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Wednesday, June 1, 2011

साप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक-कांग्रेस और सेक्युलरिज्म का एक और नंगा नाच

मित्रों नेशनल एडवाइज़री काउंसिल (NAC) ने साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का एक मसौदा तैयार किया है जहाँ से सेक्युलरिज्म की बदबू हर किसी को आ सकती है| वैसे तो यह मसौदा शायद चार दिन पहले ही तैयार कर लिया गया था| आज लिखने का समय मिला है| इस विधेयक के पूरे ड्राफ्ट को आप यहाँ देख सकते हैं|


ऊपर से देखते ही इसमें अल्पसंख्यक वोट बैंक की गन्दी राजनीति के दर्शन हो जाएँगे| मुझे एक बात समझ नहीं आती कि कोई भी क़ानून हमेशा जनहित को ध्यान में रखकर बनाया जाता है, किन्तु यहाँ तो ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है| यह मसौदा तो केवल अल्पसंख्यकों को खुश करने की एक चाल भर है|
इस विधेयक से जुड़े कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं...

इस विधेयक के अनुसार किसी भी साम्प्रदायिक हिंसा में अल्पसंख्यक को हमेशा पीड़ित व बहुसंख्यक को हिंसा फैलाने वाला माना जाएगा|
मतलब किसी दंगे फसाद में यदि कोई मुसलमान व ईसाई मारा जाए तो इस क़ानून के अंतर्गत इसकी जांच होगी| लेकिन वहीँ कोई हिन्दू मारा जाता है तो वही साधारण जांच होगी| जाहिर है अल्पसंख्यक पीड़ित है तो इस क़ानून के अंतर्गत किसी अल्पसंख्यक को तो सजा का कोई प्रावधान भी नहीं है| भले ही वह कितने ही बहुसंख्यकों को काट चूका हो| वहीँ बहुसंख्यकों के विरुद्ध कठोर दंड का प्रावधान है|

इस विधेयक के अनुसार यदि किसी अल्पसंख्यक महिला के साथ बलात्कार होता है तो वह बलात्कार माना जाएगा| लेकिन बहुसंख्यक महिला का बलात्कार बलात्कार नहीं है| उसकी तो वही साधारण जांच होनी है|
मतलब यदि किसी महिला के साथ बलात्कार होता है तो पहले उससे उसकी जाति पूछी जाएगी फिर कौनसी कार्यवाही करनी है यह निर्धारित किया जाएगा| ऐसे में हवस के भूखे भेड़िये इसका नाजायज़ लाभ उठाएंगे व किसी भी बहुसंख्यक महिला से अपनी भूख शांत कर लेंगे| किसी पीडिता से कार्यवाही करने से पहले उसकी जाति पूछना क्या साम्प्रदायिक नहीं है? सरकार क्या चाहती है कि कोई भी बलात्कारी किसी महिला का बलात्कार करने से पहले उसकी जाति पूछे? यदि वह अल्पसंख्यक है तो छोड़ दे नहीं तो तुझे परमिशन है मूंह काला करने की|

इस प्रकार की घटनाओं में क़ानून व्यवस्था राज्य सरकारों के हाथ में होती है| किन्तु यदि केंद्र सरकार चाहे तो वह दंगों की तीव्रता को देखते हुए राज्य सरकारों के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है| चाहे तो बर्खास्त भी कर सकती है| इसका सीधा सीधा असर मुस्लिम व ईसाई बहुल क्षेत्रों में पड़ेगा| यदि गुजरात में दंगे होते हैं तो मोदी को बर्खास्त किया जा सकता है, किन्तु कश्मीर, केरल, असम, बंगाल आदि क्षेत्रों में तो बहुसंख्यकों के मरने पर भी कोई कार्यवाही होनी ही नहीं है|

इस विधेयक के अनुसार किसी अल्पसंख्यक समुदाय विशेष के लिए कहीं पर भी घृणा अभियान चलाना अपराध है| मतलब बहुसंख्यकों के विरुद्ध चलाओ तो जायज़ है| यहाँ तक कि फेसबुक, ट्विटर व ब्लॉग में भी|

इस विधेयक के अनुसार कोई भी अल्पसंख्यक किसी भी बहुसंख्यक पर किसी भी प्रकार का आरोप लगा सकता है, किन्तु बहुसंख्यक को यह अधिकार नहीं है| क्यों कि सरकार तो मान बैठी है कि बहुसंख्यक हमेशा हिंसक व आक्रामक है जबकि अल्पसंख्यक तो बेचारा पीड़ित है|

इस विधेयक से होने वाला सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होगा कि जिस क्षेत्र में मुसलमान या इसाई बहुसंख्यक हैं व हिन्दू अल्पसंख्यक है वहां आसानी से हिन्दुओं का संहार किया जा सकता है|
सरकार कब यह समझेगी कि दंगों में अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक नहीं बल्कि एक आम आदमी ही मारा जाता है| सीधा सवाल इन सेक्युलर भांडों से कि क्या इस देश में एक आम आदमी के जीने लायक हालात छोड़ोगे भी या नहीं?
सोचिये कैसा लगे यदि किसी दंगे में दंगाइयों ने मेरे स्वजनों को मार डाला व मेरा घरबार उजाड़ डाला| जब मैं न्याय मांगने जाऊं तो पहले मुझसे मेरी जाति पूछी जाएगी| और बहुसंख्यक होने के कारण मुझे कोई न्याय भी नहीं मिलेगा| उस समय मुझे यही लगेगा कि मैंने ब्राह्मण परिवार में पैदा होकर शायद सबसे बड़ी गलती कर दी|

अभी तक यह विधेयक पारित नहीं किया गया है| शायद अगले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह कुकर्म किया जाए| ताकि अल्पसंख्यक वोट बैंक को अपने कब्जे में लिया जा सके|
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अंत में जाते-जाते एक और ताज़ा गरमा गरम खबर है कि उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर में आतंकवादियों से विनती की है कि वे कश्मीर में आतंकवाद केवल सर्दियों में ही फैलाएं| गर्मियों में आतंकवाद के डर से यहाँ आने वाले सैलानियों की संख्या में आई कमी को देखते हुए उमर अब्दुल्ला ने सैलानियों से विनती की है कि वे गर्मियों में अपनी छुट्टियां मनाने यहाँ आए| गर्मियों में घाटी में कोई भी आतंकवादी घटना नहीं घटेगी इसके लिए वे स्वयं आतंकवादियों से बातचीत करेंगे| विस्तार से पढने के लिए यहाँ देखें|

10 comments:

  1. अत्यंत शर्मनाक है की बहुसंख्यक पर होते अत्याचार के प्रति असंवेदनशील हैं जबकि अल्पसंख्यकों को इतनी तवज्जो । ये धर्म निरपेक्षता नहीं । एक अलग ही प्रकार का 'आतंकवाद' है जिसमें निर्दोष जनता पिस रही है। घर के लोग ही घर में आग लगा रहे हैं। शायद ईमान बेच चुके हैं अपना ।

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  2. क्या कहा जाय दिवस...... काफी व्यथित हूँ जब इस बिल के बारे में जब से पढ़ा है......

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  3. kahane ke liye to kuchh bacha hi nahi nirlajjata ka bas ek aaur udaharan hai

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  4. दिवस जी अपना मेल देखें।

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  5. Chandan Kumar Mishr ji kaunsa mail Gmail ya Yahoo...aur kis naam se mail dekhna hai bataaen...mere mail box me to bahut se mail pending hain...

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  6. जीमेल वाला। चंदन नाम से ही है। यानि सब्जेक्ट चंदन है।

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  7. mujhe is naam se koi mail nahi mila...kripya samay batayen kab bheja hai aapne?

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  8. फिर से भेज दिया है। अभी तुरंत। वैसे सब्जेक्ट था चंदन, नाम चंदन-मिश्रा। लेकिन अभी वाले का सब्जेक्ट मेरा पूरा नाम चंदन कुमार मिश्र है।

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  9. यह तो सरासर जंगलराज है। इस कानून का तो जोरदार विरोध होना चाहिए,,…। कोई ऐसी निति बना ही कैसे सकता है। भ्रष्ट हो गई है सबकी बुद्धि।

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  10. बहुत ही शर्मनाक है निर्णय है. देश को तोड़ने का काम है. धन्यवाद दिवस जी.

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