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Saturday, November 24, 2012

मुझे पलायन करने से रोक लिया



दो वर्ष से अधिक हो गये मुझे हिन्दी ब्लॉगिंग में आए। जब आया था तब बहुत जोश था।  सोचा था इंटरनेट का उपयोग कर भारत व हिंदुत्व की खूब सेवा करूँगा। कुछ लोग भी मिलेंगे जो हिंदुत्व के लिए वही भावनाएं रखते होंगे जैसी कि मेरे दिल में रहीं हैं। इसलिए इस क्षेत्र में जी-जान से जुट गया।

काफी अच्छा लगने लगा था। ब्लॉगिंग के साथ-साथ फेसबुक पर भी लिखता रहा। प्रारंभ में सभी जगह अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं। परन्तु धीरे-धीरे ब्लॉगिंग का एक ऐसा चेहरा सामने आने लगा जिसे या तो मैं देखना नहीं चाहता या जान बूझकर उसे अनदेखा कर रहा था।

यहाँ जिन लोगों को मैं राष्ट्रवादी समझ रहा था, सबसे ज्यादा निराश इन्ही ने किया। ब्लॉगिंग में आकर मुझे यह एहसास हुआ कि इतिहास में हिन्दुस्थान के वे लोग कैसे रहे होंगे जिनकी उपस्थिति में हिन्दू आपस में बँटे? भारत खंड-खंड हुआ और वे न केवल देखते रहे बल्कि इस प्रक्रिया के समर्थन में खुद भी जाने-अनजाने अपनी भूमिका निभाते रहे।

यहाँ भी मैंने इसी प्रकार भारतियों (हिन्दुओं) को आपस में बँटते देखा। वे न केवल बँटे बल्कि बाँटते भी रहे। मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते अपने ही भाई-बहनों पर प्रहार करते रहे। समझ नहीं आता किन लोगों को खुश करने का प्रयास किया जा रहा है? उन्हें जिन्होंने पिछले 1400 वर्षों से भारत को सिर्फ नोचा और आज भी नोच रहे हैं। खंड-खंड में भारत को तोडा और आज भी तोड़ रहे हैं। जहां जाते हैं, वहीँ अराजकता फैलाते हैं फिर चाहे वह स्थान हिन्दुस्थान की ज़मीन हो या इंटरनेट। अब तो इन्होने बांटने के और भी नये गुर सीख लिए हैं। खुद को बाहर से सेक्युलर दिखाते हैं और अन्दर से वही कट्टर गंदगी इनमे भरी होती है। वहीँ इनके झांसे में आने वाले हिन्दू खुद को ऊपर से राष्ट्रवादी दिखाते हैं किन्तु अन्दर से सेक्युलरिज्म नाम का कोढ़ मन में पाले बैठे हैं। और यह कोढ़ इतना घातक हो गया है कि यदि कोई साहसी स्त्री अपना राष्ट्रधर्म निभाती हुई अपने तेजस्वी रूप में अवतरित होती है तो अपने मुल्ला मित्रों को खुश करने के लिए उसे स्त्री मानने से भी इनकार कर देते हैं, केवल और केवल अपने अन्दर के सेक्युलरिज्म को जिन्दा रखने के लिए और उन मुल्लों को खुश रखने के लिए जो इनके द्वारा अपनी योजनाओं में सफल हो रहे हैं।

कल तक शहीदों के नाम पर अपने ब्लॉग को भरने वाले ब्लॉगर, एक देशद्रोही का साथ केवल इसलिए देते हैं क्योंकि वह साहसी महिला इन्हें रास नहीं आ रही। उससे इतनी खुन्नस कि कश्मीर को तोड़ने की बात कहने वाले की चापलूसी तक करने लगे क्योंकि वह उस साहसी महिला से बदतमीजी कर चुका था। मतलब इन्हें एक देशद्रोही मुल्ला चलेगा किन्तु एक राष्ट्रवादी साहसी हिन्दू महिला नहीं।

दुःख तब और भी अधिक हुआ जब माहिला सशक्तिकरण की बातें करने वाली महिलाओं ने भी अपनी टीम न टूटे इस डर से कभी भी महिला सशक्तिकरण कर के नहीं दिखाया सिर्फ लिखा।

इतना समझ आ गया कि ब्लॉगिंग में केवल गुटबाजियां होती हैं। यहाँ केवल टाइम पास के लिए व अपने नाम शोहरत के लिए ब्लॉगिंग की जाती है। बल्कि इसे ब्लॉगिंग न कहकर सोश्यल नेटवर्किंग कहा जाना चाहिए। दुनिया भर के एग्रीगेटर बना दिए, जिसमे किसी को भी भर लिया। अब जब पाले बन ही चुके हैं तो अपने गुट वाले को नाराज़ कैसे करें?

ऐसा नहीं है कि ब्लॉगिंग में कोई ढंग का व्यक्ति था ही नहीं। यहाँ पर मैंने अनेकों राष्ट्रवादियों को भारत व हिंदुत्व के सम्मान में लड़ते देखा। किन्तु धीरे-धीरे यहाँ की तानाशाही व अकर्मण्यता से परेशान हो कर ब्लॉगिंग छोड़ दी। किसी के पास समय का अभाव था तो कोई इस माहौल से पसेशान था। मैं भी इसी कारण से ब्लॉगिंग से दूर था। केवल टिप्पणी करने के लिए लॉग इन करता था। कुल मिलाकर ब्लॉगिंग से राष्ट्रवाद का स्वर गायब होने लगा। ऐसे में इन राष्ट्रवादियों को सबसे अच्छा मंच फेसबुक के रूप में मिला। जहां व्यक्ति में देश व हिन्दुओं की दयनीय दशा के लिए लड़ने का ज़ज्बा देखा। उनके अन्दर वह आक्रोश था कि देश के न जाने कितने ही राष्ट्रवादियों को एक कर दिया। फेसबुक पर भी अपवाद हैं किन्तु अपवाद कहाँ नहीं होते? किन्तु ब्लॉगिंग में तो केवल मंच बना कर उसके संचालक, सहसंचालक आदि पद धारण कर बैठने के अलावा कोई काम ही नहीं रह गया है। ऐसे में ब्लॉगिंग मुल्ला तुष्टिकरण का एक स्थान बनकर रह गयी है।

ऐसे में मैंने केवल और केवल "एक राष्ट्रवादी" को ही निरंतर ब्लॉगिंग पर भारत व हिंदुत्व के लिए लड़ते देखा। मुझे लगा कि यदि वह भी ब्लॉगिंग छोड़ दे तो यह क्षेत्र भी कितना भ्रष्ट हो जाएगा।
और जो मैंने किया, क्या वह अपने कर्तव्यों से पलायन नहीं था? ऐसे में जाने-अनजाने उसी साहसी स्त्री दिव्या श्रीवास्तव ने मुझे पलायन करने से रोका। उन्होंने मुझसे कभी कहा नहीं किन्तु उन्हें देख मुझे यह एहसास हो ही गया। अब मैं फिर से ब्लॉगिंग पर सक्रीय हो रहा हूँ। किसी भी क्षेत्र में हम अपने देश को पीछे नहीं रहने देंगे। ऐसा कोई स्थान नहीं छोड़ेंगे जहाँ राष्ट्रवाद व राष्ट्रवादियों का अपमान हो। मुझे बिना कुछ कहे मेरे कर्तव्यों का बोध करवाने के लिए मैं दिव्या दीदी का आभार व्यक्त करता हूँ और उनसे आगे भी मार्गदर्शन की अपेक्षा रखता हूँ।

धीरे-धीरे ब्लॉगिंग पर पुन: राष्ट्रवादियों को लौटता देख हर्ष भी हो रहा है। अब ब्लॉगिंग के मायने बदलने की आवश्यकता है। इसे थोथी सोश्यल नेटवर्किंग व गुटबाजी का स्थान न बनाएं। इस धरा का ऋण है हम सब पर, जिसे हमे चुकाना ही होगा। अपने क्षुद्र स्वार्थों से बाहर आकर राष्ट्रहित के स्तर पर सोचना होगा।


नोट : चापलूसी और सम्मान में अंतर करना सीखना ज़रूरी है।