि कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी ने अपने भाषण में उत्तर प्रदेश के युवाओं को भिखारी कहा है| मुझे तो लगता है कि अब इसके खुद के भिखमंगे बनने के दिन आने वाले हैं|



Friday, September 9, 2011

आधी कौड़ी के बांग्लादेश के सामने झुक गए, दो कौड़ी के पाकिस्तान के आगे क्या करोगे मनमोहन?

मनमोहन सिंह (सिंह शब्द के उपयोग से कृपया "सिंह" अपमान का अनुभव न करें, प्रधान मंत्री का पूरा नाम लिखना मजबूरी है) की बांग्लादेश यात्रा हुई, मुझे तो खबर तक नही लगी| ऐसी कैसी गुप्त यात्रा थी? देश का प्रधान मंत्री कब कहाँ जाता है, क्या करता है, देशवासियों को खबर नही, लोकतंत्र(?) है न|
जाहिर है जब यात्रा की खबर नही तो वहां क्या हुआ, इसका पता चलना तो असम्भव है| मनमोहन सिंह की रीढ़ की हड्डी की लचक के बारे सुना तो बहुत था, किन्तु आज नयी जानकारी मिली है कि उनके पास रीढ़ की हड्डी है ही नही| बांग्लादेश (कोई साइज़ जानता है इस पिद्दी देश का?) के सामने साष्टांग दंडवत लोट कर आए हैं| इतना घटिया निर्णय लेने वाले मनमोहन सिंह देश के पहले प्रधान मंत्री हैं|

मित्रों आज सुबह ही खबर मिली कि मनमोहन सिंह हमारे ही देश के एक प्रदेश असम की 435 एकड़ भूमि बांग्लादेश को दान में दे आए हैं| इस काम में मनमोहन सिंह का साथ दिया असम के मुख्य मंत्री तरुण कुमार गोगोई ने|

असम इस समय विरोध की आग जल रहा है| प्रदेश के नागरिक अपनी भूमि बांग्लादेश को दिए जाने के विरोध में उग्र हो रहे हैं| विरोध के चलते All Assam Students’ Union (AASU), असम का मुख्य विपक्षी दल Asom Gana Parishad (AGP) व BJP भी सड़कों पर उतर आए हैं| गुवहाटी व असम के अन्य क्षेत्रों में गोगोई व मनमोहन सिंह के पुतले जलाए जा रहे हैं| कहीं किसी सबसे तेज़ या सबसे आगे चैनल पर ऐसी खबर देखी?

AASU के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने तो सीधे सीधे प्रधान मंत्री को कड़े शब्दों में कह डाला कि आज तो बांग्लादेश के आगे झुक कर असम की धरती बांग्लादेश को दान में दे दी, बताइये कश्मीर का कितना भाग पाकिस्तान को सौंपने का मन बना लिया है?
यह एक बिलकुल बेतुकी संधि है जिस पर मनमोहन सिंह और गोगोई ने बांग्लादेश के साथ सहमती बना ली है| प्रधानमंत्री को क्या अधिकार है, बिना इस मुद्दे को संसद में उठाए, बिना देश की जनता को इस से अवगत करवाए इतनी बड़ी भूमि किसी शत्रु देश को दान में देने का?

AGP के अध्यक्ष चन्द्र मोहन पटवारी ने तो बांग्लादेश के साथ हुए इस Land Border Agreement को  Second Yandaboo Treaty के सामान बताया है| जिसे स्वीकार कर गोगोई ने अपनी कमजोरी का परिचय ही दिया है| गोगोई के लिए यह पहला अवसर था जब उसे दो देशों के बीच हुई द्वीपक्षीय वार्ता का हिस्सा बनने का मौका मिला| किन्तु उसने अपनी कमजोरी से राष्ट्रीय हितों को अनदेखा किया है|

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता सरबनंद सोनोवाल ने इसे असम के इतिहास का काला दिवस बताया है| और चेतावनी दी है कि इस संधि के विरोध में देशव्यापी आन्दोलन किया जाएगा|

छिटपुट गालियाँ पड़ने के बाद सरकार ने दुहाई दी है (अब लाख छिपाने के बाद भी खबर बाहर आ जाए तो सफाई तो देनी ही पड़ेगी) कि इस संधि के अनुसार बांग्लादेश के पलाथोल की 74 एकड़ भूमि, दुमाबरी (जिला करीमगंज) से 75 एकड़ भूमि व बोरोइबरी से 193 एकड़ भूमि भारत को मिलेगी|
बदले में बांग्लादेश ने भारतीय कब्ज़े से अपनी 145 एकड़ भूमि नायगांव से व 290 एकड़ भूमि पलाथोल से मांगी है, जिसपर मनमोहन सिंह व गोगोई ने सहमती दिखा दी है|
अव्वल तो इसमें कितनी सच्चाई है, इस पर ही शंका है| दूसरी बात भारत के कब्ज़े में बांग्लादेश की ज़मीन, कभी सुना है इस बारे में? अकेले असम में चालीस लाख बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं| पूरे भारत में करीब दो करोड़ से अधिक बांग्लादेशी हैं| यदि उपरोक्त संधि में सच्चाई है तो क्या मनमोहन सिंह बांग्लादेश पर इन घुसपैठियों के सम्बन्ध में कोई दबाव नही बना सकते थे? ऊपर से अपनी 342 एकड़ भूमि के बदले बांग्लादेश को 435 एकड़ भूमि, यह कैसी संधि हुई?
असम की यह धरती कांग्रेस पार्टी की जागीर नही है जो इसे देशवासियों से बिना पूछे किसी भी भूखे नंगे देश को दान में दे डाले|

इनसे तो अच्छा व कडा रुख ममता बनर्जी ने ही दिखा दिया जिसने यात्रा शुरू होने के अंतिम दिनों में मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा का समर्थन नही किया, क्योंकि समझौते के अंतर्गत पश्चिम बंगाल की तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर उसे बांग्लादेश के आगे झुकना स्वीकार नही था| अत: यात्रा का बहिष्कार कर बनर्जी ने अपनी कमर तो सीधी रखी ही साथ ही तीस्ता जल बंटवारे की शर्तों को मानने से भी इनकार कर दिया|
मनमोहन सिंह, आपमें "सिंहों" वाले गुण तो नही हैं, कम से कम अब थोड़ी सी मर्दानगी स्त्रियों से ही सीख लीजिये|

भारत बांग्लादेश के मध्य 4,096 किमी की सीमा रेखा पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मेघालय व मिजोरम को छूती है| क्या पता भविष्य में यहाँ भी मनमोहन सिंह को दानवीर बनने का शौक चढ़ जाए|
शायद भविष्य में कुछ ख़बरें ऐसी भी सुनने को मिल जाएं-
  • पाकिस्तान के साथ हुए समझौते के अनुसार मनमोहन सिंह ने कश्मीर में कुछ सौ एकड़ ज़मीन के बदले श्रीनगर पाकिस्तान को दान कर दिया|
  • पंजाब व राजस्थान से सटी भारत-पाक सीमा के कुछ गाँवों के बदले पंजाब का अमृतसर व राजस्थान का बीकानेर व जैसलमेर पाकिस्तान को दान कर दिया|
  • साथ ही साथ चीन से हुए समझौते में लद्दाख की कुछ सौ एकड़ भूमि के बदले पूरा अरुणाचल प्रदेश चीन को दान कर दिया|
  • लगे हाथों नागालैंड ने भी स्वतंत्र राष्ट्र की मांग कर डाली, ऐसे में दानवीर मनमोहन ने पूरा नागालैंड ही स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दान कर दिया|
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सबसे बड़ी बात कि देश में इतना कुछ हो रहा है और किसी को खबर ही नही है| अभी तो सोनिया गांधी के भारत आगमन को भी छिपाया जा रहा है| खबर है तो सिर्फ दिल्ली हाई कोर्ट के सामने "धमाका"| 
कहीं यह धमाका इसीलिए तो नही हुआ, ताकि मैडम के लौटने व प्रधान मंत्री का दानवीर बनने की दोनों ख़बरों को हाईजैक किया जा सके?

अब आगे आगे देखिये, होता है क्या???

Tuesday, September 6, 2011

बाबा रामदेव, आपकी इतनी जुर्रत


अरे नही, चौंकिए मत| दिवस का ह्रदय परिवर्तन नही हुआ है| दरअसल कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलना इस देश में अब हिम्मत नही, जुर्रत बन गया है, साहस नही, दुस्साहस बन गया है| और यही जुर्रत बाबा रामदेव बार बार किये जा रहे हैं|
अभी तो ताजातरीन कांग्रेस का एक और हक़ मार दिया बाबाजी ने| बताइये जुर्रत नही हुई क्या? इतने पचड़े क्या कम थे जो अब बांग्लादेशियों पर भी नज़र डाल बैठे? कुछ तो काम छोडिये कांग्रेस के लिए| बेचारे(?) बांग्लादेशी हमारे यहाँ शरणार्थी बन रहे हैं (इसी कांग्रेस की कृपा से) और इन्होने वहाँ भी अपनी टांग अड़ा दी| इनकी इतनी जुर्रत कैसे हुई कि इन्होने अपने योग शिविर में एक बांग्लादेशी का मानसिक उपचार किया? क्या इन्हें पता नही कि बांग्लादेशियों का ठेका केवल कांग्रेस के पास है?

अभी नया नवेला मामला (क्योंकि मामले बहुत हो गए हैं, और अधिकतर तो बासी भी हो गए हैं, तो कोई नया मामला खडा करना बेहद ज़रुरी था) यह है कि बाबा रामदेव के योग शिविर में ब्योमकेश भट्टाचार्य नामक बांग्लादेशी नागरिक की उपस्थिति को लेकर पुलिस ने बाबा रामदेव को नोटिस जारी किया है| ब्योमकेश भट्टाचार्य अपने पुत्र का इलाज करवाने बांग्लादेश से बाबा रामदेव के योग शिविर में आए थे|
बाबाजी की जुर्रत तो देखिये जो एक बांग्लादेशी का इलाज किया| और वह भी हिन्दू, ऊपर से ब्राह्मण| मतलब कांग्रेस की दृष्टि में करेला ऊपर से नीम चढ़ा| अरे इलाज ही करना था तो किसी मुसलमान को पकड़ लेते| मुसलमान न मिले तो किसी दलित पिछड़े को ही पकड़ लेते| कोई इन्हें टच भी नही करता| पहले से ही करोड़ों बांग्लादेशी मुसलमान भारतीयों की छाती पर मूंग दल रहे हैं| जब जब मौका मिलता है तो यहाँ वहां बम भी फोड़ देते हैं| यदि इलाज ही करना था तो इन बेचारे भूखे नंगों का करते|
हमारे प्रधानमन्त्री(?) की ओर से शायद बाबाजी को कुछ छूट मिल जाती| क्योंकि इन्ही की सरकार में मंत्री रह चुके रामविलास पासवान जब बांग्लादेशियों के मताधिकार के लिए आवाज़ उठाते हैं तो उनका पद बरकरार रहता है|

बाबाजी से यही कहना चाहता हूँ कि आपने तो कांग्रेस का यह अधिकार भी छीनने की जुर्रत की है| बार बार आप सांप के बिल में हाथ डाल रहे हैं| आपने इतनी जुर्रतें कर दी हैं कि अब उनका हिसाब कौन देगा?

अव्वल तो आप भगवा पहनते हैं, आपको पता नही कि सेक्युलरों की आँख में यह रंग कितना चुभता है| इनका वश चले तो ये तिरंगे को भी दुरंगा बना डालें|
आपने हिन्दुओं की लुप्त हो चुकी प्राचीन विद्या को पुनर्जीवित कर दिया और उसे न केवल घर-घर, बल्कि देश-विदेश में पहुंचा दिया| बताइये अब विदेशी दवा कंपनियों की दलाली कहाँ से खाएंगे ये?
आपने देश भर में स्वदेशी की विचारधारा का प्रचार प्रसार किया| यहाँ भी आपने इनकी दलाली मार दी|
आपने गुजरात में जाकर नरेंद्र मोदी के मंच पर खड़े होकर भाषण पेला| आपको पता नही कि गुजरात एक शत्रु प्रदेश है और नरेंद्र मोदी एक मिर्ची, जो सेक्युलरों को यहाँ वहां जलाती रहती है|
आपने संघ से अच्छे सम्बन्ध बनाए| आपको पता होना चाहिए कि संघ एक राष्ट्रवादी और हिंदूवादी संगठन है| अत: इसे पहले से ही अछूत की श्रेणी में डाल रखा है|
और तो और आपने अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक अखंड भारत का नारा दे डाला| आप ये भी भूल गए कि अफगानिस्तान व पाकिस्तान भारत में मिल गए तो इन सेक्युलरों के माई बाप कहाँ जाएंगे? यदि कैलाश मानसरोवर, लद्दाख व तिब्बत भारत में आ गए तो चून्धी आँखों वाले चीनी क्या करेंगे?
और सबसे बड़ी जुर्रत तो यह कि आपने भ्रष्टाचार के विरूद्ध मोर्चा खडा कर दिया| किया तो किया, इसमें आपने कालाधन वापस लाने की मुहीम भी छेड़ दी| इसके लिए एक लाख से अधिक लोगों के साथ दिल्ली में अनशन पर बैठ गए| और आधी रात में पिटने के बाद भी आपने अपनी जुबां बंद नही रखी| यहाँ तक कि स्विस के साथ साथ इटली के बैंकों की भी पोल खोल दी| बताइये भला सोनिया माता की कोई इज्ज़त है कि नही?

इतनी जुर्रतें क्या कम थीं जो अब नया पंगा खडा कर दिया| बताइये कौन देगा हिसाब?

बाबाजी आप तो बहुत बड़ी चीज़ हैं, अरे इन्होने तो केजरीवाल को भी नही बख्शा| लाखों करोड़ों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वाले एक युवा पर केवल नौ लाख के भ्रष्टाचार का आरोप मढ़ डाला| सरकार ने इसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया| आखिर कल पैदा हुआ छोरा इनकी नाक में दम किये बैठा था| यहाँ तक कि इसे युवराज(?) से बढ़कर आँका जाने लगा| इसका इलाज तो करना ही था| जब इसे ही नही छोड़ा तो आपने तो सत्ता ही हिला दी|

ये सब कारनामे अब कांग्रेस की दृष्टी में हिम्मत नही, जुर्रत की श्रेणी में आते हैं| अब ज़रा बच के रहना|

Sunday, August 21, 2011

मुझे अन्ना से कोई परेशानी नहीं, परेशानी है तो कथित गांधीवाद से

अन्ना भक्तों(?) से स्थान स्थान पर भिन्न भिन्न प्रकार के आरोप सुनने के बाद मैं आज फिर हाज़िर हूँ| अन्ना भक्तों से कहना चाहता हूँ की मैं कल दिनाक २० अगस्त २०११ को लगातार पांचवे दिन भी सड़कों पर चिल्ला कर आया हूँ| आज भी जाने वाला हूँ| आज तो बीस हज़ार की रैली है ऊपर से गले की हालत भी पतली है| अन्ना और उनके आन्दोलन को मेरा पूरा समर्थन है| लेकिन अपने मन की बात जरुर कहूँगा|
मुझे तकलीफ यही है कि अन्ना आन्दोलन में घाट घाट पर चिल्लाने के बाद भी किसी प्रकार का कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं होने वाला| फिर भी चिल्ला रहे हैं| आखिर यह चिल्ला चोट क्यों?

शाम को आन्दोलन में ही एक मित्र भाई अभिषेक पुरोहित जी से इस विषय में काफी बात हुई| उन्होंने विषय पर बेहतर प्रकाश डाला| काफी हद तक बादल छंट चुके हैं|

सबसे बड़ी जो बात है वह यही कि अब यह कथित गांधीवादी तरीका कोई काम नहीं आने वाला| मुझे बताएं, इस गांधीवादी तरीके से इस देश को आखिर मिला ही क्या है? देरी से मिली आज़ादी, टूटी फूटी आज़ादी, और तो और टुकड़े टुकड़े हुआ देश, जिसमे भी कहीं कोई शान्ति नहीं, बस यही सब देन है गांधीवाद की इस देश को|

गांधी जी जब सौ साल पहले १९११ में दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे, उस समय भारत में पहले से ही आज़ादी की लड़ाई चल रही थी|
और पहले जाएं तो १८५७ की क्रान्ति जैसा तो कोई उदाहरण ही नहीं है| एक ऐसी क्रान्ति कि पूरे भारत देश में किसी अंग्रेज़ को इसकी योजना बनने की भनक तक नही लगी| रातों रात एक ऐसा जन समूह खड़ा हो गया कि जिसने भारत में अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया| पूरे भारत में उस समय उपस्थित तीन लाख से अधिक अंग्रेजों में से केवल कुछ हज़ार ही जीवित बचे थे| ऐसा मैनेजमेंट क्या आज के समय में कहीं (कांग्रेस को छोड़कर) दिखाई देता है?

गांधी जी जब भारत आए थे, उस समय भी लड़ाई जोरों शोरों पर थी| महाराष्ट्र में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक सक्रीय थे, पंजाब में लाला लाजपत राय, बंगाल में अरविन्द आदि आदि| ऐसे समय में गांधी जी के लिए कहीं कोई स्थान ही नही था| किन्तु किस्मत ने कुछ पलटा खाया कि कुछ समय बाद दुर्भाग्यवश लोकमान्य तिलक की मृत्यु हो गयी, अरविन्द सन्यासी हो गए, लालाजी अकेले रह गए, ऊपर से देश में जलियांवाला बाग़ जैसी भीषण दुर्घटना घटित हो गयी| गांधी जी को स्थापित होने के बेहतर अवसर इसी समय मिले|

नोट : मैं कहीं भी गांधी जी पर किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं लगा रहा| मैं गांधी जी का आज भी सम्मान करता हूँ| कहानी को समझिये| गांधी जी की देश भक्ति पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं| कहीं ऐसा न हो कि अन्ना भक्तों की तरह गांधी भक्त भी मुझे राष्ट्रद्रोही करार दें| मैं केवल पुराने सन्दर्भों को आज के समय में रख रहा हूँ|

समय ही कुछ ऐसा था कि इस दुविधा की घडी में हमारे पास केवल गांधीवाद नाम का ही एक उपाय रह गया| कल तक जो देश भक्ति भारतीयों को बहुत महँगी पड़ती थी, गांधी जी ने उसे एकदम सस्ता कर दिया| आपको कुछ नही करना, केवल ठाले बैठ जाओ, सरकार का पूरा असहयोग करो, नारे लगाओं, होली जलाओ और रात को घर जा कर सो जाओ|
क्रान्ति के नाम पर देशभर में जश्न का माहौल हो गया| लोगों को तो पता भी नहीं था की आज़ादी की कीमत इतनी सस्ती है|

गांधी से तो कोई शिकायत नही, उन्होंने किसी भी प्रकार कम से कम देश को एक तो कर ही दिया था| हिन्दू हों या मुसलमान, दक्षिण भारतीय हों या उत्तर भारतीय, सभी भारत की आज़ादी के लिए एक हो गए थे| अत: गांधी से कोई शिकायत नही किन्तु क्षमा चाहूँगा कठोरता से यह कहने के लिए कि गांधीवाद ने इस देश का पौरुष नष्ट कर दिया|
आज़ादी की लड़ाई के नाम पर ठाले बैठ जाना, या गली गली जाकर गला फाड़ देना, बस यही रह गया गांधीवाद में| गांधीवाद के जो सकारात्मक कदम थे, वो तो कांग्रेस ने वैसे ही १९४७ के बाद ही मिटा दिए|
गांधी जी स्वदेशी की बात करते थे, गांधी जी स्वावलंबन की बात करते थे, गांधी जी ग्रामस्वराज की बात करते थे, गांधी जी गौ हत्या रोकने की बात करते थे, इन सब को कांग्रेस ने गांधी जी के मरते ही गांधीवाद से लुप्त कर दिया और केवल चिल्ला चोट को ही गांधीवाद बना दिया|

और आज तक परिवर्तन के नाम पर यही चिल्ला चोट चल रहा है|
हमारे ताजातरीन गांधी जी भी यही कर रहे हैं| सड़कों पर जाओ, मोमबतियां जलाओ, गला फाड़ो और लीजिये आपका देश भ्रष्टाचार मुक्त|
मुझे बताएं, क्या ये लड़ाई इतनी सस्ती है कि बिना कोई कीमत चुकाए राष्ट्र निर्माण हो जाएगा? अन्ना जी कहते हैं कि ये दूसरी आज़ादी की लड़ाई है| इस काम की बहुत बड़ी कीमत होती है| सड़क पर चिल्लाने वालों को जब यह कीमत चुकाने को कह दिया जाएगा तो अधिकतर तो उलटे पाँव अपने अपने घर लौट जाएंगे|

अन्ना ने तो फिर भी कीमत चुकाई है| साथ ही उन्होंने यह आवाहन भी किया है कि जरुरत पड़ने पर जेल भरो आन्दोलन चलाया जाए| दिल्ली में बहुतों ने जेले भरी भी हैं| इस कदम के लिए अन्ना को नमन करता हूँ| किन्तु कितने लोग ऐसा करेंगे?
यहाँ तो क्रान्ति के नाम पर जश्न का माहौल है| शाम पड़े घूमने जाते थे, अब यहाँ इकट्ठे हो रहे हैं|
किसे परवाह है इस चिल्लाहट की? आप क्या सोचते हैं कि हमारे नारे सुनकर इस कांग्रेस का ज़मीर जाग जाएगा और ये लोकपाल बना देगी?
अरे जब अंग्रेजों को ही इन चीखों से कोई फर्क नही पड़ा तो यह कांग्रेस तो अंग्रेजों से भी गयी बीती है| लोग बार बार ये क्यों भूल जाते हैं कि इन्हें आपका दिल नहीं जीतना अपितु आप पर राज करना है| आप चाहें इनसे घृणा करें अथवा प्रेम, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला|
कुछ लोग यहाँ प्रश्न उठा सकते हैं कि इस प्रकार सरकार गिराई भी तो जा सकती है, फिर कैसे राज करेंगे? 
तो मित्रों आपातकाल लाने वाली भी ये कांग्रेस ही थी| आप चाहे इन्हें चुनावों में जिताएं अथवा हराएं, राज आप पर यही करना चाहेगी| और इसकी कोशिश भी पिछले ६४ वर्षों में यही रही है| तभी तो आज तक कुछ समय को छोड़कर और किसी को शासन चलाने का मौका ही नही मिला|

दूसरी बात, क्या मेरा उपयोग केवल चिल्लाने तक सीमित है? अरे ये काम तो कोई अनपढ़ गंवार भी कर लेता| मुझ जैसे पढ़े लिखे से तो भारत निर्माण के नाम पर कोई creative काम करवा लिया जाता तो अच्छा होता|
ठीक है, आज लोकपाल के लिए यदि सड़कों पर उतर कर नारेबाज़ी ही एक रास्ता है तो वो भी करूँगा| किन्तु लोकपाल के बाद क्या? क्या लोकपाल बनने के बाद मेरी भूमिका ख़त्म हो जाएगी?

मैं विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूँ कि मुझे अन्ना व उनके अभियान से कोई तकलीफ नही है| जन लोकपाल बन जाए तो हो सकता है यह देश के हित में ही हो| मैं अन्ना साहब हजारे का ह्रदय से सम्मान करता हूँ| किन्तु अब मुझे इन तरीकों में दम नही लग रहा| 

कल ही अन्ना का तिहाड़ जेल में एक वीडियो देखा था| उसमे अन्ना काफी खुश दिखाई दे रहे हैं, किन्तु हैं तो अनशन पर| मुझे यह देखकर अच्छा नहीं लगा कि वे भारत की जनता से कह रहे हैं कि मेरी चिंता मत करों, मैं बिलकुल ठीक हूँ| मुझे आपके प्यार से ऊर्जा मिल रही है|
अन्ना कुछ भी कहें, किन्तु ७४ वर्ष के एक वृद्ध का इस प्रकार भूखा रहना आज़ाद भारत में कहाँ तक उचित है? अब हमे भूखा नहीं रहना है, भूखा मारना है उनको जिनके कारण आज अन्ना को भी भूखा रहने की नौबत आ गयी है| अन्ना भूख से मर भी जाएं तो भी भ्रष्टों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| स्वामी निगमानंद भूख से मर गए, क्या फर्क पड़ा इस भ्रष्ट सरकार को? राम लीला मैदान में बाबा रामदेव के आन्दोलन में मैं और मुझ जैसे पता नहीं कितने ही लोग लाठियां खा चुके हैं| क्या फर्क पड़ा इस भ्रष्ट सरकार को? मैं अपने पिछले लेख में भी कह चूका हूँ की अन्ना का आन्दोलन कांग्रेस द्वारा अपने पक्ष में घुमाया जा रहा है और अन्ना को इसकी खबर तक नहीं| अपने स्वार्थों के लिए कांग्रेस को अन्ना की जान भी लेनी पड़ी तो वह पीछे नहीं हटेगी|

यही वजह है जो आज मैं यह लेख लिखने बैठा हूँ|
अत: स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि गांधीवाद के नाम पर होने वाला यह आन्दोलन सफल होना थोडा कठिन है| क्योंकि इसके चलते बार बार मुझसे पूर्ण रूप से अहिंसक होने की अपेक्षा की जाती है| जबकी भ्रष्टों के इस काले राज में अब मुझ जैसों से ऐसी अपेक्षा छोड़ देनी चाहिए|
जब तक अहिंसा से काम चल रहा है, चला रहे हैं| जरुरत पड़ी तो मरने मारने का काम भी कर सकते हैं|

अंत में जाते आते यह कहना चाहता हूँ कि इस लेख से यह न समझें कि मैं हिंसा या नक्सलवाद जैसी मुहीम को बढ़ावा दे रहा हूँ| तरीके और भी बहुत हैं| सबसे पहले तो अन्ना को बाबा रामदेव से अलग होकर नहीं साथ में रहकर मुहीम चलानी होगी| साथ ही अग्निवेश व अरुंधती राय जैसे नक्सलियों से दूरी बनानी चाहिए| अन्ना और बाबा एक हो जाएं तो इस भ्रष्ट व्यवस्था को आसानी से उखाड़ कर फेंका जा सकता है| मैं तो कहता हूँ कि दुश्मन की सोच पर वार किया जाए, विजय निश्चित है|
किन्तु फिर भी अन्ना मुझ जैसों से सड़कों पर उतरने की अपेक्षा करते हैं तो मैं रोज़ सड़कों पर उतरूंगा, चिल्लाऊंगा और सरकार को गालियाँ देता रहूँगा|

Friday, August 19, 2011

मैं भी अन्ना भक्त, किन्तु आज अन्ना भक्तों से गालियाँ सुनने आया हूँ


मित्रों लेख शुरू करने से पहले यहाँ आने वाले सभी पाठकों से आग्रह है कि कृपया इस लेख को ध्यान से पढ़ें|

मित्रों अन्ना हजारे का अनशन जनलोकपाल मुद्दे को लेकर चल ही रहा है| अनशन दिल्ली में है लेकिन उसकी आग देश भर में लगी हुई दिखाई दे रही है| मैं तो यहाँ जयपुर में देख रहा हूँ कि जो कहीं नहीं हो रहा वो कल दिनांक १८ अगस्त को जयपुर में हो गया| आन्दोलनकारियों ने सुबह से ही रैली निकालनी शुरू कर दी| इसमें यहाँ के व्यापारी भी शामिल थे| उन्होंने शहर भर में घूम घूम कर आधे दिन के लिए अन्ना के समर्थन में दुकाने व बाज़ार बंद रखने की याचना लोगों से की| कोई जोर ज़बरदस्ती नहीं थी, जिसकी इच्छा हो वो बंद करे जिसकी इच्छा न हो वो न करे| अधिकतर दुकाने व बाज़ार कल बंद रहे|
इसके अतिरिक्त रोज़ शाम को शहर के मुख्य मार्गों व चौराहों पर लोग एकत्र हो जाते हैं| ये लोग किसी दल के नहीं होते, इनका कोई नेता नहीं होता, केवल अपनी इच्छा से सड़कों पर उतर आए हैं व अन्ना के समर्थन में नारे लगा रहे हैं, मोमबत्तियां जला रहे हैं|
तीन दिनों से मेरा भी टाइम टेबल कुछ ऐसा ही चल रहा है| दिन भर अपना काम करते हैं व शाम को सड़कों पर उतर आते हैं| रोज़ भीड़ बढ़ती ही जा रही है| कल तो इतनी भीड़ थी कि लग रहा था कि पूरा देश ही अन्ना के समर्थन में आ गया है| खैर अपने को तो यूपीए सरकार या कहिये कांग्रेस पार्टी को घेरने का बहाना चाहिए|

देश भर का मीडिया भी जैसे सरकार गिराने पर तुला है| जहां देखो अन्ना, अन्ना और केवल अन्ना| जब भी, जहां भी कोई समाचार देखो तो बस अन्ना|

एक नारा जो बार बार सुनाई दे रहा है, वह है - "अन्ना एक आंधी है, देश का दूसरा गांधी है|"

बिलकुल मैं भी आज यही कह रहा हूँ| अन्ना दूसरा गांधी ही है| और अंग्रेजों की संज्ञा इस कांग्रेस को दी जा सकती है| बिलकुल ऐसा ही लग रहा है जैसे १९४७ से पहले का कोई सीन चल रहा हो| देश भर में रैलियाँ प्रदर्शन हो रहे हैं, जैसे गांधी जी के समर्थन में व अंग्रेजों के विरोध में १९४७ से पहले होते थे|

किन्तु अंग्रेजों को इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता था| जिसकी प्रकृति ही अत्याचारी हो, उसे इन नारों व भाषणों से भला क्या समस्या होती? अंग्रेजों को कौनसा यहाँ भारतीयों का दिल जीतना था? उनका मकसद तो भारत को लूटना व भारतीयों पर अत्याचार करना था| और वही काम आज कांग्रेस कर रही है| इन काले अंग्रेजों ने अपने गुरु गोरे अंग्रेजों से बहुत कुछ सीखा है|

याद रखने वाली बात यह है कि आज़ादी की लड़ाई केवल गांधी ने नहीं लड़ी| लेकिन अंग्रेजों ने केवल गांधी जी को हाई लाईट कर यह दिखाया कि भारत की आज़ादी के लिए लड़ने वाला सिर्फ गांधी ही है, क्योंकि गांधी से उन्हें कोई समस्या जो नहीं थी| जिनसे समस्या थी (भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस आदि) उन्हें पीछे धकेल दिया गया| जिनसे डर था वे गुमनामी में जीते रहे, और तो और अपने ही देशवासियों से अपमानित होते रहे| यहाँ तक कि उन्होंने अपनी लड़ाई के साथ साथ गांधी का भी सहयोग किया किन्तु स्वयं गांधीवादियों ने भी उन्हें अपनी लड़ाई से दूर रखा| निश्चित रूप से गांधी जी का अभियान देश के हित में था| इसके लिए भारत सदैव गांधी जी को याद रखेगा| लेकिन साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि समस्या को जड़ से मिटाने के लिए गांधी के रास्तों के साथ साथ कोई अन्य रास्ता भी अपनाना चाहिए था|

बिलकुल वही सीन अभी दोहराया आ रहा है|

कांग्रेस को डर अन्ना का नहीं है| अन्ना का डर होता तो आज अन्ना को मीडिया में इतना कवरेज नहीं मिलता| डर है तो बाबा रामदेव का| तभी तो अन्ना की गिरफ्तारी पर हो हल्ला होने पर भी कांग्रेसियों के कान पर जून तक नहीं रेंग रही थी| लेकिन जैसे ही बाबा रामदेव दिल्ली पहुंचे कि अन्ना की रिहाई के लिए सरकार ही पलकें बिछाने लगी| जो सरकार कल तक अनशन की इजाज़त तक नहीं दे रही थी, आज अचानक अनशन की अवधी का बढ़ाकर पहले तीन दिन से सात दिन व बाद में सात दिन से बढ़ाकर १५ दिन कर देती है| अन्ना थोड़े भाव और खाते तो शायद एक महिना या एक साल की अनुमति भी मिल जाती| ऐसा लग रहा था जैसे सरकार अन्ना से गुहार लगा रही हो कि आइये आप अनशन कीजिये और हो सके तो बचाइये अपने देश को| कहीं ऐसा न हो जाए कि इस पूरे प्रकरण में बाबा रामदेव हीरो बन जाएं और हम देखते रह जाएं|

इस बात से बिलकुल भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस को डर मुख्यत: बाबा रामदेव से ही है| जहां अन्ना को मीडिया में हाई लाईट किया आ रहा है वहीँ बाबा रामदेव के किसी कार्यक्रम को टीवी चैनलों का हिस्सा एक मिनट के लिए भी नहीं बनने दिया गया| क्योंकि अन्ना भ्रष्टाचार रुपी दानव के पैरों के नाखून काटने से शुरुआत कर रहे हैं जबकि बाबा रामदेव सीधा गले पर वार कर रहे हैं|
ध्यान रहे १९४७ से पहले गांधी जी भी किसी न किसी क़ानून को लेकर अंग्रेजों से बहस किया करते थे जबकि क्रांतिकारी सीधे भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए लड़ते थे|
क़ानून बन जाने से क्या होगा? बन जाए लोकपाल, जब कपिल सिब्बल जैसे क़ानून का बलात्कार करने वाले स्वयं मंत्रिमंडल में बैठे हों तो भला कोई क़ानून क्या उखाड़ लेगा?

गांधी जी के साथ "नेहरु" था, तो यहाँ अन्ना के साथ भी एक दल्ला "अग्निवेश" है| इन जैसों की छत्र छाया में भला कोई क़ानून कैसे सुरक्षित रह सकता है?
मुझे लगता है कि अन्ना की टीम में यदि किसी पर भरोसा किया जा सकता है तो वह स्वयं अन्ना पर अथवा किरण बेदी व अरविन्द केजरीवाल पर| भूषण बाप बेटे भला कब से भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने लगे?

कांग्रेस का बाबा से डर तो उसी समय समझ आ जाना चाहिए था जब अन्ना को राम लीला मैदान में अनशन की अनुमति मिली| जिस राम लीला मैदान से बाबा रामदेव व उनके एक लाख से अधिक समर्थकों को आधी रात में ही मार मार कर भगाया गया वहां अन्ना को सरकारी खर्चे पर जल्द से जल्द मैदान की सफाई करवा कर अनशन के लिए जमीन उपलब्ध की जा रही है|
बाबा रामदेव के आन्दोलन का दमन करने का कांग्रेस के पास जो सबसे बड़ा बहाना था वह ये कि "राम लीला मैदान चांदनी चौक के निकट है और यह स्थान साम्प्रदायिक हिंसा का केंद्र रहा है|"
तो अब अन्ना को ऐसे साम्प्रदायिक हिंसा के केंद्र पर अनशन की अनुमति क्यों दी गयी? क्या दिल्ली में और कोई जगह नहीं है?


कांग्रेस का मकसद साफ़ साफ़ दिखाई दे जाना चाहिए| उसे पता है कि इतनी फजीती होने के बाद वह २०१४ के लोकसभा चुनावों में नहीं आ सकती| उसकी हालत अभी वैसी ही है, जैसी इंदिरा गांधी के आपातकाल के समय थी| अत: जितना हो सके उसे जनलोकपाल के मुद्दे को घसीटना ही पड़ेगा| और दो साल बाद यह क़ानून पारित कर दिया जाएगा, जिसमे प्रधानमंत्री भी लोकपाल का शिकार होगा| ऐसे में बाबा रामदेव से भी पीछा छुडाया जा सकेगा और आने वाली सरकार को इसी लोकपाल से गिराकर फिर से तख़्त पर बैठा जा सकेगा|
कोई आश्चर्य नहीं जो ऐसे समय में पुन: कांग्रेस सत्ता में आ जाए| जब आपातकाल के बाद केवल दो वर्षों के जनता पार्टी के शासन के बाद पुन: सत्ता में आ सकती है तो आज क्यों नहीं? दरअसल भारत देश की जनता भूलती बहुत जल्दी है| देखिये न केवल दो ही वर्षों में इंदिरा का आपातकाल भूल गयी| १९४७ पूरा होते ही अंग्रेजों के दो सौ साल के अत्याचार भूल कर इंग्लैण्ड से दोस्ती कर बैठी| पाकिस्तान द्वारा थोपे गए चार युद्ध व सैकड़ों आतंकवादी घटनाओं को भूल कर दोस्ती की बात कर बैठी|

अन्ना की गलती वही है जो गांधी ने की| अन्ना जिस प्रकार बाबा रामदेव से दूरी बना रहे हैं वह प्रशंसनीय नहीं है| बाबा रामदेव अब भी अन्ना के सहयोग के लिए दिल्ली पहुँच गए, किन्तु अन्ना ने तो उनसे मिलने से भी मना कर दिया| ये सब कांग्रेस की चाल है जो वह अन्ना व बाबा को एक नहीं होने दे रही|

अन्ना को इन धूर्तों के षड्यंत्र को समझना होगा, नहीं तो वही इतिहास दोहराया जाएगा जो १९४७ में सत्ता के हस्तांतरण द्वारा देश आज तक झेल रहा है|

इस पूरे विवाद में मैं ये बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मुझे अन्ना के आन्दोलन से कोई तकलीफ नहीं है| मैं तो खुद गला फाड़ फाड़ कर नारेबाजियां कर रहा हूँ| गला छिल गया है, ठीक से आवाज़ भी नहीं आ रही अब तो| लोकपाल के मुद्दे को लेकर देश भर में जो कुछ भी हो रहा है वह बहुत सही हो रहा है| किन्तु भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर जो हो रहा है वह सही नहीं है| यही जन आक्रोश बाबा रामदेव के समर्थन में भी चाहता हूँ| लोकपाल की लड़ाई अंतिम लड़ाई नहीं है| यह तो केवल एक शुरुआत है, अंत नहीं| ऐसा न हो कि लोकपाल का मुद्दा शांत होते ही सब अपने अपने घरों की ओर चल दें|





Wednesday, August 10, 2011

सोनिया की अमरीका यात्रा, अमरीका की आर्थिक मंदी, सोने के बढ़ते भाव !!! संयोग बैठाएं, शायद मेरा अनुमान सही हो

मित्रों अगस्त 7, 2011 के दैनिक भास्कर में अमरीका में आई आर्थिक मंदी से सम्बंधित एक लेख पढ़ा| लेख से ऊपर उठकर यह एक व्यंग प्रतीत हुआ| उसमे लिखे कुछ अंश यहाँ रख रहा हूँ|

अमरीका जो दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति माना जाता है, पर इस समय 60,22,89,88,00,00,000 रुपये का क़र्ज़ है (यह राशि मुझे कम लग रही है)|
इसको और अधिक समझाने के लिए कुछ नए तरीके दिखाए गए हैं|
पृथ्वी की उत्पत्ति को करीब 460 करोड़ साल हो चुके हैं| पृथ्वी की उत्पत्ति से अब तक प्रतिदिन 44,740 रुपये जोड़े जाएं तो अमरीका पर चढ़ा कर्जा सामने आ जाएगा|
आधुनिक मानव की उत्पत्ति को करीब दो से ढाई लाख वर्ष हो चुके हैं| मानव की उत्पत्ति के प्रथम दिवस से अब तक 1,61,06,400 रुपये के हिसाब से जोड़ें तो कुल राशि के बराबर क़र्ज़ अमरीका पर होगा|
जीसस का जन्म 2016 वर्ष पहले हुआ था| जीसस के जन्म से अब तक प्रतिदिन 8,05,32,00,000 रुपये जोड़ने पर प्राप्त राशि अमरीका पर बकाया कर्जा होगी|
अमरीका 4 जुलाई 1776 में आज़ाद हुआ था| अमरीका की आज़ादी से अब तक प्रतिदिन 26,84,40,00,00,000 रुपये जोड़ने पर अमरीका पर बकाया उधार प्राप्त होगा|   
और तो और एक तरीका और भी है| अमरीका के एक डॉलर नोट की लम्बाई 6.14 इंच होती है| यदि एक एक डॉलर के नोट लम्बाई के साथ जोड़े जाएं व एक कतार बनाई जाए तो यह कतार पृथ्वी से शुरू होकर मंगल, ब्रहस्पति, शनि को पार करती हुई वरुण गृह तक पहुँच जाएगी|    
अब ये कैलकुलेशन कितनी सही है, मुझे नहीं पता, मैंने नहीं जोड़ा| किन्तु एक बात तो साफ़ है कि इस समय अमरीका भयंकर मंदी से गुजर रहा है|

जब अमरीका जैसी महाशक्ति पर इतना बड़ा उधर हो सकता है तो यह कैसा अर्थशास्त्र चल रहा है पूरी दुनिया में?

सोनिया गांधी अमरीका गयी, क्यों? इसके भाँती भाँती के उत्तर आ रहे हैं| खैर अभी मैं इन उत्तरों पर नहीं जाता|

पूरी दुनिया से लूटा हुआ धन जमा है स्विस और उसके जैसे और दुसरे यूरोपीय देशों में| अब यह तो जगह जगह से खबर आ रही है कि विदेशी बैंकों में पड़ा सबसे अधिक काला धन भारत का ही है| इस सत्य को भी कोई नहीं झुठला सकता कि स्विस बैंकों से ही वर्ल्ड बैंक चल रहा है| और वर्ल्ड बैंक की दया पर ही अमरीका व यूरोपीय देश चल रहे हैं| इसी पैसे से ये देश इतनी तरक्की कर पाए| मतलब दुनिया के सबसे अमीर देश भारत (मानो या न मानो) के धन से सुख समृद्धि पा रहे हैं अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्विट्ज़रलैंड आदि देश| और हम मर रहे हैं भूखे|

चार साल पहले आई आर्थिक मंदी का कारण जो भी, मुझे लगता है कि शायद वह कारण चीन था| कैसे? इसकी चर्चा फिर कभी, क्योंकि ये विषय से हट जाएगा| किन्तु इस बार इसका कारण भारत ही है (मानो या न मानो)|

जब दुनिया भर से लूटा हुआ सारा काला धन भारत से लुटे गए काले धन का कुछ ही प्रतिशत होता है तो ऊपर वाले कथनों की पुष्टि स्वत: ही हो जाती है| हमारे खून पसीने की कमाई पर ऐश कर रहे थे कांग्रेसी अमरीका, व यूरोपीय देश| किन्तु बाबा रामदेव के एक आन्दोलन ने पूरी दुनिया में भूचाल ला दिया| कांग्रेस तो कांग्रेस यहाँ तक कि अब तो अमरीका की भी नींद उड़ गयी| चार जून को बाबा रामदेव व उनके साथ बैठे एक लाख से अधिक आन्दोलनकारियों ने ही पूरी दुनिया को हिला डाला| कैसे? अभी पता चल जाएगा|

चार जून के आन्दोलन के बाद दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में हडकंप मच गया| नीचे से कुर्सियां खिंचने से अधिक भय धन खो देने का था, ऊपर से बदनामी की चिंता अलग से कि किस मूंह से अब वोट मांगेंगे| और तो और कहीं भारत की जनता इस धोखादडी के लिए क्रोध में आकर कहीं एक हो गयी तो इनका क्या हाल होगा? यही सब सोच कर सोनिया गांधी का स्विट्ज़रलैंड जाना तय हुआ| आठ जून का दिन मुक़र्रर हुआ| साथ में कौन कौन गया था, अब तक सबको पता चल चूका है| सोनिया की इस यात्रा को भी गुप्त रखा गया था|

चार जून के बाबा रामदेव के आन्दोलन से बहुत पहले ही यूबीएस ने भारत का करीब 250 लाख करोड़ रुपये अपने बैंकों में जमा होने का दावा किया था| कुछ जगह 70 लाख करोड़ रुपये का ज़िक्र है| आठ जून से पंद्रह जून तक की सोनिया की यात्रा के तुरंत बाद 19 जून को यूबीएस से यह बयान आना कि "हमारे बैंकों में भारतीयों का कोई धन नहीं है" शंका उत्पन्न करता है| दरअसल संभावना यही है कि इस यात्रा के दौरान वहां जमा तकरीबन सारा काला धन निकाल लिया गया| किन्तु नोटों को रखना आसान नहीं है| क्या पता कल कौनसी मुद्रा नीचे गिर जाए? क्यंकि जो कुछ हो रहा है, उससे तो यही लगता है कि अब विश्व में कुछ भी हो सकता है| ऐसे में धन को सोने के रूप में कहीं पहुंचाया गया होगा| संभवत: इटली में ही| अन्यथा क्या कारण था कि अभी पंद्रह दिन पहले जिस सोने का भाव करीब 21,000 रुपये प्रति दस ग्राम था, आज बढ़कर करीब 27,000 रुपये प्रति दस ग्राम तक पहुँच गया है?     
अब इससे अमरीका में आई आर्थिक मंदी का कारण भी साफ़ दिखाई दे रहा है| जबकि सारा धन निकाल लिया गया है, ऐसे में स्विस तो पहले ही नंगा होने की कगार पर होगा, वर्ल्ड बैंक के सामने भी संकट है कि अब पैसा कहाँ से आएगा? अब ऐसी परिस्थिति में तो अमरीका जैसे देश के भी नंगे हो जाने की संभावना दिख ही रही है| कुछ तो कारण होगा जो अमरीकी विदेश मंत्री का भारत आगमन हुआ| अब तक हमारे नेताओं को फटकार लगाने वाला देश शायद अब गिडगिडाने की नौबत में आ गया हो| पर क्या करें, ये लुटेरे तो किसी के बाप के सगे नहीं हैं न| अमरीका को भी तभी तक बाप बनाया जब तक कि इससे कुछ फायदा हो रहा था| किन्तु अब ब्याज से अधिक जब मूल खोने का डर सताने लगा तो कौन सा बाप, किसका बाप?

अमरीका तो लुट ही रहा है अब बारी है बाकी यूरोपीय देशों (कृपया इन देशों में इटली का नाम शामिल न करें) की| 

यह अनुमान सही है या गलत, ये तो समय के साथ पता चल ही जाएगा| अभी तो केवल एक अंदाजा लगाया जा सकता है| हमारा काम तो केवल एक एक लिंक को जोड़ कर देखना है| यह कोई कठिन कार्य नहीं है| यदि पढ़े लिखे भारतवासी खुद ही सोचें कि विश्व भर में क्या क्या हो रहा है, और उसका कहाँ क्या असर हो रहा है, तो वे खुद निष्कर्ष निकाल सकते हैं| 
इससे पहले भी जब पांच सौ व हज़ार के नकली नोट अचानक से बंद हो गए व देश में आतंकवादी घटनाओं पर भी अचानक से रोक लग गयी हो तो यह सोचने वाली बात थी| इस बात पर ध्यान दिया जाए तो पता चलता है कि इन्ही नकली नोटों के दम पर भारत में आतंकी घटनाएं होती थीं| क्योंकि जब पांच सौ का नोट 75 रुपये में मिल जाए तो भारत में कहीं भी बम फोड़ देना कितना आसान काम है| सरकारी सहायता भी मिल ही रही है| किन्तु जब आरबीआई के वाल्ट में नकली नोट पकडे गए तो अचानक से नकली नोटों का गोरख धंधा भी ख़त्म करना पड़ा, जिस कारण आतंकियों को ब्लास्ट करने के लिए धन का अभाव हो गया| विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ देखें|
आवश्यकता मात्र विचार करने की है, किन्तु भारतीयों को बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण को गालियाँ देने से फुर्सत तो मिले| मिल भी जाए तो पहले अपनी पेट पूजा फिर कोई काम दूजा| सलमान खान ने रेडी में क्या किया है, अथवा आमीर खान ने देल्ही बेल्ली में कैसे डायलोग रखवाए हैं या शाहरुख की रा वन का क्या होगा, इसकी चर्चा भी तो करनी है| 

अभी भी बाबा रामदेव को गालियाँ देने वाले मूर्खों को अक्ल न आई हो तो शायद तब आएगी जब इनके भी कपडे फटने लगेंगे| खुद तो डूबेंगे ही, देश को भी डुबाएंगे| 
सोचने की बात यह है कि भारत एक इतना शक्तिशाली देश है कि केवल एक से डेढ़ लाख लोगों के केवल एक दिन के अनशन के कारण जब पूरी दुनिया में भूचाल आ सकता है तो सोचिये 121 करोड़ भारतवासी एक हो जाएं तो क्या से क्या हो सकता है| बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण पर ऊँगली उठाने वाले मूर्खों को समझाने के लिए इससे अच्छा उदाहरण कुछ हो ही नहीं सकता|


अमरीका में क्या हो रहा है, यह हमारी चिंता का विषय नहीं है| चिंता का विषय यह है कि इस सब में भारत का भी बहुत बड़ा नुक्सान है| शायद काले धन के नाम पर भारत में कुछ सौ या हज़ार रुपये ही आ पाएं| दूसरा अब तक हमारे धन से पल्लवित हो रहे थे अमरीका व यूरोपीय देश, अब होगा केवल इटली|

वैसे इस विषय से सम्बंधित एक जानकारी पर भी ध्यान देना होगा|
भारतीय क़ानून व्यवस्था के अंतर्गत एक कानून जो केवल नेताओं के लिए है-
कोई भी नेता, प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, पार्षद व अन्य राज्य एवं केन्द्रीय मंत्री जब विदेशी दौरे पर जाते हैं (चाहे राजनैतिक हो अथवा व्यक्तिगत) तो उन्हें सचिवालय को सूचित करना जरुरी है कि कहाँ जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं, कब आएँगे आदि| और RTI के अंतर्गत देश की जनता को इस विषय में सूचना मांगने का व सचिवालय को सूचना देने का अधिकार है| क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ये लोग जनता के सेवक हैं, अत: इनके विषय में जनता को जानकारी होनी चाहिए|
सोनिया गांधी के विदेशी दौरे सम्बन्धी RTI के द्वारा जानकारी मांगने पर पता चला है कि 2004 (जबसे यूपीए सरकार सत्ता में आई है) से अब तक सोनिया की एक भी विदेशी यात्रा की कोई भी जानकारी सचिवालय के पास नहीं है| 
न तो सचिवालय ने कभी पूछने की ज़हमत उठाई और सोनिया से तो उम्मीद रखना ही बेकार है कि वह ऐसी कोई जानकारी सचिवालय को देगी|
आखिर कुछ तो रहस्य है सोनिया की इन गुप्त यात्राओं का| शायद अमरीका ने सप्रेम आमंत्रण भेजा हो कि हमे लुटने से बचा लो| कुछ ऐसा किया जाए कि जिससे तुम भी सुरक्षित रहो व हमारा देश भी भूखा नंगा होने से बच जाए| भारत का क्या है? इतने सालों से यूं लूट ही रहे हो, अब हम भी तुम्हारा साथ देंगे|

इस क़ानून के विषय में विस्तार से जानने के लिए यहाँ अवश्य देखें...

Sunday, August 7, 2011

किसका महत्व अधिक है, हिना रब्बानी का या भारतीय सेना के जवानों का???


मित्रों हिना रब्बानी अब अपनी भारत यात्रा पूरी कर फिर से अपने देश पापी पाकिस्तान चली गयी है| अब तक इस विषय में कई जगह बहुत कुछ लिखा भी जा चूका है|

जिस तरह से उसे मीडिया में दिखाया जा रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे हिना रब्बानी न हुई स्वर्ग की कोई अप्सरा हो गयी| कोई उसके पर्स पर कैमरा फोकस कर रहा है, तो कोई सैंडल पर| और तो और बैकग्राउंड में गाना चल रहा था "एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा"

यहाँ तक कि हमारे माननीय(?) नेतागण भी ऐसे दीवाने हुए मानों पाकिस्तानी दूत न होकर कोई देवदूत स्वर्ग से उतर कर आया हो| हाथ मिलाने लगे तो हाथ छोड़ने का मन ही नहीं हुआ|

समझ नहीं आता किस देश से दोस्ती की वार्ता की जा रही है| उस देश से जो नफरत के कारण हमसे टूट कर अलग हुआ है? उस देश से जो अपने जन्म के समय से आतंकवाद के ज़रिये हमे परेशान करता रहा है? उस देश से जो हमारे हज़ारों लाखों भाई बहनों के हत्यारा है? उस देश से जो हमारी एकता को खंड खंड कर देने के सपने देखता है? उस देश से जितने वर्षों से हमारे सुन्दर कश्मीर को खून से लाल कर रहा है?

अभी १३ जुलाई को मुंबई में हुए आतंकी हमले को दो हफ्ते भी नहीं बीते थे कि हमारे नेता व मीडिया पाकिस्तानी विदेश मंत्री की चाटुकारी में लग गए| अब इस बात से ही इनकार हो कि वह आतंकी हमला पाकिस्तानी आतंकवाद ने करवाया हो तो बात अलग है| इसमें भी शायद इन सेक्युलरों को आर एस एस या हिन्दू आतंकवाद (?) का हाथ नज़र आए| वैसे दिग्गी ने तो इसकी भी संभावना दे ही दी थी|

भाई ऐसा भी क्या प्यार इस पापी पाकिस्तान से कि ठीक कारगिल विजय की वर्षगाँठ वाले दिन ही यह नंगा नाच शुरू कर दिया? ये तो सीधा सीधा सोच पर वार है| सीधा सीधा कारगिल विजय का अपमान है|

जिस समय हमारे नपुंसक नेता हिना रब्बानी की आवभगत में लगे थे ठीक उसी समय पाकिस्तानी आतंकियों ने दो भारतीय सैनिकों की निर्मम हत्या कर उनके सर धड से अलग कर अपने साथ पाकिस्तान ले गए, मानों जीत की ट्रॉफी ले कर गए हों| भांड मीडिया को हिना रब्बानी से फुर्सत मिलती तब तो इस खबर के बारे में चार पंक्तियाँ कहता| यहाँ तक कि हमारी आतंकी सरकार को भी फुर्सत के कुछ क्षण मिले होते तब तो इस घृणित कार्य के लिए आतंकियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही करती| किन्तु हाय रे हिना रब्बानी, तेरी सुन्दरता ने इन्हें ऐसा मोह लिया कि तेरे आने का षड्यंत्र भी न समझ पाए|
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने विदेश मंत्री न भेज कर कोई आइटम गर्ल भेज दी, और हमारे नेता व मीडिया उसके जलवों में खो कर रह गए| पीछे से पाकिस्तान ने अपनी गंदी चालें चलनी शुरू कर दीं| हिना रब्बानी के भारत आने का जो कुचक्र था वह उसने सिद्ध कर दिया| पाकिस्तान पहुँच कर उसने तो भारत के लिए वही पुराना जहर उगलना शुरू कर दिया जो  इसका पापी देश पिछले ६४ वर्षों से उगलता आया है|

काहे की दोस्ती???

ऐसी शान्ति से हमें तो कोई प्रेम नहीं है|

कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के समीप भारतीय सेना व पाकिस्तानी आतंकवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में आतंकियों ने यह घटिया काम किया| मरने वाले दोनों जवान कुमाऊं रेजिमेंट के थे| शहीदों की पहचान हवालदार जयपाल सिंह अधिकारी व लांस नायक देवेन्द्र सिंह के रूप में की गयी है| इसके साथ ही पैट्रोलिंग पार्टी का 19 राजपूत रेजिमेंट का एक अन्य जवान भी शहीद हुआ है| 

शहीद हुए जवानों के शव इतने बुरी हालत में थे कि परिज़नों को उनके शवों को देखने की आज्ञा भी नहीं दी गयी|
ऐसी घटनाओं से सेना के जवानों का मनोबल टूट रहा है जो कश्मीर घाटी में आतंकियों से लोहा लेने के लिए प्रतिक्षण मुस्तैद हैं| ऊपर से सरकार का किसी प्रकार का कोई सहयोग न मिलना आग में घी का काम कर रहा है| क्या इन वीरों को वहाँ कुत्ते की मौत मरने के लिए ही छोड़ रखा है?
ऐसी परिस्थिति में यदि सेना भी बगावत कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं| इसकी जिम्मेदार सेना नहीं, यही भ्रष्ट सरकार होगी जो आतंकियों के साथ मिलकर हमारे जवानों की बलि चढ़ा रही है|

फिर भी पता नहीं देश में यह कैसी शान्ति छाई है? मानों जो कुछ भी हो रहा है, इससे किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा| आज सुबह से ही पता नहीं कितने ही मुर्ख मुझे यहाँ वहां Friendship Day की बधाइयां दे रहे हैं| अब ऐसे लोगों से मित्रता करने के निर्णय पर भी विचार करना पड़ रहा है|


Thursday, August 4, 2011

तुम मुझे गाय दो, मैं तुम्हे भारत दूंगा


मित्रों शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत| मैं कोई नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा नारा लगाकर उनके समकक्ष बनने का प्रयास नहीं कर रहा| उनके समकक्ष बनना तो दूर यदि उनके अभियान का योद्धा मात्र भी बन सका तो स्वयं को भाग्यशाली समझूंगा|

अभी जो शीर्षक मैंने दिया, वह एक अटल सत्य है| यदि भारत निर्माण करना है तो गाय को बचाना होगा| एक भारतीय गाय ही काफी है सम्पूर्ण भारत की अर्थव्यवस्था चलाने के लिए| किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की आवश्यकता ही नहीं है| ये कम्पनियां भारत बनाने नहीं, भारत को लूटने आई हैं|

खैर अब मुद्दे पर आते हैं|
मैं कह रहा था कि मुझे भारत निर्माण के लिए केवल भारतीय गाय चाहिए| यदि गायों का कत्लेआम भारत में रोक दिया जाए तो यह देश स्वत: ही उन्नति की ओर अग्रसर होने लगेगा| मैं दावे के साथ कहता हूँ कि केवल दस वर्ष का समय चाहिए| दस वर्ष पश्चात भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे ऊपर होगी| आज की सभी तथाकथित महाशक्तियां भारत के आगे घुटने टेके खड़ी होंगी|

सबसे पहले तो हम यह जानते ही हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है| कृषि ही भारत की आय का मुख्य स्त्रोत है| ऐसी अवस्था में किसान ही भारत की रीढ़ की हड्डी समझा जाना चाहिए| और गाय किसान की सबसे अच्छी साथी है| गाय के बिना किसान व भारतीय कृषि अधूरी है| किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में किसान व गाय दोनों की स्थिति हमारे भारतीय समाज में दयनीय है|

एक समय वह भी था जब भारतीय किसान कृषि के क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था| इसका कारण केवल गाय है| भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन है| गाय का गोबर किसान के लिए भगवान् द्वारा प्रदत एक वरदान है| खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत है| इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्त्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है|

किन्तु हरित क्रान्ति के नाम पर सन १९६० से १९८५ तक रासायनिक खेती द्वारा भारतीय कृषि को नष्ट कर दिया गया| हरित क्रान्ति की शुरुआत भारत की खेती को उन्नत व उत्तम बनाने के लिए की गयी थी| किन्तु इसे शुरू करने वाले आज किस निष्कर्ष तक पहुंचे होंगे?
रासायनिक खेती ने धरती की उर्वरता शक्ति को घटा कर इसे बाँझ बना दिया| साथ ही साथ इसके द्वारा प्राप्त फसलों के सेवन से शरीर न केवल कई जटिल बिमारियों की चपेट में आया बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटी है|
वहीँ दूसरी ओर गाय के गोबर से बनी खाद से हमारे देश में हज़ारों वर्षों से खेती हो रही थी| इसका परिणाम तो आप भी जानते ही होंगे| किन्तु पिछले कुछ दशकों में ही हमने अपनी भारत माँ को रासायनिक खेती द्वारा बाँझ बना डाला|

इसी प्रकार खेतों में कीटनाशक के रूप में भी गोबर व गौ मूत्र के उपयोग से उत्तम परिणाम वर्षों से प्राप्त किये जाते रहे| गाय के गोबर में गौ मूत्र, नीम, धतुरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा खेतों को किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जा सकता है| वर्षों से हमारे भारतीय किसान यही करते आए हैं| किन्तु आज का किसान तो बेचारा रासायनिक कीटनाशक का छिडकाव करते हुए स्वयं ही अपने प्राण गँवा देता है| कई बार किसान कीटनाशकों की चपेट में आकर मर जाते हैं| ज़रा सोचिये कि जब ये कीटनाशक इतने खतरनाक हैं तो पिछले कई दशकों से हमारी धरती इन्हें कैसे झेल रही होगी? और इन कीटनाशकों से पैदा हुई फसलें जब भोजन के रूप में हमारी थाली में आती हैं तो क्या हाल करती होंगी हमारा?

केवल चालीस करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में चौरासी लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है| किन्तु रासायनिक खेती के कारण आज भारत में १९० लाख किलो गोबर के लाभ से हम भारतवासी वंचित हो रहे हैं|


किसी भी खेत की जुताई करते समय चार से पांच इंच की जुताई के लिए बैलों द्वारा अधिकतम पांच होर्स पावर शक्ति की आवश्यकता होती है| किन्तु वहीँ ट्रैक्टर द्वारा इसी जुताई में ४० से ५० होर्स पावर के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है| अब ट्रैक्टर व बैल की कीमत के अंतर को बहुत सरलता से समझा जा सकता है| वहीँ ट्रैक्टर में काम आने वाले डीज़ल आदि का खर्चा अलग है| इसके अतिरिक्त भूमि के पोषक जीवाणू  ट्रैक्टर की गर्मी से व उसके नीचे दबकर ही मर जाते हैं|

इसके अलावा खेतों की सींचाई के लिए बैलों के द्वारा चालित पम्पिंग सेट और जनरेटर से ऊर्जा की आपूर्ति भी सफलता पूर्वक हो रही है| इससे अतिरिक्त बाह्य ऊर्जा में होने वाला व्यय भी बच गया|

यदि भारतीय कृषि में गौवंश का योगदान मिले तो आज भी भारत भूमि सोना उगल सकती है| सदियों तक भारत को सोने की चिड़िया बनाने में गाय का ही योगदान रहा है|


ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भी पशुधन का उपयोग लिया जा सकता है| आज भारत में विधुत ऊर्जा उत्पादन का करीब ६७ प्रतिशत थर्मल पावर से, २७ प्रतिशत जलविधुत से, ४ प्रतिशत परमाणु ऊर्जा से व २ प्रतिशत पवन ऊर्जा के द्वारा हो रहा है|

थर्मल पावर प्लांट में विधुत उत्पादन के लिए कोयला, पैट्रोल, डीज़ल व प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाता है| इसके उपयोग से कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन वातावरण में हो रहा है| जिससे वातावरण के दूषित होने से भिन्न भिन्न प्रकार के रोगों का जन्म अलग से हो रहा है|
जलविधुत परियोजनाएं अधिकतर भूकंपीय क्षेत्रों में होने के कारण यहाँ भी खतरे की घंटी है| ऐसे में किसी भी बाँध का टूट जाना करोड़ों लोगों को प्रभावित कर सकता है| टिहरी बाँध के टूटने से चालीस करोड़ लोग प्रभावित होंगे|
परमाणु ऊर्जा के उपयोग का एक भयंकर परिणाम तो हम अभी कुछ समय पहले जापान में देख ही चुके हैं| परमाणु विकिरणों के दुष्प्रभाव को कई दशकों बाद भी देखा जाता है|



जबकि यहाँ भी गौवंश का योगदान लिया जा सकता है| स्व. श्री राजीब भाई दीक्षित अपने पूरे जीवन भर इस अनुसन्धान में लगे रहे व सफल भी हुए| उनके द्वारा बनाए गए गोबर गैस संयत्र से गोबर गैस को सिलेंडरों में भरकर उसे ईंधन के रूप में उपयोग लिया जा सकता है| आज एक साधारण कार को पैट्रोल से चलाने में करीब चार रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से खर्च होता है| जिस प्रकार से पैट्रोल, डीज़ल के दाम बढ़ रहे हैं, यह खर्च आगे और भी बढेगा| वहीँ दूसरी और गोबर गैस के उपयोग से उसी कार को ३५ से ४० पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से चलाया जा सकता है|
आईआईटी दिल्ली ने कानपुर गोशाला और जयपुर गोशाला अनुसंधान केन्द्रों के द्वारा एक किलो सी .एन.जी. से २५ से ४० किलोमीटर एवरेज दे रही तीन गाड़ियां चलाई जा रही है|
रसोई गैस सिलेंडरों पर भी यह बायोगैस बहुत कारगर सिद्ध हुई है| सरकार की भ्रष्ट नीतियों के चलते आज रसोई गैस के दाम भी आसमान तक पहुँच गए हैं, जबकि गोबर गैस से एक सिलेंडर का खर्च केवल ५० से ७० रुपये तक आँका गया है|
इसी बायोगैस से अब हैलीकॉप्टर भी जल्द ही चलाया जा सकेगा| हम इस अनुसन्धान में अब सफलता के बहुत करीब हैं|
गोबर गैस प्लांट से करीब सात करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है, जिससे करीब साढ़े तीन करोड़ पेड़ों को जीवन दान दिया जा सकता है| साथ ही करीब तीन करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई आक्साइड को भी रोका जा सकता है|

पैट्रोल, डीज़ल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्त्रोत हैं, किन्तु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्त्रोत है| जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी|


हाल ही में कानपुर की एक गौशाला ने एक ऐसा सीऍफ़एल बल्ब बनाया है जो बैटरी से चलता है| इस बैटरी को चार्ज करने के लिए गौमूत्र की आवश्यकता पड़ती है| आधा लीटर गौमूत्र से २८ घंटे तक सीऍफ़एल जलता रहेगा|
यदि सरकार चाहे तो इस क्षेत्र में सकारात्मक कदम उठाकर इससे भारी मुनाफा कमाया जा सकता है|




इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में तो भारतीय गाय के योगदान को कोई झुठला ही नहीं सकता| हम भारतीय गाय को ऐसे ही माता नहीं कहते| इस पशु में वह ममता है जो हमारी माँ में है|
भारतीय गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाड़ी होती है| सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है| गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में भी होता है|
अक्सर ह्रदय रोगियों को घी न खाने की सलाह डॉक्टर देते रहते हैं| साथ ही एलोपैथी में ह्रदय रोगियों को दवाई में सोना ही कैप्सूल के रूप में दिया जाता है| यह चिकित्सा अत्यंत महँगी साबित होती है|
जबकि आयुर्वेद में ह्रदय रोगियों को भारतीय गाय के दूध से बना शुद्ध घी खाने की सलाह दी जाती है| इस घी में विद्यमान स्वर्ण के कारण ही गाय का दूध व घी अमृत के समान हैं|
गाय के दूध का प्रतिदिन सेवन अनेकों बीमारियों से दूर रखता है|
गौ मूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, अर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी सम्बंधित रोगों का उपचार भी संभव है| ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके|


यहाँ तक कि हवन में प्रयुक्त होने वाले गाय के घी व गोबर से निकलने वाले धुंए से प्रदुषण जनित रोगों से बचा जा सकता है| हवन से निकलने वाली गैसों में इथीलीन आक्साइड, प्रोपीलीन आक्साइड व फॉर्मएल्डीहाइड गैसे प्रमुख हैं|
इथीलीन आक्साईड गैस जीवाणु रोधक होने पर आजकल आपरेशन थियेटर से लेकर जीवन रक्षक औषधियों के निर्माण में प्रयोग मे लायी जा रही है। वही प्रोपीलीन आक्साइड गैस का प्रयोग कृत्रिम वर्षा कराने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है|
साथ ही गाय के दूध से रेडियो एक्टिव विकिरणों से होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है|

यदि सरकार वैदिक शिक्षा पर कुछ शोध करे तो दवाइयों पर होने वाले करीब दो लाख पचास हज़ार करोड़ के खर्चे से छुटकारा पाया जा सकता है|

अब आप ही बताइये कहने को तो गाय केवल एक जानवर है, किन्तु इतने कमाल का एक जानवर क्या हमें ऐसे ही बूचडखानों में तड़पती मौत मरने के लिए छोड़ देना चाहिए?

कुछ तो कारण है जो हज़ारों वर्षों से हम भारतीय गाय को अपनी माँ कहते आए हैं|

भारत निर्माण में गाय के अतुलनीय योगदान को देखते हुए शीर्षक की सार्थकता में मुझे यही शीर्षक उचित लगा|




Saturday, July 30, 2011

देशभक्त का पासपोर्ट फर्जी,, और देशद्रोही का ??? आचार्य बालकृष्ण बनाम रौल विन्ची

मित्रों बाबा रामदेव पर शिकंजा कसने के लिए उनके दायें हाथ आचार्य बालकृष्ण को अब कांग्रेस ने साधना शुरू कर दिया है| जब हर तरफ से विफल हो गए और मुद्दों का अभाव हो गया तो पता नहीं कहाँ कहाँ से अर्जी फर्जी मुद्दे उठाकर ला रहे हैं| आचार्य बालकृष्ण का पासपोर्ट यदि फर्जी है तो क्या कल ही फर्जी हो गया? अभी इतने दिन उनके पासपोर्ट की याद क्यों नहीं आई? काले धन के लिए मूंह क्या खोल दिया, उनका पासपोर्ट ही फर्जी हो गया?

जब बाबा रामदेव चार जून की काली रात के बाद भी अनशन पर डटे रहे व स्वास्थ्य खराब होने के कारण कुछ नहीं कर पा रहे थे, ऐसे में आचार्य बालकृष्ण ने कमान संभाल रखी थी| अब इतना बड़ा दुस्साहस करने का दंड तो उन्हें मिलना ही था| उनकी हिम्मत कैसे हो गयी भ्रष्टों के सिंहासन को हिलाने की?

बहरहाल न्यायालय ने फिलहाल उन्हें ज़मानत पर छोड़ रखा है| अब आचार्य को चार अगस्त को सी बी आई (कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) के समक्ष पूछताछ के लिए उपस्थित होना है|

प्रश्न यह है की आखिर आचार्य बालकृष्ण के साथ ऐसा क्यों? यदि वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आवाज़ नहीं उठाते तो कोई कुत्ता भी नहीं भौंकता उन पर| किन्तु इतना बड़ा दुस्साहस करने पर अब सरकार में बैठे अव्वल दर्जे के कुत्तों ने भौंक भौंक कर पूरे वातावरण का ध्वनि प्रदुषण कर रखा है|
आरोप भी कैसे कैसे, सुने तो हंसी आ जाए|
एक आरोप यह है कि आचार्य की डिग्रियां फर्जी हैं| किन्तु जब उनके विश्वविद्यालय के प्राधानाचार्य ने भी यह साफ़ कर दिया है कि आचार्य बालकृष्ण की डिग्रियां फर्जी नहीं हैं| वे यहाँ पढ़ चुके हैं| किन्तु कुत्तों को यह बात कहाँ समझ आने वाली थी?
जैसे तैसे अगला आरोप मढ़ डाला कि आचार्य की जन्मतिथि वह नहीं है जो उनकी डिग्रियों में लिखी है| मतलब बाल की खाल निकालनी हो तो केवल देशभक्तों पर ही निशाना लगाया जाए, खुद तो जैसे दूध के धुले हैं| संसार में जैसे इनसे बड़ा कोई सत्यवादी हरीश्चन्द्र कोई हुआ ही नहीं|
अब आप ही बताएं कि भारत में कितने ऐसे विद्यार्थी हैं जिनके जन्म प्रमाणपत्र पर एकदम सही तिथि लिखी है? स्कूल में दाखिला लेते समय अपनी जन्म तिथि दो चार महीने आगे पीछे कर देना कोई अपराध नहीं है| दूसरी बात जन्म प्रमाण पत्र को ही जन्म तिथि का अंतिम प्रमाण माना जाता है| इसके आगे यदि भगवान् भी आकर कह दें कि इसका जन्म इस दिनांक को इस समय नहीं हुआ था, तो भी सरकारी मामलों में इस जन्म तिथि को ही सही माना जाता है| फिर किस कारण आचार्य पर यह आरोप लगाया जाता है? क्या आचार्य के जन्म के समय दिग्गी राजा वहां मौजूद थे, कि इन्हें जन्म की दिनांक व समय एकदम सही सही याद है|
मेरे दोनों भाइयों के जन्म प्रमाणपत्र पर गलत दिनांक लिखी है| क्या उनके पासपोर्ट भी फर्जी हैं? फिर तो इस देश में आधे से ज्यादा पासपोर्ट फर्जी ही निकलेंगे|

बार बार इसी प्रकार देशभक्तों को प्रताड़ित किया जा रहा है| कभी बाबा रामदेव के ट्रस्ट की संपत्ति को लेकर तो कभी आचार्य बालकृष्ण के पासपोर्ट को लेकर| भ्रष्टाचार व काले धन के मुद्दे से पहले बाबा रामदेव की संपत्ति भी सफ़ेद थी व आचार्य का पासपोर्ट भी| पता नहीं अचानक ये काले कैसे हो गए?

और सवाल उठाने वाले भी कौन? इन्हें क्या अधिकार है, आचार्य पर इस प्रकार का आरोप लगाने का? यदि जांच करनी ही है तो पहले रौल विन्ची के पासपोर्ट की जांच करो| डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने यह सिद्ध कर दिया है कि विन्ची के पास इतालवी पासपोर्ट है, भारतीय नहीं| अर्थात वह भारतीय नागरिक नहीं, इटली का नागरिक है| यहाँ तक कि उस पर उसका नाम राहुल गांधी नहीं अपितु रौल विन्ची लिखा है| फिर किस अधिकार से उसे भारत का भावी प्रधानमंत्री घोषित कर रखा है?
यदि डिग्रियों की जांच करनी है तो पहले विन्ची की डिग्रियों की जांच की जाए| जो आदमी पांच विश्वविद्यालयों में पढ़कर भी आज तक B.A. पास न कर सका, किस अधिकार से स्वयं को M.Phil. कहता है? और किस अधिकार से उसे भारत का भावी प्रधान मंत्री घोषित कर रखा है?
वह आदमी जो बलात्कारी है| नीचे देखें...



क्यों न पहले इसकी जांच कर ली जाए? इसके जुर्म के आगे तो आचार्य बालकृष्ण के तथाकथित अपराध कुछ भी नहीं हैं|

जब इतनी जांच हो ही रही है तो लगे हाथ सोनिया व राजिव गांधी की डिग्रियों की भी जाँच करवा ली जाए| वो औरत जो केवल पांचवीं पास है, किस आधार पर स्वयं को अंग्रेजी में स्नातक कहती आई है?
और वो आदमी जिसे केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पहले ही वर्ष में तीन बार फेल होने के कारण निकाल दिया गया था, किस आधार पर स्वयं को मैकेनिकल इंजिनियर कहता रहा?

और तो और इसी बहाने असम के कांग्रेस के सांसद एम्. के. सुब्बा राव के पासपोर्ट की जांच भी करवा ली जाए| सुब्बा राव की नागरिकता पर सी बी आई चार्ज शीट तक दायर कर चुकी है| आचार्य के मामले में सी बी आई ने उनके भारतीय नागरिक होने पर कोई सवाल नहीं उठाया था, केवल पासपोर्ट कार्यालय में जमा किये गए दस्तावेजों पर ही जांच की मांग की है| किन्तु सुब्बा राव के विरुद्ध तो सी बी आई ने उनकी नागरिकता पर सवाल उठाते हुए मामला दर्ज किया था| फिर क्या कारण है कि सुब्बा राव की जांच में एक दशक से भी अधिक का समय लग गया और आचार्य बालकृष्ण के मामले में इतनी जल्दबाजी की जा रही है? सुब्बार राव आज भी आसानी से भारत में अपना व्यापार चला रहा है और पूर्व सांसद होने के सुख भी भोग रहा है|
इसका अर्थ साफ़ है कि सी बी आई कोई स्वतंत्र जांच एजेंसी न रहकर कांग्रेस के इशारों पर नाचने वाली संस्था मात्र रह गयी है|

और अंत में कादिर मौलाना की भी जांच करवा ली जाए| इन महानुभाव के विषय में कुछ लिखकर अपने लैपटॉप के कीबोर्ड को कलंकित करने से अच्छा है, आप यह चित्र ही ध्यान से देख लें|

इस तस्वीर को देखकर तो यही कगता है कि कांग्रेस का यह कुत्ता जरुर आई एस आई का सदस्य होगा अथवा लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद या हिजबुल या फिर अलकायदा का कोई आतंकी ही होगा|


इन सब के विपरीत न्यायालय ने यह कह कर आचार्य को ज़मानत पर छोड़ दिया है कि पासपोर्ट विभाग ने ही अभी तक उनकी डिग्रियों को लेकर कोई शिकायत दर्ज नहीं की है तो जांच की आवश्यकता ही क्या है?

अब यदि आचार्य बालकृष्ण दोषी भी हैं तो मेरे विचार से उनका अपराध तो इन सब के सामने कुछ भी नहीं है| अच्छा यही होगा कि आचार्य से पहले इन सब बागड़ बिल्लों की जांच हो|
यदि इनकी जांच नहीं हो सकती तो आचार्य की जांच भी नहीं होगी| इस देश का संविधान सभी को बराबर के अधिकार देता है| यदि संविधान की कमियों का फायदा कांग्रेस उठाना जानती है तो हम भी जानते हैं|

दरअसल ये दुष्ट सरकार, बेशर्म सरकार भारतवासियों का ध्यान भ्रष्टाचार के मुद्दे से भटका कर, इसके विरुद्ध लड़ने वालों को ही कटघरे में खड़ा कर रही है|
इस भ्रष्ट सरकार का देशवासियों को सीधे सीधे यह सन्देश है कि हम भ्रष्टाचार करते रहेंगे, देश में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम भी देते रहेंगे, यदि किसी ने हमारा विरोध किया तो चार जून की काली रात की तरह उसका दमन कर देंगे| फिर भी यदि किसी ने सर उठाया तो उस पर व्यक्तिगत कार्यवाही करेंगे, जैसी इस समय आचार्य बालकृष्ण व बाबा रामदेव के साथ की जा रही है|
सरकार के हौंसले बुलंद हैं क्योंकि भारतीयों का पौरुष नष्ट हो गया है| ऐसा लगता है कि अचानक सभी भारतीय नपुंसक हो गए हैं| भारत में रहने वाले वीरों की संख्या कुछ लाख या एक आध करोड़ ही रह गयी है| जो आज भी अपनी मातृभूमि व उसकी संतानों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं|
भारतवासियों का पौरुष कहाँ लुप्त हो गया? क्यों आज देश में केवल बुद्धिजीवी (?) (असल में इन्हें बुद्धूजीवी कहा जाना चाहिए) ही बचे हैं? भारत के वे रणबांकुरे कहाँ गए, जिनकी दहाड़ सुनकर यवन भी इस देश को छोड़कर अपनी जान बचाने पुन: यूनान भाग गए थे? कहाँ गयीं महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी महाराज, रानी झांसी की संतानें? क्या उत्तर दोगे मृत्यु के पश्चात अपने पितरों को? स्वर्ग में बैठी उनकी आत्माएं भी अपनी डरपोक संतानों पर लज्जा कर रही होंगी|
कहाँ गयी भारत की वे महिलाएं जो कभी वीरों को जन्म देती थीं? क्या इनके दूध में अब milk powder मिल गया है, जो आजकल इनकी कोख से नपुंसकों का जन्म हो रहा है?
अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना क्या पाप है? आपके बाबा रामदेव, अन्ना हजारे या आचार्य बालकृष्ण से व्यक्तिगत मतभेद हो सकते हैं| किन्तु उनके विरुद्ध सरकार का यह आचरण न्यायसंगत नहीं है| जिस प्रकार यह देशद्रोही सरकार उनपर अत्याचार कर रही है, आपका मौन रहना सरकार को समर्थन दे रहा है| जिन लोगों ने आपके अधिकारों की रक्षा के लिए आन्दोलन खड़ा किया है उन पर होने वाले अत्याचार को आप मौन रहकर मूक सहमती दे रहे हैं| यह भी एक प्रकार का देशद्रोह ही है| अत्याचारियों का विरोध करने की आपकी शक्ति कहाँ लुप्त हो गयी? क्या आप केवल मैं, मेरा घर, मेरा परिवार की मानसिकता से बंध गए हैं? क्या आप इन सब से ऊपर उठकर "मेरा राष्ट्र" की मानसिकता को नहीं अपना सकते?

यदि नहीं तो इस देश में ऐसे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए| नपुंसकों, डरपोकों व कायरों के लिए हमारे देश में एक इंच भूमि भी नहीं है| यह वीरों का देश है और यहाँ केवल वीरों को ही स्थान मिलेगा|
इस देश में ऐसी व्यवस्था लानी होगी, जहाँ इस देश में जीने का अधिकार केवल उसी को मिलेगा जो इस देश पर मर मिटने के लिए सदैव तत्पर रहे|

जय हिंद
वंदेमातरम 

Wednesday, July 27, 2011

चाहे कुछ भी हो जाए, हिमालय का सर नहीं झुकेगा

मित्रों २६ जुलाई २०११, कारगिल विजय की बारहवीं वर्षगाँठ| यह भारत के लिए एक सम्मान से कम नहीं है|
भारत माँ के उन वीर सपूतों को नमन, जिन्होंने अपने प्राणों की आहूति देकर भारत का गौरव खोने नहीं दिया|

कारगिल युद्ध मेरे जीवन में एक ऐसा युद्ध रहा जिसके बारे में मुझे लगता है कि जैसे मैंने अपनी आँखों से इस युद्ध को देखा| जैसे मैंने यह युद्ध लड़ा| क्योंकि इससे पहले हुए युद्धों के समय तो मेरा जन्म ही नहीं हुआ था|

बचपन से ही मैं फौजी बनना चाहता था| बहुत प्रयास भी किया| बहुत से दोस्तों व वरिष्ठ सेना अधिकारियों से मिलने पर उन्होंने भी यही कहा कि मुझमे सेना का एक अफसर बनने के गुण हैं| साथ ही मैं एक मुक्केबाज़ भी रह चूका हूँ| अत: मुझे इसके लिए सतत प्रयासरत रहना चाहिए|

किन्तु एक कारण ऐसा रहा जिसने सभी प्रयासों को विफल कर दिया|
करीब पांच-छ: वर्ष पहले एक सड़क दुर्घटना में सर में चोट आने की वजह से मेरी आँखों का कॉर्निया कुछ घूम गया व इसकी मोटाई भी कुछ घट गयी| इस कारण मैं सेना के लिए अयोग्य साबित हो गया| इसका दुःख तो बहुत हुआ, किन्तु नियति को शायद यही स्वीकार था| सेना में न सही, सेना से बाहर रहकर भी हिमालय को झुकने से बचाया जा सकता है| अत: अब इसी प्रयास में लगा हूँ|

कारगिल युद्ध के वीरों पर कई साहित्य पढ़ा| बहुत से सैनिकों के शौर्य का वर्णन देखा| वैसे तो इनमे किसी भी प्रकार की तुलना इनके बलिदान का अपमान होगी, अत: सभी का बराबर सम्मान करता हूँ| किन्तु गोरखा रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने कुछ विशेष आकर्षित किया| इनके विषय में जब पढ़ रहा था तो एक अजीब सा सुख व गौरव का अनुभव किया| किस प्रकार उन्होंने एक के बाद एक चोटियों पर तिरंगा लहराया| पहले कूकर्थान, फिर जहान्बाग और अंत में टाइगर हिल की चढ़ाई करते हुए शहादत| किन्तु मरते मरते दुश्मन का एक पूरा बंकर उन्होंने नष्ट कर दिया व उसमे बैठे सात दुष्ट पाक पापियों को मार डाला| टाइगर हिल की चढ़ाई से पहले दुश्मन के ठिकानों का पता लगाने भी वे अकेले निकल पड़े थे| चढ़ाई से पहले उन्होंने अपने अफसर से कहा था कि मैं दुश्मन की छाती पर पाँव रखकर टाइगर हिल पर तिरंगा लहराऊंगा| तिरंगा तो वे नहीं लहरा सके, यह सौभाग्य 18 ग्रेनेडियर्स को मिला था| किन्तु 18 ग्रेनेडियर्स के लिए उन्होंने रास्ता साफ़ कर दिया था व सच में दुश्मन की छाती पर कदम रख कर उन्होंने चोटी की अंतिम चढ़ाई की|

मित्रों कारगिल युद्ध के बारे में तो आप भी बहुत कुछ जानते ही होंगे| एक ऐसा युद्ध जिसे जीत पाना असंभव सा लग रहा था| क्योंकि दुश्मन की स्थिति, संख्या, सामर्थ्य आदि का कोई ज्ञान हमे नहीं था| दुख्मन कहीं भी हो सकता है, संख्या में कितना भी हो सकता है, किसी भी प्रकार के हथियारों से युक्त हो सकता है| ऐसे में उसके ठिकानों का पता लगाना व उसे परास्त करना एक बहुत ही कठिन कार्य था| किन्तु हमारे वीरों ने उस असंभव को भी संभव बनाया|

मैं राजस्थान के बीकानेर जिले से हूँ| कारगिल युद्ध के समय बीकानेर में ही रहता था| बीकानेर जिला पाक सीमा को छूता है| हमारा शहर भारत पाक सीमा से शायद केवल सौ किलोमीटर की दूरी पर ही है| अत: सुरक्षा की दृष्टि से कई बार वहां रात में ब्लैकआउट करवाया गया| मैंने अपने जीवन में पहली बार ब्लैक आउट देखा था| सारा शहर अँधेरे में डूबा हुआ व वायु सेना के विमान बहत नीचे काफी तेज़ गति से शहर के ऊपर मंडराते रहते थे| यह भी अपने आप में एक रोमांच था|

मेरे ताऊजी (पिता के बड़े भाई) मेजर जनरल यश नारायण शर्मा अभी दो वर्षों से यहाँ जयपुर में ही पोस्टेड हैं| अभी वे यहाँ छावनी क्षेत्र में अकेले ही रहते हैं| कई बार उनसे मिला व  कारगिल युद्ध की कहानी उनसे सुनी| कारगिल युद्ध के समय वे कर्नल थे व अखनूर सेक्टर में तैनात थे| उनसे कारगिल युद्ध की उनकी आँखों देखी सुनी| वे खुद कर्नल थे अत: फ्रंट में जाने की आज्ञा तो उनके बराबरी के अफसरों को नहीं मिलती, किन्तु अपनी आँखों से युद्ध उन्होंने भी देखा है| उन्होंने बताया कि ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी हम इस युद्ध को जीत पाने में सफल हुए| हाँ यह भी सत्य है कि भारतीय सेना उस समय नियंत्रण रेखा पार करना चाहती थी| क्योंकि मौका अच्छा था, सामने से युद्ध का आमंत्रण मिला था, जिसका फायदा उठाकर पाक अधिकृत कश्मीर को मुक्त कराया जा सकता था| युद्ध में तत्कालीन भारत सरकार ने सेना की बहुत सहायता की| रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज़ ने सेना के लिए हथियारों का भण्डार खोल दिया था| किन्तु नियंत्रण रेखा को पार करने से रोकना शायद एक बहुत बड़ी भूल थी|

२६ जुलाई २०११, दिन भर प्रतीक्षा की कि शायद भारत सरकार का कोई मंत्री आज के दिन के सन्दर्भ में उन वीरों की वीरता व इस ऐतिहासिक विजय के लिए देशवाशियों को कोई बधाई दे व शहीदों को श्रद्धांजलि| मैंने तो ऐसा कोई समाचार नहीं देखा| यदि दिया भी है तो कहाँ दिया कि हम तक खबर भी नहीं पहुंची?
खैर अब इस देशद्रोही सरकार से ऐसी अपेक्षाएं रखना केवल मुर्खता है| हमारे भ्रष्ट, खुनी व आतंकी मंत्रिमंडल को सोनिया माता (?) की चमचा गिरी से कुछ फुर्सत मिले तब तो वे भारत माता के विषय में कुछ सोचें| मैं तो शुक्र मनाता हूँ कि कारगिल युद्ध के समय वाजपेयी जी की सरकार थी| यदि मनमोहन जी होते तो इन्हें युद्ध की खबर उस समय मिलती जब हम युद्ध हार चुके होते| क्योंकि ऐसी भ्रष्ट सरकार व नपुंसक प्रधान मंत्री के होते हुए क्या भारतीय सेना को किसी प्रकार की सहायता मिलती? देश की जनता जो कुछ भी सेना के लिए चंदा इकठ्ठा करती वह सब स्विस खातों में जमा हो गया होता| ऐसे में सेना कैसे दुश्मन से लड़ सकती है?

अंत में जाते जाते श्रद्धांजलि उन वीरों को जिनके त्याग व बलिदान के कारण हमे यह गौरव प्राप्त हुआ| नमन उन वीरों को जिन्होंने असंभव को भी संभव कर दिखाया| नमन उन वीरों को जिन्होंने पापी पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दी|

कारगिल युद्ध में करीब ६०० से अधिक जवान शहीद हुए थे| सबके विषय में तो मैं नहीं जानता, किन्तु कुछ नाम यहाँ दे रहा हूँ|

लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन
लेफ्टिनेंट कर्नल विजय राघवन
लेफ्टिनेंट कर्नल सचिन कुमार
मेजर अजय सिंह जसरोटिया
मेजर कमलेश पाठक
मेजर पध्मफानी आचार्य
मेजर मारियप्पन सर्वानन
मेजर राजेश सिंह अधिकारी
मेजर हरमिंदर पाल सिंह
मेजर मनोज तलवार
मेजर विवेक गुप्ता
मेजर सोनम वांगचुक
मेजर अजय कुमार
कैप्टन अमोल कालिया
कैप्टन कीशिंग क्लिफ्फोर्ड नोंग्रुम
कैप्टन सुमित रॉय
कैप्टन अमित वर्मा
कैप्टन पन्निकोट विश्वनाथ विक्रम
कैप्टन अनुज नायर
कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन जिन्तु गोगोई
कमांडेंट जॉय लाल
लेफ्टिनेंट विजयंत थापर
लेफ्टिनेंट एन. केनगुरुसे
लेफ्टिनेंट हनीफ उद्दीन
लेफ्टिनेंट सौरव कालिया
लेफ्टिनेंट अमित भारद्वाज
लेफ्टिनेंट बलवान सिंह
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा
स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर
फ्लाईट लेफ्टिनेंट एस मुहिलन
फ्लाईट लेफ्टिनेंट नचिकेत राव
सार्जंट पीवीएनआर प्रसाद
सार्जंट राज किशोर साहू
नायक चमन सिंह
नायक आर कामराज
नायक कुलदीप सिंह
नायक बीरेंद्र सिंह लाम्बा
नायक जसवीर सिंह
नायक सुरेन्द्र पाल
नायक राजकुमार पूनिया
नायक एस एन मालिक
नायक सुरजीत सिंह
नायक जुगल किशोर
नायक सुच्चा सिंह
नायक सुमेर सिंह राठौड़
नायक सुरेन्द्र सिंह
नायक किशन लाल
नायक रामपाल सिंह
नायक गणेश यादव
नायक दिगेंद्र कुमार
हवालदार मेजर यशवीर सिंह
लांस नायक अहमद अली
लांस नायक गुलाम मोहम्मद खान
लांस नायक एम् आर साहू
लांस नायक सतपाल सिंह
लांस नायक शत्रुगन सिंह
लांस नायक श्याम सिंह
लांस नायक विजय सिंह
हवलदार बलदेव राज
हवलदार जय प्रकाश सिंह
हवलदार महावीर सिंह
हवलदार मणि राम
हवलदार राजबीर सिंह
हवलदार सतबीर सिंह
हवलदार अब्दुल करीम
हवलदार दलेर सिंह बाहू
सूबेदार भंवर सिंह राठौड़
रायफलमैन लिंकन प्रधान
रायफलमैन बच्चन सिंह
रायफलमैन सतबीर सिंह
रायफलमैन जगमाल सिंह
रायफलमैन रतन चन्द
रायफलमैन मोहम्मद फंद
रायफलमैन मोहम्मद असलम
रायफलमैन योगेन्द्र सिंह
रायफलमैन संजय सिंह
ग्रेनेडियर मनोहर सिंह
गनर उद्दभ दास
कॉन्स्टेबल सूरज भान
सिपाही अमरदीप सिंह
सिपाही विजय पाल सिंह
सिपाही वीरेंद्र कुमार
सिपाही यशवंत सिंह
सिपाही संतोख सिंह
सिपाही दिनेश भई
सिपाही हरेन्द्रगिरी गोस्वामी
सिपाही अमरीश पाल बानगी
सिपाही लखबीर सिंह
सिपाही बजिन्द्र सिंह
सिपाही दीप चन्द
सिपाही दोंदिभा देसाई
सिपाही केवलानंद द्विवेदी
सिपाही हरजिंदर सिंह
सिपाही जसवंत सिंह
सिपाही जसविंदर सिंह
सिपाही लाल सिंह
सिपाही राकेश कुमार (राजस्थान)
सिपाही राकेश कुमार (डोगरा)
सिपाही रस्विंदर सिंह
सिपाही बीर सिंह
सिपाही अशोक कुमार तोमर
सिपाही आर सेलवाकुमार

श्रद्धांजलि इन शहीदों को, श्रद्धांजलि उन शहीदों को भी जिनके नाम यहाँ नहीं हैं|

जय हिंद...जय हिंद की सेना...