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Friday, September 9, 2011

आधी कौड़ी के बांग्लादेश के सामने झुक गए, दो कौड़ी के पाकिस्तान के आगे क्या करोगे मनमोहन?

मनमोहन सिंह (सिंह शब्द के उपयोग से कृपया "सिंह" अपमान का अनुभव न करें, प्रधान मंत्री का पूरा नाम लिखना मजबूरी है) की बांग्लादेश यात्रा हुई, मुझे तो खबर तक नही लगी| ऐसी कैसी गुप्त यात्रा थी? देश का प्रधान मंत्री कब कहाँ जाता है, क्या करता है, देशवासियों को खबर नही, लोकतंत्र(?) है न|
जाहिर है जब यात्रा की खबर नही तो वहां क्या हुआ, इसका पता चलना तो असम्भव है| मनमोहन सिंह की रीढ़ की हड्डी की लचक के बारे सुना तो बहुत था, किन्तु आज नयी जानकारी मिली है कि उनके पास रीढ़ की हड्डी है ही नही| बांग्लादेश (कोई साइज़ जानता है इस पिद्दी देश का?) के सामने साष्टांग दंडवत लोट कर आए हैं| इतना घटिया निर्णय लेने वाले मनमोहन सिंह देश के पहले प्रधान मंत्री हैं|

मित्रों आज सुबह ही खबर मिली कि मनमोहन सिंह हमारे ही देश के एक प्रदेश असम की 435 एकड़ भूमि बांग्लादेश को दान में दे आए हैं| इस काम में मनमोहन सिंह का साथ दिया असम के मुख्य मंत्री तरुण कुमार गोगोई ने|

असम इस समय विरोध की आग जल रहा है| प्रदेश के नागरिक अपनी भूमि बांग्लादेश को दिए जाने के विरोध में उग्र हो रहे हैं| विरोध के चलते All Assam Students’ Union (AASU), असम का मुख्य विपक्षी दल Asom Gana Parishad (AGP) व BJP भी सड़कों पर उतर आए हैं| गुवहाटी व असम के अन्य क्षेत्रों में गोगोई व मनमोहन सिंह के पुतले जलाए जा रहे हैं| कहीं किसी सबसे तेज़ या सबसे आगे चैनल पर ऐसी खबर देखी?

AASU के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने तो सीधे सीधे प्रधान मंत्री को कड़े शब्दों में कह डाला कि आज तो बांग्लादेश के आगे झुक कर असम की धरती बांग्लादेश को दान में दे दी, बताइये कश्मीर का कितना भाग पाकिस्तान को सौंपने का मन बना लिया है?
यह एक बिलकुल बेतुकी संधि है जिस पर मनमोहन सिंह और गोगोई ने बांग्लादेश के साथ सहमती बना ली है| प्रधानमंत्री को क्या अधिकार है, बिना इस मुद्दे को संसद में उठाए, बिना देश की जनता को इस से अवगत करवाए इतनी बड़ी भूमि किसी शत्रु देश को दान में देने का?

AGP के अध्यक्ष चन्द्र मोहन पटवारी ने तो बांग्लादेश के साथ हुए इस Land Border Agreement को  Second Yandaboo Treaty के सामान बताया है| जिसे स्वीकार कर गोगोई ने अपनी कमजोरी का परिचय ही दिया है| गोगोई के लिए यह पहला अवसर था जब उसे दो देशों के बीच हुई द्वीपक्षीय वार्ता का हिस्सा बनने का मौका मिला| किन्तु उसने अपनी कमजोरी से राष्ट्रीय हितों को अनदेखा किया है|

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता सरबनंद सोनोवाल ने इसे असम के इतिहास का काला दिवस बताया है| और चेतावनी दी है कि इस संधि के विरोध में देशव्यापी आन्दोलन किया जाएगा|

छिटपुट गालियाँ पड़ने के बाद सरकार ने दुहाई दी है (अब लाख छिपाने के बाद भी खबर बाहर आ जाए तो सफाई तो देनी ही पड़ेगी) कि इस संधि के अनुसार बांग्लादेश के पलाथोल की 74 एकड़ भूमि, दुमाबरी (जिला करीमगंज) से 75 एकड़ भूमि व बोरोइबरी से 193 एकड़ भूमि भारत को मिलेगी|
बदले में बांग्लादेश ने भारतीय कब्ज़े से अपनी 145 एकड़ भूमि नायगांव से व 290 एकड़ भूमि पलाथोल से मांगी है, जिसपर मनमोहन सिंह व गोगोई ने सहमती दिखा दी है|
अव्वल तो इसमें कितनी सच्चाई है, इस पर ही शंका है| दूसरी बात भारत के कब्ज़े में बांग्लादेश की ज़मीन, कभी सुना है इस बारे में? अकेले असम में चालीस लाख बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं| पूरे भारत में करीब दो करोड़ से अधिक बांग्लादेशी हैं| यदि उपरोक्त संधि में सच्चाई है तो क्या मनमोहन सिंह बांग्लादेश पर इन घुसपैठियों के सम्बन्ध में कोई दबाव नही बना सकते थे? ऊपर से अपनी 342 एकड़ भूमि के बदले बांग्लादेश को 435 एकड़ भूमि, यह कैसी संधि हुई?
असम की यह धरती कांग्रेस पार्टी की जागीर नही है जो इसे देशवासियों से बिना पूछे किसी भी भूखे नंगे देश को दान में दे डाले|

इनसे तो अच्छा व कडा रुख ममता बनर्जी ने ही दिखा दिया जिसने यात्रा शुरू होने के अंतिम दिनों में मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा का समर्थन नही किया, क्योंकि समझौते के अंतर्गत पश्चिम बंगाल की तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर उसे बांग्लादेश के आगे झुकना स्वीकार नही था| अत: यात्रा का बहिष्कार कर बनर्जी ने अपनी कमर तो सीधी रखी ही साथ ही तीस्ता जल बंटवारे की शर्तों को मानने से भी इनकार कर दिया|
मनमोहन सिंह, आपमें "सिंहों" वाले गुण तो नही हैं, कम से कम अब थोड़ी सी मर्दानगी स्त्रियों से ही सीख लीजिये|

भारत बांग्लादेश के मध्य 4,096 किमी की सीमा रेखा पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मेघालय व मिजोरम को छूती है| क्या पता भविष्य में यहाँ भी मनमोहन सिंह को दानवीर बनने का शौक चढ़ जाए|
शायद भविष्य में कुछ ख़बरें ऐसी भी सुनने को मिल जाएं-
  • पाकिस्तान के साथ हुए समझौते के अनुसार मनमोहन सिंह ने कश्मीर में कुछ सौ एकड़ ज़मीन के बदले श्रीनगर पाकिस्तान को दान कर दिया|
  • पंजाब व राजस्थान से सटी भारत-पाक सीमा के कुछ गाँवों के बदले पंजाब का अमृतसर व राजस्थान का बीकानेर व जैसलमेर पाकिस्तान को दान कर दिया|
  • साथ ही साथ चीन से हुए समझौते में लद्दाख की कुछ सौ एकड़ भूमि के बदले पूरा अरुणाचल प्रदेश चीन को दान कर दिया|
  • लगे हाथों नागालैंड ने भी स्वतंत्र राष्ट्र की मांग कर डाली, ऐसे में दानवीर मनमोहन ने पूरा नागालैंड ही स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दान कर दिया|
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सबसे बड़ी बात कि देश में इतना कुछ हो रहा है और किसी को खबर ही नही है| अभी तो सोनिया गांधी के भारत आगमन को भी छिपाया जा रहा है| खबर है तो सिर्फ दिल्ली हाई कोर्ट के सामने "धमाका"| 
कहीं यह धमाका इसीलिए तो नही हुआ, ताकि मैडम के लौटने व प्रधान मंत्री का दानवीर बनने की दोनों ख़बरों को हाईजैक किया जा सके?

अब आगे आगे देखिये, होता है क्या???

Tuesday, September 6, 2011

बाबा रामदेव, आपकी इतनी जुर्रत


अरे नही, चौंकिए मत| दिवस का ह्रदय परिवर्तन नही हुआ है| दरअसल कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलना इस देश में अब हिम्मत नही, जुर्रत बन गया है, साहस नही, दुस्साहस बन गया है| और यही जुर्रत बाबा रामदेव बार बार किये जा रहे हैं|
अभी तो ताजातरीन कांग्रेस का एक और हक़ मार दिया बाबाजी ने| बताइये जुर्रत नही हुई क्या? इतने पचड़े क्या कम थे जो अब बांग्लादेशियों पर भी नज़र डाल बैठे? कुछ तो काम छोडिये कांग्रेस के लिए| बेचारे(?) बांग्लादेशी हमारे यहाँ शरणार्थी बन रहे हैं (इसी कांग्रेस की कृपा से) और इन्होने वहाँ भी अपनी टांग अड़ा दी| इनकी इतनी जुर्रत कैसे हुई कि इन्होने अपने योग शिविर में एक बांग्लादेशी का मानसिक उपचार किया? क्या इन्हें पता नही कि बांग्लादेशियों का ठेका केवल कांग्रेस के पास है?

अभी नया नवेला मामला (क्योंकि मामले बहुत हो गए हैं, और अधिकतर तो बासी भी हो गए हैं, तो कोई नया मामला खडा करना बेहद ज़रुरी था) यह है कि बाबा रामदेव के योग शिविर में ब्योमकेश भट्टाचार्य नामक बांग्लादेशी नागरिक की उपस्थिति को लेकर पुलिस ने बाबा रामदेव को नोटिस जारी किया है| ब्योमकेश भट्टाचार्य अपने पुत्र का इलाज करवाने बांग्लादेश से बाबा रामदेव के योग शिविर में आए थे|
बाबाजी की जुर्रत तो देखिये जो एक बांग्लादेशी का इलाज किया| और वह भी हिन्दू, ऊपर से ब्राह्मण| मतलब कांग्रेस की दृष्टि में करेला ऊपर से नीम चढ़ा| अरे इलाज ही करना था तो किसी मुसलमान को पकड़ लेते| मुसलमान न मिले तो किसी दलित पिछड़े को ही पकड़ लेते| कोई इन्हें टच भी नही करता| पहले से ही करोड़ों बांग्लादेशी मुसलमान भारतीयों की छाती पर मूंग दल रहे हैं| जब जब मौका मिलता है तो यहाँ वहां बम भी फोड़ देते हैं| यदि इलाज ही करना था तो इन बेचारे भूखे नंगों का करते|
हमारे प्रधानमन्त्री(?) की ओर से शायद बाबाजी को कुछ छूट मिल जाती| क्योंकि इन्ही की सरकार में मंत्री रह चुके रामविलास पासवान जब बांग्लादेशियों के मताधिकार के लिए आवाज़ उठाते हैं तो उनका पद बरकरार रहता है|

बाबाजी से यही कहना चाहता हूँ कि आपने तो कांग्रेस का यह अधिकार भी छीनने की जुर्रत की है| बार बार आप सांप के बिल में हाथ डाल रहे हैं| आपने इतनी जुर्रतें कर दी हैं कि अब उनका हिसाब कौन देगा?

अव्वल तो आप भगवा पहनते हैं, आपको पता नही कि सेक्युलरों की आँख में यह रंग कितना चुभता है| इनका वश चले तो ये तिरंगे को भी दुरंगा बना डालें|
आपने हिन्दुओं की लुप्त हो चुकी प्राचीन विद्या को पुनर्जीवित कर दिया और उसे न केवल घर-घर, बल्कि देश-विदेश में पहुंचा दिया| बताइये अब विदेशी दवा कंपनियों की दलाली कहाँ से खाएंगे ये?
आपने देश भर में स्वदेशी की विचारधारा का प्रचार प्रसार किया| यहाँ भी आपने इनकी दलाली मार दी|
आपने गुजरात में जाकर नरेंद्र मोदी के मंच पर खड़े होकर भाषण पेला| आपको पता नही कि गुजरात एक शत्रु प्रदेश है और नरेंद्र मोदी एक मिर्ची, जो सेक्युलरों को यहाँ वहां जलाती रहती है|
आपने संघ से अच्छे सम्बन्ध बनाए| आपको पता होना चाहिए कि संघ एक राष्ट्रवादी और हिंदूवादी संगठन है| अत: इसे पहले से ही अछूत की श्रेणी में डाल रखा है|
और तो और आपने अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक अखंड भारत का नारा दे डाला| आप ये भी भूल गए कि अफगानिस्तान व पाकिस्तान भारत में मिल गए तो इन सेक्युलरों के माई बाप कहाँ जाएंगे? यदि कैलाश मानसरोवर, लद्दाख व तिब्बत भारत में आ गए तो चून्धी आँखों वाले चीनी क्या करेंगे?
और सबसे बड़ी जुर्रत तो यह कि आपने भ्रष्टाचार के विरूद्ध मोर्चा खडा कर दिया| किया तो किया, इसमें आपने कालाधन वापस लाने की मुहीम भी छेड़ दी| इसके लिए एक लाख से अधिक लोगों के साथ दिल्ली में अनशन पर बैठ गए| और आधी रात में पिटने के बाद भी आपने अपनी जुबां बंद नही रखी| यहाँ तक कि स्विस के साथ साथ इटली के बैंकों की भी पोल खोल दी| बताइये भला सोनिया माता की कोई इज्ज़त है कि नही?

इतनी जुर्रतें क्या कम थीं जो अब नया पंगा खडा कर दिया| बताइये कौन देगा हिसाब?

बाबाजी आप तो बहुत बड़ी चीज़ हैं, अरे इन्होने तो केजरीवाल को भी नही बख्शा| लाखों करोड़ों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वाले एक युवा पर केवल नौ लाख के भ्रष्टाचार का आरोप मढ़ डाला| सरकार ने इसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया| आखिर कल पैदा हुआ छोरा इनकी नाक में दम किये बैठा था| यहाँ तक कि इसे युवराज(?) से बढ़कर आँका जाने लगा| इसका इलाज तो करना ही था| जब इसे ही नही छोड़ा तो आपने तो सत्ता ही हिला दी|

ये सब कारनामे अब कांग्रेस की दृष्टी में हिम्मत नही, जुर्रत की श्रेणी में आते हैं| अब ज़रा बच के रहना|