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Sunday, May 13, 2012

शायद एक अभिनेता, न्यायलय व देश की जनता से भी अधिक विश्वसनीय है।

एक थोड़ी पुरानी खबर पर ध्यान गया। अभी कुछ समय पहले कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के जिला कलेक्टर ने कन्या भ्रूण हत्या जैसी त्रासदी से निपटने के लिए एक बेहतरीन सुझाव रखा। इन्होने कहा था कि हमे एक ऐसा तन्त्र बनाना चाहिए जिसमे प्रत्येक गर्भवती की समस्त जानकारियाँ व तस्वीरें ऑनलाइन एकत्र हों। उन्होंने "Silent Observer" नामक एक device की बात रखी जो एक software पर काम करती है। इसमें अपनी खुद की memory भी होगी। जिसके अंतर्गत किसी भी प्रसूता की समस्त जानकारियाँ व गर्भ के चित्र store हो सकते हैं। यह सब इसलिए ज़रूरी है ताकि कोई भी डॉक्टर Pre-Conception व Pre-Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act, 1994 के अंतर्गत कोई भी गलत रिपोर्ट न बना सके व इसके द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सके।
हालांकि इसके विरुद्ध Maharashtra chapter of the Indian Radiological and Imaging Association के एक चिकित्सक डॉ. जिगनेश ठक्कर ने एक petition दायर की थी। डॉ. ठक्कर के अनुसार इस प्रकार की जानकारियाँ कोई तीसरा व्यक्ति भी देख सकता है। इससे किसी भी स्त्री की निजता को खतरा है। परन्तु महाराष्ट्र उच्च न्यायलय के चीफ जस्टिस मोहित शाह व जस्टिस आर पी सोंदुरबलदोता ने डॉ. ठक्कर की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट का कहना था कि न्यायालय लड़का-लड़की के बिगड़ते अनुपात पर आँख नहीं मूँद सकता।
खैर केस चला, जीता भी गया, सरकार के पाले में गेंद गयी, फिर क्या हुआ, पता नहीं चला।

1 जनवरी 2008 को दिल्ली में मेडिकल के छात्रों ने भ्रूण परिक्षण करने व कन्या भ्रूण को गिरा देने के विरुद्ध एक आन्दोलन किया था। जिसमे दिल्ली के बड़े-बड़े नामी-गिरामी डॉक्टर भी शामिल थे।

22 फरवरी 2010 को आगरा शहर के हज़ारों छात्रों ने कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध एक जागरूकता अभियान चलाया।

मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने भी प्रदेश में बेटी बचाओ अभियान को जोर-शोर से चलाया।

  23 नवम्बर 2011 को बंगलुरु शहर में कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध एक मेराथन का आयोजन किया गया जिसमे हज़ारों नगरवासियों ने भाग लिया।

10 सितम्बर 2003 को Centre for Enquiry Into Health And Allied Themes (CEHAT) ने भी civil 301, 2000 के तहत जस्टिस एम् बी शाह व जस्टिस अशोक भान की बेंच में एक petition दायर की थी। जिसमे Union of  India (UOI) को जवाब देना था। यह फैसला CEHAT के पक्ष में हुआ था।

13 जून 2005 को मुंबई उच्च न्यायलय में Criminal Writ Petition No. 945 of 2005 and Criminal Application No. 3647 of 2005 के अंतर्गत विनोद सोनी नामक एक व्यक्ति ने जस्टिस वी डी पालशिकर व जस्टिस वी सी डागा की अगुवाई में petition दायर की, जिसमे भी फैसला विनोद सोनी के हक़ में हुआ।

ऐसे पता नहीं कितने ही किस्से कन्या भ्रूण हत्या के इतिहास में जुड़े हुए हैं। पता नहीं कौन इन पर काम करता है? कोई याद भी रखता है या नहीं? जब न्यायलय की बात ही नहीं मानी जाती तो देश की जनता की कौन सुने?

परन्तु पता नहीं अभी ऐसा क्या हो गया कि अचानक सारे देश का ध्यान कन्या भ्रूण हत्या पर खिसक गया? फिल्म अभिनेता आमिर खान ने एक शो क्या बना दिया जैसे देश की काय पलट ही कर दी। यहाँ तक कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व राजस्थान उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस अरुण मिश्र ने भी अब कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मुहीम छेड़ दी। गहलोत ने चीफ जस्टिस से गुहार लगाईं है कि वे जल्दी ही ऐसे सभी मामलों को एक ही कोर्ट में लेकर आएं ताकि शीघ्रता से इन पर सुनवाई हो सके। शनिवार की प्रभात आमिर खान ने भी अशोक गहलोत की खुले दिल से प्रशंसा कर दी।

मतलब हम क्या बेवकूफ थे जो इतने सालों से इस विषय पर चिल्ला रहे थे?  देश का न्याय तंत्र भी इतना लाचार कि कोई उसकी सुनता ही नहीं। एक आमिर खान ही दूध का धुला है। उसने यदि सर्टिफाइड कर दिया तो कुछ मामला बने। अन्यथा अपना काम नहीं बनता, भाड़ में जाए जनता।

आमिर खान ने चाहे एक पब्लिसिटी स्टंट ही क्यों न मारा हो, यदि उसका इतना असर है तो क्या उसे ही Chief Justice of Supreme Court नहीं बना देना चाहिए? भई जब सारे प्रमाण पत्र उसे ही बांटने हैं तो सीधा काम उसे ही क्यों न सौंप दिया जाए? देश में न्याय व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या है?

5 comments:

  1. आमिर हों अथवा शाहरूक अथवा सलमान खान , मार्केटिंग करना कोई इनसे सीखे । इन खानों को ये बहुत अच्छी तरह से पता है की नाम और शोहरत कैसे कमानी है। 'कन्या भ्रूण हत्या' पर शो आयोजित करके खूब वाह-वाही लूट ली। क्योंकि ये दर्द तो भारत की हर नारी का दर्द है। इसलिए इस मुद्दे पर तो सफलता मिलनी ही थी।

    लेकिन कहाँ गया आमिर का प्रेम जब देश से प्रेम दिखाने का मौक़ा मिला था। आमिर की एक फिल्म "अव्वल नंबर" में इन्होने जिस बल्ले से क्रिकेट खेला था , उस बल्ले को नीलाम करके उससे मिली हुयी उस बड़ी रकम को आमिर ने पाकिस्तान को दान कर दिया था , ताकि वहां की गरीब जनता के लिए एक मल्टी-फैसिलिटी अस्पताल बनवाया जा सके। जैसी भारत में तो गरीब जनता है ही नहीं। यहाँ की गरीबी तो सिर्फ फिल्म बनाकर पैसा और शोहरत कमाने के ही काम आती है। फ़िर क्यों कोई दूर करे इसे।

    नारी के उत्थान से यदि सच्चा लगाव होता इन्हें तो पत्नी को त्यागकर प्रेमिका से विवाह कर उस स्त्री का जीवन नरक नहीं किया होता।

    स्त्री हो या गरीबी, पैसा और शोहरत कमाने के सबसे उपजाऊ और कमाऊ साधन हैं आमिर के लिए भी और अमीरों के लिए भी। इन मुद्दों पर फिल्में बनाकर , लोगों की भावनाओं को करीब से छूते हैं , और --मसीहा-- बन बैठते हैं।

    हज़ारों प्रयास इस दिशा में , लाखों लोगों ने किये तो नज़र अंदाज़ कर दिए गए, लेकिन इन खान-बंधुओं की तो बात ही कुछ और है। -- ये करें तो वाह ! वाह !... कोई और करे तो ...आगे बढ़ो....

    क्या आमिर खान हिन्दुओं का अधिकार छीनने वाले, मुस्लिमों के लिए दिए गए अनैतिक आरक्षण के खिलाफ कुछ करेंगे?

    क्या वे उन महिलाओं के लिए कुछ करेंगे जो "लव जिहाद" का शिकार हो रही हैं ?

    क्या वे अलगाव वादी बयानों पर कुछ करेंगे।

    क्या वे --"इस्लामिक आतंकवाद"-- कोई फिल्म अथवा 'शो' बनायेंगे ?

    क्या वे-- "मुस्लिम वोट बैंक"-- जैसी घटिया चालों के खिलाफ कुछ करेंगे?

    काश की आमिर पैसा और शोहरत कमाने के बजाये "मुस्लिम जनता " को सही राह दिखाते । उनमें भी भारत भूमि के प्रति समर्पण पैदा कर पाते।

    वन्दे मातरम् !

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    आमिर खान को जितना महिमा-मंडित किया जा रहा हा वे उसके हक़दार नहीं है। कौआ नहाने से हंस नहीं बन जता।

    "हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और" --- इसे अच्छी तरह से पता है कि भारत की जनता की भावनाओं को कैसे छेड़ना है और उससे शोहरत और पैसा कैसे कमाना है।

    यदि आधी जनता मूर्ख है जिसे आमिर के अलावा किसी और के सद्प्रयास नहीं दीखते, तो क्या हुआ, शेष आधी जनता के पास तो आँखें हैं ही, उन्हें पता है इसकी नीयत, इसकी इमानदारी और इसके मंतव्य।

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  3. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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