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Thursday, April 19, 2012

देश के शत्रुओं पर छा रहा है दिव्या का खौफ...

हिंदी ब्लॉग जगत में अब तक जिस काम से दूर रहा, आज वही काम करने में बड़ा मज़ा आ रहा है। कोरे राष्ट्रवाद पर पोस्ट लिख देने भर से क्या होता है, जब राष्ट्रवादियों पर आक्रमण हो तो कौन होगा उनके साथ? सभी तो पोस्ट लिखने में बिजी हैं।  
कल ही डॉ. दिव्या श्रीवास्तव के ब्लॉग पर एक पोस्ट (कुमार राधारमण नामक ब्लॉगर पर 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का भूत) देखी। दरअसल उनकी एक पिछली पोस्ट (गौ-हत्या) से बौखलाकर हिंदी ब्लॉग जगत के सबसे निकृष्ट व इस्लाम के पैरोकार कहे जाने वाले ब्लॉगर अनवर जमाल ने उनके खिलाफ अपनी "इस्लामी टट्टी" पेल दी। गौ-हत्या नामक पोस्ट में केवल एक पंक्ति लिखी गयी जिसमे दिव्या जी का कहना था कि "गौ-हत्या करने वालों को गला रेंत कर मार डालना चाहिए। ताकि अगले जन्म में ये अल्लाह के नेक बन्दे बन सकें।"
इस पर भड़क कर जमाल ने अपनी आदतानुसार अपनी ब्लॉगरीय गुंडई झाड़ते हुए उन्हें थाईलैंड में गौ-हत्या के विरुद्ध आन्दोलन चलाने की सलाह दे डाली। दिव्या के नाम पर उल्टियां पेलती पोस्टें तो ब्लॉग जगत में बहुत देखी हैं। अब टीआरपी के लिए स्साला कुछ तो करेगा। भई दिव्या श्रीवास्तव के नाम का खौफ ही इतना है।
जमाल की पोस्ट पर इस्लामी भौंक गूँज रही थी। दिव्या जी को दुनिया भर की नसीहतें दी जा रही थीं। एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा था कि जैसे शान्ति के सबसे बड़े पुजारी यही लोग हैं। फिर इतिहास में पिछले 1300 वर्षों में क्या हुआ उस पर इनके द्वारा आँखें मूँद ली जाती हैं।
इसी भौंक के बीच में कुमार राधारमण नामक नपुंसक प्रजाति का भी अवतरण हुआ। इन्हें दिव्या के नाम से इतना खौफ व ईर्ष्या है कि इन्हें कटती हुई गायें भी नैतिकता की श्रेणी में दिखाई दे रही हैं। जनाब का कहना है कि "दिव्याजी ने हिन्दी ब्लोगिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। किन्तु कुछ समय की उनकी दो-चार पोस्टें निश्चय ही निंदनीय हैं।"
मतलब गौ-हत्या के विरुद्ध आवाज़ उठाना इन महाशय को इसलिए निंदनीय लग रहा है क्योंकि इनके लिए दिव्या जी निंदनीय है। भारत जाए भाड़ में, गौ माता जाए जाए भाड़ में, हिन्दू धर्म जाए भाड़ में, पहले इनका अहम् सिद्ध होना जरुरी है।
अगली ही पंक्ति में महाशय जी भौंक रहे हैं कि "इन्हें देखकर यह यकीन करना मुश्किल होता है कि हम उन्ही दिव्या जी को पढ़ रहे हैं जिनकी पोस्टें कभी गहन बौद्धिक विचार विमर्श का केंद्र हुआ करती थीं।"
महाशय मैंने तो आपको कभी किसी "गहन बौद्धिक विचार विमर्श" में शामिल होते नहीं देखा। क्या आपके पास बुद्धि का अकाल है? तुम्हारी खुद की दो कौड़ी की औकात और तुम चले हो दूसरों को सर्टिफिकेट बांटने???

जमाल की इस घटिया पोस्ट पर हमने भी अपनी एक टिप्पणी चिपका डाली जिसे इसने गुंडागर्दी से मॉडरेट कर दिया। मेरी टिप्पणी-
निकाल दी ना अपनी इस्लामी टट्टी। आ गए ना उसी ढर्रे पर। दिव्या के नाम पर टी आर पी कमाना तो तुम्हारी पुरानी आदत है। इतना खौफ उनके नाम का कि कटती हुई गाय भी जायज़ लग रही है? उन्होंने तो अपनी पोस्ट में कहीं भी किसी देश का नाम नहीं लिखा, फिर तुमने कैसे उन्हें थाईलैंड में आन्दोलन चलाने की नसीहत दे दी? उन्होंने साफ़-साफ़ लिखा है कि गौहत्या करने वालों का गला रेंत कर मार डालना चाहिए। फिर चाहे वह हत्यारा भारत का हो, अफगानिस्तान का अथवा थाईलैंड का। तुम अपनी बवासीर पेलना बंद करो।
यहाँ पर मुसलमानों की हत्या की बात नहीं हुई। किन्तु जो मुसलमान खुद को गौरी-गजनी की औलाद मानता है वह इस देश में जीने का अधिकारी नहीं है। तुम्हारा क्या सोचना है? तुम्हारे पूर्वज कौन थे? भारतीय मुसलमानों की डी एन ए रिपोर्ट तो यही कहती है कि इनके पूर्वज हिन्दू थे। इस्लामी आतताइयों के अत्याचारों से त्रस्त होकर ही तुम्हारे बाप-दादाओं ने इस्लाम अपनाया था। शान्ति का पाठ तुम ना पढाओ तो ही बेहतर है। सारे विश्व में अशांति फैलाने वाली ज़मात को शान्ति शब्द शोभा नहीं देता। बारहवीं शताब्दी तक भारत की कुल आबादी साठ करोड़ थी किन्तु सत्रहवीं शताब्दी थ आते-आते भारत की आबादी मात्र बीस करोड़ रह गयी, उसमे भी कई तो मुसलमान थे। मतलब पांच सौ वर्षों में जिस जमात ने करीब पचास करोड़ हिन्दुओं के रक्त से अपने दीन को स्थापित करने की कुचेष्टा की वह आज शान्ति का पाठ पढ़ा रही है।
राधारमण जैसे लोग तो टट्टुओं की श्रेणी में आते हैं। जो कि मिली-जुली प्रजातियों की पैदाइश होते हैं। इन्हें अपने सर और पैर का ही पता नहीं। बस दिव्या जी के नाम से आतंकित होलर मन में ईर्ष्या व द्वेष पाल बैठे हैं। इसका अहम् इतना आड़े आता है कि इन्हें अपने अहम् के आगे गौवध में नैतिक लग रहा है। राधारमण, तुम जैसे नपुंसक पुरुषों से कहीं ज्यादा मर्दानगी दिव्या श्रीवास्तव नामक महिला में है। तुम्हारे अलावा तो यहाँ केवल इस्लामी भौंक ही अधिक सुनाई पड़ रही है। अब सोच लो तुम किस प्रजाति में शामिल हो? 



मतलब जब-तक मिले सुर मेरा तुम्हारा तब सुर बने केवल तुम्हारा। जैसे ही कोई अपना सुर उठा ले तो पूरा सुर ही बिगड़ गया तुम्हारा। केवल भौंकने वालों को वहाँ स्थान दिया जाता है क्या? कुंवर जी  नामक ब्लॉगर ने भी जब तुम्हारा सुर बिगाड़ा तो उनका भी गला घोंट दिया? बदले में एक मेल मेरे इनबॉक्स में डाल दी जिसमे भी मुझे ही तमीज का पाठ पढाया? मतलब तुम चाहे हमारी माँ को काटो, इसका विरोध करने पर हमारी बहन का अपमान करो, फिर भी तुम पाक साफ़ और हम बदतमीज़?
हथियारों की हिंसा तुम करो और हमारी जुबानी हिंसा भी नहीं झिलती तुमसे?
इनबॉक्स में क्या रो रहा है, दम है तो मेरी टिप्पणी पब्लिश कर। ताकि सबके सामने बात हो। इनबॉक्स में गुप-चुप क्या भौंक रहा है? चोर की दाढ़ी में तिनका...
ऐयाज अहमद ने भी इस विषय में खट्टी डकारों के साथ अपनी बवासीर छोड़ी है। वहाँ से भी मेरी टिप्पणी को हटा दिया गया। भई इस्लाम खतरे में जो है इनका। एक अकेली दिव्या भारी पड़ गयी इन्हें।

कुंवर जी ने भी इस गुंडागर्दी पर अपनी राय व्यक्त की है, यहाँ देखें। उनका विशेष आभार।

पुरुषों की खाल में छिपे किन्नरों को यह जान लेना बहुत ज़रूरी है कि उनसे कही अधिक मर्दानगी दिव्या श्रीवास्तव में भरी पडी है। स्त्री होकर भी वह दम जो किसी के पचाए नहीं पचता। उन्होंने तो अपने ब्लॉग पर टिप्पणी विकल्प भी बंद कर दिया। उन्हें किसी के समर्थन व विरोध की भी कोई चिंता नहीं। बस निस्वार्थ रूप से अपने विचार लिखती जा रही हैं। जिसे लाभान्वित होना है, होता रहे, जिसे कुढना है वो मरे।
है किसी में दम लड़ने का???

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नोट- कृपया कोई मुझे यहाँ तमीज का पाठ न पढाए, अन्यथा मैं इससे भी अधिक बदतमीज़ हूँ। तमीज में फंसे रह जाएंगे और शत्रु हमारी मातृभूमि , संस्कृति, देश, हमारी माँ-बहन सबको बर्बाद कर देंगे।