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Saturday, May 21, 2011

शायद, सब कुछ गोल है...

मित्रों मैं बीकानेर (राजस्थान) का मूल निवासी हूँ| वैसे मेरे पुरखे हरियाणा से आये थे किन्तु मेरा बचपन तो इस रेगिस्तान की मिटटी में खेल कर ही बीता है|
विद्यालय की शिक्षा पूरी कर मैं जयपुर इंजीनियरिंग करने आया| विज्ञान व तकनीक से बड़ा प्रेम रहा है हमेशा से ही इसलिए इंजीनियरिंग को चुना| चार साल इंजीनियरिंग में कैसे निकल गए कुछ पता भी नहीं चला| अब सोच रहा हूँ कि नौकरी करते करते साथ में M.Tech भी कर लूं|
पहली नौकरी दिल्ली में लगी अत: यहाँ से दिल्ली चला गया| मेरी माँ मुझे कहती है कि "तेरे पाँव में चक्कर है, तू हमेशा भटकता ही रहता है|" क्यों कि नौकरी ही कुछ ऐसी थी| यहाँ से वहां तो वहां से यहाँ भटकना| मैं Field में काम करने वाला इंजिनियर था| Field Work कुछ ऐसा ही होता है| मुझे हमेशा से ही ऐसा काम करने की इच्छा थी| कॉलेज में भी मैं अपने मित्रों से यही कहता था कि मुझे बंद ए.सी. कमरे में बैठकर कीबोर्ड के बटन नहीं दबाने|
दरअसल मैं भारतीय सेना में जाना चाहता था किन्तु किसी कारण से नहीं जा सका| वो एक अलग कहानी है, कभी बाद में सुनाऊंगा|
तो उस नौकरी में भारत भ्रमण पर निकल पड़ा| कुछ महीनों काम करने के बाद जयपुर आ गया| यहाँ टेलीकॉम में काम कर रहा हूँ| इस नौकरी में भी भटकना ही लिखा है| मेरी माँ सही ही कहती है कि मेरे पांवों में चक्कर है| सो गोल चक्कर ही काट रहा हूँ|
अरे हाँ याद आया, यह मैं कहाँ भटक गया मुझे भी पता नहीं चला| अपने को तो गोल पर विचार करना है ना|
पिछले कुछ ६-७ वर्षों से घर से दूर अकेला ही रह रहा हूँ| इसलिए अकेलेपन में प्रत्येक वस्तु गोल ही दिखाई दे रही है| मुझे तो यही लगता है कि हर चीज़ मूलत: गोल ही है|
अभी यहाँ आधी रात के डेढ़ बजे हैं| थोड़ी देर पहले मैं अपने घर की छत पर अकेले में टहल रहा था| पता नहीं आज दिन भर इतनी गर्मी होने के बाद भी रात में ठंडी हवाएं कैसे चल गयीं? उन्ही का मज़ा लेने चला गया| अब रात में छत पर आया तो सितारों ने स्वागत कर ही दिया| वैसे तो शहर के प्रदुषण ने धरती के साथ-साथ इन बेचारे सितारों का भी मूंह काला कर दिया| पता नहीं आजकल दिखते ही नहीं| कुछ थोड़े बहुत थे तो उन पर ध्यान गया|
ब्रह्माण्ड मुझे बचपन से ही आकर्षित करता रहा है| शायद इसी कारण Telecommunication में काम करते समय मेरा ध्यान Satellite Communication में अधिक रहता है|
सबसे पहले एक तारे पर ध्यान लगाया| क्या सच में वह तारा ही था| तारा तो वह आकाशीय पिंड है जिसके बारे में हमें कुछ जानकारी नहीं है| किन्तु वह चमकती हुई चीज़ कुछ तो है| अत: हमने उसे तारा या सितारा कुछ नाम दे दिया| अब कहीं ज्ञात आकाशीय पिंड कहीं नाराज़ न हो जाएं इसलिए सभी पिंडों को तारा कह डाला| सूरज भी एक तारा है, पृथ्वी भी एक तारा है आदि आदि| किन्तु यह मूल सत्य नहीं है| "तारा" शब्द के पीछे छुपी भावना तो कुछ और ही है|
सूरज के बारे में हम बहुत कुछ जानते हैं| जैसे कि सूरज एक बहुत बड़ा आकाशीय पिंड है जो हमारे सौर परिवार का केंद्र है| इसका तीन चौथाई भाग Hydrogen  व शेष एक चौथाई से कुछ कम Helium है| बचा हुआ करीब दो प्रतिशत भाग Oxygen, Carbon, Neon, Iron आदि अन्य भारी तत्वों से भरा है| इसका व्यास करीब १३,९२,००० किमी है जो कि हमारी धरती के व्यास से करीब एक सौ दस गुणा है|
धरती व सौर परिवार के अन्य आठ गृह सूरज के चारों ओर चक्कर काट रहे हैं| इनके बारे में भी हम बहुत कुछ जानते हैं|
कुछ उपगृह भी हैं जो गृहों के चारों ओर चक्कर काट रहे हैं| इनमे से एक हमारा चन्द्रमा है|
सभी साले गोल ही हैं और गोल गोल घूमते हुए गोल गोल चक्कर भी काट रहे हैं साथ ही मुझे गोल कर रहे हैं| ये सभी ज्ञात आकाशीय पिंड हैं|
तो फिर तारे कौन हैं, क्या हैं? क्योंकि हैं तो अज्ञात, तभी तो नाम तारा पड़ा है|
तो जिस तारे को मैं देख रहा था उसके बारे में ही सोच रहा था| क्या सचमुच वह तारा ही है| आज अज्ञात है किन्तु कल किसी वैज्ञानिक ने इसकी कोई खोज खबर कर ली कि यह सौर परिवार का दसवां गृह है तब तो यह तारा नहीं रहेगा| और गृह ही क्यों यह भी तो हो सकता है कि वह भी सूरज के जैसा कोई बड़ा आकाशीय पिंड ही हो| जिसका अपना एक और सौर परिवार है| हो सकता है उसके चारों ओर भी कुछ गृह चक्कर काट रहे हैं|
मुझे ऐसा लगता है कि इस पूरे ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं हैं| यह भी संभव है कि हमारे सौर परिवार की ही तरह ब्रह्माण्ड में अन्य कई सौर परिवार हों|
जिस तारे को मैं देख रहा था वह चमक रहा था| अब तारा है तो चमकेगा तो सही| अब वह खुद चमक रहा था या कोई इसे चमका रहा था, यही तो रहस्य है|
जिस प्रकार सूरज एक आग का गोला है जो स्वयं चमकता है| रात के समय हमारे सौर परिवार के अन्य गृह भी तो चमकते हुए दिखाई देते हैं| किन्तु वे तो आग के गोले नहीं हैं| उन्हें तो सूरज चमका रहा है| कैसे? अरे भाई सभी गृहों के चारों ओर अपना एक वायुमंडल होता है| जिसमे भिन्न भिन्न प्रकार के कण पाए जाते हैं| सूरज का प्रकाश पड़ने पर वे चमकते हैं| इनके चमकने के पीछे एक कारण है जो आप जानते होंगे| कोई भी वस्तु किसी विशिष्ट रंग की दिखाई देती है, क्यों? वही कारण यहाँ पर भी लागू होता है| इसलिए वह गृह चमकता है|
किन्तु जो तारा चमकता हुआ दिखाई दे रहा है जरुरी तो नहीं कि वह भी हमारे सूर्य या किसी अन्य सूर्य के प्रकाश से चमक रहा है| ऐसा हो सकता है किन्तु एक संभावना यह भी तो है कि शायद वह खुद ही जल रहा हो| इसलिए चमक रहा है| संभावनाएं बहुत हैं, कुछ भी हो सकता है| प्रभु की लीला वही जाने|
फिर से भटका दिया आपने| गोल पर ध्यान देना है|
अब यह तो सत्य ही है कि वह तारा भी गोल ही है| कैसे? क्योंकि उसके केंद्र में भी तो गुरुत्वाकर्षण बल होगा| जो उस तारे के सभी कणों पर सामान रूप से कार्य करेगा| इसलिए सभी उसकी ओर खींचे चले आएँगे| और ऐसे में वह तारा भी गोल ही होगा| अब यदि वह कोई गृह है तो किसी न किसी सूर्य के चारों ओर अपनी अक्ष पर गोल गोल घूमता हुआ गोल गोल चक्कर काट रहा होगा| यदि वह उपगृह है तो किसी न किसी गृह के चारों ओर गोल गोल घूमता हुआ चक्कर काट रहा होगा| केवल एक ही स्थिति को छोड़कर वह गोल गोल घूमता हुआ गोल गोल चक्कर काट रहा होगा| वह एक स्थिति यह है कि यदि वह कोई सूरज है तो शायद स्थिर हो| शायद इसलिए लगाया कि मुझे पूरी तरह से पता नहीं कि सूरज स्थिर है या वह भी गोल गोल घूमता हुआ गोल गोल चक्कर काट रहा है| अभी बहुत कुछ जानना बाकी है| क्या पता कल किसी नयी खोज में पता चले कि सूरज से भी सैकड़ों गुणा बड़ा कोई पिंड है जिसके चारों ओर कई सूरज गोल गोल घुमते हुए गोल गोल चक्कर काट रहे हैं| ऐसी परिस्थिति में यह माना जाएगा कि एक सबसे बड़ा आकाशीय पिंड है जिसके चारों ओर कई सूरज गोल गोल घुमते हुए गोल गोल चक्कर काट रहे हैं| अब इन सूर्यों के चारों ओर अपने अपने सौर परिवार हैं, जिनमे कुछ गृह हैं| ये गृह अपने अपने सूर्य के चारों ओर गोल गोल घुमते हुए गोल गोल चक्कर काट रहे हैं| प्रत्येक गृह के अपने कुछ उपगृह भी हो सकते हैं जो अपने अपने गृहों के चारों ओर गोल गोल घुमते हुए गोल गोल चक्कर काट रहे हैं| हालांकि ऐसी संभावना कम ही है| क्यों कि अगर कोई सबसे बड़ा आकाशीय पिंड होता तो कहीं तो दिखाई देता| वह अदृश्य क्यों होता? अदृश्य तो इश्वर है|
कुल मिलाकर है तो सब कुछ गोल|
आधी रात में लिखे इस जो कुछ भी के लिए मैं क्षमा चाहूँगा| जो कुछ भी इसलिए कहा क्यों कि इसे लेख तो किसी हालत में भी नहीं कहा जा सकता| क्षमा इसलिए मांग रहा हूँ कि जो कुछ मैं लिख रहा हूँ, इसे लिखते लिखते मैं भी गोल हो गया हूँ| पता नहीं आपका क्या हाल हो रहा होगा?
अभी तक तो बात केवल ब्रह्माण्ड की हुई है| अभी तो बहुत कुछ बाकी है|
अब धरती पर चलते हैं| धरती पर पता नहीं कितने ही तत्व हैं, जिनसे मिलकर धरती बनी है| कोई १०९ तत्वों की खोज वैज्ञानिकों ने कर ली है, जो कि आवर्त सारिणी में दिए गए हैं| आवर्त सारिणी नीचे दी गयी है|

सभी तत्व बड़े अजीब हैं| सॉरी अजीब नहीं गोल हैं| किसी तत्व का सबसे छोटा कण परमाणु (Atom) होता है जो कि गोल है| क्यों कि वह भी कुछ कुछ हमारे सौर परिवार के जैसा ही है| इसका सूर्य, नाभिक (Nucleus) होता है व गृह, ऋणकण (Electron) होते हैं| ऋणकण नाभिक के चारों ओर गोल गोल चक्कर लगाते रहे हैं| इस प्रकार बनता है एक परमाणु| जिसे आँख से देख पाना असंभव है| आँख से क्या अच्छे से अच्छा सूक्ष्मदर्शी भी इसे नहीं देख सका| यह तो मात्र कल्पना है| किन्तु कल्पना ऐसी ही थोड़ी हो जाती है, इसका कुछ तो आधार होता ही है| शायद वह आधार गोल ही है| वैज्ञानिक भी समझ गए कि सब कुछ एक ही सिद्धांत पर हो रहा है| शायाद सब कुछ गोल ही है|
एक परमाणु दुसरे परमाणु से जुड़ा होता है| क्यों? अरे भाई प्रेम है| सब इंसान थोड़े ही ना हैं कि आपस में नफरत करते रहें| इसी प्रकार बहुत से परमाणु मिलकर एक तत्व का निर्माण करते हैं|
अब जीव विज्ञान का मुझे अधिक ज्ञान नहीं है| इतना जानता हूँ कि किसी जीव के शरीर का सबसे छोटा कण कोशिका (Cell)है| शायद वह भी गोल ही हो| इसका केंद्र केंद्रिका है| शायद वह इसका सूर्य हो| अब गृह कौन हैं इसका मुझे कुछ ख़ास ज्ञान नहीं है| शायद गुणसूत्र (Chromosome) जैसे कुछ शब्द काम आएं, ऐसा कुछ याद आ रहा है| अरे भाई भूल गया बहुत पहले पढ़ा था, दसवीं कक्षा में| कृपया कोई जीव विज्ञानी सहायता करें|

तो यह लगभग सिद्ध हो चूका है कि हर चीज़ गोल है| अब शायद आप और मैं भी गोल ही हैं| तो यह नयी खोज मैं अपने खाते में दर्ज समझूं? चलो इस बहाने देश को एक और महान विज्ञानी मिल गया|
और हाँ मुझे किसी प्रकार का मानसिक रोगी न समझें| ना ही मैं किसी प्रकार का नशा करता हूँ| हमेशा देशभक्ति की बात करूँगा तो आप कहीं बोर ना हो जाएं| देश भक्ति तो दिल में है, उसकी चर्चा भी करेंगे|



नोट : आधी रात में अकेले छत पर घूमना हानिकारक हो सकता है|

6 comments:

  1. एक परमाणु दुसरे परमाणु से जुड़ा होता है| क्यों? अरे भाई प्रेम है| सब इंसान थोड़े ही ना हैं कि आपस में नफरत करते रहें|
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    सही बात ...
    पोस्ट थोड़ी गोल तो है ....तक़रीबन सारे विषयों पर बात जो हो गयी इसमें..... पर पढ़कर अच्छा लगा ...हाँ मैं जानती हूँ की जयपुर का मौसम किसी को भी आधी रात छत पर जाने को मजबूर कर सकता है.... वो भी मई के महीने में....

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  2. वैज्ञानिक सोच पर आधारित तथ्यात्मक सुन्दर प्रस्तुती ...
    इतनी अच्छी जानकारी के लिए आभार आपका ! मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !!

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  3. अरे भाई दिनेश मजा आ गया आपके साईंस पढकर वैसे प्यार भरी कहानी में बहुत से लोजिक क्लियर होते नजर आए मुझे, एक अच्छा लेख प्रस्तुत किया आपने और वो जो आवर्त सारणी जो आपने दी है ना बहुत मार खाई है मैंने घनश्याम सर से याद ही नहीं होते थे ये, हां हां ....दसवीं क्लास याद आ गई आज ...
    जय हिंद देश प्रेम बनाए रखिये ...

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  4. Suraj Gol, Chanda Gol, aur Monu Ka Laddu bhi Gol... bachapan ki panktiyan hain.. ye bat hamaare purvaj bhi jaante the, tabhi to hamare mata-pita ne bhi hame bata diya ki, beta sab kuchh gol hai... 6-7 varsh ho gaye aapko baahar rahte rahte, is liye dubaara se Gol yaad aa gaya.. Desh prem pe hi yaad aaya, hamaare desh ka kanoon bhi Gol hi hai, case jahan se shuru wahin par khatam, gol-gol ghum ke wahin. Hamare neta bhi gol, ek party se dusri, dusri se tisri, aur ghumte ghumte wapis wahin.. Gol. Party bhi Gol, pahle ek se naata joda, fir uske vipakshi se, wapas usase.. Sab Gol... bhai ye Gol ka hi Jhol hai, jo hum sab ko ghumaaye jaa raha hai....
    Ab se please raat ko jaldi so jaana... ha ha ha..

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  5. बहन मोनिका जी...आभार...आप भी शायद मूलत: जयपुर से ही हैं ना???

    आदरणीय मदन शर्मा जी...आभार...आपकी शुभकामनाएं हमारे लिए आवश्यक हैं...

    संजय भाई...सही कह रहे हो...इस आवर्त सारणी ने मेरे भी बहुत प्राण पिये हैं...पता नहीं कितनों ने ही झाड पिला दी...बाद में इसे एक कविता की तरह याद किया, जो आज तक याद है...

    मोनू भईया गज़ब कह गए आप तो...मैंने तो शंका जाहिर की थी आपने तो साबित ही कर दिया कि हर चीज़ गोल है...अब रात को जल्दी सोने की कोशिश करूँगा...मुझे पता है यह दिमाग की बत्ती बुझा देता है...

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  6. आज अचानक ही इस आलेख पर आना हो गया ! आना सफल भी रहा ! इस उम्दा शोधपरक प्रस्तुति से बहुत लाभ हुआ है ! सब गोल है, इस थ्योरी पर आधारित आपकी वैज्ञानिक सोच से एक नया परिचय हुआ ! आपका आभार !

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