मित्रों आखिर सवाल यह है कि अगर देश में अनाज सड रहे हों और आपकी जनता भी भूखों मर रही हो तो उन्हें मुफ्त अनाज बांट देने में परेशानी क्या है? आश्चर्य तो यह है कि न्यायलय को सबक सिखाने में व्यस्त सरकार के किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति ने इस मामले पर कोई भी सफाई देना मुनासिब नहीं समझा. वैसे जो एकमात्र बाजिब समस्या नज़र आती है वह ये है कि अनाज को गांव-गांव तक पहुचाया कैसे जाय, उसको बांटने का आधार क्या हो. लेकिन अगर नीति बनाने के जिम्मेदार आप हैं और किसी दुसरे स्तंभ को यह अधिकार देना भी नहीं चाहते तो आपको इस तरह की जनकल्याणकारी नीति बनाने से रोका किसने है? खबर आ रही है कि केन्द्र सरकार देश के सभी छः लाख गाँवों तक कंडोम पहुचाने की व्यवस्था कर रही है. इस बारे में नीति बनकर तैयार है और एक स्वयंसेवी संगठन को इसका ठेका भी दे दिया गया है. तो आप गावों तक कंडोम बांट सकते हैं लेकिन अनाज बांटने में आपको बौखलाहट हो रही है.
मित्रों संसद में शरद पंवार ने कहा था कि केवल ११,००० मीट्रिक टन अनाज सड़ा है, किन्तु भारतीय खाद्य निगम (एफ सी आई) की ओर से जारी अधिकृत आंकड़ों के अनुसार केवल पंजाब में ही तीन जगहों पर ४९,००० मीट्रिक टन अनाज ऐसा है जिसे गोदामों से उठाया नहीं जा सकता है. पंजाब में ही १.३६ लाख मीट्रिक टन गेंहू पिछले दो साल से खुले में केवल पोलीथीन से ढका रखा है जिस पर से दो मानसून गुजर चुके हैं. जिससे करीब ५० हज़ार टन गेंहू खराब हो चूका है. वर्ष १९९७ से २००७ के बीच १.८३ लाख टन गेंहू, ६.३३ लाख टन चावल, २.२० लाख टन धान और १११ लाख टन मक्का विभिन्न गोदामों में सड़ चूका है.
मित्रों अब हम इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस देश में आधी से अधिक जनता गरीबी में जी रही है वह अनाज सड़ जाने का क्या मतलब है. इस अनाज को गरीबों में मुफ्त बंटवाने में सरकार को असुविधा हो रही है, किन्तु मुफ्त कंडोम गाँव गाँव आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं. मित्रों अब देख लो ये सरकार हमें कहाँ ले जा रही है, लोगों का चरित्र खराब करना अधिक आवश्यक है. लो कंडोम लो और मज़े करो, नैतिकता का तो कोई स्थान बचा ही नहीं है इस देश में. एक तरफ तो गरीब भूखा है और दूसरी तरफ इन सबको भोग का साधन उपलब्ध करवाया जा रहा है. मित्रों अभी भी समय है जाग जाओ, इस सरकार के भरोसे बैठे रहे तो आने वाली पीढी या तो भूखी रहेगी या चरित्रहीन हो कर भोग में डूबी होगी...
सन्दर्भ : http://www.pravakta.com/.com - श्री पंकज झां,
Outlook Magazine -सितम्बर २०१० - श्री अजीत सिंह...
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