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Sunday, September 12, 2010

शर्म करो वामपंथियों और कांग्रेसियों...


मित्रों ये चित्र जो आप देख रहे हैं, क्या आप जानते हैं कि ये किसका है, या किस से सम्बंधित है, या कब लिया गया है???


ये कई प्रश्न हैं जो इस चित्र से जुड़े हुए हैं...

मित्रों ये चित्र दिसंबर २००७ में लिया गया है. अर्थात ये चित्र १३ दिसंबर २००१ को संसद पर हुए आतंकी हमले की छठी वर्ष गाँठ का है. चित्र में एक महिला कुछ सूट बूट पहने बड़े बड़े लोगों से घिरी हुई रो रही है. छोडो भूमिका बांधना अब आप को सत्य बताही देता हूँ.

मित्रों ये चित्र शहीद नानकचंद की विधवा का है, वही नानकचंद जो १३ दिसंबर के आतंकी हमले में आतंकियों का सामना और देश के नेताओं की सुरक्षा करते हुए शहीद हो गए थे. उनकी शहादत की छठी वर्ष गाँठ पर उनकी विधवा देश के कथित नेताओं के सामने विलाप करते हुए उन्हें खरी खरी सुना रही है कि उसे छः साल से कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है. उसे एक पेट्रोल पम्प आबंटित हुआ था किन्तु उसे आज तक ज़मीन नहीं मिली है.

एक तरफ तो ये महिला नेताओं को अपनी आपबीती सुना रही है और दूसरी और वामपंथी और कथित सेकुलर के पुजारी खुश हो रहे होंगे की चलो छः साल तो हम अफजल गुरु को फांसी से बचाने में सफल हुए. अब इनके विषय में क्या कहना, इन्हें तो शायद गुजरात में वोटों की फसल लहलहाती हुई दिख रही होगी.

धन्य है ये महिला, फिर भी इसके साथ ऐसा व्यवहार??? शर्म आती है मुझे मित्रों...
धन्य है तू  माँ... इन नेताओं ने भले हे तुम्हे किनारे कर दिया हो, किन्तु ये देश तुम्हारा है. इस देश पर इन नेताओं से अधिक तुम्हारा अधिकार है...इस देश पर तेरे इस प्रेम भाव को मै प्रणाम करता हूँ...

मित्रों बाद में इस महिला को डरा धमका कर यहाँ से बाहर खदेड़ दिया गया. मित्रों अब आप ही मुझे बताओ की मै इन कांग्रेसियों के कौनसा शब्द उपयोग करू जो अपनी ही जान बचाने वालों के परिजनों के साथ ऐसा व्यवहार करते हों.

इन्हें रीढविहीन (spineless) कहना भी इनका सम्मान ही होगा, इन्हें हिंजड़ा कहूँगा तो शायद हिंजड़े भी बुरा मान जाये, क्यों कि उनको भी गुस्सा आता है, उन्हें भी कभी कभी अपने मान अपमान का बोध होता है, किन्तु हमारे नेताओं ने तो अपना आत्मसम्मान पता नहीं किस रिश्वत के तले दबा रखा है??? इन्हें तो बस यही चिंता रहती है कि कैसे हमारे देवी देवताओं के नग्न चित्र बनाने वाले एम एफ हुसैन को भारत वापस लाया जाए, या तेलगी सलेम या शाहबुद्दीन को कोई तकलीफ तो नहीं है, या अफजल और कसाब को जेल में ठीक से चिकन तो मिल रहा है न आदि आदि...

मित्रों है ना परोपकारी सरकारें.. लेकिन खुद की जान की बाजी लगा कर इन घृणित लोगों की जान बचाने वालों का कोई खयाल नहीं... इसीलिये मेरा भारत महान है! क्या अभी भी यकीन नहीं हुआ? अच्छा चलो बताओ, कि ऐसा कौन सा देश है जिसके शांतिप्रिय नागरिक अपने ही देश में शरणार्थी हों... जी हाँ सही पहचाना... भारत ही है। कश्मीरी पंडितों को दिल्ली के बदबूदार तम्बुओं में बसाकर सरकारों ने एक पावन काम किया हुआ है और दुनिया को बता दिया है कि देखो हम कितने “सेकुलर” हैं। कांग्रेस की एक सफ़लता तो निश्चित है, कि उसने “सेकुलर” शब्द को लगभग एक गाली बनाकर रख दिया है। अभी भी विश्वास नहीं आया... लीजिये एक और सुनिये... समझौता एक्सप्रेस बम विस्फ़ोट में मारे गये प्रत्येक पाकिस्तानी नागरिक को दस-दस लाख रुपये दिये गये, मालेगाँव बम विस्फ़ोट में मारे गये प्रत्येक मुसलमान को पाँच-पाँच लाख रुपये दिये गये, और हाल ही में अमरावती में दंगों में लगभग ७५ करोड़ के नुकसान के लिये १३७ हिन्दुओं को दिये गये कुल 20 लाख। ऐसे बनता है महान राष्ट्र।

बात हिन्दू मुस्लिम की नहीं है, बात तो इन कमीने नेताओं की है जो हमें ही बाँट रहे हैं, और हमसब धर्मनिरपेक्ष चुप बैठे हैं, चुप क्यों न बैठें आखिर हमें एक सेकुलर राष्ट्र का निर्माण जो करना है.

लेकिन एक बात तो तय है कि जो कौम अपने शहीदों का सम्मान नहीं करती वह मुर्दा कौम तो है ही, जल्द ही नष्ट भी हो जाएगी, भले ही वह सॉफ़्टवेयर शक्ति हो या “महान संस्कृति” का पुरातन देश...
सन्दर्भ- http://blog.sureshchiplunkar.com/2007/12/congrats-secularist-communists.html...
शर्म करो वामपंथियों और कांग्रेसियों...

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