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Sunday, February 13, 2011

स्पष्ट जनादेश, वो क्या होता है???

मित्रों बहुत दिनों से दिमाग में यही सवाल चल रहा है कि चारों ओर थू थू होने के बाद भी आखिर यह कांग्रेस सत्ता में आती कहाँ से है? मै केवल मेरे आस पास के क्षेत्र की बात नहीं कर रहा, क्यों कि यहाँ तो राजस्थान में भी कांग्रेस की ही सरकार है| मेरे साथ के सहकर्मी महाराष्ट्र, गुजरात, बंगाल, केरल, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि जगहों से हैं| अब जहाँ तक वे अपने अपने क्षेत्रों के बारे में बताते हैं उससे मुझे तो यही लगता है कि कांग्रेस की धज्जियां तकरीबन सभी जगह उड़ चुकी है| फिर मै भी टेलिकॉम में काम करता हूँ, अत: काम से यहाँ वहां काफी घूमना भी होता रहता है| तब पता चलता है कि लोगों के दिल से तो कांग्रेस गायब हो चुकी है| तो क्या मै यूँही इतने दिनों से उन मतदाताओं को कोस रहा था जिन्होंने कांग्रेस को विजयी बनाया? शायद व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा व्यय कर दी| क्यों कि मुझे तो ऐसा ही लगा कि कोई भी पढ़ा लिखा समझदार व्यक्ति ऐसे ही इन नेताओं के झूठे लुभावनों में नहीं पड़ता| आखिर इतने सालों से वह भी तो इस पार्टी की करतूत देख रहा है|
 कारण साफ़ है कि भारत में अब कांग्रेस की कभी जीत नहीं होती अपितु विपक्ष की हार हो जाती है| अब यह कैसे संभव है? संभव है, हमारे देश में कुछ भी असंभव नहीं है| अब वोटिंग मशीन में गड़बड़ी का विवाद हो या दारू पिला कर, मुर्गा खिला कर, पैसे दे कर जुटाई भीड़ हो, मुझे तो कांग्रेस की जीत पर शंका है| विपक्ष की हार का लाभ ही इस तथाकथित महान पार्टी को मिलता है| गड़बड़ दरअसल मतदाता में नहीं हमारी चुनावी प्रणाली में है| कहने को तो भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है किन्तु इस लोकतंत्र में लोक गायब है| यहाँ सर नहीं सीट गिनी जाती हैं| मान लीजिये हमारे प्रदेश में ५० सीटें हैं और आपके प्रदेश में ७०| आपकी ७० सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई, मान लीजिये सभी वोट कांग्रेस को ही मिले और हमारे यहाँ ५० सीटों पर भाजपा विजयी रही और सभी वोट भाजपा को मिले| किन्तु आपके क्षेत्र में पड़ने वाले वोटों की संख्या है पांच करोड़ और हमारे यहाँ यह संख्या है सात करोड़| अब अधिक लोगों ने तो भाजपा को चुना है किन्तु सीट कांग्रेस के पास अधिक हैं, अत: सरकार बनाने का अधिकार कांग्रेस को मिलेगा| फिर कैसा लोकतंत्र है ये?
दूसरी गड़बड़ थोड़ी अलग है| हमारे यहाँ चुनाव अधिकतर एम्एलए, एमपी, पार्षद या सरपंच के नाम पर होते हैं, प्रधान मंत्री की तो किसी को पड़ी भी नहीं है| कोई भी बने हमें क्या, हमारे यहाँ का एम्एलए तो हमारी जात का, हमारी बीरादरी का या हमारे क्षेत्र का ही होना चाहिए| मानें या न मानें किन्तु ऐसे विचार अधिकतर पिछड़े व अशिक्षित लोगों के मन में आते रहते हैं| मै ऐसा नहीं कहता की पढ़ा लिखा नागरिक दूध का धुला है| बात तो यह है कि बेचारे बहुत से पढ़े लिखों को तो मौका ही नहीं मिल पाता कि वे यह निर्णय करें कि हमारा नेता कौन हो? घबराइये नहीं सच कहता हूँ|
पहले मै मेरी व्यथा ही सुना देता हूँ| अब तक तो मुझे थोडा बहुत पढ़ कर आपको यह पता चल ही गया होगा कि मै एक कांग्रेस विरोधी नागरिक हूँ| वोट देने का अवसर मिले तो भाजपा ही फिलहाल पहली पसंद है| किन्तु वोट देने का मौका मिले तो सही| मेरी तो गलती यही है कि मै पढ़ा लिखा नागरिक हूँ| मुझे पहले पढ़ाई के लिये घर से दूर किसी अन्य शहर में आना पड़ा, फिर नौकरी के लिये भी अपने शहर से दूर ही रहना पड़ा| क्या करें हमारे छोटे शहरों में कहाँ नौकरियां हैं? सरकारी नौकरी कोई देता नहीं ब्राह्मण जो ठहरा| अब चुनाव के दिन एक दिन की छुट्टी में मै अपने घर जा कर वोट देकर वापस भी आ जाऊं? चलो मै तो ऐसा करता ही हूँ, मेरा गृह नगर यहाँ से ३८० किमी की दूरी पर ही है, किन्तु उन लोगों का क्या जो हज़ारों मील की दूरी पर बैठे हैं? चुनाव प्रणाली चाहती है कि वे लोग एक दिन में यह काम पूरा कर लें, क्या यह संभव है? ऐसे में मारे जाते हैं भाजपा के अनगिनत वोट|
यकीन मानिए ऐसे अनगिनत वोट अधिकतर भाजपा के नाम पर पड़ने वाले ही होते हैं| अपने घर से कोसों दूर बैठे ये पढ़े लिखे नागरिक जिन्हें वोट देने का अधिकार तो है किन्तु समय नहीं| रही बात उच्च वर्ग के व्यापारियों कि तो उनमे से अधिकतर की पहली पसंद है कांग्रेस| कैसे? वो ऐसे कि अपने कई व्यापारी मित्रों को इसी की लालसा करते देखा है| सभी एक स्वर में बोलते हैं कांग्रेस की सरकार आ जाए तो हमारे ऊपर नीचे के काम आसानी से हो जाते हैं| भाजपा के शासन में कुछ दिक्कत आती है|
राजस्थान में तो यही होता देखा है मैंने|
तीसरी गड़बड़ यह कि यहाँ जितना मज़ाक लोकतंत्र का उड़ता है उतना तो शायद दुनिया के किसी भी देश में नहीं होता होगा| कैसे? वो ऐसे कि १२० करोड़ की आबादी वाले देश में वोट पड़ते हैं ६० करोड़| जिनमे से जो दल ३० करोड़ की बाज़ी मार गया वो अपनी सरकार बना गया| किन्तु यहाँ इतने राजनैतिक दल हैं कि कोई एक दल तो यह बाज़ी मार नहीं सकता| गठबंधन तो जैसे कम्पलसरी है| जिसके पास २४-२५ करोड़ का आंकड़ा पहुच गया वह लगता है शेष ५-६ करोड़ के जुगाड़ में| ऐसे में काम आते हैं निर्दलीय उम्मीदवार| अब निर्दलीय उम्मीदवार का कंसेप्ट ही क्या है मुझे यह समझ नहीं आता| ये तो चुनाव लड़ते ही इसलिए हैं कि अंत के जुगाड़ में जो दल अधिक माल दे वहीँ अपने आपको बेच दें| किसी और का फायदा हो न हो इन्हें जरूर मलाई मिलती है| मज़े की बात तो यह है कि ऐसे उम्मीदवार जीतते भी हैं| अब इन्हें जिताने वालों से कोई पूछे कि क्या सोच कर इन्हें वोट दिया था कि यही हमारे देश की बागडोर संभालेगा, या हमारे मौसा जी का बेटा खड़ा हुआ था अत: जीता दिया| मै यह नहीं कहता कि सभी निर्दलीय उम्मीदवार बिकाऊ हैं, किन्तु इनका कंसेप्ट मेरी समझ के बाहर है| किसी प्रकार जोड़ तोड़ करके कुछ निर्दलीय व कुछ क्षेत्रीय दलों को मिला कर कोई एक दल सरकार बनाने का दावा तो कर देता है साथ ही इसे लोकतंत्र की जीत का उदाहरण जरूर बताता है| अब बताएं कि कहाँ है यहाँ लोकतंत्र? १२० करोड़ के देश में से केवल २५ करोड़ लोगों की पसंद को पूरे देश पर थोप दिया जाता है और जीत है ये लोकतंत्र की? देश की २०% आबादी हमारा नेता चुनती है और हम बन जाते हैं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा?
तो यह कहानी है जनादेश(?) की| एक आम आदमी के उदाहरणों के साथ, ऐसा नहीं कि इन प्रोफ़ेसर ने यह कहा, उन डॉक्टर ने वह कहा, इस किताब में यह लिखा है उस किताब में वह लिखा है| जनादेश एक आम आदमी से जुड़ा है अत: आम आदमी की भाषा में मैंने इसे रखने की कोशिश की है|
सबकी अपनी मजबूरी होती है तो इसका मतलब यह नहीं कि यही निजाम हमेशा चलता रहेगा| विकल्प और भी बहुत से मिल जाएंगे| सबसे पहले तो होना यह चाहिए कि मतदाता को केवल उन्ही उम्मीदवारों के नाम पता हों जो कि प्रधान मंत्री पद के दावेदार हैं| इससे लाभ यह होगा कि मै रहने वाला राजस्थान का हूँ किन्तु कर्नाटक में बैठा भी अपने देश का नेतृत्व करने वाले को चुन सकता हूँ| मुझे अपने शहर जा कर किसी विशेष पोलिंग बूथ पर जाने की आवश्यकता नहीं है|
या एक तरीका यह हो सकता है कि एक ही व्यक्ति दो वोट डाले, एक तो अपने क्षेत्रीय उम्मीदवार के नाम और एक प्रधान मंत्री के नाम| कम से कम अपने घर से दूर बैठे व्यक्ति अपना प्रधान मंत्री तो चुन सकते हैं|
अगर यह भी संभव न हो तो ऐसी सुविधा दी जाए कि वोटिंग ऑनलाइन हो सके| मै देश के किसी भी कोने में बैठा अपने शहर के क्षेत्रीय उम्मीदवार को वोट दे सकूं| ऐसा बिल्कुल संभव है| और इसमें कोई गड़बड़ी की आशंका भी नहीं है| जब भारतीय प्रबंधन संस्थान (CAT ) की परीक्षा ऑनलाइन हो सकती है तो चुनाव क्यों नहीं? अब यह तो अजीब विडम्बना है कि हम मोबाइल से एसएम्एस करके इन्डियन आइडल या बिग बॉस तो चुन सकते हैं, किन्तु इन्टरनेट के उपयोग से प्रधान मंत्री नहीं चुन सकते|
देखते हैं शायद कभी न कभी इन विकल्पों को अपना लिया जाए| इतना तो मै आश्वस्त हूँ कि ऐसा होने पर कम से कम ये घटिया राजनीति खेलने वाली कांग्रेस तो किसी हालत में नहीं जीत पाएगी|

11 comments:

  1. अति सुंदर बात कही आप ने, पहले सभी पार्टियां अपने प्रधानमत्री का नाम भी चुनाव से पहले बता दे, ओर फ़िर अपने वादे जो उस ने पुरे किये हे, ओर जो अधुरे रह गये हे, ओर फ़िर नये वादे,चुनाव लडने से पहले इन नेताओ की ओकात क्या हे यह भी जरुर बताना चाहिये, ओर यह सब लिखित रुप मे, क्योकि कल का जेबकतरा नेता बनाने पर अरबो का मालिक बन जाता हे ओर उस के खाना दान मे भी सभी अरब पति बन जाते हे, उन से कोई नही पुछने वाला कि भाई यह चार पांच साल पहले तो नमक से भी रोटी नही खा सकते थे, ओर आज यह ठाठ केसे हो गये? हमारे चुनाव मे एक दो नही बहुत सी कमिया हे, जब हम इन कमियो को दुर करेगे तभी सही ओर असली लोकतंत्र होगा, वर्ना तो चोरतंत्र ही रहेगा, किसी भी नेता के इतिहास को देख ले नेता बनाने से पहले इन के बाप कही चपडासी तो कही खुलासी ही थे...

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  2. डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
    “वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।

    आप भी इस पावन कार्य में अपना सहयोग दें।
    http://vriksharopan.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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  3. मनमोहन है परेशान, जनता भी हैरान.
    देश लूट कर खा गयी, नेहरू की सन्तान.
    नेहरू की सन्तान, करे अब हम का भाई,
    मिश्र देश ने दुनिया को, राह नयी है दिखलाई.

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  4. अति सुंदर बात कही आप ने,
    आज की राजनीती केवल जेब भरने का सबसे अच्छा साधन बन गई है .

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  5. दिवस जी ,

    बहुत उम्दा लिखा है आपने । हर एक पहलू कों बहुत बारीकी से प्रस्तुत किया है । आज कांग्रेस ही है जो देश के विकास कों बाधित कर रही है । वास्तव में यहाँ लोकतंत्र का मखौल बन रहा है । निजी स्वार्थ के चलते कोंग्रेस एक समुदाय विशेष कों खुश करने में लगी है बस । देश के विकास से उसे कुछ लेना देना नहीं है । घोटाले हों या फिर भ्रष्टाचार , कोंग्रेस अपनी मस्ती में, आग लगे सारी बस्ती में।

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  6. आदरणीय पाठकों उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद|

    सादर

    दिवस...

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  7. समस्या को एकदम सही पहचाना और बयान किया है आपने…
    युवाओं से काफ़ी उम्मीदें हैं, देखना है कि युवा वर्ग कब टीवी-मीडिया-दारुबाजी-वेलेन्टाइन से बाहर आकर देश के बारे में सोचेगा…

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  8. सार्थक और विचारणीय बात..... इन विषयों पर बात ज़रूरी है...

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  9. इसमें लिखी हुयी एक एक पंक्ति पढ़ कर न जाने क्यों आँखे मेरी नाम हो रही थी, मैं ऐसा नहीं कहूँगा की बहुत खूब लिखा लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा की अपने जो भी लिखा वो सभी भारतीयों के दिल की बात है.

    बस मन में एक आशंका ये रहती है की आने वाली सरकार....वो अपना कोनसा रंग दिखलाएगी...

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