मित्रों अभी कुछ दिन पहले भारतीय खिलाड़ियों ने विश्व कप जीत कर देश का सम्मान बढ़ाया था| हर तरफ ख़ुशी का वातावरण था| मैंने पहली बार एक ही दिन होली और दिवाली साथ में मनाई गयी देखी| गाँव, शहर, कस्बों की सड़कों पर लोग उतर आये| ख़ुशी से नाच रहे थे, गा रहे थे, भारत माता की जय, हिन्दुस्तान जिंदाबाद, वंदेमातरम जैसे नारों के साथ वातावरण गुंजायमान था| मैं भी इन सबमे में शामिल था| नारे लगा लगा कर मेरा गला बैठ गया था| किन्तु ख़ुशी का वो समय ही कुछ ऐसा था की रोके नहीं रोक सका स्वयं को| अब तक लोगों के दिलों में ख़ुशी है| किन्तु अब ऐसा लगता है की क्या भारतीयों का राष्ट्र प्रेम केवल क्रिकेट के मैच तक ही सीमित है? हमारे खिलाड़ियों ने तो अपना वचन निभाया है| विश्व कप जीतने का जो वचन उन्होंने भारतीयों को दिया था, वह उन्होंने भली प्रकार निभाया है और अपने कर्त्तव्य का निर्वाह किया है| यदि वे पाकिस्तान से हार कर आ जाते तो सौ फीसदी उनके विरोध में यहाँ प्रदर्शन होता, पुतले जलाए जाते, धोनी हाय हाय के नारे लगाए जाते| यह केवल संभावना नहीं है, ऐसा हमाए देश में बहुत बार हो चूका है जब खेल को खेल न समझ कर उसे व्यक्तिगत ले लिया जाता है, जब क्रिकेट को खेल न समझ कर उसे धर्म बना दिया जाता है| क्रिकेट में भारत की हार का मतलब समूचे राष्ट्र की हार समझा जाता है| और तब शुरू होता है हमारे भारत देश के तथाकथित देश भक्तों का तांडव| यहाँ पुतले फूंके, वहां नारे लगाए और पता नहीं क्या क्या| ऐसे में वे खिलाड़ी बेचारे स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं जिन्होंने अपनी तरफ से पूरी जान लगा दी थी किन्तु किसी कारणवश हार गए थे|
आज जब ये सरकार अपना वचन नहीं निभा रही है तो सब शांत क्यों हैं? क्या आपकी देश भक्ति क्रिकेट विश्वकप जीतने के साथ ही ख़त्म हो गयी? खिलाड़ी तो अपना पूरा योगदान टीम को जिताने में लगा ही देते हैं, किन्तु ये सरकार तो जानबूझ कर हमें लूट रही है, यह तो जानबूझ कर अपना वचन भंग कर रही है| तब हम चुप क्यों हैं| जब हम ख़ुशी मनाने सड़कों पर आ सकते हैं तो विरोध जताने क्यों नहीं? सड़कों पर आना जरूरी है किन्तु इसका मतलब यह नहीं होता कि हम आम जन को परेशान करें| हमारा विरोध मर्यादित हो|
अन्ना हजारे जन लोकपाल विधेयक पारित करने के लिए ५ अप्रेल को अनशन पर बैठे थे| आज उनका चौथा दिन है| चार दिन भूखा रहना सरल नहीं है| बहुत सारे लोग उनके साथ अनशन पर बैठे हैं| बहुत से लोग अपने अपने शहरों में इसी प्रकार का आयोजन कर अनशन पर बैठ गए| मेरी प्रबल इच्छा है कि मै भी उनके साथ वहां जाकर अनशन पर बैठ जाऊं| प्रयास भी बहुत किया किन्तु किसी कारणवश दिल्ली नहीं जा सका| पिछले तीन दिनों से फेसबुक, ट्विटर पर व अन्य वेबसाइटों पर अन्ना हजारे को समर्थन मिलता देख रहा हूँ| यह देख कर ख़ुशी है की लोगों तक अन्ना की आवाज पहुँच रही है|
किन्तु अन्ना के साथ अनशन पर बैठने की इच्छा मन में ही रह गयी| किन्तु अब सोचा कि अनशन तो यहाँ भी हो सकता है| हमारे देश में तो यह परंपरा रही है कि यदि हमारा नेता हमारी मांगों के लिए कष्ट झेल रहा है तो हम मज़े कैसे मार सकते हैं?
भगत सिंह एवं उनके साथी जब जेल में कठोर भूख हड़ताल झेल रहे थे तब देश के कई परिवारों ने अपने चूल्हों को ठंडा कर दिया था| उनका कहना था की जब तक हमारे क्रांतिकारी भूखे रहेंगे हम भी अन्न का दाना नहीं खा सकते|
१९६५ की लड़ाई के समय जब भारतीय सेनाएं लाहौर तक पहुँच गयी थीं, तब अमरीका ने लाल बहादुर शाह्त्री जी को यह धमकी दी थी यदि आपकी सेनाएं पीछे नहीं हटी तो अमरीका की तरफ से भारत को दी जाने वाली गेंहूं आपूर्ति रोक दी जाएगी| उस समय भारत में गेंहूं का अभाव था और अमरीका से उसकी आपूर्ति की जाती थी| ऐसे में शास्त्री जी ने अमरीका को खुली चुनौती दी कि रोक लो गेंहूं, हम भारतवासी तो सप्ताह में दो दिन उपवास रखते ही हैं दो दिन और रख लेंगे, किन्तु राष्ट्र का सम्मान तुम्हारे आगे नहीं रखेंगे| और तब शास्त्री जी ने देशवासियों से यह गुजारिश की थी कि अपने खर्चे कम से कम कर दो, और भोजन की कमी होने पर सप्ताह में १ दिन, २ दिन या अपनी इच्छानुसार उपवास रखें| इस कठिन समय में हम झुक सकते हैं किन्तु राष्ट्र को नहीं झुकने देंगे| शास्त्री जी का कहना था कि अगले ही दिन से देश में उपवास शुरू हो गए थे| मज़े की बात तो यह है कि आज तक कई लोग सप्ताह में १ दिन उपवास रखते आ रहे हैं| किसी भगवान् के लिए नहीं शास्त्री जी के लिए| उनसे उपवास का कारण पूछो तो कहते हैं की सन पैंसठ में शास्त्री जी ने कहा था आज तक निभाते आ रहे हैं|
१९७५ में कांग्रेस के आपातकाल के समय जब जय प्रकाश नारायण ने सरकार के विरुद्ध क्रान्ति छेड़ी थी उस समय भी पता नहीं कितने ही लोग उनके साथ इस लड़ाई में कूद पड़े, जेल भी गए, भूखे भी रहे|
हमारे देश की स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु की कामना में हज़ारों लाखों वर्षों से करवाचौथ का उपवास करती आ रही हैं|
विकट समय में एक हो जाना तो मेरे देश की परंपरा रही है|
स्थिति आज भी सामान ही है| इस सरकार की लूटनीति को रोकने के लिए अन्ना हजारे अनशन पर बैठे हैं| समस्या केवल अन्ना हजारे की नहीं है, वे हम सबकी समस्या का समाधान चाहते हैं| हमें भी तो उनका सहयोग करना चाहिए| दिल्ली तो नहीं पहुँच सका किन्तु आज से यहाँ जयपुर में ही अपना अनशन शुरू कर रहा हूँ| आज जब अपने ऑफिस में था तो दोपहर के भोजन के समय मैंने भोजन करने से मना कर दिया| कारण जानने पर मेरे एक सीनियर ने कहा की यह तो अच्छी बात है किन्तु इस प्रकार गुपचुप भूखे रहने से किसी को क्या पता चलेगा की तुम अनशन पर हो? तब मैंने उनसे यही कहा कि जाना तो मुझे दिल्ली था किन्तु ऑफिस के कारण छुट्टी नहीं मिली मुझे|
किन्तु जब अन्ना हजारे भूखे हैं तो मै कैसे कोई निवाला गले से उतार सकता हूँ?
जब अन्ना हजारे मेरे आत्मसम्मान की रक्षा के लिए भूखे हैं तो मै स्वयं का सम्मान क्यों न करूँ?
जब अन्ना हजारे ७२ वर्ष की आयु में राष्ट्रहित में भूखे रह सकते हैं तो मै २६ वर्ष की आयु में अपना पेट कैसे भर सकता हूँ?
अत: आज से मेरा भी अनशन शुरू है| केवल अन्ना हजारे अकेले भूखे नहीं रहेंगे| हजारों-लाखों-करोड़ों भारतवासी आज अन्ना के साथ इस अनशन में शामिल हैं| और बहुत से ऐसे भी हैं जो अपना अनशन अकेले में बिना किसी को बताये कर रहे हैं|
यहाँ यह सब लिखने का मेरा उद्देश्य केवल इतना ही था कि जैसे भी हो सके इस आन्दोलन को आगे बढ़ाना है| जिससे जो योगदान हो सके वह करे| केवल भूखा रहना ही एक मात्र विकल्प नहीं है| किसी भी प्रकार सरकार पर दबाव बनाया जाना चाहिए| जो लोग दिल्ली में हैं या जो लोग दिल्ली जा सकते हैं वे अन्ना के साथ १ दिन, २ दिन या अपनी योग्यता अनुसार भूख हड़ताल पर बैठें| जो लोग दिल्ली से बाहर हैं वे लोग अपने निकट के व्यक्तियों को इस शुभ कार्य के लिए प्रेरित करें| जब सरकार यह देखेगी कि अन्ना के साथ इतने लाख लोग दिल्ली में अनशन पर बैठे हैं, इतने करोड़ लोग अपने अपने शहरों में भूख हड़ताल कर रहे हैं, इतने करोड़ लोग हमारे विरुद्ध सड़कों पर उतर आये हैं तो इस बर्बर सरकार को भी झुकना पड़ेगा| आज अन्ना अकेले हैं कल पूरा देश उनके साथ खड़ा होगा यही आशा है|
अपनी बातः ढाक के तीन पाँत
ReplyDeleteकोलकाता, दिनांक 6जून 2011;
आज हम निम्न तीन बिन्दुओं पर आपसे बात करूँगाः
1. भाजपा का अन्धापन,
2. बाबा रामदेव बनाम लोकपाल बिल एवम्
3. लोकपाल विधयेक पर सरकार की मंशा।
1. भाजपा का अन्धापनः
इस देश में गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, मंहगाई, महिलाओं पर अत्याचार, अराजकता, सांप्रदायिकता, कुपोषन, चिकित्सा, आर्थिक अपराधिकरण, असामाजिक आचरण वालों का राजनैतिक संरक्षण, शिक्षा, किसानों द्वारा आत्महत्या, किसानों की उपजाओ जमीन का व्यवसायीकरण, अनैतिक अधिग्रहण जैसे सैकड़ों मुद्दे भारत के कण-कण में विखरे पड़े हैं, परन्तु पता नहीं संसद के अन्दर पैसे लेकर प्रश्न उठाने वाले भाजपा सांसदों को ये मुद्दे क्यों नहीं वक्त से पहले दिखाई देते। जब कोई इन मुद्दों पर आन्दोलन करता है तो भाजपा वाले सबसे पहले यहाँ पहुँच कर अपनी छवि बनाने का प्रयास करती रही है। रामजन्म भूमि विवाद से लेकर भ्रष्टाचार सहित सभी आन्दोलनों में भाजपा का एक ही चरित्र देखने को मिला कि वो अपने 90 साल के प्रधानमंत्री प्रत्यासी को लेकर लकड़ी से घास खिलाने का काम करती रही है। कभी जिन्ना के नाम पर तो कभी राम के नाम सत्ता का स्वाद लेने की नकाम दौड़ जारी है। पिछले दिनों सरकार ने पेट्रोल के 5 रु. दाम बढा दिये, भाजपा ने एक दिन सांकेतिक हल्ला कर लोगों को सड़कों पर परेशान किया। फिर वही ढाक के तीन पाँत। क्या हुआ? बाबा रामदेव को सबसे पहले मलहम लगाने दौड़ने चाली भाजपा के नेताओं से एक सीधा सा प्रश्न है कि नियत साफ है तो संसद से सारे सदस्यों को इस्तीफा देने को कह कर देश में मध्याविधि चुनाव के लिए जनता के बीच में जाएं और एक शपथ लें कि वे भ्रष्टमुक्त राष्ट्र की कल्पना को मुर्तरूप देने के लिए देश की जनता के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलेगी।
2. बाबा रामदेव बनाम लोकपाल बीलः
अब बाबा को यह स्वीकार कर लेना चाहिये कि भ्रष्ट व्यवस्था को बदलने के लिए सभी को साथ लेने की जरूरत है। जिसमें किसी भी राजनैतिक दल का परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सहयोग इस लड़ाई को कमजोर करना है। बाबा को मान लेना चाहिये कि यदि राजनेताओं में इतनी ही ईमानदारी हुई होती तो बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल या किरण बेदी की कोई जरूरत नहीं होती। देश को आपलोगों से काफी अपेक्षाऐं हैं। बस एक मंच से एक होकर लड़ने कि हमें जरूरत है। आज से ही आप एह ऐलान कर दें कि यह देश की लड़ाई है इसे हम सब मिलकर लड़ेगें।
3. लोकपाल विधयेक पर सरकार की मंशाः
जिस प्रकार कांग्रेसी सरकार के शातिर दिमाग ने बाबा रामदेव को अपने जाल में फांस अपने कांटे को निकालने के लिए जनता के दिमाग का 'आईवास' कर रामदेवजी क आन्दोलन को कुचलने की साजिश रची और आंशिक सफल भी रहे माना जा सकता है। हमको यह मान लेना चाहिये कि लोकपाल विधयेक पर सरकार की मंशा को लेकर जनता के बीच जाने की जरूरत है। इसके लिए हमें अब मध्याविधि चुनाव का मार्गा अपनाने की तरफ कदम बढा़ना होगा।
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