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Saturday, November 24, 2012

मुझे पलायन करने से रोक लिया



दो वर्ष से अधिक हो गये मुझे हिन्दी ब्लॉगिंग में आए। जब आया था तब बहुत जोश था।  सोचा था इंटरनेट का उपयोग कर भारत व हिंदुत्व की खूब सेवा करूँगा। कुछ लोग भी मिलेंगे जो हिंदुत्व के लिए वही भावनाएं रखते होंगे जैसी कि मेरे दिल में रहीं हैं। इसलिए इस क्षेत्र में जी-जान से जुट गया।

काफी अच्छा लगने लगा था। ब्लॉगिंग के साथ-साथ फेसबुक पर भी लिखता रहा। प्रारंभ में सभी जगह अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं। परन्तु धीरे-धीरे ब्लॉगिंग का एक ऐसा चेहरा सामने आने लगा जिसे या तो मैं देखना नहीं चाहता या जान बूझकर उसे अनदेखा कर रहा था।

यहाँ जिन लोगों को मैं राष्ट्रवादी समझ रहा था, सबसे ज्यादा निराश इन्ही ने किया। ब्लॉगिंग में आकर मुझे यह एहसास हुआ कि इतिहास में हिन्दुस्थान के वे लोग कैसे रहे होंगे जिनकी उपस्थिति में हिन्दू आपस में बँटे? भारत खंड-खंड हुआ और वे न केवल देखते रहे बल्कि इस प्रक्रिया के समर्थन में खुद भी जाने-अनजाने अपनी भूमिका निभाते रहे।

यहाँ भी मैंने इसी प्रकार भारतियों (हिन्दुओं) को आपस में बँटते देखा। वे न केवल बँटे बल्कि बाँटते भी रहे। मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते अपने ही भाई-बहनों पर प्रहार करते रहे। समझ नहीं आता किन लोगों को खुश करने का प्रयास किया जा रहा है? उन्हें जिन्होंने पिछले 1400 वर्षों से भारत को सिर्फ नोचा और आज भी नोच रहे हैं। खंड-खंड में भारत को तोडा और आज भी तोड़ रहे हैं। जहां जाते हैं, वहीँ अराजकता फैलाते हैं फिर चाहे वह स्थान हिन्दुस्थान की ज़मीन हो या इंटरनेट। अब तो इन्होने बांटने के और भी नये गुर सीख लिए हैं। खुद को बाहर से सेक्युलर दिखाते हैं और अन्दर से वही कट्टर गंदगी इनमे भरी होती है। वहीँ इनके झांसे में आने वाले हिन्दू खुद को ऊपर से राष्ट्रवादी दिखाते हैं किन्तु अन्दर से सेक्युलरिज्म नाम का कोढ़ मन में पाले बैठे हैं। और यह कोढ़ इतना घातक हो गया है कि यदि कोई साहसी स्त्री अपना राष्ट्रधर्म निभाती हुई अपने तेजस्वी रूप में अवतरित होती है तो अपने मुल्ला मित्रों को खुश करने के लिए उसे स्त्री मानने से भी इनकार कर देते हैं, केवल और केवल अपने अन्दर के सेक्युलरिज्म को जिन्दा रखने के लिए और उन मुल्लों को खुश रखने के लिए जो इनके द्वारा अपनी योजनाओं में सफल हो रहे हैं।

कल तक शहीदों के नाम पर अपने ब्लॉग को भरने वाले ब्लॉगर, एक देशद्रोही का साथ केवल इसलिए देते हैं क्योंकि वह साहसी महिला इन्हें रास नहीं आ रही। उससे इतनी खुन्नस कि कश्मीर को तोड़ने की बात कहने वाले की चापलूसी तक करने लगे क्योंकि वह उस साहसी महिला से बदतमीजी कर चुका था। मतलब इन्हें एक देशद्रोही मुल्ला चलेगा किन्तु एक राष्ट्रवादी साहसी हिन्दू महिला नहीं।

दुःख तब और भी अधिक हुआ जब माहिला सशक्तिकरण की बातें करने वाली महिलाओं ने भी अपनी टीम न टूटे इस डर से कभी भी महिला सशक्तिकरण कर के नहीं दिखाया सिर्फ लिखा।

इतना समझ आ गया कि ब्लॉगिंग में केवल गुटबाजियां होती हैं। यहाँ केवल टाइम पास के लिए व अपने नाम शोहरत के लिए ब्लॉगिंग की जाती है। बल्कि इसे ब्लॉगिंग न कहकर सोश्यल नेटवर्किंग कहा जाना चाहिए। दुनिया भर के एग्रीगेटर बना दिए, जिसमे किसी को भी भर लिया। अब जब पाले बन ही चुके हैं तो अपने गुट वाले को नाराज़ कैसे करें?

ऐसा नहीं है कि ब्लॉगिंग में कोई ढंग का व्यक्ति था ही नहीं। यहाँ पर मैंने अनेकों राष्ट्रवादियों को भारत व हिंदुत्व के सम्मान में लड़ते देखा। किन्तु धीरे-धीरे यहाँ की तानाशाही व अकर्मण्यता से परेशान हो कर ब्लॉगिंग छोड़ दी। किसी के पास समय का अभाव था तो कोई इस माहौल से पसेशान था। मैं भी इसी कारण से ब्लॉगिंग से दूर था। केवल टिप्पणी करने के लिए लॉग इन करता था। कुल मिलाकर ब्लॉगिंग से राष्ट्रवाद का स्वर गायब होने लगा। ऐसे में इन राष्ट्रवादियों को सबसे अच्छा मंच फेसबुक के रूप में मिला। जहां व्यक्ति में देश व हिन्दुओं की दयनीय दशा के लिए लड़ने का ज़ज्बा देखा। उनके अन्दर वह आक्रोश था कि देश के न जाने कितने ही राष्ट्रवादियों को एक कर दिया। फेसबुक पर भी अपवाद हैं किन्तु अपवाद कहाँ नहीं होते? किन्तु ब्लॉगिंग में तो केवल मंच बना कर उसके संचालक, सहसंचालक आदि पद धारण कर बैठने के अलावा कोई काम ही नहीं रह गया है। ऐसे में ब्लॉगिंग मुल्ला तुष्टिकरण का एक स्थान बनकर रह गयी है।

ऐसे में मैंने केवल और केवल "एक राष्ट्रवादी" को ही निरंतर ब्लॉगिंग पर भारत व हिंदुत्व के लिए लड़ते देखा। मुझे लगा कि यदि वह भी ब्लॉगिंग छोड़ दे तो यह क्षेत्र भी कितना भ्रष्ट हो जाएगा।
और जो मैंने किया, क्या वह अपने कर्तव्यों से पलायन नहीं था? ऐसे में जाने-अनजाने उसी साहसी स्त्री दिव्या श्रीवास्तव ने मुझे पलायन करने से रोका। उन्होंने मुझसे कभी कहा नहीं किन्तु उन्हें देख मुझे यह एहसास हो ही गया। अब मैं फिर से ब्लॉगिंग पर सक्रीय हो रहा हूँ। किसी भी क्षेत्र में हम अपने देश को पीछे नहीं रहने देंगे। ऐसा कोई स्थान नहीं छोड़ेंगे जहाँ राष्ट्रवाद व राष्ट्रवादियों का अपमान हो। मुझे बिना कुछ कहे मेरे कर्तव्यों का बोध करवाने के लिए मैं दिव्या दीदी का आभार व्यक्त करता हूँ और उनसे आगे भी मार्गदर्शन की अपेक्षा रखता हूँ।

धीरे-धीरे ब्लॉगिंग पर पुन: राष्ट्रवादियों को लौटता देख हर्ष भी हो रहा है। अब ब्लॉगिंग के मायने बदलने की आवश्यकता है। इसे थोथी सोश्यल नेटवर्किंग व गुटबाजी का स्थान न बनाएं। इस धरा का ऋण है हम सब पर, जिसे हमे चुकाना ही होगा। अपने क्षुद्र स्वार्थों से बाहर आकर राष्ट्रहित के स्तर पर सोचना होगा।


नोट : चापलूसी और सम्मान में अंतर करना सीखना ज़रूरी है।

Sunday, June 10, 2012


 आमिर खान ने जिहाद के लिए सत्यमेव जयते के रूप में कितना नैतिक रास्ता चुना है, यह जानकर इन जिहादियों की योजना कुशलता की तारीफ़ करनी पड़ेगी। देखिये क्या कर रहा है आमिर खान और उसका सत्यमेव जयते?
एक अभिनेता के बाद समाज सेवक के रूप में उभरने को आतुर आमिर खान क्या सच में समाज सेवा कर रहा है? अभी तक कुछ ऐसा लग तो रहा था किन्तु उसके शो सत्यमेव जयते ने उसकी असली पोल खोल दी। सत्यमेव जयते में भी आमिर खान ने केवल उन मुद्दों को उठाया जो कि बेहद आम हैं। कन्या भ्रूण हत्या, बाल यौन शोषण, दहेज़ आदि। अब प्रश्न यह भी उठने लगे कि क्या आमिर खान इस्लामी आतंकवाद के विषय पर भी एक शो बनाएंगे? इस्लाम में महिला यौन शोषण, लव जिहाद आदि विषयों पर कोई मुहीम छेड़ेंगे?
उत्तर यही है कि बिलकुल नहीं छेड़ेंगे, बल्कि इसे और आगे बढ़ाएंगे।
सत्यमेव जयते की आधिकारिक वेबसाईट http://www.satyamevjayate.in/ पर आमिर खान एक NGO के लिए दान मांगता रहता है। इस NGO का नाम है Humanity Trust ...
अब Humanity Trust ऐसा करता क्या है जो आमिर खान इसके लिए इतना मरा जा रहा है कि हर रविवार सुबह-सुबह भीख मांगता है। देखिये http://www.satyamevjayate.in/issue04/donate/

Humanity Trust की आधिकारिक वेबसाईट पर नज़र दौडाएं तो आमिर खान के नेक(?) विचार सामने आ गए।
http://humanitytrust.com/
इस ट्रस्ट की Executive Committee में तीन सदस्य हैं जिनके नाम है-
१.जगाबर अली
२.आर.अकीम अली
३.फज़लुथीन

ट्रस्ट के Board of Advisors इस प्रकार हैं-
१.एम्.एल. राजा मोहम्मद
२.एम्.एस.नासिक
३.ए.अहमद इजराथ
४.ए.अब्दुल आसीत

इस ट्रस्ट के मुख्य उद्देश्यों को इस वेबसाईट पर देखा जा सकता है, जिनमे से ये प्रमुख हैं-
1.·Masjid Construction assistance. (Bore/construction helps)
2. Placement assistance for Islamic youngsters (notifications about jobs across various geographies)
3. Etheemkhana (Feeding/helping/Sheltering the Orphan)

ढंग से विचार करें तो एक बहुत ही घिनौना चेहरा सामने आता है। टीवी पर सत्यमेव जयते नामक शो देखने वालों से अनुरोध है कि वे भावुकता में बहकर इस ट्रस्ट को कोई दान न दे बैठें। आपके द्वारा दिया गया दान हिंदुत्व और भारत के लिए बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकता है। अनजाने में भी ऐसा जोखिम न उठाएं। बल्कि आमिर खान के हिंदुत्व विरोधी इस अभियान का खुला विरोध कर इस जानकारी को प्रसारित करें। हम भारतीयों की सबसे बड़ी कमी ही यह है कि बिना सोचे समझे भावुकता में बह जाते हैं और कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो बहुत घातक होता है। वो कहते हैं न- "सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी"
सब जानकारी सामने ही है किन्तु इसे खोलकर देखने की जहमत उठाना बहुत ज़रूरी है।

Friday, May 25, 2012

ब्लॉगिंग को समझ क्या रखा है???


कल तक सड़क किनारे, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर घटिया व अश्लील साहित्य बिकता था। किन्तु अब वह सब इन्टरनेट पर मुहैया है। वैसे इंटरनेट पर भी घटियापन पहले से मौजूद था किन्तु अब तो ब्लॉगर जैसा सम्मानीय मंच भी दूषित हो चूका है। लगता है वही सड़क छाप लेखक टोली बनाकर यहाँ जम कर इसे संक्रमित कर रहे हैं।
देश दुनिया में क्या हो रहा है इससे उन्हें कोई आपत्ति नहीं, किन्तु एक स्त्री की निडरता व बेबाकी से इनके हलक से निवाले नहीं उतर रहे।

भ्रष्टाचार चरम पर है, महंगाई थमने का नाम नहीं ले रही,
सरकारी गोदामों में अनाज पड़ा-पड़ा सड़ जाता है और देश की 60 करोड़ जनता भूखी सोती है,
पैट्रोल के दाम 80 रुपये प्रति लीटर तक पहुँच गए जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम नीचे गिरे हैं,
डॉलर का भाव आसमान पर पहुँच रहा है,
रूपया नीचे गिरता-गिरता अब तो सरीसृप की श्रेणी में आ गया है,
सरकारी मंत्री अपना काम-धाम छोड़ अश्लील MMS बना रहे हैं, देख रहे हैं या भोग रहे हैं,
जिहादी मुल्ले भारत को मुगलिस्तान बनाने पर तुले हुए हैं,
हिन्दुओं के मंदिरों में आरती व घंटनाद प्रतिबंधित हो रहे हैं,
काला धन विदेशों में पडा सड़ रहा है, कांग्रेसी व सेक्युलर गिद्ध भारत माँ को नोच रहे हैं,
कश्मीर के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्य भारत से टूटने की कगार पर हैं,
जातिवाद आरक्षण ने देश का बट्टा बैठा दिया है,
कन्या भ्रूण हत्या के चलते देश में स्त्री-पुरुष अनुपात गड़बड़ा गया है,
चारों ओर बूचडखाने खोल दिए गए हैं, निरीह पशुओं को बेदर्दी से हलाल किया जा रहा है,
हिन्दुओं के देश में उनकी गौ माता को खून के आँसू रुला कर काटा जा रहा है,
इंसानी पेट कब्रिस्तान बन गया है,
चोरी-हत्या-बलात्कार तो अब अखबारों की शान बन गए हैं,
रिश्वतखोरी, नौकरशाही, कालाबाजारी ने देश पर कलंक लगा दिया है,
उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है,
हिन्दू साधू-सन्यासियों का अपमान किया जा रहा है,
मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते हिन्दुओं का हक़ छीनकर मुल्लों में बांटा जा रहा है,
देश की सरहदों पर विदेशी खतरा मंडरा रहा है,
और भी न जाने क्या-क्या हो रहा है? गिनाने बैठें तो पूरा ब्लॉग जगत छोटा पड़ जाएगा। किन्तु इन घटिया सड़क छाप लेखकों को इन सब समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। इनकी पोस्टों में या तो चाँद-सितारे घूमेंगे या बारिश में भीगती महिला की साड़ी, या तो अश्लील चित्रावली या महकते फूलों की बाडी। इन सब से यदि मन ऊब जाए तो लोमड़ी व चमचौड़ कुत्ते की कहानी।
आज एक निहायत की "बेस्वादी" ब्लॉग देखा। लेखक कभी उभार की सनक और बिकने की ललक में तोता और कौआ की कहानी सुनाते हैं तो पता नहीं कभी किस-किस की याद में जुगनू की तरह जलते हैं। डरपोक तो इतने हैं कि ये, इनके मित्रगण, इनके गुरुजन व इनके अन्य बीरादरी वाले भी एक स्त्री का नाम सुनते ही थर-थर कांपते हैं व अपना डर मिटाने के लिए पूरी टोली उन महिला के खिलाफ उतर आती है। अकेले में तो दम नहीं है।
अब ऐसे डरपोकों को गीदड़ों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए किन्तु इनका घिनौनापन देखकर सूअर की उपाधि भी इन्हें सूट करती है। तो इन गीदड़ों व सूअरों की वर्णसंकरित प्रजाति को देश व समाज की उक्त समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। इनकी कलम तो चलती है उस महिला के खिलाफ जो खुद देश व समाज की इन समस्याओं पर निरंतर अपनी कलम चलाती रहती हैं। इनकी बेबाकी व निडरता दरअसल रूढ़िवादी पुरुषों(?) से हजम नहीं हो रही। स्त्री को पैरों की जूती समझने वालों के मूंह पर जब इन महिला ने अपनी जूती मारी तो बिलबिला उठे। आखिर यह कैसी स्त्री है जो हमारे हाथ नहीं आ रही?


ब्लॉगिंग के नाम पर अपनी पोस्ट पर अश्लील चित्र लगाते हैं। शर्म तो तब आती है जब महिलाएं भी उन पोस्टों पर सार्थक व सटीक नामक टिप्पणियाँ टिपियाती  हैं।
नायकों व शहीदों के नाम पर बेवकूफ बनाने से भी बाज़ नहीं आते।
कुछ जिहादी मुल्ले तो इतने खौफ में जी रहे हैं मानों इनके सारे मिशन पर यह महिला पानी फेर रही हैं।
स्त्रियों को भी इन्ही से आपत्ति है।
एक समय था जब एक कहावत चलती थी कि इंसान ठोकर खाकर संभलता है। वर्तमान में तो दुसरे को ठोकर खाते देख संभल जाना चाहिए। किन्तु यहाँ तो ठोकर खाकर भी ठोकरों में मजा आ रहा है।

ब्लॉगिंग के नाम पर हर तरफ घटियापन करने वाले इन ब्लॉगर्स ने ब्लॉग जगत को ऐसा संक्रमित कर रखा है कि अब सार्थक लेखन करने वालों ने ब्लॉग से पलायन कर फेसबुक पर लिखना शुरू कर दिया है। जहां केवल राष्ट्रवाद का नारा लगाया जा रहा है। लोगों ने शोश्यल नेटवर्किंग को अपना हथियार बना भ्रष्ट सत्ताओं को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले लिया है। किन्तु अब जब कभी ब्लॉग जगत पर निगाह डालता हूँ तो कुछ ब्लॉग्स को छोड़कर बाकी सभी जगह ऐसा लगता है कि दुनिया कहाँ पहुँच गयी और ये बेचारे अभी तक कहाँ फंसे हुए हैं?

Hats off to Dr. Divya Srivastava (Zeal), जिन्होंने अपनी लेखनी से लोगों को इतना मजबूर कर दिया कि वे स्वयं अपनी औकात बताने पर मजबूर हो गए। राष्ट्रवाद के बुलंद नारों से इन्होने राष्ट्रद्रोही प्रवचनकारी सेक्युलरों, भ्रष्ट कांग्रेसियों व जिहादी मुल्लों की नींदें उड़ा दीं। कहते हैं कि इंसान की पहचान उसके दोस्तों से नहीं बल्कि दुश्मनों से होती है। दिव्या दीदी, अब आपकी पहचान पर किसे शंका है? परन्तु दुःख होता है देखकर कि कल तक  जागरूकता के रूप में काम आने वाला ब्लॉगर अपनी ही दुर्दशा पर रो रहा है। आखिर इन लोगों ने ब्लॉगिंग को समझ क्या रखा है?

Sunday, May 13, 2012

शायद एक अभिनेता, न्यायलय व देश की जनता से भी अधिक विश्वसनीय है।

एक थोड़ी पुरानी खबर पर ध्यान गया। अभी कुछ समय पहले कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के जिला कलेक्टर ने कन्या भ्रूण हत्या जैसी त्रासदी से निपटने के लिए एक बेहतरीन सुझाव रखा। इन्होने कहा था कि हमे एक ऐसा तन्त्र बनाना चाहिए जिसमे प्रत्येक गर्भवती की समस्त जानकारियाँ व तस्वीरें ऑनलाइन एकत्र हों। उन्होंने "Silent Observer" नामक एक device की बात रखी जो एक software पर काम करती है। इसमें अपनी खुद की memory भी होगी। जिसके अंतर्गत किसी भी प्रसूता की समस्त जानकारियाँ व गर्भ के चित्र store हो सकते हैं। यह सब इसलिए ज़रूरी है ताकि कोई भी डॉक्टर Pre-Conception व Pre-Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act, 1994 के अंतर्गत कोई भी गलत रिपोर्ट न बना सके व इसके द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सके।
हालांकि इसके विरुद्ध Maharashtra chapter of the Indian Radiological and Imaging Association के एक चिकित्सक डॉ. जिगनेश ठक्कर ने एक petition दायर की थी। डॉ. ठक्कर के अनुसार इस प्रकार की जानकारियाँ कोई तीसरा व्यक्ति भी देख सकता है। इससे किसी भी स्त्री की निजता को खतरा है। परन्तु महाराष्ट्र उच्च न्यायलय के चीफ जस्टिस मोहित शाह व जस्टिस आर पी सोंदुरबलदोता ने डॉ. ठक्कर की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट का कहना था कि न्यायालय लड़का-लड़की के बिगड़ते अनुपात पर आँख नहीं मूँद सकता।
खैर केस चला, जीता भी गया, सरकार के पाले में गेंद गयी, फिर क्या हुआ, पता नहीं चला।

1 जनवरी 2008 को दिल्ली में मेडिकल के छात्रों ने भ्रूण परिक्षण करने व कन्या भ्रूण को गिरा देने के विरुद्ध एक आन्दोलन किया था। जिसमे दिल्ली के बड़े-बड़े नामी-गिरामी डॉक्टर भी शामिल थे।

22 फरवरी 2010 को आगरा शहर के हज़ारों छात्रों ने कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध एक जागरूकता अभियान चलाया।

मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने भी प्रदेश में बेटी बचाओ अभियान को जोर-शोर से चलाया।

  23 नवम्बर 2011 को बंगलुरु शहर में कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध एक मेराथन का आयोजन किया गया जिसमे हज़ारों नगरवासियों ने भाग लिया।

10 सितम्बर 2003 को Centre for Enquiry Into Health And Allied Themes (CEHAT) ने भी civil 301, 2000 के तहत जस्टिस एम् बी शाह व जस्टिस अशोक भान की बेंच में एक petition दायर की थी। जिसमे Union of  India (UOI) को जवाब देना था। यह फैसला CEHAT के पक्ष में हुआ था।

13 जून 2005 को मुंबई उच्च न्यायलय में Criminal Writ Petition No. 945 of 2005 and Criminal Application No. 3647 of 2005 के अंतर्गत विनोद सोनी नामक एक व्यक्ति ने जस्टिस वी डी पालशिकर व जस्टिस वी सी डागा की अगुवाई में petition दायर की, जिसमे भी फैसला विनोद सोनी के हक़ में हुआ।

ऐसे पता नहीं कितने ही किस्से कन्या भ्रूण हत्या के इतिहास में जुड़े हुए हैं। पता नहीं कौन इन पर काम करता है? कोई याद भी रखता है या नहीं? जब न्यायलय की बात ही नहीं मानी जाती तो देश की जनता की कौन सुने?

परन्तु पता नहीं अभी ऐसा क्या हो गया कि अचानक सारे देश का ध्यान कन्या भ्रूण हत्या पर खिसक गया? फिल्म अभिनेता आमिर खान ने एक शो क्या बना दिया जैसे देश की काय पलट ही कर दी। यहाँ तक कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व राजस्थान उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस अरुण मिश्र ने भी अब कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मुहीम छेड़ दी। गहलोत ने चीफ जस्टिस से गुहार लगाईं है कि वे जल्दी ही ऐसे सभी मामलों को एक ही कोर्ट में लेकर आएं ताकि शीघ्रता से इन पर सुनवाई हो सके। शनिवार की प्रभात आमिर खान ने भी अशोक गहलोत की खुले दिल से प्रशंसा कर दी।

मतलब हम क्या बेवकूफ थे जो इतने सालों से इस विषय पर चिल्ला रहे थे?  देश का न्याय तंत्र भी इतना लाचार कि कोई उसकी सुनता ही नहीं। एक आमिर खान ही दूध का धुला है। उसने यदि सर्टिफाइड कर दिया तो कुछ मामला बने। अन्यथा अपना काम नहीं बनता, भाड़ में जाए जनता।

आमिर खान ने चाहे एक पब्लिसिटी स्टंट ही क्यों न मारा हो, यदि उसका इतना असर है तो क्या उसे ही Chief Justice of Supreme Court नहीं बना देना चाहिए? भई जब सारे प्रमाण पत्र उसे ही बांटने हैं तो सीधा काम उसे ही क्यों न सौंप दिया जाए? देश में न्याय व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या है?

Thursday, April 19, 2012

देश के शत्रुओं पर छा रहा है दिव्या का खौफ...

हिंदी ब्लॉग जगत में अब तक जिस काम से दूर रहा, आज वही काम करने में बड़ा मज़ा आ रहा है। कोरे राष्ट्रवाद पर पोस्ट लिख देने भर से क्या होता है, जब राष्ट्रवादियों पर आक्रमण हो तो कौन होगा उनके साथ? सभी तो पोस्ट लिखने में बिजी हैं।  
कल ही डॉ. दिव्या श्रीवास्तव के ब्लॉग पर एक पोस्ट (कुमार राधारमण नामक ब्लॉगर पर 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का भूत) देखी। दरअसल उनकी एक पिछली पोस्ट (गौ-हत्या) से बौखलाकर हिंदी ब्लॉग जगत के सबसे निकृष्ट व इस्लाम के पैरोकार कहे जाने वाले ब्लॉगर अनवर जमाल ने उनके खिलाफ अपनी "इस्लामी टट्टी" पेल दी। गौ-हत्या नामक पोस्ट में केवल एक पंक्ति लिखी गयी जिसमे दिव्या जी का कहना था कि "गौ-हत्या करने वालों को गला रेंत कर मार डालना चाहिए। ताकि अगले जन्म में ये अल्लाह के नेक बन्दे बन सकें।"
इस पर भड़क कर जमाल ने अपनी आदतानुसार अपनी ब्लॉगरीय गुंडई झाड़ते हुए उन्हें थाईलैंड में गौ-हत्या के विरुद्ध आन्दोलन चलाने की सलाह दे डाली। दिव्या के नाम पर उल्टियां पेलती पोस्टें तो ब्लॉग जगत में बहुत देखी हैं। अब टीआरपी के लिए स्साला कुछ तो करेगा। भई दिव्या श्रीवास्तव के नाम का खौफ ही इतना है।
जमाल की पोस्ट पर इस्लामी भौंक गूँज रही थी। दिव्या जी को दुनिया भर की नसीहतें दी जा रही थीं। एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा था कि जैसे शान्ति के सबसे बड़े पुजारी यही लोग हैं। फिर इतिहास में पिछले 1300 वर्षों में क्या हुआ उस पर इनके द्वारा आँखें मूँद ली जाती हैं।
इसी भौंक के बीच में कुमार राधारमण नामक नपुंसक प्रजाति का भी अवतरण हुआ। इन्हें दिव्या के नाम से इतना खौफ व ईर्ष्या है कि इन्हें कटती हुई गायें भी नैतिकता की श्रेणी में दिखाई दे रही हैं। जनाब का कहना है कि "दिव्याजी ने हिन्दी ब्लोगिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। किन्तु कुछ समय की उनकी दो-चार पोस्टें निश्चय ही निंदनीय हैं।"
मतलब गौ-हत्या के विरुद्ध आवाज़ उठाना इन महाशय को इसलिए निंदनीय लग रहा है क्योंकि इनके लिए दिव्या जी निंदनीय है। भारत जाए भाड़ में, गौ माता जाए जाए भाड़ में, हिन्दू धर्म जाए भाड़ में, पहले इनका अहम् सिद्ध होना जरुरी है।
अगली ही पंक्ति में महाशय जी भौंक रहे हैं कि "इन्हें देखकर यह यकीन करना मुश्किल होता है कि हम उन्ही दिव्या जी को पढ़ रहे हैं जिनकी पोस्टें कभी गहन बौद्धिक विचार विमर्श का केंद्र हुआ करती थीं।"
महाशय मैंने तो आपको कभी किसी "गहन बौद्धिक विचार विमर्श" में शामिल होते नहीं देखा। क्या आपके पास बुद्धि का अकाल है? तुम्हारी खुद की दो कौड़ी की औकात और तुम चले हो दूसरों को सर्टिफिकेट बांटने???

जमाल की इस घटिया पोस्ट पर हमने भी अपनी एक टिप्पणी चिपका डाली जिसे इसने गुंडागर्दी से मॉडरेट कर दिया। मेरी टिप्पणी-
निकाल दी ना अपनी इस्लामी टट्टी। आ गए ना उसी ढर्रे पर। दिव्या के नाम पर टी आर पी कमाना तो तुम्हारी पुरानी आदत है। इतना खौफ उनके नाम का कि कटती हुई गाय भी जायज़ लग रही है? उन्होंने तो अपनी पोस्ट में कहीं भी किसी देश का नाम नहीं लिखा, फिर तुमने कैसे उन्हें थाईलैंड में आन्दोलन चलाने की नसीहत दे दी? उन्होंने साफ़-साफ़ लिखा है कि गौहत्या करने वालों का गला रेंत कर मार डालना चाहिए। फिर चाहे वह हत्यारा भारत का हो, अफगानिस्तान का अथवा थाईलैंड का। तुम अपनी बवासीर पेलना बंद करो।
यहाँ पर मुसलमानों की हत्या की बात नहीं हुई। किन्तु जो मुसलमान खुद को गौरी-गजनी की औलाद मानता है वह इस देश में जीने का अधिकारी नहीं है। तुम्हारा क्या सोचना है? तुम्हारे पूर्वज कौन थे? भारतीय मुसलमानों की डी एन ए रिपोर्ट तो यही कहती है कि इनके पूर्वज हिन्दू थे। इस्लामी आतताइयों के अत्याचारों से त्रस्त होकर ही तुम्हारे बाप-दादाओं ने इस्लाम अपनाया था। शान्ति का पाठ तुम ना पढाओ तो ही बेहतर है। सारे विश्व में अशांति फैलाने वाली ज़मात को शान्ति शब्द शोभा नहीं देता। बारहवीं शताब्दी तक भारत की कुल आबादी साठ करोड़ थी किन्तु सत्रहवीं शताब्दी थ आते-आते भारत की आबादी मात्र बीस करोड़ रह गयी, उसमे भी कई तो मुसलमान थे। मतलब पांच सौ वर्षों में जिस जमात ने करीब पचास करोड़ हिन्दुओं के रक्त से अपने दीन को स्थापित करने की कुचेष्टा की वह आज शान्ति का पाठ पढ़ा रही है।
राधारमण जैसे लोग तो टट्टुओं की श्रेणी में आते हैं। जो कि मिली-जुली प्रजातियों की पैदाइश होते हैं। इन्हें अपने सर और पैर का ही पता नहीं। बस दिव्या जी के नाम से आतंकित होलर मन में ईर्ष्या व द्वेष पाल बैठे हैं। इसका अहम् इतना आड़े आता है कि इन्हें अपने अहम् के आगे गौवध में नैतिक लग रहा है। राधारमण, तुम जैसे नपुंसक पुरुषों से कहीं ज्यादा मर्दानगी दिव्या श्रीवास्तव नामक महिला में है। तुम्हारे अलावा तो यहाँ केवल इस्लामी भौंक ही अधिक सुनाई पड़ रही है। अब सोच लो तुम किस प्रजाति में शामिल हो? 



मतलब जब-तक मिले सुर मेरा तुम्हारा तब सुर बने केवल तुम्हारा। जैसे ही कोई अपना सुर उठा ले तो पूरा सुर ही बिगड़ गया तुम्हारा। केवल भौंकने वालों को वहाँ स्थान दिया जाता है क्या? कुंवर जी  नामक ब्लॉगर ने भी जब तुम्हारा सुर बिगाड़ा तो उनका भी गला घोंट दिया? बदले में एक मेल मेरे इनबॉक्स में डाल दी जिसमे भी मुझे ही तमीज का पाठ पढाया? मतलब तुम चाहे हमारी माँ को काटो, इसका विरोध करने पर हमारी बहन का अपमान करो, फिर भी तुम पाक साफ़ और हम बदतमीज़?
हथियारों की हिंसा तुम करो और हमारी जुबानी हिंसा भी नहीं झिलती तुमसे?
इनबॉक्स में क्या रो रहा है, दम है तो मेरी टिप्पणी पब्लिश कर। ताकि सबके सामने बात हो। इनबॉक्स में गुप-चुप क्या भौंक रहा है? चोर की दाढ़ी में तिनका...
ऐयाज अहमद ने भी इस विषय में खट्टी डकारों के साथ अपनी बवासीर छोड़ी है। वहाँ से भी मेरी टिप्पणी को हटा दिया गया। भई इस्लाम खतरे में जो है इनका। एक अकेली दिव्या भारी पड़ गयी इन्हें।

कुंवर जी ने भी इस गुंडागर्दी पर अपनी राय व्यक्त की है, यहाँ देखें। उनका विशेष आभार।

पुरुषों की खाल में छिपे किन्नरों को यह जान लेना बहुत ज़रूरी है कि उनसे कही अधिक मर्दानगी दिव्या श्रीवास्तव में भरी पडी है। स्त्री होकर भी वह दम जो किसी के पचाए नहीं पचता। उन्होंने तो अपने ब्लॉग पर टिप्पणी विकल्प भी बंद कर दिया। उन्हें किसी के समर्थन व विरोध की भी कोई चिंता नहीं। बस निस्वार्थ रूप से अपने विचार लिखती जा रही हैं। जिसे लाभान्वित होना है, होता रहे, जिसे कुढना है वो मरे।
है किसी में दम लड़ने का???

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नोट- कृपया कोई मुझे यहाँ तमीज का पाठ न पढाए, अन्यथा मैं इससे भी अधिक बदतमीज़ हूँ। तमीज में फंसे रह जाएंगे और शत्रु हमारी मातृभूमि , संस्कृति, देश, हमारी माँ-बहन सबको बर्बाद कर देंगे।

Thursday, February 23, 2012

सुप्रीम कोर्ट इससे अधिक कर भी क्या सकता था???

4 जून 2011 की अर्धरात्रि को दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई रावणलीला पर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। शुक्र है 8 महीने ही लगे। अपने 20 मिनट के फैसले में सुप्रीम कोर्ट 19 मिनट तक दिल्ली पुलिस को लताड़ पिलाती रही और अंतिम एक मिनट बाबा रामदेव के नाम पर इतना कहा कि धारा 144 लगने के बाद उन्हें मैदान खाली कर देना चाहिए था जो कि नहीं हुआ। अत: उनकी भी ज़िम्मेदारी बनती है।
परन्तु मीडिया की माने तो दिल्ली पुलिस और बाबा रामदेव बराबर के ज़िम्मेदार हैं। बल्कि बार-बार पहला दोष बाबा रामदेव के मत्थे फोड़ने की कोशिश होती रही। आज शाम की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी बार-बार मीडियाई मुर्गे रामजेठमलानी जी से यही सवाल पूछ रहे थे कि राजबाला की मृत्यु पर मुआवज़े के पांच लाख में से सवा लाख बाबा रामदेव को भरने हैं, इस पर आपका क्या कहना है/ रामजेठमलानी का दो टूक जवाब इनके कलेजे चीर गया। उनका कहना था कि हमे तो ख़ुशी होगी जो हम राजबाला के परिवार की कुछ भी मदद कर सके। बल्कि उनकी बहु स्वयं यहाँ उपस्थित हैं। सवा लाख क्या, हम पूरे पांच लाख दे सकते हैं। लेकिन ये सवाल उनसे पूछो जिन्हें बाकी के पौने चार लाख भरने हैं।
खैर मीडिया से और कोई उम्मीद भी नहीं है। अभी तो बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की।
क़ानून(?) की बेड़ियों में फंसा न्यायालय इससे अधिक कुछ कर भी नहीं सकता था। क़ानून के अनुसार उसका निर्णय बिलकुल सही है किन्तु न्याय के अनुसार यह न्याय नहीं है।
दिल्ली पुलिस पर क्या आरोप मढना, यह सब तो पहले कहा ही जा चूका है। अभी देखें बाबा रामदेव का क्या दोष था?
सुप्रीम कोर्ट की एक ही आपत्ति है कि धारा 144 लागू होने के बाद बाबा रामदेव ने अपने समर्थकों से मैदान खाली क्यों नहीं करवाया? यह सब बातें इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि 4 जून के उस आन्दोलन में पुलिसिया लाठियों का शिकार होने के बाद मेरे सामने बहुत से "बुद्धुजिवियों" ने वही प्रश्न खड़े किये थे जो आज सुप्रीम कोर्ट ने किये हैं। यदि कानूनी चश्मा पहन कर देखा जाए तो बाबा रामदेव दोषी हैं। अरे भाई धारा 144 का उलंघन करने वाला दोषी नहीं होगा क्या?
लेकिन कौनसा क़ानून कब लागू करना है, कौनसी धारा कब किसके मत्थे मढ़नी है, इसका कोई ज़िक्र शायद हमारे संविधान में नहीं है। संविधान की इसी कमजोरी का फायदा कांग्रेस सरकार ने उठाया और आधीरात को धारा 144 दिल्ली में लागू की गयी। अब तो गयी भैंस पानी में। बाबा रामदेव के लिए तो इधर कुआं, उधर खाई थी। एक तरफ करीब एक लाख राष्ट्रवादी थे जो देश के लिए मर मिटने को तत्पर थे, वहीँ दूसरी ओर स्साली 144 धारा। जाएं तो कहाँ जाएं? भारत के हर कोने से लोग वहाँ जमा थे। कोई कश्मीर से तो कोई नागालैंड से, कोई कन्याकुमारी से तो कोई गुजरात व राजस्थान के रेगिस्तान से। दिल्ली में किसी का कोई ठिकाना नहीं था। आसरे के नाम पर केवल रामलीला मैदान का वह पंडाल जहां उस रात हम देश बदल देने का सपना देखते हुए उम्मीद की एक नींद सो रहे थे। ऐसे में धारा 144 हम जैसों के लिए काल बनकर आई थी। आधी रात, अनजान शहर, कहाँ जाएं? हम तो फिर भी 144 का पालन करने के लिए यहाँ-वहाँ सड़कों पर रात गुज़ार लेंगे, किन्तु उनका क्या, जो महिलाओं व बच्चों के साथ आए थे? दो व्यक्तियों के अलावा तीसरा व्यक्ति साथ में नहीं दिखना चाहिए था, वरना वहीं लाठियां। ऐसे में बाबा रामदेव क्या करते? हाँ उन्होंने क़ानून तोडा, तो क्या गलत किया? इस देश का संविधान लकीर की फकीरी करता है। सोचने-विचारने का काम यहाँ गैर कानूनी है।
हम तो आस लगाए बैठे थे कि चलो आठ महीने बाद आज न्याय मिलेगा। माना सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को दोषी मान लिया, लेकिन इस निर्णय ने किसी का क्या उखाड़ लिया? दिल्ली पुलिस क्या अपनी मर्ज़ी से वहाँ कोलावेरी डी मचाने पहुँच गयी थी? उनके आकाओं का क्या हुआ इस न्याय (आय एम् सॉरी, फैसले) में? उस रात ठुकने-पिटने वाले तो दर्द झेल गए इस आस में कभी तो न्याय मिलेगा। माँ राजबाला वीरगति पा गयीं, स्वर्ग से उनकी आत्मा न्याय पर नज़र लगाए बैठी होगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जो भी दोषी साबित हुआ, उसके लिए सज़ा क्या है? क्या केवल दोषी की गाली दे देने से ही न्याय हो जाता है? क्या केवल 75% मुआवजा भरने के हुक्म से ही न्याय मिल जाता है?
क्या कार्यवाही होगी उन पुलिस वालों पर जो उस रात बर्बरता से हमे पीट रहे थे, और जिनके कारण माँ राजबाल आज हमारे बीच नहीं रही? क्या सज़ा होगी पुलिस के उन आकाओं की, जिनके इशारे पर पुलिसिया गुंडे वहाँ लाठी-बंदूकों के साथ हाज़िर हो गए थे? सबसे बड़ी बात क्या सज़ा होंगी कांग्रेस के उन नेताओं (विशेषकर गांधियों) की जिनका कालाधन विदेशों में जमा है, जिसे लाने के लिए हम पिट रहे थे?
इतना सस्ता न्याय नहीं चाहिए। हमने कीमत चुकाई है, हमे हिसाब बराबर चाहिए।