कल तक सड़क किनारे, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर घटिया व अश्लील साहित्य बिकता था। किन्तु अब वह सब इन्टरनेट पर मुहैया है। वैसे इंटरनेट पर भी घटियापन पहले से मौजूद था किन्तु अब तो ब्लॉगर जैसा सम्मानीय मंच भी दूषित हो चूका है। लगता है वही सड़क छाप लेखक टोली बनाकर यहाँ जम कर इसे संक्रमित कर रहे हैं।
देश दुनिया में क्या हो रहा है इससे उन्हें कोई आपत्ति नहीं, किन्तु एक स्त्री की निडरता व बेबाकी से इनके हलक से निवाले नहीं उतर रहे।
भ्रष्टाचार चरम पर है, महंगाई थमने का नाम नहीं ले रही,
सरकारी गोदामों में अनाज पड़ा-पड़ा सड़ जाता है और देश की 60 करोड़ जनता भूखी सोती है,
पैट्रोल के दाम 80 रुपये प्रति लीटर तक पहुँच गए जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम नीचे गिरे हैं,
डॉलर का भाव आसमान पर पहुँच रहा है,
रूपया नीचे गिरता-गिरता अब तो सरीसृप की श्रेणी में आ गया है,
सरकारी मंत्री अपना काम-धाम छोड़ अश्लील MMS बना रहे हैं, देख रहे हैं या भोग रहे हैं,
जिहादी मुल्ले भारत को मुगलिस्तान बनाने पर तुले हुए हैं,
हिन्दुओं के मंदिरों में आरती व घंटनाद प्रतिबंधित हो रहे हैं,
काला धन विदेशों में पडा सड़ रहा है, कांग्रेसी व सेक्युलर गिद्ध भारत माँ को नोच रहे हैं,
कश्मीर के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्य भारत से टूटने की कगार पर हैं,
जातिवाद आरक्षण ने देश का बट्टा बैठा दिया है,
कन्या भ्रूण हत्या के चलते देश में स्त्री-पुरुष अनुपात गड़बड़ा गया है,
चारों ओर बूचडखाने खोल दिए गए हैं, निरीह पशुओं को बेदर्दी से हलाल किया जा रहा है,
हिन्दुओं के देश में उनकी गौ माता को खून के आँसू रुला कर काटा जा रहा है,
इंसानी पेट कब्रिस्तान बन गया है,
चोरी-हत्या-बलात्कार तो अब अखबारों की शान बन गए हैं,
रिश्वतखोरी, नौकरशाही, कालाबाजारी ने देश पर कलंक लगा दिया है,
उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है,
हिन्दू साधू-सन्यासियों का अपमान किया जा रहा है,
मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते हिन्दुओं का हक़ छीनकर मुल्लों में बांटा जा रहा है,
देश की सरहदों पर विदेशी खतरा मंडरा रहा है,
और भी न जाने क्या-क्या हो रहा है? गिनाने बैठें तो पूरा ब्लॉग जगत छोटा पड़ जाएगा। किन्तु इन घटिया सड़क छाप लेखकों को इन सब समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। इनकी पोस्टों में या तो चाँद-सितारे घूमेंगे या बारिश में भीगती महिला की साड़ी, या तो अश्लील चित्रावली या महकते फूलों की बाडी। इन सब से यदि मन ऊब जाए तो लोमड़ी व चमचौड़ कुत्ते की कहानी।
आज एक निहायत की "बेस्वादी" ब्लॉग देखा। लेखक कभी उभार की सनक और बिकने की ललक में तोता और कौआ की कहानी सुनाते हैं तो पता नहीं कभी किस-किस की याद में जुगनू की तरह जलते हैं। डरपोक तो इतने हैं कि ये, इनके मित्रगण, इनके गुरुजन व इनके अन्य बीरादरी वाले भी एक स्त्री का नाम सुनते ही थर-थर कांपते हैं व अपना डर मिटाने के लिए पूरी टोली उन महिला के खिलाफ उतर आती है। अकेले में तो दम नहीं है।
अब ऐसे डरपोकों को गीदड़ों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए किन्तु इनका घिनौनापन देखकर सूअर की उपाधि भी इन्हें सूट करती है। तो इन गीदड़ों व सूअरों की वर्णसंकरित प्रजाति को देश व समाज की उक्त समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। इनकी कलम तो चलती है उस महिला के खिलाफ जो खुद देश व समाज की इन समस्याओं पर निरंतर अपनी कलम चलाती रहती हैं। इनकी बेबाकी व निडरता दरअसल रूढ़िवादी पुरुषों(?) से हजम नहीं हो रही। स्त्री को पैरों की जूती समझने वालों के मूंह पर जब इन महिला ने अपनी जूती मारी तो बिलबिला उठे। आखिर यह कैसी स्त्री है जो हमारे हाथ नहीं आ रही?
ब्लॉगिंग के नाम पर अपनी पोस्ट पर अश्लील चित्र लगाते हैं। शर्म तो तब आती है जब महिलाएं भी उन पोस्टों पर सार्थक व सटीक नामक टिप्पणियाँ टिपियाती हैं।
नायकों व शहीदों के नाम पर बेवकूफ बनाने से भी बाज़ नहीं आते।
कुछ जिहादी मुल्ले तो इतने खौफ में जी रहे हैं मानों इनके सारे मिशन पर यह महिला पानी फेर रही हैं।
स्त्रियों को भी इन्ही से आपत्ति है।
एक समय था जब एक कहावत चलती थी कि इंसान ठोकर खाकर संभलता है। वर्तमान में तो दुसरे को ठोकर खाते देख संभल जाना चाहिए। किन्तु यहाँ तो ठोकर खाकर भी ठोकरों में मजा आ रहा है।
ब्लॉगिंग के नाम पर हर तरफ घटियापन करने वाले इन ब्लॉगर्स ने ब्लॉग जगत को ऐसा संक्रमित कर रखा है कि अब सार्थक लेखन करने वालों ने ब्लॉग से पलायन कर फेसबुक पर लिखना शुरू कर दिया है। जहां केवल राष्ट्रवाद का नारा लगाया जा रहा है। लोगों ने शोश्यल नेटवर्किंग को अपना हथियार बना भ्रष्ट सत्ताओं को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले लिया है। किन्तु अब जब कभी ब्लॉग जगत पर निगाह डालता हूँ तो कुछ ब्लॉग्स को छोड़कर बाकी सभी जगह ऐसा लगता है कि दुनिया कहाँ पहुँच गयी और ये बेचारे अभी तक कहाँ फंसे हुए हैं?
Hats off to Dr. Divya Srivastava (Zeal), जिन्होंने अपनी लेखनी से लोगों को इतना मजबूर कर दिया कि वे स्वयं अपनी औकात बताने पर मजबूर हो गए। राष्ट्रवाद के बुलंद नारों से इन्होने राष्ट्रद्रोही प्रवचनकारी सेक्युलरों, भ्रष्ट कांग्रेसियों व जिहादी मुल्लों की नींदें उड़ा दीं। कहते हैं कि इंसान की पहचान उसके दोस्तों से नहीं बल्कि दुश्मनों से होती है। दिव्या दीदी, अब आपकी पहचान पर किसे शंका है? परन्तु दुःख होता है देखकर कि कल तक जागरूकता के रूप में काम आने वाला ब्लॉगर अपनी ही दुर्दशा पर रो रहा है। आखिर इन लोगों ने ब्लॉगिंग को समझ क्या रखा है?