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Sunday, August 21, 2011

मुझे अन्ना से कोई परेशानी नहीं, परेशानी है तो कथित गांधीवाद से

अन्ना भक्तों(?) से स्थान स्थान पर भिन्न भिन्न प्रकार के आरोप सुनने के बाद मैं आज फिर हाज़िर हूँ| अन्ना भक्तों से कहना चाहता हूँ की मैं कल दिनाक २० अगस्त २०११ को लगातार पांचवे दिन भी सड़कों पर चिल्ला कर आया हूँ| आज भी जाने वाला हूँ| आज तो बीस हज़ार की रैली है ऊपर से गले की हालत भी पतली है| अन्ना और उनके आन्दोलन को मेरा पूरा समर्थन है| लेकिन अपने मन की बात जरुर कहूँगा|
मुझे तकलीफ यही है कि अन्ना आन्दोलन में घाट घाट पर चिल्लाने के बाद भी किसी प्रकार का कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं होने वाला| फिर भी चिल्ला रहे हैं| आखिर यह चिल्ला चोट क्यों?

शाम को आन्दोलन में ही एक मित्र भाई अभिषेक पुरोहित जी से इस विषय में काफी बात हुई| उन्होंने विषय पर बेहतर प्रकाश डाला| काफी हद तक बादल छंट चुके हैं|

सबसे बड़ी जो बात है वह यही कि अब यह कथित गांधीवादी तरीका कोई काम नहीं आने वाला| मुझे बताएं, इस गांधीवादी तरीके से इस देश को आखिर मिला ही क्या है? देरी से मिली आज़ादी, टूटी फूटी आज़ादी, और तो और टुकड़े टुकड़े हुआ देश, जिसमे भी कहीं कोई शान्ति नहीं, बस यही सब देन है गांधीवाद की इस देश को|

गांधी जी जब सौ साल पहले १९११ में दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे, उस समय भारत में पहले से ही आज़ादी की लड़ाई चल रही थी|
और पहले जाएं तो १८५७ की क्रान्ति जैसा तो कोई उदाहरण ही नहीं है| एक ऐसी क्रान्ति कि पूरे भारत देश में किसी अंग्रेज़ को इसकी योजना बनने की भनक तक नही लगी| रातों रात एक ऐसा जन समूह खड़ा हो गया कि जिसने भारत में अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया| पूरे भारत में उस समय उपस्थित तीन लाख से अधिक अंग्रेजों में से केवल कुछ हज़ार ही जीवित बचे थे| ऐसा मैनेजमेंट क्या आज के समय में कहीं (कांग्रेस को छोड़कर) दिखाई देता है?

गांधी जी जब भारत आए थे, उस समय भी लड़ाई जोरों शोरों पर थी| महाराष्ट्र में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक सक्रीय थे, पंजाब में लाला लाजपत राय, बंगाल में अरविन्द आदि आदि| ऐसे समय में गांधी जी के लिए कहीं कोई स्थान ही नही था| किन्तु किस्मत ने कुछ पलटा खाया कि कुछ समय बाद दुर्भाग्यवश लोकमान्य तिलक की मृत्यु हो गयी, अरविन्द सन्यासी हो गए, लालाजी अकेले रह गए, ऊपर से देश में जलियांवाला बाग़ जैसी भीषण दुर्घटना घटित हो गयी| गांधी जी को स्थापित होने के बेहतर अवसर इसी समय मिले|

नोट : मैं कहीं भी गांधी जी पर किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं लगा रहा| मैं गांधी जी का आज भी सम्मान करता हूँ| कहानी को समझिये| गांधी जी की देश भक्ति पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं| कहीं ऐसा न हो कि अन्ना भक्तों की तरह गांधी भक्त भी मुझे राष्ट्रद्रोही करार दें| मैं केवल पुराने सन्दर्भों को आज के समय में रख रहा हूँ|

समय ही कुछ ऐसा था कि इस दुविधा की घडी में हमारे पास केवल गांधीवाद नाम का ही एक उपाय रह गया| कल तक जो देश भक्ति भारतीयों को बहुत महँगी पड़ती थी, गांधी जी ने उसे एकदम सस्ता कर दिया| आपको कुछ नही करना, केवल ठाले बैठ जाओ, सरकार का पूरा असहयोग करो, नारे लगाओं, होली जलाओ और रात को घर जा कर सो जाओ|
क्रान्ति के नाम पर देशभर में जश्न का माहौल हो गया| लोगों को तो पता भी नहीं था की आज़ादी की कीमत इतनी सस्ती है|

गांधी से तो कोई शिकायत नही, उन्होंने किसी भी प्रकार कम से कम देश को एक तो कर ही दिया था| हिन्दू हों या मुसलमान, दक्षिण भारतीय हों या उत्तर भारतीय, सभी भारत की आज़ादी के लिए एक हो गए थे| अत: गांधी से कोई शिकायत नही किन्तु क्षमा चाहूँगा कठोरता से यह कहने के लिए कि गांधीवाद ने इस देश का पौरुष नष्ट कर दिया|
आज़ादी की लड़ाई के नाम पर ठाले बैठ जाना, या गली गली जाकर गला फाड़ देना, बस यही रह गया गांधीवाद में| गांधीवाद के जो सकारात्मक कदम थे, वो तो कांग्रेस ने वैसे ही १९४७ के बाद ही मिटा दिए|
गांधी जी स्वदेशी की बात करते थे, गांधी जी स्वावलंबन की बात करते थे, गांधी जी ग्रामस्वराज की बात करते थे, गांधी जी गौ हत्या रोकने की बात करते थे, इन सब को कांग्रेस ने गांधी जी के मरते ही गांधीवाद से लुप्त कर दिया और केवल चिल्ला चोट को ही गांधीवाद बना दिया|

और आज तक परिवर्तन के नाम पर यही चिल्ला चोट चल रहा है|
हमारे ताजातरीन गांधी जी भी यही कर रहे हैं| सड़कों पर जाओ, मोमबतियां जलाओ, गला फाड़ो और लीजिये आपका देश भ्रष्टाचार मुक्त|
मुझे बताएं, क्या ये लड़ाई इतनी सस्ती है कि बिना कोई कीमत चुकाए राष्ट्र निर्माण हो जाएगा? अन्ना जी कहते हैं कि ये दूसरी आज़ादी की लड़ाई है| इस काम की बहुत बड़ी कीमत होती है| सड़क पर चिल्लाने वालों को जब यह कीमत चुकाने को कह दिया जाएगा तो अधिकतर तो उलटे पाँव अपने अपने घर लौट जाएंगे|

अन्ना ने तो फिर भी कीमत चुकाई है| साथ ही उन्होंने यह आवाहन भी किया है कि जरुरत पड़ने पर जेल भरो आन्दोलन चलाया जाए| दिल्ली में बहुतों ने जेले भरी भी हैं| इस कदम के लिए अन्ना को नमन करता हूँ| किन्तु कितने लोग ऐसा करेंगे?
यहाँ तो क्रान्ति के नाम पर जश्न का माहौल है| शाम पड़े घूमने जाते थे, अब यहाँ इकट्ठे हो रहे हैं|
किसे परवाह है इस चिल्लाहट की? आप क्या सोचते हैं कि हमारे नारे सुनकर इस कांग्रेस का ज़मीर जाग जाएगा और ये लोकपाल बना देगी?
अरे जब अंग्रेजों को ही इन चीखों से कोई फर्क नही पड़ा तो यह कांग्रेस तो अंग्रेजों से भी गयी बीती है| लोग बार बार ये क्यों भूल जाते हैं कि इन्हें आपका दिल नहीं जीतना अपितु आप पर राज करना है| आप चाहें इनसे घृणा करें अथवा प्रेम, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला|
कुछ लोग यहाँ प्रश्न उठा सकते हैं कि इस प्रकार सरकार गिराई भी तो जा सकती है, फिर कैसे राज करेंगे? 
तो मित्रों आपातकाल लाने वाली भी ये कांग्रेस ही थी| आप चाहे इन्हें चुनावों में जिताएं अथवा हराएं, राज आप पर यही करना चाहेगी| और इसकी कोशिश भी पिछले ६४ वर्षों में यही रही है| तभी तो आज तक कुछ समय को छोड़कर और किसी को शासन चलाने का मौका ही नही मिला|

दूसरी बात, क्या मेरा उपयोग केवल चिल्लाने तक सीमित है? अरे ये काम तो कोई अनपढ़ गंवार भी कर लेता| मुझ जैसे पढ़े लिखे से तो भारत निर्माण के नाम पर कोई creative काम करवा लिया जाता तो अच्छा होता|
ठीक है, आज लोकपाल के लिए यदि सड़कों पर उतर कर नारेबाज़ी ही एक रास्ता है तो वो भी करूँगा| किन्तु लोकपाल के बाद क्या? क्या लोकपाल बनने के बाद मेरी भूमिका ख़त्म हो जाएगी?

मैं विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूँ कि मुझे अन्ना व उनके अभियान से कोई तकलीफ नही है| जन लोकपाल बन जाए तो हो सकता है यह देश के हित में ही हो| मैं अन्ना साहब हजारे का ह्रदय से सम्मान करता हूँ| किन्तु अब मुझे इन तरीकों में दम नही लग रहा| 

कल ही अन्ना का तिहाड़ जेल में एक वीडियो देखा था| उसमे अन्ना काफी खुश दिखाई दे रहे हैं, किन्तु हैं तो अनशन पर| मुझे यह देखकर अच्छा नहीं लगा कि वे भारत की जनता से कह रहे हैं कि मेरी चिंता मत करों, मैं बिलकुल ठीक हूँ| मुझे आपके प्यार से ऊर्जा मिल रही है|
अन्ना कुछ भी कहें, किन्तु ७४ वर्ष के एक वृद्ध का इस प्रकार भूखा रहना आज़ाद भारत में कहाँ तक उचित है? अब हमे भूखा नहीं रहना है, भूखा मारना है उनको जिनके कारण आज अन्ना को भी भूखा रहने की नौबत आ गयी है| अन्ना भूख से मर भी जाएं तो भी भ्रष्टों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| स्वामी निगमानंद भूख से मर गए, क्या फर्क पड़ा इस भ्रष्ट सरकार को? राम लीला मैदान में बाबा रामदेव के आन्दोलन में मैं और मुझ जैसे पता नहीं कितने ही लोग लाठियां खा चुके हैं| क्या फर्क पड़ा इस भ्रष्ट सरकार को? मैं अपने पिछले लेख में भी कह चूका हूँ की अन्ना का आन्दोलन कांग्रेस द्वारा अपने पक्ष में घुमाया जा रहा है और अन्ना को इसकी खबर तक नहीं| अपने स्वार्थों के लिए कांग्रेस को अन्ना की जान भी लेनी पड़ी तो वह पीछे नहीं हटेगी|

यही वजह है जो आज मैं यह लेख लिखने बैठा हूँ|
अत: स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि गांधीवाद के नाम पर होने वाला यह आन्दोलन सफल होना थोडा कठिन है| क्योंकि इसके चलते बार बार मुझसे पूर्ण रूप से अहिंसक होने की अपेक्षा की जाती है| जबकी भ्रष्टों के इस काले राज में अब मुझ जैसों से ऐसी अपेक्षा छोड़ देनी चाहिए|
जब तक अहिंसा से काम चल रहा है, चला रहे हैं| जरुरत पड़ी तो मरने मारने का काम भी कर सकते हैं|

अंत में जाते आते यह कहना चाहता हूँ कि इस लेख से यह न समझें कि मैं हिंसा या नक्सलवाद जैसी मुहीम को बढ़ावा दे रहा हूँ| तरीके और भी बहुत हैं| सबसे पहले तो अन्ना को बाबा रामदेव से अलग होकर नहीं साथ में रहकर मुहीम चलानी होगी| साथ ही अग्निवेश व अरुंधती राय जैसे नक्सलियों से दूरी बनानी चाहिए| अन्ना और बाबा एक हो जाएं तो इस भ्रष्ट व्यवस्था को आसानी से उखाड़ कर फेंका जा सकता है| मैं तो कहता हूँ कि दुश्मन की सोच पर वार किया जाए, विजय निश्चित है|
किन्तु फिर भी अन्ना मुझ जैसों से सड़कों पर उतरने की अपेक्षा करते हैं तो मैं रोज़ सड़कों पर उतरूंगा, चिल्लाऊंगा और सरकार को गालियाँ देता रहूँगा|

22 comments:

  1. सबसे पहले तो इस विचारणीय आलेख के लिये बधाई! लिखते रहो, कुछ तो बदलेगा ही।

    @ आज़ादी की लड़ाई के नाम पर ठाले बैठ जाना, या गली गली जाकर गला फाड़ देना, बस यही रह गया गांधीवाद में|

    अपनी इसी पंक्ति को दोबारा पढोगे बन्धु तो भारत के बारे में कई रहस्य स्पष्ट हो सकते हैं:
    1. गान्धी के पीछे सारा राष्ट्र कैसे खडा हो सका
    ?
    2. 1857 की क्रांति दृढ-निश्चय, वीरता, संख्याबल और रणनीति के बावजूद असफल क्यों रही?
    3. स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी और कॉंग्रेस अलग होते हुए भी सहकारी थे. [कम्युनिस्टों का ढोल तब भी अलग ही फ़टता था]
    4. कई शताब्दियों की पराधीनता के बाद 1947 में आखिर हम फ़ाइनली आज़ाद कैसे हो गये? (कई सौ साल क्यों लगे)

    @सबसे पहले तो अन्ना को बाबा रामदेव से अलग होकर नहीं साथ में रहकर मुहीम चलानी होगी| साथ ही अग्निवेश व अरुंधती राय जैसे नक्सलियों से दूरी बनानी चाहिए| अन्ना और बाबा एक हो जाएं तो इस भ्रष्ट व्यवस्था को आसानी से उखाड़ कर फेंका जा सकता है|

    सोचा हुआ सब होता नहीं क्योंकि जीवन आदर्श परिस्थितियों का दास नहीं है, सभी आगत, अनागत को ध्यान में रखकर अपना कर्तव्य किये जाने में ही भलाई है।

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  2. @दुश्मन की सोच पर वार किया जाए, विजय निश्चित है।
    हां, ऐसा करना आवश्यक है।

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  3. आपका दर्द समझ सकती हूँ क्‍योंकि ऐसा दर्द आज हवा में है।

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  4. अन्ना और बाबा एक हो जाएं तो इस भ्रष्ट व्यवस्था को आसानी से उखाड़ कर फेंका जा सकता है|

    Sahmat hun ......

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  5. पहली बात गाँधीवाद कुछ है ही नहीं। फिर किस लिए बहस? और दूसरी बात कि कांग्रेस पार्टी कोई सजीव प्राणी नहीं कि लोग कांग्रेस-कांग्रेस कर रहे हैं। मोरारजी देसाई की सरकार कितने साल चल सकी थी? लोकतंत्र में हिंसा का स्थान नहीं है। यद्यपि सुनियोजित तरीके से कुछ लोगों मार देने से देश का अगर भला कर सकें, तो बुद्धि से हिंसा भी अपनाई जा सकती है। लेकिन इतना दावा है कि दस-बीस-पचास लोगों को मार देने से कुछ भी हासिल हो जाएगा। 1857 में तीन लाख अंग्रेज कहाँ थे? यह जानकारी गलत लग रही है। आप निष्पक्ष तरीके से सोचते नहीं, ऐसा लगता है। एक साल काफ़ी है देश को दुरुस्त करने के लिए, 64 सालों में दस साल से अधिक तो गैर-कांग्रेस सरकार रही है, फिर उनका जिक्र क्यों नहीं करते?

    जन लोकपाल के बन जाने से रत्ती भर फर्क नहीं आएगा, यह लगभग तय है। सबूत और तथ्य के साथ जल्द ही कहूंगा इस पर। चिल्लाना और रैली निकालना तो चुनाव में भी कम नहीं होता। लालू भी लाठी घुमावन और तेल पिलावन रैली निकालें तो लाखों की भीड़ हो जाती है।

    गाँधी के कई जगह हिंसा की वकालत की है। समाधान क्या है, यह सोचना है न कि कांग्रेस ने क्या किया, इसी पर सारा समय लगा देना है। फिर भी आपके कहे का सम्मान करता हूँ। आशा है, सही परिप्रेक्ष्य में मेरे कहे को समझा जाएगा।

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  6. और एक बात कि क्रांतिकारी विज्ञापन कम या नहीं करते हैं। उदाहरण भगतसिंह भी हैं, लेनिन भी। एक जन को तो पता नहीं पूँजीवाद से इतना प्रेम है कि इससे हटकर सोच ही नहीं सकते।

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  7. दिवस भाई शुक्रिया आपका जो आप हर दिन की जानकारी अपने लेखों के माध्यम से दे रहे हो मुझे लगता है मैं वहीँ हूँ जहां दिवस भाई है मुझे पसंद आया कि @सबसे पहले तो अन्ना को बाबा रामदेव से अलग होकर नहीं साथ में रहकर मुहीम चलानी होगी| साथ ही अग्निवेश व अरुंधती राय जैसे नक्सलियों से दूरी बनानी चाहिए| अन्ना और बाबा एक हो जाएं तो इस भ्रष्ट व्यवस्था को आसानी से उखाड़ कर फेंका जा सकता है|
    और ऐसा हर हाल में होना ही चाहिए !

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  8. Kaladhan ki bat hai = wikiliks ne 900 logo ke list disclosed kiya hai !!!
    kya appke pas hai ??? jadio ho to hame jarur bheje .... Dhanyabad

    Hamare wall me post kar dijiyega ....

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  9. राजनीती मेँ कभी र्निवात माने वैक्युम नहीँ रहता है गाँधी की एंट्री उस वैक्युम के समय हुई थी फिर उसने राम आश्रम सत्य व महात्मा जैसे शुद्ध हिन्दु प्रतिकोँ का सहारा ले हिन्दु मानस की आत्मा को छुया था।जल्दबाजी नेता का सेना पर नियंत्रण खोना कमजोर सुचना तंत्र देशी रजवाडोँ का अँग्रेजो के साथ देना सैन्य कुशलता की कमी व गद्धारी 57 की क्राँती असफल होने के कारण है।राजनीती मेँ कभी र्निवात माने वैक्युम नहीँ रहता है गाँधी की एंट्री उस वैक्युम के समय हुई थी फिर उसने राम आश्रम सत्य व महात्मा जैसे शुद्ध हिन्दु प्रतिकोँ का सहारा ले हिन्दु मानस की आत्मा को छुया था।जल्दबाजी नेता का सेना पर नियंत्रण खोना कमजोर सुचना तंत्र देशी रजवाडोँ का अँग्रेजो के साथ देना सैन्य कुशलता की कमी व गद्धारी 57 की क्राँती असफल होने के कारण है।

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  10. अटल जी की सरकार की सबसे बड़ी उपलब्दी थी सड़क मोबाईल व गैस का सिँलेण्डर।चुँकि मैँ एक नागरिक अभियंता हुँ अतः जानता हुँ कि सड़क परियोजनाऐँ व आधारभुत संरचनाओँ infrastracture के क्षेत्र ने देश की इकोनोमी खास कर मजदुरोँ को जबरदस्त रोजगार दिया था कृषि के बाद कँसर्टक्शन सबसे ज्यादा रोजगार देता है भारत मेँ।ये परियोजनाऐँ भ्रष्टाचार की माँ थी व है भी पर नितिन गडगरी जी ने इंहे BOT तर्ज पर चलवाया था जिसे बाद मेँ भारत सरकार को भी अपनाना पड़ा।इसमेँ पैसा ठेकेदार खुद लगाता है सरकार ना देती है टोल से वापस कमाता है कम भ्रष्टाचार होता है ये भाजपा की उपलब्धी है ैँ एक नागरिक अभियंता हुँ अतः जानता हुँ कि सड़क परियोजनाऐँ व आधारभुत संरचनाओँ infrastracture के क्षेत्र ने देश की इकोनोमी खास कर मजदुरोँ को जबरदस्त रोजगार दिया था कृषि के बाद कँसर्टक्शन सबसे ज्यादा रोजगार देता है भारत मेँ।ये परियोजनाऐँ भ्रष्टाचार की माँ थी व है भी पर नितिन गडगरी जी ने इंहे BOT तर्ज पर चलवाया था जिसे बाद मेँ भारत सरकार को भी अपनाना पड़ा।इसमेँ पैसा ठेकेदार खुद लगाता है सरकार ना देती है टोल से वापस कमाता है कम भ्रष्टाचार होता है ये भाजपा की उपलब्धी है

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  11. अभी तो हमें बहुत कुछ करना है दिवसजी और हम जरुर करेंगे .......आप जैसे लोगों की आवश्यकता है देश को अभी, इसलिए अपना सहयोग बनाए रखें....

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  12. Jaise Jitna Acchha DIESEL dalne par bhi PETROL ki bike chalti nahin.....waise hi Gandhism is like a Diesel.....it can't run the Revolution Bike as well as the Nation Car towards a complete Freedom..... Even the Congress knows it better than ANNA !!!!

    But, it can create an Awareness among the people against the Injustice of Congress AND about half freedom !!!! I would say it is a Rehearsal process before the actual Freedom Movement or SAMPURNA KRANTI !!!

    It is a stupid act….expecting from Congress …that it would follow its Moral…and suicide and would surrender Billion Billion Dollars of Black Money by perished with moral appeals of ANNA or RAMDEV…… !!!!

    However, one of the Gandhian Weapon RAMDEV tested and failed when he was treated very badly at Ramleela Maidan….Now, it is the ANNA, the second Gandhian Weapon proceeding now for a re-test…….towards a uncertain result…..!!!!!

    I am not worried becos INDIA is now AWAKENING …So, in the upcoming days….all the weapons will be tested ……Those found useless or outdated ...would be discarded...The concept we have had from Centuries that We got Freedom due to Gandhism ….would be changed ……and hope new different kinds of weapons soon finds its place in this Revolution process………and target the Devil Congress and and its Forts and other Corrupted Parties and Individuals .....MAY GOD BLESS OUR NATION !!!!! Thanks !!! I very much appreciate your thinkings as well as your advices !!!

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  13. आपकी बात से सहमत हूँ की अन्ना को बाबा रामदेव और इसके अलावा और भी साधू संत-हर धर्म के, विचारक और सभी को साथ लेना चाहिए अब ... इस आंदोलन की दिशा बदलनी चाहिए अब ... अगर समाज के उत्थान का काम करना है तो सभी को साथ लेना बहुत जरूरी है ...

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  14. सामायिक बात.जरा एक और मुद्दे पर पढ़ें और कृपया अपनी राय अवश्य दें. सचिन को भारत रत्न क्यों?
    http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com

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  15. आप के दर्द को समझा जा सकता है ! पर आज की लडाई लोकतंत्रीय तरीके से आगे बढ़ने चाहिए अन्यथा ये लोग इसे आतंकवाद या नक्सलवाद से जोड़ देंगे ! कुछ बच गया तो भगवा से !अन्ना के अनशन से शिला की जवानी छुप गयी !और कितने ?

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  16. आप के दर्द को समझा जा सकता है ! पर आज की लडाई लोकतंत्रीय तरीके से आगे बढ़ने चाहिए अन्यथा ये लोग इसे आतंकवाद या नक्सलवाद से जोड़ देंगे ! कुछ बच गया तो भगवा से !अन्ना के अनशन से शिला की जवानी छुप गयी !और कितने ?

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  17. जिस ऊर्जा के साथ आप इस आन्दोलन में लगे हैं , आप बधाई के पात्र हैं । हम आपके साथ हैं।

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  18. क्रांतिकारी आलेख . आग उगलते रहें..

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  19. आप के दर्द को समझा जा सकता है ! पर आज की लडाई लोकतंत्रीय तरीके से आगे बढ़ने चाहिए अन्यथा ये लोग इसे आतंकवाद या नक्सलवाद से जोड़ देंगे !

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  20. जनता की आवाज़ को संसद में सुना ही जाना चाहिए| इसका असर भी हुआ है| संसद में प्रधानमंत्री और विपक्ष, सभी बाध्य हुए, अन्ना को मानाने के लिए

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  21. दिवस भाई शुक्रिया आपका !~आपकी बात से सहमत हूँ की अन्ना को बाबा रामदेव से अलग होकर नहीं साथ में रहकर मुहीम चलानी होगी. दुश्मन की सोच पर वार किया जाए, विजय निश्चित है.
    जिस तरह से भ्रष्टाचार ने भारत की जड़ों को खोखला कर रखा है, ये आन्दोलन बहुत ही जरूरी था. जन लोकपाल बिल को मानना सरकार की मजबूरी बन चुकी है. ये जनता और प्रजातंत्र की जीत है. भारत की जनता अब और ज्यादा भ्रष्टाचार सहन नहीं कर पायेगी.
    भारत गणराज्य में हमारा संविधान ही सर्वोच्च है और उसकी प्रस्तावना में पहला शब्द है "हम भारत के लोग" संविधान ने संसद को सर्वोच्चता तो प्रदान की परन्तु इसे उत्तरदायी शासन बनाया. लेकिन हमारे सांसदों ने इसे स्वेच्छाचारी शासन में परिवर्तित कर दिया. हमारा संसदीय मंत्रिमंडल बार बार असफल हो रहा है और सांसद सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए काम कर रहे हैं वो भूल गए हैं की हमारा संसद सर्वोच्च है सांसद नहीं. अब समय आ गया है जब सांसदों की योग्यता पर फिर से विचार होना चाहिए जिससे की भ्रष्ट लोग संसद में जा ही न सकें.
    अन्ना हजारे सिर्फ बेदाग छवि का एक नाम है. सरकार अपनी समूची ऊर्जा इस बात को साबित करने में नष्ट करती रही है कि उसका विरोध करने वाले ‘खरे’ नहीं हैं. अपने खोटे सिक्के को चलाने के अहंकार का यह आनंद ऐसे सत्ताधारी ही ले सकते हैं, जिन्हें यह गुमान हो कि उनका कोई विकल्प शेष नहीं है.
    हम ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी नेता ने खुले मन से अन्ना का समर्थन नहीं किया है, ये तो जनाक्रोश था जिसके डर से आप मजबूर हुए हैं.
    हमारे पास कोई मोहिनी अस्त्र तो है नहीं की उसे चला दिया और सबकी सोच बदल गई. इसके लिए एक बदलाव की आवश्यकता है और मुझे लगता है उसकी शुरुआत हो चुकी है. जब गांधीजी ने अंग्रेज़ों से भारत छोड़ने के लिए कहा था तो एक बड़े बुद्धिजीवी वर्ग को ऐसी आशा नहीं थी, लेकिन ऐसा हुआ. इस आंदोलन से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा ये तो अन्ना को भी पता है, लेकिन नकेल ज़रूर पड़ जाएगी ये हम सबको पता है.

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  22. आदरणीय दिवस भाई जी ,
    बहुत सही लिखा है आपने

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