मित्रों, राजीव दीक्षित एक महत्वपूर्ण नाम होने के बाद भी बहुत जाना पहचाना नहीं है। बहुत से लोग तो इन्हें जानते भी नहीं होंगे। कुछ लोगों ने केवल उनका नाम ही सुना है। यही होते हैं नींव के पत्थर जो पूरी इमारत को अपने ऊपर खड़ा रखते हैं किन्तु किसी को दिखाई भी नहीं देते।
बहुत कम लोग जानते होंगे कि स्वामी रामदेव जी को भारत स्वाभिमान का सुझाव देने वाले एवं उनके साथ कंधे से कन्धा मिला कर इस संगठन को सफल बनाने वाले राजीव दीक्षित ही थे। जो लोग इन्हें जानते हैं उन्हें राजीव भाई के निधन का दु:खद समाचार भी मिल गया होगा। राजीव भाई से मिलने के बाद यह जाना कि एक लौह पुरुष क्या होता है। जब मैं दसवीं या ग्यारहवीं कक्षा में पढता था तब उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस समय राजीव भाई आज़ादी बचाओ आन्दोलन नामक एक संगठन के प्रवक्ता थे जिसे उन्होंने खुद खड़ा किया था और जन-जन तक पहुंचाने के लिये खुद गाँव-गाँव घूम कर एक आम आदमी में राष्ट्रीय चेतना भरने का काम करते थे।
मित्रों, जिस जगह से राजीव भाई निकल कर आए थे, शायद ही कोई ऐसा हो जो उनकी इस राह को अपना सके। यह बात समझाने के लिये मै राजीव भाई का परिचय आपको देना चाहता हूँ।
राजीव भाई का जन्म ३० नवम्बर १९६७ को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के नाह गाँव में एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में हुआ था। उनके पिता किसान थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव में ही हुई फिर उच्च शक्षा के लिये वे इलाहाबाद गए। इंजीनियरिंग के बाद उन्होंने आईआईटी कानपुर से सेटेलाईटकम्युनिकशन में एमटेक किया। विदेशों से आने वाले बहुत सारे नौकरी के प्रस्तावों को उन्होंने ठुकरा दिया व अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया। वे खुद एक वैज्ञानिक थे एवं डॉ. कलाम के साथ भी कार्य कर चुके हैं। वे सीएसआईआर इंडिया में टेलीकॉम क्षेत्र में भी कार्य कर चुके हैं। उन्होंने डाक्टरिट की उपाधि फ्रांस में ली थी किन्तु कभी भी अपने नाम के आगे ”डॉ.” नहीं लगाया। पिछले बीस सालों से राजीव भाई भारतीय स्वदेशी के सिद्धांत पर ही कार्य कर रहे थे।
राजीव भाई पिछले बीस वर्षों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के खिलाफ तथा स्वदेशी की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे । वे भारत को पुनर्गुलामी से बचाना चाहते थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सभी वेदों, शास्त्रों, उपनिषदों व पुराणों का अध्ययन किया। पिछले ३००० वर्षों के विश्व इतिहास को भी उन्होंने बड़ी बारीकी से पढ़ा। न केवल हिन्दू धर्मग्रन्थ अपीतु कुर आन, बाइबिल व गुरु ग्रन्थ साहिब का भी अध्ययन किया। विश्व का शायद ही कोई दर्शनशास्त्री होगा जिसे राजीव भाई ने नहीं पढ़ा। अर्थशास्त्र के बहुत से भारतीय व विदेशी विद्वानों को भी राजीव भाई ने पढ़ा। एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा का अध्ययन व आयुर्वेद व होम्योपैथी का विशेष अध्ययन राजीव भाई ने किया। खुद इंजीनियर थे किन्तु होम्योपैथ का अद्भुत ज्ञान होने के कारण बड़ी बड़ी बिमारी का इलाज होम्योपैथ व आयुर्वेद से करते थे। मुझे याद है मैंने कई बार उनके पास मरीजों की भीड़ देखी है। इनके साथ साथ क़ानून व्यवस्था व खेती बाड़ी जैसे विषय भी उन्होंने पढ़ डाले।
राजीव भाई ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी व दर्शन पढ़ा। प्रारम्भ से ही राजीव भाई उधम सिंह, भगत सिंह, चंद्रशेखर, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस व सुभाष चन्द्र बोस से प्रभावित रहे। बाद में जब उन्होंने गांधी जी के जीवन दर्शन का अध्ययन किया तो उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्हें इतिहास में पिछले ५०० वर्षों का सबसे महान व्यक्ति मानने लगे।
राजीव भाई ने आजीवन अविवाहित रह कर अपनी समस्त शक्ति राष्ट्र को समर्पित करने की शपथ ले ली थी। पिछले करीब पच्चीस सालों से राजीव भाई ने इतिहास से जो सबक लिया उससे गाँव गाँव घूम कर भारतवासियों को जागृत करते रहे। यूनानी, पुर्तगाली, तुर्की, मुग़ल, फ्रांसीसी व अंग्रज़ भारत क्यों आये, उन्होंने भारत को कैसे गुलाम बनाया, कैसे अंग्रजों ने हमारी संस्कृती व सभ्यता को नष्ट किया, कैसे उन्होंने हमारी शिक्षा नीति को बदला, इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य था? आदि सब प्रश्नों के उत्तरों से वे भारत वासियों को जगाते रहे। इस समय अंतराल ने राजीव भाई ने करीब १५००० व्याख्यान दिए। अंग्रजों ने भारत को गुलाम बनाने के लिये जितने क़ानून बनाए थे उनका राजीव भाई आजीवन विरोध करते रहे। ५००० से अधिक विदेशी कम्पनियां जिस प्रकार से आज भारत को लूट रही हैं उसके विरोध में राजीव भाई ने आज़ादी बचाओ आन्दोलन जैसे मंच की स्थापना की। देश की पहली स्वदेशी व विदेशी कंपनियों के सामान की सूची राजीव भाई ने ही तैयार की थी। और इसी के आधार पर वे देशवासियों से स्वदेशी अपनाने का आग्रह करते रहे। १९९१ में डंकल प्रस्तावों के खिलाफ घूम घूम कर जन जाग्रति की और रेलियाँ निकाली। कोका कोला और पेप्सी जैसे पेयों के खिलाफ अभियान चलाया और कानूनी कार्यवाही की। १९९१ व १९९२ में राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कंपनी के कारखाने बंद करवाए। १९९५-९६ में टिहरी बाँध के विरोध में ऐतिहासिक मोर्चा निकाला। इसमें वे इतने प्रबल रूप से संघर्ष कर रहे थे कि उन पर पुलिस का लाठी चार्ज भी हुआ जिसमे उन्हें गंभीर चोटें आई, किन्तु फिर भी वे संघर्ष करते रहे। टिहरी पुलिस ने तो राजीव भाई को मारने की पूरी योजना बना रखी थी। १९९७ में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रख्यात गाँधीवादी इतिहासकार धर्मपाल जी के सानिध्य में‚ अंग्रेजों के समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके देश को जाग्रत करने का काम किया। उनके पास ऐसे ऐसे दस्तावेज़ थे जिसमे कांग्रेस पार्टी व नेहरु की करतूतों की पोल खुलती दिखाई दी।
मेरे पिता आज़ादी बचाओ आन्दोलन के बीकानेर जिला संयोजक रह चुके हैं। अत: उस समय राजीव भाई का बीकानेर आगमन हुआ और मेरा उनसे मिलने का प्रथम सौभाग्य। मै उस समय दसवीं या ग्यारहवीं कक्षा में पढता था। राजीव भाई के विचारों से मैं और मेरे दोनों भाई इतना प्रभावित हुए कि हमने उनके सिद्धांतों को अपना लिया। उसके बाद तो कई बार राजीव भाई से मिलना हुआ। कोई समस्या होती तो उनसे समाधान भी करवाया। उस समय एक बार मेरे बड़े भाई ने राजीव भाई को एक ख़त लिखा जिसमें उन्होंने राजीव भाई के सामने एक समस्या रखी कि किस प्रकार मैं अपने संगी साथियों को इस राष्ट्रवादी चेतना से जोड़ सकूं? क्योंकि सभी युवा ही हैं और वे इस प्रकार की विचारधारा से बोरियत महसूस करते हैं। साथ ही मुझे भी यह सलाह देते रहते हैं कि तू कहाँ इन फालतू चक्करों में पड़ गया? इस पर करीब तीन महीने बाद राजीव भाई का पत्र आया जिसमे पहले उन्होंने देरी के लिये क्षमा मांगी व देरी का कारण बताया कि किस प्रकार से वे पिछले कुछ महीनों से वर्धा से बाहर थे, अत: उन्हें आज ही कई पत्र मिले जिनमे आपका पत्र भी मिला। उन्होंने बड़े सहज़ अदाज़ में भैया को समझाया कि इस प्रकार की घटनाओं से न घबराएं व पूरे मन से पहले अपनी पढ़ाई करें फिर अपने ज्ञान से आप उन्हें समझाएं। आज नहीं तो कल वे आपको जरूर समझेंगे। राजीव भाई का इस प्रकार एक तरुण को इतना महत्व देना व इतने प्यार से समझाना हमें बहुत प्रभावित कर गया। हमें तो लगा कि इस प्रकार के व्यस्त लोग शायद ही जवाब दें।
एक बार राजस्थान के कोटा जिले में लोगों के आग्रह पर सुखमय पारिवारिक जीवन पर एक सुन्दर व्याख्यान दिया। जिसे सुन मैं हतप्रभ रह गया। इतिहास, राजनीति, व्यापार, अर्थशास्त्र, देश-विदेश, स्वदेशी, भ्रष्टाचार, भुखमरी, चिकित्सा, शिक्षा व आतंकवाद जैसे विषयों पर बोलने वाले राजीव भाई को जब पहली बार परिवार, जीवन मूल्यों, परम्पराओं व रिश्ते नातों पर बोलते सुना तो आश्चर्य स्वाभाविक ही था। उनके वे सुन्दर शब्द मुझे आज भी याद हैं।
प्रारम्भ में राजीव भाई ने प्रचार के आधुनिक संसाधनों को नज़र अंदाज़ किया। वे विभिन्न चैनलों पर दिखाए जाने वाले बेहूदा कार्यक्रमों व सिनेमाई पर्दे पर दिखाई जाने वाली फूहड़ फिल्मों के इतने प्रबल आलोचक रहे कि इन्होंने टेलिविज़न के माध्यम से प्रचार का तरीका ही नहीं अपनाया। शायद यही कारण था कि आज़ादी बचाओ आन्दोलन अधिक समय तक लोकप्रिय नहीं रह सका व राजीव भाई को भी अधिक लोग नहीं जान पाए। किन्तु वे फिर भी डटे रहे।
इधर परम पूजनीय स्वामी रामदेव जी ने आधुनिक संसाधनों का उपयोग कर पूरे देश में क्रान्ति ला दी थी। स्वामी जी ने एक लुप्त हो चुकी विद्या को पुनर्जीवित कर दिया था व इसे जन-जन तक पहुंचा दिया था। स्वामी जी ने कई बार अपने व्याख्यानों में राजीव भाई का ज़िक्र किया था। उन्होंने बताया था किस प्रकार वे स्वदेशी आन्दोलन को सफल बनाने का काम कर रहे हैं। इस प्रकार कई लोगों तक राजीव भाई का सन्देश मिला। फिर राजीव भाई स्वामी जी से मिले और पिछले १० वर्षों से उनके संपर्क के बाद उन्होंने ९ जनवरी २००९ को भारत स्वाभिमान की स्थापना की। स्वामी जी के नेतृत्व में राजीव भाई ने आन्दोलन का लिम्मा अपने सर ले लिया व अपने ही तेतालिसवें जन्मदिवस ३० नवम्बर २०१० को छत्तीसगढ़ के भिलाई में वे इसी रण में शहीद हो गए। उनके द्वारा किये कार्यों को भारत कभी नहीं भुला पाएगा।
उनकी मृत्यु का समाचार मुझे मेरे एक परिचित से ३० नवम्बर को प्रात: ही मिल गया था। कई दिनों तक मन अति व्याकुल रहा। जयपुर में मैं अकेला ही रहता हूँ। अकेले में कई बार रोने की इच्छा भी हुई किन्तु शायद यह काम मेरे लिये संभव नहीं है। दुःख तो मन में ही रहा। कहते तो सब यही हैं कि शहीद की मौत पर दुःख करने से उसकी शहादत का अपमान होता है, किन्तु मुझे तो दुःख यह था कि इस धरा ने अपने एक और वीर पुत्र को खो दिया। हम तो शहीद की मौत पर गर्व से सीना फुला लेते हैं किन्तु उसकी माँ पर क्या बीत रही है यह हम क्या जाने। हम तो राजीव भाई को अंतिम विदाई दे चुके हैं किन्तु इस भारत माँ के आंसू कौन पौंछेगा जिसकी सेवा में राजीव भाई ने अपना जीवनहोम कर दिया व अपने प्राण भी दे दिए।
कुछ दिनों पहले ही भारत स्वाभिमान ने यह घोषणा की थी कि यह संगठन अगले लोकसभा चुनावों में चुनाव लडेगा। २९ नवंबर की शाम करीब ६:३० बजे राजीव भाई को हृदय में दर्द हुआ। इससे पहले वे किसी मीटिंग से वापस आये थे। और आधी रात को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका पूरा शरीर काला पड़ गया था। शव काला तभी पड़ता है जब या तो व्यक्ति को ज़हर देकर मारा जाए या फिर बिजली के झटके से। साथ ही राजीव भाई का पोस्टमार्टम भी नहीं होने दिया| इसी प्रकार आपको याद होगा कि शास्त्री जी का शव जब ताशकंज से आया था तब उनका भी शरीर काला पड़ चूका था और कांग्रेस ने उनका पोस्मार्टम नहीं होने दिया और आनन् फाना में उनका अंतिम संस्कार करवा दिया था। शायद राजीव भाई भी इसी प्रकार शिकार बने हों। यह एक संभावना भी हो सकती है। क्योंकि ऐसा हमारे देश में होता आया है। सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री, जय प्रकाश नारायण की सूची में अब राजीव भाई का नाम भी जुड़ गया है।
राजीव भाई को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिये हमें उनके सिद्धांतों को अपनाना होगा। राजीव भाई ने तो अपना पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया था किन्तु यदि हम दिन का एक घंटा भी उनके सपनों को यथार्थ करने में लगा दें तो ही राजीव भाई की आत्मा को शान्ति मिलेगी।
मन से तो अब यही आवाज निकलती है…” राजीव भाई आप अमर हैं!”
राजीव भाई द्वारा लिखित लेख व उनके व्याख्यान तो बहुत हैं किन्तु कुछ यहाँ दे रहा हूँ…
* भारतीय आज़ादी का इतिहास
* विदेशी विज्ञापनों का झूठ
* मैकॉले शिक्षा पद्धति
* एलिजाबेथ की भारत यात्रा
* विज्ञापनों का बाल मन पर प्रभाव
* गौ रक्षा एवं उसका महत्व
* अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण और निवारण
* पेटेंट क़ानून और दवाओं पर हमला
* CTBT और भारतीय अस्मिता
* सच्चे स्वराज्य की रूप रेखा
* स्वदेशी और स्वावलंबन
* स्वदेशी खेती
* महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि
* प्रतिभा पलायन
* भारत पर विदेशी आक्रमण
* आतंकवाद और उसके निवारण
* स्विस बैंकों में भारत की लूट
इत्यादि इत्यादि…
इन सबके अलावा राजीव भाई ने घर बैठे देश सेवा करने पर भी बहुत से व्याख्यान दिए हैं।
क्षमा करें मित्रों गलती से यह लेख Delete हो गया था, आप यदि फिर से अपनी राय दे सके तो मुझे अच्छा लगेगा|
ReplyDeleteअसुविधा के लिये क्षमा चाहूँगा...धन्यवाद|
राजीव जी सरीखे लोग रोज़ पैदा नहीं होते.
ReplyDeleteराजीव जी के मिशन को आगे ले जाना ही सच्ची स्राधांजलि है
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पे भी पधारे
http://anubhutiras.blogspot.com
हम सब मिलकर राजिव भाई के सपनो को पूरा करेंगे
ReplyDeleteराजीव जी ने हमेशा स्वेदेशी वस्तुओं और पैथियों को प्रमुखता दी। मुझे भी आयुर्वेद और homeopath में विश्वास है।
ReplyDeleteराजीव जी के मिशन को आगे ले जाना ही सच्ची स्राधांजलि है
ReplyDeleteएक लम्बी अवधी से आपने कोई नई पोस्ट नहीं लगाई ...इंतज़ार रहेगा ।
ReplyDeleteसच में दिव्या जी, काफी समय से एक विषय दिमाग में घूम रहा है| मुझे लिखने में समय अधिक लगता है, पता नहीं क्यों? और इन दिनों अधिक समय ब्लॉग के लिये नहीं निकाल पा रहा| किन्तु अब जल्दी ही आपको मेरा एक नया लेख पढना होगा|
ReplyDeleteमुझे ख़ुशी हुई कि आपको मेरी नयी पोस्ट की प्रतीक्षा है|
rajiv ji ki htya ki gai thi lekin rajiv bhai or hjaron rajiv bnakar gae hen hmari aane vali pidhiyan unse prerna leti rahengi dinesh ji ese hi likhte rahe
ReplyDelete