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Thursday, February 23, 2012

सुप्रीम कोर्ट इससे अधिक कर भी क्या सकता था???

4 जून 2011 की अर्धरात्रि को दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई रावणलीला पर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। शुक्र है 8 महीने ही लगे। अपने 20 मिनट के फैसले में सुप्रीम कोर्ट 19 मिनट तक दिल्ली पुलिस को लताड़ पिलाती रही और अंतिम एक मिनट बाबा रामदेव के नाम पर इतना कहा कि धारा 144 लगने के बाद उन्हें मैदान खाली कर देना चाहिए था जो कि नहीं हुआ। अत: उनकी भी ज़िम्मेदारी बनती है।
परन्तु मीडिया की माने तो दिल्ली पुलिस और बाबा रामदेव बराबर के ज़िम्मेदार हैं। बल्कि बार-बार पहला दोष बाबा रामदेव के मत्थे फोड़ने की कोशिश होती रही। आज शाम की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी बार-बार मीडियाई मुर्गे रामजेठमलानी जी से यही सवाल पूछ रहे थे कि राजबाला की मृत्यु पर मुआवज़े के पांच लाख में से सवा लाख बाबा रामदेव को भरने हैं, इस पर आपका क्या कहना है/ रामजेठमलानी का दो टूक जवाब इनके कलेजे चीर गया। उनका कहना था कि हमे तो ख़ुशी होगी जो हम राजबाला के परिवार की कुछ भी मदद कर सके। बल्कि उनकी बहु स्वयं यहाँ उपस्थित हैं। सवा लाख क्या, हम पूरे पांच लाख दे सकते हैं। लेकिन ये सवाल उनसे पूछो जिन्हें बाकी के पौने चार लाख भरने हैं।
खैर मीडिया से और कोई उम्मीद भी नहीं है। अभी तो बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की।
क़ानून(?) की बेड़ियों में फंसा न्यायालय इससे अधिक कुछ कर भी नहीं सकता था। क़ानून के अनुसार उसका निर्णय बिलकुल सही है किन्तु न्याय के अनुसार यह न्याय नहीं है।
दिल्ली पुलिस पर क्या आरोप मढना, यह सब तो पहले कहा ही जा चूका है। अभी देखें बाबा रामदेव का क्या दोष था?
सुप्रीम कोर्ट की एक ही आपत्ति है कि धारा 144 लागू होने के बाद बाबा रामदेव ने अपने समर्थकों से मैदान खाली क्यों नहीं करवाया? यह सब बातें इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि 4 जून के उस आन्दोलन में पुलिसिया लाठियों का शिकार होने के बाद मेरे सामने बहुत से "बुद्धुजिवियों" ने वही प्रश्न खड़े किये थे जो आज सुप्रीम कोर्ट ने किये हैं। यदि कानूनी चश्मा पहन कर देखा जाए तो बाबा रामदेव दोषी हैं। अरे भाई धारा 144 का उलंघन करने वाला दोषी नहीं होगा क्या?
लेकिन कौनसा क़ानून कब लागू करना है, कौनसी धारा कब किसके मत्थे मढ़नी है, इसका कोई ज़िक्र शायद हमारे संविधान में नहीं है। संविधान की इसी कमजोरी का फायदा कांग्रेस सरकार ने उठाया और आधीरात को धारा 144 दिल्ली में लागू की गयी। अब तो गयी भैंस पानी में। बाबा रामदेव के लिए तो इधर कुआं, उधर खाई थी। एक तरफ करीब एक लाख राष्ट्रवादी थे जो देश के लिए मर मिटने को तत्पर थे, वहीँ दूसरी ओर स्साली 144 धारा। जाएं तो कहाँ जाएं? भारत के हर कोने से लोग वहाँ जमा थे। कोई कश्मीर से तो कोई नागालैंड से, कोई कन्याकुमारी से तो कोई गुजरात व राजस्थान के रेगिस्तान से। दिल्ली में किसी का कोई ठिकाना नहीं था। आसरे के नाम पर केवल रामलीला मैदान का वह पंडाल जहां उस रात हम देश बदल देने का सपना देखते हुए उम्मीद की एक नींद सो रहे थे। ऐसे में धारा 144 हम जैसों के लिए काल बनकर आई थी। आधी रात, अनजान शहर, कहाँ जाएं? हम तो फिर भी 144 का पालन करने के लिए यहाँ-वहाँ सड़कों पर रात गुज़ार लेंगे, किन्तु उनका क्या, जो महिलाओं व बच्चों के साथ आए थे? दो व्यक्तियों के अलावा तीसरा व्यक्ति साथ में नहीं दिखना चाहिए था, वरना वहीं लाठियां। ऐसे में बाबा रामदेव क्या करते? हाँ उन्होंने क़ानून तोडा, तो क्या गलत किया? इस देश का संविधान लकीर की फकीरी करता है। सोचने-विचारने का काम यहाँ गैर कानूनी है।
हम तो आस लगाए बैठे थे कि चलो आठ महीने बाद आज न्याय मिलेगा। माना सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को दोषी मान लिया, लेकिन इस निर्णय ने किसी का क्या उखाड़ लिया? दिल्ली पुलिस क्या अपनी मर्ज़ी से वहाँ कोलावेरी डी मचाने पहुँच गयी थी? उनके आकाओं का क्या हुआ इस न्याय (आय एम् सॉरी, फैसले) में? उस रात ठुकने-पिटने वाले तो दर्द झेल गए इस आस में कभी तो न्याय मिलेगा। माँ राजबाला वीरगति पा गयीं, स्वर्ग से उनकी आत्मा न्याय पर नज़र लगाए बैठी होगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जो भी दोषी साबित हुआ, उसके लिए सज़ा क्या है? क्या केवल दोषी की गाली दे देने से ही न्याय हो जाता है? क्या केवल 75% मुआवजा भरने के हुक्म से ही न्याय मिल जाता है?
क्या कार्यवाही होगी उन पुलिस वालों पर जो उस रात बर्बरता से हमे पीट रहे थे, और जिनके कारण माँ राजबाल आज हमारे बीच नहीं रही? क्या सज़ा होगी पुलिस के उन आकाओं की, जिनके इशारे पर पुलिसिया गुंडे वहाँ लाठी-बंदूकों के साथ हाज़िर हो गए थे? सबसे बड़ी बात क्या सज़ा होंगी कांग्रेस के उन नेताओं (विशेषकर गांधियों) की जिनका कालाधन विदेशों में जमा है, जिसे लाने के लिए हम पिट रहे थे?
इतना सस्ता न्याय नहीं चाहिए। हमने कीमत चुकाई है, हमे हिसाब बराबर चाहिए।

9 comments:

  1. दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की आशा जगी है, तीन महीने का समय दिया है दोषियों पर कार्रवाई के लिये. धारा - १४४ का औचित्य ? अब तो इतनी जनसँख्या हो गयी है कि धारा १४४ के लगाने लायक संख्या में लोग तो आज किसी भी सार्वजनिक स्थान पर हर समय मिल जायेंगे.

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  2. शुक्रवार के मंच पर, तव प्रस्तुति उत्कृष्ट ।

    सादर आमंत्रित करूँ, तनिक डालिए दृष्ट ।।

    charchamanch.blogspot.com

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  3. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहा ..शायद कांग्रेस के दल्ले अब न्याय व्यवस्था में घुस रहे हैं..वरना सुप्रीम कोर्ट ने उसी संस्था से साक्ष्य मांगे हैं जिसके खिलाफ आरोप है दमन का..अब कोई बेवकूफ ही होगा जो अपने लिए फंदे का प्रबंध करेगा..दो चार हवलदारो की छुट्टी करके कर्तव्यों की इतिश्री..
    ३ महीने बाद भी कुछ नहीं निकलने वाला है.. और भांड मीडिया तो पैसे के लिए तलवे चाटने से ज्यादा कुछ नहीं करता तो इनकी बाते कोरी बकवास से ज्यादा कुछ नहीं है...
    आज का मीडिया बाजार रंडी के कोठे (ये सबसे सभ्य शब्द मिला मुझे इनके लिए अगर आपति हो हटा सकते हैं) से ज्यादा कुछ नहीं है जिसने ज्यादा पैसे दिए उसके साथ रात बिताने निकल पड़ा...
    जय बाबा रामदेव
    बहन राजबाला अमर रहे..

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  4. उम्मीद नहीं है पर हाँ आशा करती हूँ की न्याय हो....

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  5. इस निर्णय ने यह एक बार पुन : साबित किया कि न्याय-पालिका भी स्वतंत्र नहीं है, कौंग्रेस के कुछ चमचे और बीके हुए मीडिया वाले यह सलाह देने में गुरेज नहीं कर रहे कि रामदेव को सिर्फ योग तक ही सीमित रहना चाहिए, दुसरे अर्थो में, ये चाटुकार यह कह रहे है कि अगर मैं एक कलर्क हूँ तो मुझे सिर्फ कलर्की ही करनी चाहिए, भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज नहीं उठानी चाहिए ! ताकि ये जयचंद की औलादे देश को आराम से लूट सके !

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  6. एक बार फिर से न्यायपालिका से उठता भरोसा, कानूनी चश्मा क्या कहता है और क्या नहीं ये हमें मालूम नहीं परंतु हिसाब बराबर होना ही चाहिए, जो कीमत दिवस भाई जैसे नौजवानों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेसी रावण लीला काण्ड में चुकाई है उसका हिसाब अभी बहुत कुछ बाकी है ! देश की जनता को एक संकल्प लेना ही पडेगा की सत्ता में माना कोई भी पार्टी ढूध की धूलि हुई नहीं है प्र काँग्रेस से सौ गुना अच्छी ही हैं विकल्प के तौर पर हमें किसी अन्य को वित् देना चाहिए बदला जनता ही दिला सकती है अब ! सबसे बड़ा न्याय जनता के दरवार में 6 मार्च को आएगा ..तब तक जय श्रीराम

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  7. जबसे कोर्ट का फैसला आया है मिडिया यही दिखाने का प्रयास कर रही है कि बाबा भी जिम्मेदार हैं . मिडिया अपने आप को निष्पक्ष दिखाने के चक्कर में गलतियाँ करने लगती है...

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  8. दिवस भाई
    आप व्यर्थ ही इतना विचलित हो रहे हैं क्या हो गया था उस दिन लाठियां ही तो खायी थी हमारे हिन्दू भाइयो ने,आदत हो गयी है अब पिछले २०० सालो से गांधीजी के कहने पर खाते आ रहे हैं |
    अरे यह क्या कम उदारता दिखाई कुटिल साहब ,शीला जी और हमारे stupid HM (जेठमलानी जी के अनुसार ) साहब ने की उस दिन गोली चलाने का आदेश नहीं दिया |
    जिस कांग्रेस सर्कार ने हजारो हिन्दुओ को कश्मीर में मरवा दिया,उसने ऐसा कुछ तो नहीं क्या ४ जून की रात को |
    धन्य है यह वीरभूमि |

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  9. चार जून को चली लाठियां यदि कांग्रेसियों पर चली होतीं और बहन राजबाला की जगह अगर नेहरू कुनबे का कोई मर गया होता तो उस दशा में कोर्ट का फैसला भिन्न होता । इस घटिया सरकार ने न्यायालयों को भी संक्रमित कर दिया है।

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