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Wednesday, May 18, 2011

मांसाहार क्यों घृणित है???


मित्रों लेख प्रारम्भ करने से पहले मैं आपको अपने विषय में भी कुछ बताना चाहूँगा| मैं एक विद्रोही प्रकृति का व्यक्ति हूँ| कोई व्यक्ति, वस्तु, कार्य या किसी तंत्र में यदि मुझे किसी प्रकार की गड़बड़ नज़र आए तो मैं उसका विरोध करना अवश्य चाहूँगा| चाहे कोई मुझसे सहमत हो या असहमत किन्तु यह मेरा अधिकार है| केवल प्रशंसा ही नहीं अपितु आलोचना करने में मैं अधिक माहिर हूँ|
यह सब मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि विषय ही कुछ ऐसा है जिसमे प्रशंसा एवं आलोचना दोनों का स्थान है|
बात करते हैं यदि शाकाहार- मांसाहार की, जीव दया या जीव हत्या की अथवा इसको बढ़ावा देने वाले या इसका विरोध करने वाले किसी भी समुदाय, जाती, समाज या धर्म की तो यहाँ प्रशंसा व आलोचना साथ-साथ में चल सकती हैं|
इस विषय पर चर्चा करने वाले जीव दया की प्रशंसा कर सकते हैं एवं जीव हत्या की आलोचना भी|
इस विषय पर बहुत से लेख पढ़े| मैं भी अपने लेख में शाकाहार की प्रशंसा कर सकता हूँ किन्तु यहाँ मांसाहार की आलोचना अधिक करूँगा| शायद यह मेरी विद्रोही प्रकृति का ही परिणाम है|
शाकाहार क्यों उचित है इस प्रश्न के लिए शाकाहार की प्रशंसा में बहुत कुछ कहा जा सकता है और बहुत कुछ कहा भी गया है| जैसे कि शाकाहार सेहत के लिए अधिक अच्छा है, इसमें सभी प्रकार के गुण हैं आदि|
इसके अतिरिक्त कुछ और भी दृष्टिकोण हैं| जैसे पेट भरने के लिए किसी पशु की हत्या करना| मान लीजिये कि यहाँ हत्या गाय की हो रही है| तो गाय की प्रशंसा में भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है जैसे कि गाय हमारी माता है, इसके दूध से हमारा पालन होता है, इसके मूत्र से कई प्रकार की औषधियां बनाई जाती हैं, इसके गोबर को किसान खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं साथ ही इसे हम ईंधन के रूप में भी काम ले सकते हैं| ऐसा कुछ मैंने भी अपने एक लेख में लिखा है| किन्तु अब लगता है कि इसकी हत्या के विरोध में कुछ आलोचना भी करनी ही पड़ेगी| मैं नहीं चाहता कि कोई व्यक्ति मांसाहार इसलिए छोड़े कि शाकाहार अधिक अच्छा है या वह जीव अधिक लाभकारी है यदि वह जीवित रहे तो| यह भी तो एक प्रकार का लालच ही है| लालच में आकर मांसाहार छोड़ना पूर्णत: सही नहीं है| हिंसा का त्याग व दया ही उद्देश्य होना चाहिए| मांसाहारियों के मन से हिंसा को नष्ट करना है, यही उद्देश्य होना चाहिए| उन्हें इसका आभास कराना है कि यह एक हिंसक एवं घृणित कृत्य है, यह एक पाप है|
इसीलिए मैंने शीर्षक "शाकाहार क्यों उचित है?" के स्थान पर "मांसाहार क्यों घृणित है?" उपयोग में लिया है| शाकाहार की महिमा किसी अन्य लेख में गा दूंगा|
मांसाहार एक घृणित कृत्य है इसके लिए सबसे बड़ा कारण तो यही है कि इसके लिए निर्दोष जीवों की हत्या की जा रही है| किन्तु मांसाहारियों को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता यह मैं देख चूका हूँ| क्यों कि वे मांसाहार करते करते दया भावना का त्याग कर चुके हैं| और करेंगे भी क्यों नहीं, इसका कारण भी है|
मित्रों आप जानते ही हैं कि किसी भी जीव को मार कर खा जाने से उसमे व्याप्त कोई भी बीमारी खाने वाले को भी कुछ प्रभावित करती है| बर्ड फ्लू व स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियाँ ऐसे ही तो आई हैं| इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति मांसाहार करता है तो उसमे वह सभी भाव भी आते हैं जो मरते समय उस जीव में आ रहे थे जिसे वह खा रहा है| अब आप जानते ही हैं कि मांसाहार के लिए इन निर्दोष जीवों को किस प्रकार बेदर्दी से मारा जाता है| तो जिस समय वह मर रहा है उस समय वह दर्द से तड़प भी रहा है| उस समय वह दुखी है| उस समय वह क्रोधित भी है कि काश जिस प्रकार यह हत्यारा मुझे मार रहा है इसी प्रकार इसका भी अंत हो, उसका सर्वनाश हो जाए| काश मैं भी इसे इसी प्रकार मार सकता| मैंने इसका क्या बिगाड़ा है जो यह मुझे इस प्रकार बेरहमी से मार रहा है? उस समय जीव पीड़ित भी होता है| उस समय जीव प्रतिशोध की अग्नि में भी जल रहा होता है| उस समय वह जीव भी क्रूर हो जाता है| कहने का अर्थ यह है कि उस समय वे समस्त नकारात्मक भाव उस जीव के मन में आते हैं जिस समय वह दर्दनाक मृत्यु को पा रहा है| और इन सब भावों को भी मांसाहारी व्यक्ति उस जीव के साथ खा जाता है| सुनने में यह थोडा अजीब है किन्तु है एकदम वैज्ञानिक सत्य|
दया भावना मानवता की पहचान है अत: जो व्यक्ति दयालु नहीं है वह मानव ही नहीं है| मांसाहार के घृणित होने का यह सबसे बड़ा कारण है|
दूसरी ओर कई लोग इसे धर्म से जोड़ कर देखते हैं| इसके उत्तर में यदि कोई भी धर्म, जाती या सम्प्रदाय जीव हत्या को जायज ठहराता है तो उसे नष्ट कर देना चाहिए, उसे नष्ट होना ही चाहिए|
किसी भी धर्म में ऐसी कोई आज्ञा नहीं दी गयी है| फिर भी इस्लाम में बकरीद नामक त्यौहार मनाया जाता है| मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि मैं इस्लाम विरोधी नहीं हूँ| किन्तु इन कथित इस्लामियों को खुद ही अपने धर्म के बारे में नहीं पता| कुरआन मैंने भी पढ़ी है| कुछ दिनों पहले एक मुस्लिम फ़कीर से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| उनसे बैठकर बात करने में बड़ा आनंद आया| कुछ धर्म पर भी चर्चा हुई| उन्होंने बताया कि इस्लाम में बकरीद नामक कोई भी त्यौहार नहीं है| इस्लाम में ऐसा कोई त्यौहार नहीं है जिसमे किसी जीव को खुदा के लिए कुर्बान कर दिया जाए| किन्तु फिर भी खुदा के नाम पर सैंकड़ों वर्षों से यह पाप किया जा रहा है|
हिन्दू धर्म में भी कुछ जाति के लोग देवी के सामने बलि चढाते हैं| आजकल ही ऐसा हो रहा है| पिछले शायद कुछ सौ वर्षों से| प्राचीन समय में भारत में ऐसा कुछ नहीं होता था| सनातन धर्म एक महान जीवन पद्धति है| जीभ के स्वाद के लिए अथवा भगवान् को प्रसन्न करने के लिए हमारा सनातन धर्म इस प्रकार के पाप की कभी आज्ञा नहीं देता| और देवी के सामने बलि चढाने का औचित्य ही क्या है? एक तो जीव हत्या कर के वे पहले ही पाप कर रहे हैं, ऊपर से देवी को इसमें पार्टनर बना कर उसे भी बदनाम कर रहे हैं| वे जो अधर्मी हैं, अनाचारी हैं, वे क्या जाने कि धर्म क्या है?
आप मुझे बताएं कि क्या भगवान् यह चाहेगा कि मेरा एक बच्चा मेरे दुसरे बच्चे की हत्या कर दे केवल मुझे खुश करने के लिए?
इसी प्रकार इस्लाम में होता रहा है| बकरीद के दिन मुसलमान बकरे को हलाल करते हैं| जिसके कारण वह बकरा तड़प तड़प कर मरता है, और यह सब होता है धर्म की आड़ लेकर| कौनसा खुदा किसी जीव को इस प्रकार तड़पता देख कर खुश हो जाएगा, मुझे तो आज तक यही समझ नहीं आया|
दरअसल यह सब जीभ के स्वाद के लिए धर्म को बदनाम किया जा रहा है|
इसाइयत में भी यही सब चल रहा है| वहां भी धर्म के नाम पर अनेकों निर्दोष पशु किसी न किसी त्यौहार में मार दिए जाते हैं|
आजकल कुछ मैकॉले मानस पुत्र मैकॉले द्वारा रचित इतिहास (आजकल इसे कांग्रेसी या वामपंथी साहित्य का नाम दिया जा सकता है) पढ़कर कहते हैं कि प्राचीन समय से ब्राह्मण गौमांस का भक्षण कर रहे हैं और कहते हैं कि ऐसा हिन्दू वेदों में लिखा है| मैं भी एक ब्राह्मण हूँ| मैंने भी वेदों का अध्ययन किया है| मुझे एक बात समझ नहीं आई कि यदि प्राचीन समय से ऐसा हो रहा है तो आज क्यों नहीं होता? मैंने तो कम से कम अपने से बड़ी चार पीढ़ियों को ऐसा करते कभी भी नहीं पाया| गौमांस तो दूर वे तो मुर्गी का अंडा फोड़ देना भी पाप समझते हैं| यदि भारत में ऐसा ही होता था तो गाय को माता की उपाधि इस देश ने कैसे दे दी? उस देश में जहाँ ब्राह्मण को धर्म गुरु की उपाधि दी गयी, वह ब्राह्मण गौमांस कैसे खा सकता है? भगवान् कृष्ण के देश में भला कोई गौमांस खा सकता है? और गौमांस ही क्यों किसी भी जीव का मांस खाना हिन्दू धर्म में वर्जित है|
हम कोई जंगली नहीं हैं| भगवान् ने हमें सोचने की शक्ति दी है| इसी शक्ति के आधार पर हमने सबसे पहले खेती करना सीखा| स्वयं अपना खाना तैयार करके खाना सीखा| प्रकृति इतनी दयालु है कि हमें भोजन उपलब्ध करवा देती है| फिर हम इतने निर्दयी कैसे हुए?
मैंने इस पोस्ट में कुछ ऐसे ही पापी चित्र लगाए हैं जिनमे इन निरीह पशुओं पर होने वाले अत्याचार दिखाए गए हैं| मैं आपसे इस क्रूरतापूर्ण लेख के लिए क्षमा चाहता हूँ| अपनी एक पोस्ट में मैंने एक वीडियो भी लगाया था, जिसे आप यहाँ देख सकते हैं| यकीन मानिए मैंने इस वीडियो को देखा है| देखते हुए रो पड़ा| मेरी आँखों में आंसू नहीं आते, पता नहीं क्यों? किन्तु दिल अन्दर तक रो सकता है| दुःख भी बहुत होता है| चाहता तो इस वीडियो को बीच में ही बंद कर देता और इसे इस पोस्ट में नहीं लगाता| किन्तु अब लगता है कि यह तो सत्य है| मैं नहीं देखूंगा तो भी होगा| देखूंगा तो कम से कम इसका विरोध करने लायक तो रहूँगा|
किन्तु यह आभास भी हो गया है कि अब कभी ऐसे वीडियो नहीं देख सकता| निर्दोष पर अत्याचार सहन नहीं होता| अब ऐसा लगने लगा है कि मुझे सुख की कामना छोड़ दुःख के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, क्यों कि यही मुझे गतिशील रखता है|
मेरी इच्छा शक्ति बढती जा रही है| अब मेरे मन में एक इच्छा है कि जिस प्रकार ये पापी इन निर्दोष जीवों को तडपा रहे हैं, इनका भी अंत इसी प्रकार हो| इन पापियों का ऐसा अंत करने में मुझे भी ख़ुशी होगी| यह पुण्य कर्म मैं भी करना चाहूँगा| हाँ मैं मानता हूँ कि इस समय मैं क्रूर हो रहा हूँ, किन्तु ऐसा होना आवश्यक भी है| यदि कोई इस प्रकार मेरे किसी प्रियजन के साथ करता तो भी क्या मैं चुप बैठा रहता?
आज लिखते समय मुझे अत्यधिक पीढ़ा हो रही है| किन्तु विश्वास है कि एक दिन यह सब रोक सकूँगा| मेरे जैसे असंख्य लोग इस कार्य में लगे हैं| उन सबका साथ दूंगा, वे सब मेरा साथ देंगे|


नोट : आने वाले समय में कभी भी भावनाओं में बहकर कुछ नहीं लिखूंगा| ऐसा करना शायद विषय के साथ न्याय नहीं कर पाता| यहाँ आवश्यकता थी अत: इसे अपनाया|

8 comments:

  1. Very Well Composed. Keep up the good Work Diwas. Very Proud of you.

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  2. कुलमिलाकर बात हिंसात्मक कृत्यों से दूर रहने की है। ताकि हमारी मानसिकता भी सात्विक रहे और जगत में शान्त जीवन का माहोल बने।

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  3. पहली बार ऐसी तसवीरें देखीं । मन अत्यंत व्यथित हो गया। कैसे ये जल्लाद काट पाते हैं निरीह पशुओं को और उससे भी बड़े कसाई तो वे हैं जो इसे बैठकर खाते हैं। ह्रदय विदारक है ये सब कुछ। इस लेख से शायद बहुत से लोगों की चेतना जागेगी और पशु प्रेम जागेगा।

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  4. .

    निरीह पशु-वह से व्यथित होकर पिछले वर्ष 'बकरीद' के अवसर एक लेख लिखा था। एक नज़र डालियेगा।

    बलि का बकरा -- Scapegoat !

    http://zealzen.blogspot.com/2010/11/scapegoat.html

    .

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  5. मार्मिक लेख ....न पूरा पढ़ा गया न चित्र देखे गए..... :(


    क्या कहूं ...?

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  6. बहन मोनिका जी...मैं जानता हूँ कि यह पीड़ा देने वाली सामग्री है...मुझे भी इसे लिखने में तकलीफ हुई...किन्तु यह सब तो घट ही रहा है...
    आपकी तकलीफ मैं समझ सकता हूँ...इन निरीह पशुओं का दर्द आपको पीड़ित कर रहा है...यह तो आपकी दयालुता है कि इन निर्दोषों पर हो रहे अत्याचारों को आप सहन नहीं कर सकतीं...

    दिव्या दीदी...यदि कुछ थोड़े बहुत लोग भी इसे पढ़कर सुधर जाएं तो यह मेरे लिए सौभाग्य होगा...क्यों कि एक सुधरेगा तो दुसरे को भी सुधारने का प्रयत्न अवश्य करेगा...
    मैंने आपका उक्त आलेख पढ़ा...पढ़ कर अच्छा लगा...उस पर अपने विचार भी रखे हैं...काश उस बहस में मैं भी शामिल होता...

    भाई सुज्ञ जी बिलकुल आप मेरे प्रयास को एकदम भलीभांति समझ चुके हैं...केवल मांसाहार का विरोध हमारा लक्ष्य नहीं है...उद्देश्य तो मानव मन के भीतर व्याप्त हिंसा व निर्दयता को मिटाना है...

    धीरज भाई तुझे यह लेख पसंद आया, यह जानकर अच्छा लगा...मुझे लगता था कि तू भी मांसाहार लेता है...

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  7. दिवस जी!! मार्मिक लेख. बस हम अंधानुकरण में यह भूल गये हैं कि भगवान ने हमें माँसाहार के लिये नहीं बनाया. हमारे शरीर की रचना माँसाहार के अनुकूल नहीं. सुन्दर प्रयास के लिये साधुवाद.

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  8. mene 1 baar 1 mansahari se pucha ki aap kisi jeev ki hatya kar k use kese kha sakte h. uska jawaab tha ki nature me balance banaye rakhne k liye ye sab jaruri h. agar hum nahi khayenge to inki sankhya badhti hi jayegi jo ki nature k liye sahi nahi h. mujhe answer bahut hi logikal laga. uske baad mene ye sawaal kisi bhi mansahari se nahi pucha.. lekin ye lekh padhte hue mere dimag me 1 prashn utha ki jansankhya to humari bhi badhti ja rahi h, balki hum (human) hi apni sankhya ko sabse jyada badha kar nature ka balance bigad rahe h... iska matlab hume bhi......???? lekin agar koi janwar kisi mansahari admi k bachche ki hatya kar deta h to kya wo admi "nature k balance" k logic ko pakad k chup betha rahega... nahi... wo us janwar ko maar dega.. is se ye saaf jahir hota h ki "jiski lathi uski bhains", jo ki humare dharm me bilkul nahi h, or kisi or dharm me bhi nahi h.

    keep it up dear.. agar tumhare articles logo ko sochne pe majboor kar de to yahi tumhari safalta h.

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