सभी दिशाओं से भारत को घेरने के मंसूबे पालने वाला चीन अपनी गतिविधियों में सफल होता दिखाई दे रहा है| उत्तर पूर्वी व पूर्वी क्षेत्र पहले ही आतंक में है| बंगाल की खाड़ी में भी चीन अपना कब्ज़ा जमा चूका है| कश्मीर मामले में पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाने वाला चीन हर क्षेत्र में पाकिस्तान की मदद के लिए तत्पर दिखाई दे रहा है| चीन पहले ही पाकिस्तान को मिसाइल टेक्नोलॉजी, नाभिकीय प्रौद्योगिकी, लड़ाकू विमान व अन्य उन्नत अस्त्र बाँट चूका है| भारतीय सीमाओं पर चीन का दबाव बढ़ता जा रहा है| अपनी सीमा चौकियों को भी चीन धीरे धीरे भारतीय सीमा के समीप ला रहा है| साथ ही चीनी घुसपैठ के किस्से भी आसानी से सुने जा सकते हैं| कुछ समय पहले तो हमारी सीमाओं में घुसकर चीनी सैनिकों ने पहाड़ों व चट्टानों पर चीन लिख डाला था|
खैर हमारे बेचारे प्रधानमंत्री शायद अभी तक इन सब बातों से अनजान हैं| तभी को अस्थाई शान्ति को बनाए रखने के भ्रम में बड़ी संख्या में सड़क परियोजनाएं, बाँध निर्माण परियोजनाएं, पॉवर प्लांट स्थापना, टेलीकॉम एक्सचेंज जैसे अधिकाँश काम केवल चीनी कम्पनियों को दिए आ रहे हैं|
भारत के भीतर सभी संवेदनशील स्थानों पर अपनी पकड़ बनाए रहने के लिए चीनी कम्पनियां औने-पौने दामों पर सभी प्रकार की परियोजनाए हथिया रही हैं| पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार ने तो बहुत सी ऐसी परियोजनाओं की ओर इशारा भी किया था जो किसी न किसी संवेदनशील क्षेत्र से जुडी हैं और चीनी कम्पनियों ने अति अल्प लागत में टेंडर भरे| वहीँ दूसरी ओर बहुत सी ऐसी परियोजनाएं जिन्हें पूरा करने में चीन दक्ष है व साथ ही इस काम में चीनी कम्पनियां भारी मुनाफा भी कमा सकती थीं, किन्तु वहां चीन ने कोई टेंडर नहीं भरा जहाँ हमारा कोई संवेदनशील प्रतिष्ठान नहीं है|
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में वेतरना बाँध का टेंडर बहुत सस्ती दर पर इसलिए भरा क्योंकि वहाँ समीप ही हमारा मिग लड़ाकू विमान असेम्बली केंद्र है, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर है व देवलाली का तोपखाना (अर्टिलीयरी सेंटर) भी है| इसी प्रकार कावेरी-गोदावरी बेसिन में सीज्मिक सर्वे का टेंडर उसने इतनी सस्ती दर पर इसलिए भरा ताकि वह वहाँ के हमारे नौसैनिक प्रतिष्ठानों पर निगरानी रख सके|
तकनीकी रूप से तो चीन ने पूरे भारत में अपनी पकड़ बना ही ली है| दैनिक जीवन में काम आने वाली चीज़ों पर भी अब चीनी कम्पनियों ने अपना अधिपत्य जमा लिया है| चीन को पता चलना चाहिए कि भारत में पतंग उड़ाई जाती है तो बस चीनी पतंग व मांजा बाज़ार में उपलब्ध है| यहाँ होली-दीवाली मनाई जाती है तो अगले त्यौहार पर चीनी पटाखे, मोमबत्तियां, बिजली के बल्ब व होली के रंग व पिचकारी बाज़ार में आसानी से सस्ते दामों पर मिल जाएंगे| यहाँ तक कि एम् आर ऍफ़ जैसी कम्पनियों ने भी यह कहकर घुटने टेक दिए कि चीनी कम्पनियां हमसे कहीं अधिक सस्ती दर पर टायर बना कर भारतीय बाज़ारों में बेच रही हैं, अत: हम भी अपनी फैक्ट्रियां अब भारत से निकाल कर चीन में स्थापित कर रहे हैं|
अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम दिनों में मनमोहन सिंह के अरुणाचल दौरे के समय चीन ने रात दो बजे चीन में भारतीय महिला राजदूत को जगाकर यह धमकी दी कि अपने प्रधानमन्त्री से कहो कि "वह तवांग जिले में न जाएं|"
तवांग एक बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र है| इसके एक तरफ भूटान की सीमा लगती है तो दूसरी ओर तिब्बत की| तवांग एक प्रतिष्ठित बौद्ध केंद्र है| तिब्बत पर अपने नियंत्रण को सुदृढ़ करने के लिए चीन इसे हथियाना चाहता है| वरना क्या वजह थी कि हमारी राजदूत को रात दो बजे उठाकर यह धमकी देने की कि हमारे देश का ही प्रधानमन्त्री हमारे देश के किसी जिले में न जाए| सबसे बड़ी बात तो यह कि मनमोहन ने भीगी बिल्ली की तरह डरकर तवांग जाने का अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया|
इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी भारत सरकार चीन कि ओर से निश्चिन्त हो आँख मूँद कर सो रही है| जब जागती है तो कभी बाबा रामदेव को चोर साबित करती है तो कभी अन्ना को भ्रष्टाचारी| अब तो उन्हें भगोड़ा भी कह डाला| यदि कोई सरकार की नींद में खलल डाले तो उसे आधी रात में पीट-पीट कर दिल्ली शहर से खदेड़ दिया जाता है|
जिस देश ने हमे खत्म करने के मंसूबे पाल रखे हैं, हमारी सरकार आँख मूँद कर अपनी सारी व्यापारिक सुविधाएं उसे ही देते चली जा रही है| रिलायंस का पावर प्लांट हो या बीएसएनएल अथवा एयरटेल का टेलीफोन एक्सचेंज, सब चीन के हाथ में है| भारत के 35 प्रतिशत से अधिक पावर प्लांट व टेलीफोन एक्सचेंज चीनी ही लगा रहे हैं| इस प्रकार तो चीन हमारे देश में किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति की फोन पर होने वाली बातें सुन सकता है| यहाँ तक कि उसे टेप भी कर सकता है| यह एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है| हमारे देश में टेलीकॉम के क्षेत्र में फैलता चीनी मकडजाल हमारे लिए एक गंभीर मुद्दा है| इसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं| इसका कारण यह है कि हमने जो सी-डॉट के स्वीचिंग सिस्टम या टेलीफोन एक्सचेंज बनाए थे, वे अब बेकार हो गये हैं| क्योंकि यह टेलीकॉम की प्रथम जनरेशन थी जो अब पुरानी हो चुकी है| इसके बाद न तो हमने द्वितीय जनरेशन (2G) को विकसित किया है और न ही तृतीय जनरेशन (3G) को| ये सारे प्रोजेक्ट हमने आँख बंद कर चीन को सौंप दिए| हम 2G व 3G का ABC भी नहीं जानते वहीँ चीन ने 4G शुरू कर दिया| आश्चर्य तब हुआ जब भारत में 3G की विफलता के बाद भी चीन 4G लौंच करना चाहता है| किन्तु शर्म की बात ये हैं कि भारत सरकार ने चीनी कम्पनियों को यह सुविधा दे दी|
प्रारम्भ में मुझे यह कोरी अफवाह ही लगी थी क्योंकि मैं भी टेलीकॉम में काम कर रहा इंजिनियर हूँ और मेरा कार्य क्षेत्र 3G ही हैं| मुझे नहीं लगता था कि इस समय भारत में 4G की कोई गुंजाइश है| कोई भी कम्पनी इस प्रोजेक्ट में अपने हाथ नहीं जलाना चाहेगी| किन्तु उस समय बहुत आश्चर्य हुआ जब कुछ दिनों पहले मेरे ही एक मित्र को गुडगाँव में रिलायंस 4G के प्रोजेक्ट पर नौकरी मिली, जिसे एक चीनी कंपनी ही चला रही है| जब मैंने उससे पूछा कि यह कैसे सम्भव है? अभी तक तो भारत में पूरी तरह से 3G का काम भी नहीं हुआ, ऐसे में 4G कैसे लौंच किया जा सकता है? इस पर आश्चर्य तो उसे भी था किन्तु सबकुछ सामने ही घट रहा था|
क्या कारण है की 3G में घाटा खाने के बाद भी चीनी कम्पनियां 4G के पीछे पडी हैं| इस काम में निश्चित रूप से उन्हें भारी नुकसान होने वाला है| इससे यह साफ़ है कि ज़रूर चीनी सरकार इस काम के लिए चीनी कम्पनियों को मदद कर रही है| क्या हमारी सरकारों को इतनी सी बात पल्ले नहीं पड़ रही? क्या उन्हें किसी भी चीनी षड्यंत्र की गंध आनी बंद हो गयी या सच में ही भारत को चीन के हाथों बेच डालने के सपने सरकार ने बुन लिए हैं?
चीन समय पर भारत में 3G तो विकसित कर नहीं पाया तो ऐसे में वह 4G में अपने हाथ क्यों जला रहा है? इसका सीधा सा उत्तर यही है कि इस प्रकार भारत की जासूसी उसके लिए बहुत सरल हो जाएगी| मेरा विश्वास मानिये टेलीकॉम के सहारे किसी भी देश की खुफिया जानकारी निकालना मुश्किल काम नहीं है| इस प्रकार वह 4G में अमरीका को भी टक्कर दे सकेगा|
मुझे समझ नहीं आता कि सारी दुनिया में अपना लोहा मनवा चुके भारतीय इंजीनियरों पर आखिर उनके देश की सरकार ही विश्वास क्यों नहीं करती? अब तक पावर प्लांट अथवा टेलीकॉम के क्षेत्र में हमने जो उपलब्धियां विकसित की हैं, उन्हें आगे नहीं बढ़ाया तो परिस्थितियाँ इतनी अप्रासंगिक हो जाएंगी कि हम इस क्षेत्र में सदा के लिए चीन पर आश्रित हो जाएंगे| यह हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है| परिस्थितियाँ चिंताजनक हैं व भयंकर भी हो सकती हैं|
अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम दिनों में मनमोहन सिंह के अरुणाचल दौरे के समय चीन ने रात दो बजे चीन में भारतीय महिला राजदूत को जगाकर यह धमकी दी कि अपने प्रधानमन्त्री से कहो कि "वह तवांग जिले में न जाएं|"
तवांग एक बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र है| इसके एक तरफ भूटान की सीमा लगती है तो दूसरी ओर तिब्बत की| तवांग एक प्रतिष्ठित बौद्ध केंद्र है| तिब्बत पर अपने नियंत्रण को सुदृढ़ करने के लिए चीन इसे हथियाना चाहता है| वरना क्या वजह थी कि हमारी राजदूत को रात दो बजे उठाकर यह धमकी देने की कि हमारे देश का ही प्रधानमन्त्री हमारे देश के किसी जिले में न जाए| सबसे बड़ी बात तो यह कि मनमोहन ने भीगी बिल्ली की तरह डरकर तवांग जाने का अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया|
इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी भारत सरकार चीन कि ओर से निश्चिन्त हो आँख मूँद कर सो रही है| जब जागती है तो कभी बाबा रामदेव को चोर साबित करती है तो कभी अन्ना को भ्रष्टाचारी| अब तो उन्हें भगोड़ा भी कह डाला| यदि कोई सरकार की नींद में खलल डाले तो उसे आधी रात में पीट-पीट कर दिल्ली शहर से खदेड़ दिया जाता है|
जिस देश ने हमे खत्म करने के मंसूबे पाल रखे हैं, हमारी सरकार आँख मूँद कर अपनी सारी व्यापारिक सुविधाएं उसे ही देते चली जा रही है| रिलायंस का पावर प्लांट हो या बीएसएनएल अथवा एयरटेल का टेलीफोन एक्सचेंज, सब चीन के हाथ में है| भारत के 35 प्रतिशत से अधिक पावर प्लांट व टेलीफोन एक्सचेंज चीनी ही लगा रहे हैं| इस प्रकार तो चीन हमारे देश में किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति की फोन पर होने वाली बातें सुन सकता है| यहाँ तक कि उसे टेप भी कर सकता है| यह एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है| हमारे देश में टेलीकॉम के क्षेत्र में फैलता चीनी मकडजाल हमारे लिए एक गंभीर मुद्दा है| इसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं| इसका कारण यह है कि हमने जो सी-डॉट के स्वीचिंग सिस्टम या टेलीफोन एक्सचेंज बनाए थे, वे अब बेकार हो गये हैं| क्योंकि यह टेलीकॉम की प्रथम जनरेशन थी जो अब पुरानी हो चुकी है| इसके बाद न तो हमने द्वितीय जनरेशन (2G) को विकसित किया है और न ही तृतीय जनरेशन (3G) को| ये सारे प्रोजेक्ट हमने आँख बंद कर चीन को सौंप दिए| हम 2G व 3G का ABC भी नहीं जानते वहीँ चीन ने 4G शुरू कर दिया| आश्चर्य तब हुआ जब भारत में 3G की विफलता के बाद भी चीन 4G लौंच करना चाहता है| किन्तु शर्म की बात ये हैं कि भारत सरकार ने चीनी कम्पनियों को यह सुविधा दे दी|
प्रारम्भ में मुझे यह कोरी अफवाह ही लगी थी क्योंकि मैं भी टेलीकॉम में काम कर रहा इंजिनियर हूँ और मेरा कार्य क्षेत्र 3G ही हैं| मुझे नहीं लगता था कि इस समय भारत में 4G की कोई गुंजाइश है| कोई भी कम्पनी इस प्रोजेक्ट में अपने हाथ नहीं जलाना चाहेगी| किन्तु उस समय बहुत आश्चर्य हुआ जब कुछ दिनों पहले मेरे ही एक मित्र को गुडगाँव में रिलायंस 4G के प्रोजेक्ट पर नौकरी मिली, जिसे एक चीनी कंपनी ही चला रही है| जब मैंने उससे पूछा कि यह कैसे सम्भव है? अभी तक तो भारत में पूरी तरह से 3G का काम भी नहीं हुआ, ऐसे में 4G कैसे लौंच किया जा सकता है? इस पर आश्चर्य तो उसे भी था किन्तु सबकुछ सामने ही घट रहा था|
क्या कारण है की 3G में घाटा खाने के बाद भी चीनी कम्पनियां 4G के पीछे पडी हैं| इस काम में निश्चित रूप से उन्हें भारी नुकसान होने वाला है| इससे यह साफ़ है कि ज़रूर चीनी सरकार इस काम के लिए चीनी कम्पनियों को मदद कर रही है| क्या हमारी सरकारों को इतनी सी बात पल्ले नहीं पड़ रही? क्या उन्हें किसी भी चीनी षड्यंत्र की गंध आनी बंद हो गयी या सच में ही भारत को चीन के हाथों बेच डालने के सपने सरकार ने बुन लिए हैं?
चीन समय पर भारत में 3G तो विकसित कर नहीं पाया तो ऐसे में वह 4G में अपने हाथ क्यों जला रहा है? इसका सीधा सा उत्तर यही है कि इस प्रकार भारत की जासूसी उसके लिए बहुत सरल हो जाएगी| मेरा विश्वास मानिये टेलीकॉम के सहारे किसी भी देश की खुफिया जानकारी निकालना मुश्किल काम नहीं है| इस प्रकार वह 4G में अमरीका को भी टक्कर दे सकेगा|
मुझे समझ नहीं आता कि सारी दुनिया में अपना लोहा मनवा चुके भारतीय इंजीनियरों पर आखिर उनके देश की सरकार ही विश्वास क्यों नहीं करती? अब तक पावर प्लांट अथवा टेलीकॉम के क्षेत्र में हमने जो उपलब्धियां विकसित की हैं, उन्हें आगे नहीं बढ़ाया तो परिस्थितियाँ इतनी अप्रासंगिक हो जाएंगी कि हम इस क्षेत्र में सदा के लिए चीन पर आश्रित हो जाएंगे| यह हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है| परिस्थितियाँ चिंताजनक हैं व भयंकर भी हो सकती हैं|