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Monday, May 26, 2014

हमारे नवीन प्रधानमंत्री जी को मेरा पत्र


श्री नरेन्द्र भाई मोदी
माननीय प्रधानमंत्री
भारत सरकार
मान्यवर,
            आज तक आप केवल हमारे प्रिय नेता थे, अत: हम आपको "मोदी जी" अथवा "नरेन्द्र भाई" कह कर संबोधित करते थे| आज भी जब कोई अपने प्रिय नेता को पुकारेगा तो आपके लिए इन्ही संबोधनों को उपयोग मे लेगा| परन्तु जब इस गणतांत्रिक व्यवस्था का कोई नागरिक अपने प्रधानमंत्री के समक्ष खड़ा होगा तो व्यक्तिगत भावनाओं से इतर आपके लिए "प्रधानमंत्री जी" का संबोधन ही उपयोग मे लिया जाएगा| यह पत्र भी मैं अपने प्रधानमंत्री को ही लिख रहा हूँ|
            माननीय प्रधानमंत्री जी, सर्वप्रथम आपको इस अभूतपूर्व विजय के लिए बहुत-बहुत बधाई| भारत देश की जनता ने तो पहले ही आपको अपने प्रधानमंत्री के रूप मे चुन लिया था परन्तु आज शपथ ग्रहण कर आप संवैधानिक रूप से हमारे प्रधानमंत्री बन चुके हैं| भारत गणराज्य ने आपके नेतृत्व मे भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा मे ना केवल विश्वास किया अपितु उसको स्वीकार कर भारत माँ की सेवा करने का आपको सौभाग्य दिलाया| अत: उनकी कसौटी पर खरा उतरना आपका सबसे बड़ा कर्तव्य है|
            माननीय, सदियों से गुलामी व कुशासन में जीते-जीते हम भारतवासी इतने घाव खा चुके हैं कि अब और विश्वासघात सहन करने की शक्ति हम में नहीं बची है| यदि ऐसा हुआ तो विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के अनुयाईयों का धर्म, कर्म, सत्य, अच्छाई, यहां तक कि विश्वास पर से भी विश्वास उठ जाएगा| अत: अब इस विश्वास को बनाए रखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी आप पर है| हम भारतवासी स्वभाव से अतिभावुक होते हैं| बहुतों ने हमारी भावनाओं को ठेस पहुँचाई| समय-समय पर हमें एक नई आशा की किरण दिखी परन्तु नियती ने हमें घाव ही दिये| इतना टूट चुकने के बाद हमे पुन: एक ऐसा नायक मिला है कि हमारी भावनाएं फिर से जाग उठी हैं| यह विश्वास इतना प्रबल है कि जिस भारतीय समाज ने स्वयं को राजनीति से पृथक कर लिया था उसने पुन: अपनी भावनाओं को राजनीति के रास्ते इस देश से जोड़ लिया| इस समाज ने आप में असीम विश्वास दिखाया परन्तु अब यदि इनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ हुआ तो भारत देश फिर से पतन की ओर बढ़ जाएगा| और अबकी बार यह पतन ऐसा होगा कि सदियों तक इससे उभर पाना कठिन होगा|
            माननीय, आप इस देश की मिट्टी से जुड़े नेता हैं| इस देश का स्वभाव शायद अब तक आए प्रधानमंत्रियों से आप कहीं बेहतर समझते हैं| मुसीबत के समय जब कोई हमारा सहारा बनता है तो हम भारतवासी उसे अपना भगवान या भगवान का ही रूप मान उसके नाम का कीर्तन करने लगते हैं| उसके प्रेम के नशे मे कुछ इस तरह डूब जाते हैं जैसे शराब मे कोई शराबी धुत हो जाता है|
            माननीय, आज आप उसी सहारे के रूप मे इस देश को मिले हैं| इस देश ने आपको अपना मसीहा तक मान लिया है| यह बात आप भी जानते हैं कि आज भारतीय समाज मोदी नशे मे चूर है| आपसे प्रेम करना बुरा नहीं है परन्तु जब तक यह.समाज नशे मे रहेगा वह आपका सही मूल्यांकन नही कर सकेगा| वर्षों पहले हमने नेहरू-गाधी को अपना मसीहा मान उनमे अटूट विश्वास दिखाया जिसके परिणाम स्वरूप हमें वर्षों तक एक नई प्रकार की गुलामी का सामना करना पड़ा|
            एक "लोकतंत्र" में जब तक व्यक्ति अपनी भूमिकाओं को निर्धारित कर उनका निर्वहन नही करेगा तब तक यह "आदर्श लोकतंत्र" नहीं बन सकता| प्रधानमंत्री जी, यह बात कहते हुए मुझे अफसोस है कि आज व्यक्ति ने लोकतंत्र के प्रति अपनी भूमिका को केवल मोदी को वोट देने तक सीमित कर दिया| अब वह पूरी तरह से आप पर निर्भर हो जाना चाहता है| ऐसे मे आपके द्वारा उठाए गए किसी भी कदम की ना तो वह समालोचना करने को तैयार है अपितु किसी अन्य के द्वारा करने पर भी वह उसे स्वीकार नहीं करेगा| अत: अब यह जिम्मेदारी भी आपकी बनती है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के "लोक" को आप इस "तंत्र" से जोड़े रखें| व्यक्ति इस तंत्र मे अपनी भागीदारी को समझे|
            माननीय, संभव है कि मानवीय स्वभाव के चलते आपसे भी कुछ गलतियां हो जाएं अथवा किसी मोड़ पर आपको अपने देशवासियों की सलाह की आवश्यकता पड़ जाए| इसके लिए व्यक्ति को वैचारिक धरातल पर आत्मनिर्भर होना होगा| अत: यह जिम्मेदारी भी आप पर आती है कि निर्णय लेने के समय में वह मोदी पर निर्भर ना करे| इस देश की जनता आपकी ताकत बने ना कि एक ऐसा समाज जिसके होते सहयोग के अभाव मे आप पर अतिरिक्त बोझ पड़ जाए|
            माननीय, मैंने इन चुनावों में किसी पार्टी के विरोध में, किसी गुटबाज़ी मे पड़कर अथवा किसी लहर में बहकर आपको वोट नहीं दिया| आप पर विश्वास किया, आपके पूर्व के कर्मों से आपको पहचान कर आपको इस पद के योग्य समझा और इस प्रकार मैने आपको अपने प्रधानमंत्री के रूप मे चुना| मेरा मानना है कि अपने नेता को चुनने का यही तरीका होना चाहिए| आप भी यह भली-भाँती जानते हैं कि आप इस देश के लिए नई उम्मीद बन चुके हैं| भारतवासी आपसे असीम प्रेम करने लगे हैं| नरेन्द्र मोदी आज उनके लिए किसी महानायक से कम नहीं हैं| कोई शत्रू जब हम पर वार करता है तो इतनी पीड़ा नहीं होती| यह तो शत्रू का काम था परन्तु जब हमारा कोई अपना हमारा विश्वास तोड़ता है तो हम इस सदमें से बाहर नहीं आ पाते| हमने पूर्व मे कईयों को शोहरत के नशे में अपने रास्ते से भटकते पाया है| हम आपसे अपेक्षा करते हैं कि आप जनता से मिलने वाले प्यार व इस शोहरत को स्वयं पर हावी नहीं होने देंगे| हम अब फिर से एक जिम्मेदार, ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ नेता को खोने की अवस्था में नहीं हैं| हमारी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की जिम्मेदारी आप पर है| हम जानते हैं कि अंगारों का सिंहासन व काँटों का ताज आपकी प्रतीक्षा कर रहा है परन्तु इस देश की जनता से आपने यह माँगा था और जनता ने भी केवल आपको ही इस योग्य समझा|
            माननीय प्रधानमंत्री जी, मैं आशा करता हूँ कि आप मेरी किसी भी बात को अन्यथा नहीं लेंगे| लोकतंत्र के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप मे सदैव जागरूक एवं सतर्क रहना ही मेरा कर्तव्य है| अत: मैं केवल अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ एवं आशा करता हूँ कि आप भी पूर्व की भाँती अपने कर्तव्यों को निभाएंगे एवं इस राष्ट्र की उन्नति मे अपना अमूल्य योगदान देंगे|
            भारत गणराज्य की सदा विजय हो, आपके नेतृत्व में भारत पुन: विश्व गौरव को प्राप्त हो|
            वन्देमातरम्
दिवस

Monday, April 15, 2013

नीतीश की हरकत से मज़ा आ गया


चौंकिए मत, शायद कुछ भाजपाई भड़क उठे, पर कल जो हुआ वो है तो एक Opportunity...

सच कहूँ, मुझे तो कल मज़ा आ गया। मैं ये नहीं कहता कि अब मोदी जी को टोपी पहन लेनी चहिये। क्यों यदि उन्होंने ऐसा किया तो यही प्रतीत होगा कि मोदी कुर्सी के भूखे हैं जो अब टोपी भी पहन ली। जबकि मोदी जी के बारे में ऐसा सोचना भी पाप है। राजनीति उनका Ambition नहीं बल्कि Mission है।
दूसरी बात यदि मोदी जी ने टोपी पहन भी ली तो हमारे द्वारा उन्हें "मुल्ला मोदी" जैसे शब्दों से सामना करना पदेगा। हम भूल जाएंगे कि अब तक मोदी ने देश के लिए कितना कुछ किया है?

खैर, अब सोचना हमे है कि हमे मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाना है या मोदी जी की नीतियों से देश का विकास करना है? जब कांग्रेस में सोनिया के प्रधानमन्त्री न होते हुए भी सोनिया भक्तों द्वारा सोनिया की नीतियों पर ही भ्रष्टाचार होता है तो भाजपा में मोदी के प्रधानमंत्री न होते हुए भी मोदी भक्तों द्वारा मोदी की नीतियों पर विकास क्यों नहीं हो सकता?

खैर, कल जो हुआ उसके विषय में बात करते है। नीतीश ने जो मोदी जी को नसीहतें देने का काम किया है वह पूरी तरह निंदनीय है। इस विषय पर कुछ दिन पहले चेतन भगत का एक लेख पढ़ा था, जिसमे उन्होंने नीतीश को  जवाब देते हुए कहा था कि जब अधिकतर जनता मोदी जी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है तो जनता की ख़ुशी पर आपको आपत्ति क्यों है? प्रधानमंत्री कौन बने यह तय करने का अधिकार तो जनता के पास होना चहिये। फिर आप जैसे राजनेता जनता के इस अधिकार को छीन स्वयं को जनप्रतिनिधि के रूप में कैसे रख सकते हैं?

खैर, नीतीश की करतूत निंदनीय है, पर मुझे तो फिर भी मज़ा आ गया। भाई, मौजूदा हालातों में अवसर की प्रतीक्षा रहती है कि कोई ऐसा अवसर मिले कि हमे कांग्रेस नामक बीमारी को ख़त्म कर आगे कुछ काम कर सकेँ। नीतीश ने वह अवसर दे दिया। भाजपा की जवाबी कार्यवाही भी गज़ब की थी। ऐसी दबंगई की उम्मीद भाजपा से बहुत पहले से थी, परन्तु अभी तक निराशा ही मिली थी। परन्तु कल की प्रतिक्रिया के बाद यह तो लगने लगा है कि भाजपा मोदी के विरुद्ध कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है।
कुल मिलाकर भाजपा की प्रतिक्रिया से अब ऐसा माहौल दिखाई दे रहा है कि जैसे BJP और JDU में फुट पड़ रही है। भाजपा को अभी प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी पर शांत ही रहना चाहिए। इस भ्रम को बने रहने दो। क्योंकि यदि भाजपा किसी और का नाम आगे करती है तो हम भाजपाई ही भाजपा का सत्यानाश कर देंगे। क्योंकि हम बहुत जल्दी व्यक्तिवादी हो जाते हैं। विषय पर कभी ध्यान ही नहीं देते। हम यह भी नहीं सोच पाते कि इस देश के लिए मोदी एक व्यक्ति नहीं एक विषय है, एक सोच है, एक विचार है, एक योजना है, एक नीति है। यदि खुद मोदी जी से पूछा जाए कि उनके लिए क्या महत्वपूर्ण है तो वे अपने भक्तों को यही कहते नज़र आएँगे कि मित्रों, मेरी पार्टी को अपने तरीके से काम करने दो। हम एक योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहे हैं, आप हमारे समर्थक कृपया इस योजना को हाशिये पर मत डालिए। BJP एक पार्टी है और उसे किसी एक व्यक्ति से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
व्यक्तिगत रूप से मेरी भी यही इच्छा है कि मोदी जैसी हस्ती को इस देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिए। परन्तु वर्तमान में यह बहुत कठिन है। कांग्रेस ने इस देश को ऐसे हाशिये पर पहुंचा दिया है कि अब अच्छे लोगों के लिए रास्ता इतना सुगम नहीं रहा। हमे अपनी नीतियों में कुछ परिवर्तन कर भावुकता के स्थान पर दिमाग चलाना होगा।
प्रधानमंत्री कोई बने इससे क्या फर्क पड़ता है? 1998 में जिस आडवानी को हम उम्मीद भरी नज़रों से देख रहे थे आज उसे ही गालियाँ देने पर तुले हैं।   मोदी स्वयं कई बार कह चुके हैं कि आडवानी मेरे गुरु हैं। मैंने तो राजनीति का पाठ उन्ही से सीखा है। 2014 के मंत्रिमंडल में यदि प्रधानमंत्री आडवानी और गृहमंत्री मोदी हों तो ये दोनों इस देश को नयी ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। आडवानी एक कुशी राजनीतिज्ञ हैं। उन्हें एक बात समझ आ गयी है कि जिस हिन्दू की रक्षा के लिए हम राजनैतिक शत्रुता पाले बैठे हैं, वह हिन्दू ही कभी हमारे साथ नहीं हो सकता। अत: उन्होंने अपने नीतियों में कुछ परिवर्तन ज़रूर किया है किन्तु अन्दर से वही हैं जो पहले थे।
अरे मैं तो कहता हूँ कि यदि मनमोहन सिंह जैसा कोई व्यक्ति ही ढूंढ लो। जिसे मोदी अपने अनुसार चलाए। स्वयं मोदी जी के लिए प्रधानमंत्री बनना इतना महत्वपूर्ण नहीं जितना देश को आगे बढ़ाना है।

अभी नीतीश को कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में कुछ सेंध लगाने दो। क्योंकि हिन्दुओं के भरोसे तो इस देश में कभी सरकारें बनती ही नहीं। हिन्दुओं को अपने घर-परिवार, नौकरी व आराम से फुर्सत कहाँ है?
इसीलिए नीतीश के जो दिल में आए उसे करने दिया जाए और भाजपा अपनी नीतियाँ वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित करे।
हमे इतना ध्यान रखना चाहिए कि जीतने के लिए दुश्मन को हराना पड़ता है। और दुश्मन यदि कपट से भरा हो तो हमे महाकपटी बनना पड़ता है। अत: कल की नितीश की हरकत को एक अवसर के रूप में लेना चाहिए। हमे नितीश का उपयोग ठीक उसी प्रकार करना चाहिए जैसे कांग्रेस अरविन्द केजरीवाल का कर रही है।

Sunday, February 10, 2013

कबाड़ी को कबाड़ बेचना भी असभ्यता???


मित्रों, ठेले पर सब्जी खरीदना अब शर्म की बात है। उसके लिए भी रिलायंस फ्रेश, मोर, सुभिक्षा, बिग बाज़ार अथवा कोई अन्य मेगा मार्केट की ही दरकार है। रद्दी वाले को रद्दी बेचना भी शर्म की बात है, चाहे घर में रद्दी का भण्डार ही क्यों न लग जाए। अब इसके लिए भी तो कुछ हाई-फाई "sophisticated" व्यवस्था होनी ही चाहिए।
मेरी नज़र में तो यह एक मानसिक व्याधि है। चेन्नई के 32 वर्षीय जोसेफ जोगेन इसी मानसिक व्याधि से ग्रस्त लगे।
आज सुबह का अखबार पढ़ रहा था तो एक लेख पर दृष्टि ठहर गयी। बड़े-बड़े शहरों की कई उच्च वर्गीय सोसायटीज़ में रद्दी वालों का प्रवेश वर्जित है। कारण यह है कि इन रईसजादों को किसी गरीब रद्दी वाले को रद्दी बेचने में शर्म आती है। कहीं किसी पडौसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा कि देखों थोड़े से पैसों के लिए घर में जमा रद्दी, प्लास्टिक व अन्य कबाड़ किसी कबाड़ी को बेच रहा है? शायद कबाड़ी को कबाड़ बेचने वाला व्यक्ति भी इस सभ्य(?) समाज में भंगारी ही कहलाता है। गोया कि चाहे घर में रद्दी का भण्डार ही इकठ्ठा क्यों न हो जाए, किसी कबाड़ी का पेट भर के हम अपनी शान(?) में दाग नहीं लगा सकते।
हालांकि अखबार में पढ़ा यह लेख व्यापर प्रबंधन की सीख देता नज़र आया कि कैसे रद्दी वाले से पीछा छुड़ा कर आप एक सफल कॉर्प्रट भी बन सकते हैं व एक सभ्य समाजी भी।
चेन्नई के 32 वर्षीय जोसेफ जोगेन आई टी प्रोफेशनल हैं जिन्हें भी कबाड़ी को अपने घर की रद्दी बेचने में शर्म आती है। ऐसे में उनके घर में रद्दी के जमावड़े ने उन्हें परेशान कर दिया। बस यहीं से उनके दिमाग में बिजनस का एक नया आइडिया आ गया। उन्होंने अपनी पत्नी सुजाता (जो खुद एक आई टी प्रोफेशनल हैं) के साथ मिलकर अपनी खुद की कबाड़ी की दूकान खोली। फर्क सिर्फ इतना था कि कहीं उन पर कबाड़ी का तमगा न लग जाए इसलिए इस भंगार की दूकान को एक कंपनी के रूप में रजिस्टर्ड करवाया जिसका नाम है "कुप्पाथोट्टी.कॉम"। इस कम्पनी की वेबसाईट पर चेन्नई की "Sophisticated Society" के लिए अपनी शान(?) को बचाए रखने का एक रामबाण नुस्खा है। अब रद्दी वाले को रद्दी बेचने की शर्म से मुक्ति क्योंकि अब आपके घर के कबाड़ को खरीदने कोई कबाड़ी नहीं अपितु यूनिफॉर्म पहने कम्पनी के "Collection Boys" आएँगे। आपको सिर्फ कम्पनी की वेबसाईट पर रजिस्ट्रेशन करवाना है और उसके बाद कम्पनी के कॉल सेंटर पर कॉल कर अपने घर कबाड़ ले जाने के लिए कलेक्शन बॉय को बुलाना है। कॉल सेंटर पर भी सुरीली आवाज़ की बालाओं को बैठाया गया है ताकि भंगार बेचने वालों का कुछ मनोरंजन भी हो जाए। अब जाहिर सी बात है कहाँ वह मैले-कुचेले कपडे पहना गरीब रद्दी वाला और कहाँ ये कॉल सेंटर गर्ल्स व कलेक्शन बॉय?
और एक बात, अन्य मेगा मार्केट्स की तरह यहाँ भी आपको छूट मिलेगी। अर्थात जो रद्दी कोई रद्दी वाला आपसे करीब नौ रु/किग्रा के भाव में खरीदता था उसके लिए कम्पनी आपको दस या ग्यारह का भाव लगा सकती है। एक तो गरीबों के पेट पर लात मारी और अमीरों से दो रुपये ज्यादा ही मिल गए, मतलब अब इस "Sophisticated Society" की इज्जत पर कोई दाग लगने का सवाल ही नहीं। प्रोफेशनलिज्म का ज़माना है और हमे अपनी इज्जत को भी तो बचाना है।
अब आपके घर की रद्दी किसी गरीब ठेले वाले को नहीं अपितु किसी ऐसी ही कम्पनी को बिकना शुरू जिसके पास मैनेजिंग डायरेक्टर भी है। सब कुछ कितना प्रोफेशनल, कितना विकसित लगता है न? अब गरीबों को हटाओ और प्रोफेशनलिज्म लाओ। ऐसे ही तो होता है एक सभ्य एवं विकसित देश का निर्माण।

जोसेफ जोगेन की यह कम्पनी नवम्बर 2010 में चेन्नई से शुरू हुई और अब देश के कई हिस्सों में फ़ैल चुकी है। धीरे-धीरे मध्यम वर्ग भी इस प्रोफेशनलिज्म की तरफ आकर्षित हो रहा है। जिस जोसेफ जोगेन को "कबाड़ी" शब्द से इतनी घृणा व शर्म थी, अंत में वह भी तो "कबाड़ी" ही बन गया। चाहे कितनी भी बड़ी कम्पनी खोल ली, काम तो "कबाड़ी" का ही किया न? फिर इस "कबाड़ी" शब्द में इतनी हीन भावना क्यों?

ऐसे नहीं होता विकास। ज़रूरत अपनी घटिया सोच बदलने की है। गरीबों के पेट पर लात मार कर अमीरों की जेबें भरना विकास नहीं होता।

Tuesday, January 1, 2013

2013 कहाँ, अभी तो 2012 ही है


मित्रों कल से लोगों ने दिमाग खराब कर रखा है। हैप्पी न्यू ईयर...
कौनसा ईयर है? 2013 ?
यदि सोलर कलेंडर को ही सर्वस्व मान लिया जाए तो मुझे तो नहीं लगता कि अभी 2013 आ गया है।

पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने में 24 घंटे का समय लेती है, जिसे हम एक दिनांक मान लेते हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में 365 दिन 6 घंटे का समय लेती है। इन 6 घंटों को चार बार जोड़ने पर 24 घंटों का पूरा एक दिन बन जाता है, जिसे प्रत्येक चार वर्ष बाद हम फरवरी माह के अंतिम दिन के रूप में जोड़ देते हैं ओर हर चार वर्ष बाद 29 फरवरी नामक दिनांक के दर्शन करते हैं।
बस सभी समस्याओं की जड़ यह 29 फरवरी ही है। इसके कारण प्रत्येक चौथा वर्ष 366 दिन का हो जाता है।
यह कैसे संभव है? सोलर कलेंडर के हिसाब से तो एक वर्ष वह समय है, जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपना एक चक्कर पूरा करती है। चक्कर पूरा करने में 366 दिन नहीं अपितु 365 दिन 6 घंटे का समय लगता है। इस लिहाज से तो एक साल जिसे हम 365 दिन का मानते आये हैं, वह भी गलत है। परन्तु फिर भी, क्योंकि इन अतिरिक्त 6 घंटों को एक दिनांक के रूप में किसी वर्ष में शमिल नहीं किया जा सकता इसलिए प्रत्येक चौथे वर्ष ही इनके अस्तित्व को स्वीकारना पड़ता है।
फिर भी किसी प्रकार इन 6 घंटों को एडजस्ट करने के लिए प्रत्येक चार वर्ष बाद 29 फरवरी का जन्म होता है। किन्तु यह एक दिन जो प्रत्येक चार साल बाद आता है, वह 365 x 4 = 1460 वर्षों के बाद एक पूरा वर्ष भी तो बना देता है। इस एक वर्ष को अब तक हम प्रत्येक चार साल बाद 29 फरवरी के रूप में एडजस्ट कर रहे थे। हिसाब से तो प्रत्येक 1460 वर्षों के बाद उसी वर्ष का पुनरागमन होना चाहिए था। अत: अभी 2013 नहीं, 2012 ही होना चाहिए। क्योंकि ईस्वी संवत मात्र 2013 वर्ष पुराना है, अत: अभी 2011 की सम्भावना नहीं है। क्योंकि इसके लिए 2920 वर्ष का समय लगेगा।
क्या झोलझाल है यह सब?

दरअसल सोलन कलेंडर के अनुसार दिनांक, माह व वर्ष केवल पृथ्वी व सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं। जबकि इस पूरे ब्रह्माण्ड में अन्य आकाशीय पिंडों को नाकारा नहीं जा सकता। इनका भी तो कोई रोल होना ही चाहिए हमारे कलेंडर में। इसीलिए विक्रम संवत में हमारे हिंदी माह पृथ्वी व सूर्य के साथ-साथ राहु, केतु, शनि, शुक्र, मंगल, बुध, ब्रहस्पति, चंद्रमा आदि के अस्तित्व को स्वीकार कर दिनांक निर्धारित करते हैं।
पृथ्वी पर होने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार ही महीनों को निर्धारित किया जाता है न कि लकीर के फ़कीर की तरह जनवरी-फरवरी में फंसा जाता है।
September, Octuber, November व December नामक शब्दों का उद्भव क्रमश: Sept, Oct, Nov व Dec से हुआ है, जिनका भी अर्थ क्रमश: सात, आठ, नौ व दस होता है। किन्तु ये तो क्रमंश: नवें, दसवें, ग्यारहवें व बारहवें महीने होते हैं, जबकि इन्हें क्रमश: सातवाँ, आठवा, नवां व दसवां महिना होना चाहिए था।
दरअसल ईस्वी संवत के प्रारंभ में एक वर्ष में दस ही महीने हुआ करते थे। अत: September, Octuber, November व December क्रमश: सातवें, आठवे, नवें व दसवें महीने हुआ करते थे। किन्तु अधूरे ज्ञान के आधार पर बना ईस्वीं संवत जब इन दस महीनों से एक वर्ष पूरा न कर पाया तो आनन-फानन में 31 दिन के जनवरी व 28 दिन के फरवरी का निर्माण किया गया व इन्हें वर्ष के प्रारम्भ में जोड़ दिया गया। फिर वही अतिरिक्त 6 घंटों को 29 फ़रवरी के रूप में इस कैलंडर में शामिल किया गया। ओर फिर वही झोलझाल शुरू।

इसीलिए पिछले वर्ष भी मैंने लोगों से यही अनुरोध किया था कि 1 जनवरी को कम से कम मुझे तो न्यू ईयर विश न करें। तुम्हे अज्ञानी बन पश्चिम का अन्धानुकरण करना है तो करते रहो 31 दिसंबर की रात दारू, डिस्को व बाइक पार्टी।

नोट : गृहों की स्थिति के आधार पर हिंदी मास बने हैं, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि ज्योतिष विद्या को सर्वश्र मान ठाले बैठ जाएं। हमारी संस्कृति कर्म प्रधान है। सदी के सबसे बड़े हस्तरेखा शास्त्री पंडित भोमराज द्विवेदी ने भी कहा है कि कर्मों से हस्त रेखाएं तक बदल जाती हैं।

Saturday, November 24, 2012

मुझे पलायन करने से रोक लिया



दो वर्ष से अधिक हो गये मुझे हिन्दी ब्लॉगिंग में आए। जब आया था तब बहुत जोश था।  सोचा था इंटरनेट का उपयोग कर भारत व हिंदुत्व की खूब सेवा करूँगा। कुछ लोग भी मिलेंगे जो हिंदुत्व के लिए वही भावनाएं रखते होंगे जैसी कि मेरे दिल में रहीं हैं। इसलिए इस क्षेत्र में जी-जान से जुट गया।

काफी अच्छा लगने लगा था। ब्लॉगिंग के साथ-साथ फेसबुक पर भी लिखता रहा। प्रारंभ में सभी जगह अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं। परन्तु धीरे-धीरे ब्लॉगिंग का एक ऐसा चेहरा सामने आने लगा जिसे या तो मैं देखना नहीं चाहता या जान बूझकर उसे अनदेखा कर रहा था।

यहाँ जिन लोगों को मैं राष्ट्रवादी समझ रहा था, सबसे ज्यादा निराश इन्ही ने किया। ब्लॉगिंग में आकर मुझे यह एहसास हुआ कि इतिहास में हिन्दुस्थान के वे लोग कैसे रहे होंगे जिनकी उपस्थिति में हिन्दू आपस में बँटे? भारत खंड-खंड हुआ और वे न केवल देखते रहे बल्कि इस प्रक्रिया के समर्थन में खुद भी जाने-अनजाने अपनी भूमिका निभाते रहे।

यहाँ भी मैंने इसी प्रकार भारतियों (हिन्दुओं) को आपस में बँटते देखा। वे न केवल बँटे बल्कि बाँटते भी रहे। मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते अपने ही भाई-बहनों पर प्रहार करते रहे। समझ नहीं आता किन लोगों को खुश करने का प्रयास किया जा रहा है? उन्हें जिन्होंने पिछले 1400 वर्षों से भारत को सिर्फ नोचा और आज भी नोच रहे हैं। खंड-खंड में भारत को तोडा और आज भी तोड़ रहे हैं। जहां जाते हैं, वहीँ अराजकता फैलाते हैं फिर चाहे वह स्थान हिन्दुस्थान की ज़मीन हो या इंटरनेट। अब तो इन्होने बांटने के और भी नये गुर सीख लिए हैं। खुद को बाहर से सेक्युलर दिखाते हैं और अन्दर से वही कट्टर गंदगी इनमे भरी होती है। वहीँ इनके झांसे में आने वाले हिन्दू खुद को ऊपर से राष्ट्रवादी दिखाते हैं किन्तु अन्दर से सेक्युलरिज्म नाम का कोढ़ मन में पाले बैठे हैं। और यह कोढ़ इतना घातक हो गया है कि यदि कोई साहसी स्त्री अपना राष्ट्रधर्म निभाती हुई अपने तेजस्वी रूप में अवतरित होती है तो अपने मुल्ला मित्रों को खुश करने के लिए उसे स्त्री मानने से भी इनकार कर देते हैं, केवल और केवल अपने अन्दर के सेक्युलरिज्म को जिन्दा रखने के लिए और उन मुल्लों को खुश रखने के लिए जो इनके द्वारा अपनी योजनाओं में सफल हो रहे हैं।

कल तक शहीदों के नाम पर अपने ब्लॉग को भरने वाले ब्लॉगर, एक देशद्रोही का साथ केवल इसलिए देते हैं क्योंकि वह साहसी महिला इन्हें रास नहीं आ रही। उससे इतनी खुन्नस कि कश्मीर को तोड़ने की बात कहने वाले की चापलूसी तक करने लगे क्योंकि वह उस साहसी महिला से बदतमीजी कर चुका था। मतलब इन्हें एक देशद्रोही मुल्ला चलेगा किन्तु एक राष्ट्रवादी साहसी हिन्दू महिला नहीं।

दुःख तब और भी अधिक हुआ जब माहिला सशक्तिकरण की बातें करने वाली महिलाओं ने भी अपनी टीम न टूटे इस डर से कभी भी महिला सशक्तिकरण कर के नहीं दिखाया सिर्फ लिखा।

इतना समझ आ गया कि ब्लॉगिंग में केवल गुटबाजियां होती हैं। यहाँ केवल टाइम पास के लिए व अपने नाम शोहरत के लिए ब्लॉगिंग की जाती है। बल्कि इसे ब्लॉगिंग न कहकर सोश्यल नेटवर्किंग कहा जाना चाहिए। दुनिया भर के एग्रीगेटर बना दिए, जिसमे किसी को भी भर लिया। अब जब पाले बन ही चुके हैं तो अपने गुट वाले को नाराज़ कैसे करें?

ऐसा नहीं है कि ब्लॉगिंग में कोई ढंग का व्यक्ति था ही नहीं। यहाँ पर मैंने अनेकों राष्ट्रवादियों को भारत व हिंदुत्व के सम्मान में लड़ते देखा। किन्तु धीरे-धीरे यहाँ की तानाशाही व अकर्मण्यता से परेशान हो कर ब्लॉगिंग छोड़ दी। किसी के पास समय का अभाव था तो कोई इस माहौल से पसेशान था। मैं भी इसी कारण से ब्लॉगिंग से दूर था। केवल टिप्पणी करने के लिए लॉग इन करता था। कुल मिलाकर ब्लॉगिंग से राष्ट्रवाद का स्वर गायब होने लगा। ऐसे में इन राष्ट्रवादियों को सबसे अच्छा मंच फेसबुक के रूप में मिला। जहां व्यक्ति में देश व हिन्दुओं की दयनीय दशा के लिए लड़ने का ज़ज्बा देखा। उनके अन्दर वह आक्रोश था कि देश के न जाने कितने ही राष्ट्रवादियों को एक कर दिया। फेसबुक पर भी अपवाद हैं किन्तु अपवाद कहाँ नहीं होते? किन्तु ब्लॉगिंग में तो केवल मंच बना कर उसके संचालक, सहसंचालक आदि पद धारण कर बैठने के अलावा कोई काम ही नहीं रह गया है। ऐसे में ब्लॉगिंग मुल्ला तुष्टिकरण का एक स्थान बनकर रह गयी है।

ऐसे में मैंने केवल और केवल "एक राष्ट्रवादी" को ही निरंतर ब्लॉगिंग पर भारत व हिंदुत्व के लिए लड़ते देखा। मुझे लगा कि यदि वह भी ब्लॉगिंग छोड़ दे तो यह क्षेत्र भी कितना भ्रष्ट हो जाएगा।
और जो मैंने किया, क्या वह अपने कर्तव्यों से पलायन नहीं था? ऐसे में जाने-अनजाने उसी साहसी स्त्री दिव्या श्रीवास्तव ने मुझे पलायन करने से रोका। उन्होंने मुझसे कभी कहा नहीं किन्तु उन्हें देख मुझे यह एहसास हो ही गया। अब मैं फिर से ब्लॉगिंग पर सक्रीय हो रहा हूँ। किसी भी क्षेत्र में हम अपने देश को पीछे नहीं रहने देंगे। ऐसा कोई स्थान नहीं छोड़ेंगे जहाँ राष्ट्रवाद व राष्ट्रवादियों का अपमान हो। मुझे बिना कुछ कहे मेरे कर्तव्यों का बोध करवाने के लिए मैं दिव्या दीदी का आभार व्यक्त करता हूँ और उनसे आगे भी मार्गदर्शन की अपेक्षा रखता हूँ।

धीरे-धीरे ब्लॉगिंग पर पुन: राष्ट्रवादियों को लौटता देख हर्ष भी हो रहा है। अब ब्लॉगिंग के मायने बदलने की आवश्यकता है। इसे थोथी सोश्यल नेटवर्किंग व गुटबाजी का स्थान न बनाएं। इस धरा का ऋण है हम सब पर, जिसे हमे चुकाना ही होगा। अपने क्षुद्र स्वार्थों से बाहर आकर राष्ट्रहित के स्तर पर सोचना होगा।


नोट : चापलूसी और सम्मान में अंतर करना सीखना ज़रूरी है।

Sunday, June 10, 2012


 आमिर खान ने जिहाद के लिए सत्यमेव जयते के रूप में कितना नैतिक रास्ता चुना है, यह जानकर इन जिहादियों की योजना कुशलता की तारीफ़ करनी पड़ेगी। देखिये क्या कर रहा है आमिर खान और उसका सत्यमेव जयते?
एक अभिनेता के बाद समाज सेवक के रूप में उभरने को आतुर आमिर खान क्या सच में समाज सेवा कर रहा है? अभी तक कुछ ऐसा लग तो रहा था किन्तु उसके शो सत्यमेव जयते ने उसकी असली पोल खोल दी। सत्यमेव जयते में भी आमिर खान ने केवल उन मुद्दों को उठाया जो कि बेहद आम हैं। कन्या भ्रूण हत्या, बाल यौन शोषण, दहेज़ आदि। अब प्रश्न यह भी उठने लगे कि क्या आमिर खान इस्लामी आतंकवाद के विषय पर भी एक शो बनाएंगे? इस्लाम में महिला यौन शोषण, लव जिहाद आदि विषयों पर कोई मुहीम छेड़ेंगे?
उत्तर यही है कि बिलकुल नहीं छेड़ेंगे, बल्कि इसे और आगे बढ़ाएंगे।
सत्यमेव जयते की आधिकारिक वेबसाईट http://www.satyamevjayate.in/ पर आमिर खान एक NGO के लिए दान मांगता रहता है। इस NGO का नाम है Humanity Trust ...
अब Humanity Trust ऐसा करता क्या है जो आमिर खान इसके लिए इतना मरा जा रहा है कि हर रविवार सुबह-सुबह भीख मांगता है। देखिये http://www.satyamevjayate.in/issue04/donate/

Humanity Trust की आधिकारिक वेबसाईट पर नज़र दौडाएं तो आमिर खान के नेक(?) विचार सामने आ गए।
http://humanitytrust.com/
इस ट्रस्ट की Executive Committee में तीन सदस्य हैं जिनके नाम है-
१.जगाबर अली
२.आर.अकीम अली
३.फज़लुथीन

ट्रस्ट के Board of Advisors इस प्रकार हैं-
१.एम्.एल. राजा मोहम्मद
२.एम्.एस.नासिक
३.ए.अहमद इजराथ
४.ए.अब्दुल आसीत

इस ट्रस्ट के मुख्य उद्देश्यों को इस वेबसाईट पर देखा जा सकता है, जिनमे से ये प्रमुख हैं-
1.·Masjid Construction assistance. (Bore/construction helps)
2. Placement assistance for Islamic youngsters (notifications about jobs across various geographies)
3. Etheemkhana (Feeding/helping/Sheltering the Orphan)

ढंग से विचार करें तो एक बहुत ही घिनौना चेहरा सामने आता है। टीवी पर सत्यमेव जयते नामक शो देखने वालों से अनुरोध है कि वे भावुकता में बहकर इस ट्रस्ट को कोई दान न दे बैठें। आपके द्वारा दिया गया दान हिंदुत्व और भारत के लिए बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकता है। अनजाने में भी ऐसा जोखिम न उठाएं। बल्कि आमिर खान के हिंदुत्व विरोधी इस अभियान का खुला विरोध कर इस जानकारी को प्रसारित करें। हम भारतीयों की सबसे बड़ी कमी ही यह है कि बिना सोचे समझे भावुकता में बह जाते हैं और कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो बहुत घातक होता है। वो कहते हैं न- "सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी"
सब जानकारी सामने ही है किन्तु इसे खोलकर देखने की जहमत उठाना बहुत ज़रूरी है।

Friday, May 25, 2012

ब्लॉगिंग को समझ क्या रखा है???


कल तक सड़क किनारे, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर घटिया व अश्लील साहित्य बिकता था। किन्तु अब वह सब इन्टरनेट पर मुहैया है। वैसे इंटरनेट पर भी घटियापन पहले से मौजूद था किन्तु अब तो ब्लॉगर जैसा सम्मानीय मंच भी दूषित हो चूका है। लगता है वही सड़क छाप लेखक टोली बनाकर यहाँ जम कर इसे संक्रमित कर रहे हैं।
देश दुनिया में क्या हो रहा है इससे उन्हें कोई आपत्ति नहीं, किन्तु एक स्त्री की निडरता व बेबाकी से इनके हलक से निवाले नहीं उतर रहे।

भ्रष्टाचार चरम पर है, महंगाई थमने का नाम नहीं ले रही,
सरकारी गोदामों में अनाज पड़ा-पड़ा सड़ जाता है और देश की 60 करोड़ जनता भूखी सोती है,
पैट्रोल के दाम 80 रुपये प्रति लीटर तक पहुँच गए जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम नीचे गिरे हैं,
डॉलर का भाव आसमान पर पहुँच रहा है,
रूपया नीचे गिरता-गिरता अब तो सरीसृप की श्रेणी में आ गया है,
सरकारी मंत्री अपना काम-धाम छोड़ अश्लील MMS बना रहे हैं, देख रहे हैं या भोग रहे हैं,
जिहादी मुल्ले भारत को मुगलिस्तान बनाने पर तुले हुए हैं,
हिन्दुओं के मंदिरों में आरती व घंटनाद प्रतिबंधित हो रहे हैं,
काला धन विदेशों में पडा सड़ रहा है, कांग्रेसी व सेक्युलर गिद्ध भारत माँ को नोच रहे हैं,
कश्मीर के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्य भारत से टूटने की कगार पर हैं,
जातिवाद आरक्षण ने देश का बट्टा बैठा दिया है,
कन्या भ्रूण हत्या के चलते देश में स्त्री-पुरुष अनुपात गड़बड़ा गया है,
चारों ओर बूचडखाने खोल दिए गए हैं, निरीह पशुओं को बेदर्दी से हलाल किया जा रहा है,
हिन्दुओं के देश में उनकी गौ माता को खून के आँसू रुला कर काटा जा रहा है,
इंसानी पेट कब्रिस्तान बन गया है,
चोरी-हत्या-बलात्कार तो अब अखबारों की शान बन गए हैं,
रिश्वतखोरी, नौकरशाही, कालाबाजारी ने देश पर कलंक लगा दिया है,
उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है,
हिन्दू साधू-सन्यासियों का अपमान किया जा रहा है,
मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते हिन्दुओं का हक़ छीनकर मुल्लों में बांटा जा रहा है,
देश की सरहदों पर विदेशी खतरा मंडरा रहा है,
और भी न जाने क्या-क्या हो रहा है? गिनाने बैठें तो पूरा ब्लॉग जगत छोटा पड़ जाएगा। किन्तु इन घटिया सड़क छाप लेखकों को इन सब समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। इनकी पोस्टों में या तो चाँद-सितारे घूमेंगे या बारिश में भीगती महिला की साड़ी, या तो अश्लील चित्रावली या महकते फूलों की बाडी। इन सब से यदि मन ऊब जाए तो लोमड़ी व चमचौड़ कुत्ते की कहानी।
आज एक निहायत की "बेस्वादी" ब्लॉग देखा। लेखक कभी उभार की सनक और बिकने की ललक में तोता और कौआ की कहानी सुनाते हैं तो पता नहीं कभी किस-किस की याद में जुगनू की तरह जलते हैं। डरपोक तो इतने हैं कि ये, इनके मित्रगण, इनके गुरुजन व इनके अन्य बीरादरी वाले भी एक स्त्री का नाम सुनते ही थर-थर कांपते हैं व अपना डर मिटाने के लिए पूरी टोली उन महिला के खिलाफ उतर आती है। अकेले में तो दम नहीं है।
अब ऐसे डरपोकों को गीदड़ों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए किन्तु इनका घिनौनापन देखकर सूअर की उपाधि भी इन्हें सूट करती है। तो इन गीदड़ों व सूअरों की वर्णसंकरित प्रजाति को देश व समाज की उक्त समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। इनकी कलम तो चलती है उस महिला के खिलाफ जो खुद देश व समाज की इन समस्याओं पर निरंतर अपनी कलम चलाती रहती हैं। इनकी बेबाकी व निडरता दरअसल रूढ़िवादी पुरुषों(?) से हजम नहीं हो रही। स्त्री को पैरों की जूती समझने वालों के मूंह पर जब इन महिला ने अपनी जूती मारी तो बिलबिला उठे। आखिर यह कैसी स्त्री है जो हमारे हाथ नहीं आ रही?


ब्लॉगिंग के नाम पर अपनी पोस्ट पर अश्लील चित्र लगाते हैं। शर्म तो तब आती है जब महिलाएं भी उन पोस्टों पर सार्थक व सटीक नामक टिप्पणियाँ टिपियाती  हैं।
नायकों व शहीदों के नाम पर बेवकूफ बनाने से भी बाज़ नहीं आते।
कुछ जिहादी मुल्ले तो इतने खौफ में जी रहे हैं मानों इनके सारे मिशन पर यह महिला पानी फेर रही हैं।
स्त्रियों को भी इन्ही से आपत्ति है।
एक समय था जब एक कहावत चलती थी कि इंसान ठोकर खाकर संभलता है। वर्तमान में तो दुसरे को ठोकर खाते देख संभल जाना चाहिए। किन्तु यहाँ तो ठोकर खाकर भी ठोकरों में मजा आ रहा है।

ब्लॉगिंग के नाम पर हर तरफ घटियापन करने वाले इन ब्लॉगर्स ने ब्लॉग जगत को ऐसा संक्रमित कर रखा है कि अब सार्थक लेखन करने वालों ने ब्लॉग से पलायन कर फेसबुक पर लिखना शुरू कर दिया है। जहां केवल राष्ट्रवाद का नारा लगाया जा रहा है। लोगों ने शोश्यल नेटवर्किंग को अपना हथियार बना भ्रष्ट सत्ताओं को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले लिया है। किन्तु अब जब कभी ब्लॉग जगत पर निगाह डालता हूँ तो कुछ ब्लॉग्स को छोड़कर बाकी सभी जगह ऐसा लगता है कि दुनिया कहाँ पहुँच गयी और ये बेचारे अभी तक कहाँ फंसे हुए हैं?

Hats off to Dr. Divya Srivastava (Zeal), जिन्होंने अपनी लेखनी से लोगों को इतना मजबूर कर दिया कि वे स्वयं अपनी औकात बताने पर मजबूर हो गए। राष्ट्रवाद के बुलंद नारों से इन्होने राष्ट्रद्रोही प्रवचनकारी सेक्युलरों, भ्रष्ट कांग्रेसियों व जिहादी मुल्लों की नींदें उड़ा दीं। कहते हैं कि इंसान की पहचान उसके दोस्तों से नहीं बल्कि दुश्मनों से होती है। दिव्या दीदी, अब आपकी पहचान पर किसे शंका है? परन्तु दुःख होता है देखकर कि कल तक  जागरूकता के रूप में काम आने वाला ब्लॉगर अपनी ही दुर्दशा पर रो रहा है। आखिर इन लोगों ने ब्लॉगिंग को समझ क्या रखा है?