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Sunday, August 21, 2011

मुझे अन्ना से कोई परेशानी नहीं, परेशानी है तो कथित गांधीवाद से

अन्ना भक्तों(?) से स्थान स्थान पर भिन्न भिन्न प्रकार के आरोप सुनने के बाद मैं आज फिर हाज़िर हूँ| अन्ना भक्तों से कहना चाहता हूँ की मैं कल दिनाक २० अगस्त २०११ को लगातार पांचवे दिन भी सड़कों पर चिल्ला कर आया हूँ| आज भी जाने वाला हूँ| आज तो बीस हज़ार की रैली है ऊपर से गले की हालत भी पतली है| अन्ना और उनके आन्दोलन को मेरा पूरा समर्थन है| लेकिन अपने मन की बात जरुर कहूँगा|
मुझे तकलीफ यही है कि अन्ना आन्दोलन में घाट घाट पर चिल्लाने के बाद भी किसी प्रकार का कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं होने वाला| फिर भी चिल्ला रहे हैं| आखिर यह चिल्ला चोट क्यों?

शाम को आन्दोलन में ही एक मित्र भाई अभिषेक पुरोहित जी से इस विषय में काफी बात हुई| उन्होंने विषय पर बेहतर प्रकाश डाला| काफी हद तक बादल छंट चुके हैं|

सबसे बड़ी जो बात है वह यही कि अब यह कथित गांधीवादी तरीका कोई काम नहीं आने वाला| मुझे बताएं, इस गांधीवादी तरीके से इस देश को आखिर मिला ही क्या है? देरी से मिली आज़ादी, टूटी फूटी आज़ादी, और तो और टुकड़े टुकड़े हुआ देश, जिसमे भी कहीं कोई शान्ति नहीं, बस यही सब देन है गांधीवाद की इस देश को|

गांधी जी जब सौ साल पहले १९११ में दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे, उस समय भारत में पहले से ही आज़ादी की लड़ाई चल रही थी|
और पहले जाएं तो १८५७ की क्रान्ति जैसा तो कोई उदाहरण ही नहीं है| एक ऐसी क्रान्ति कि पूरे भारत देश में किसी अंग्रेज़ को इसकी योजना बनने की भनक तक नही लगी| रातों रात एक ऐसा जन समूह खड़ा हो गया कि जिसने भारत में अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया| पूरे भारत में उस समय उपस्थित तीन लाख से अधिक अंग्रेजों में से केवल कुछ हज़ार ही जीवित बचे थे| ऐसा मैनेजमेंट क्या आज के समय में कहीं (कांग्रेस को छोड़कर) दिखाई देता है?

गांधी जी जब भारत आए थे, उस समय भी लड़ाई जोरों शोरों पर थी| महाराष्ट्र में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक सक्रीय थे, पंजाब में लाला लाजपत राय, बंगाल में अरविन्द आदि आदि| ऐसे समय में गांधी जी के लिए कहीं कोई स्थान ही नही था| किन्तु किस्मत ने कुछ पलटा खाया कि कुछ समय बाद दुर्भाग्यवश लोकमान्य तिलक की मृत्यु हो गयी, अरविन्द सन्यासी हो गए, लालाजी अकेले रह गए, ऊपर से देश में जलियांवाला बाग़ जैसी भीषण दुर्घटना घटित हो गयी| गांधी जी को स्थापित होने के बेहतर अवसर इसी समय मिले|

नोट : मैं कहीं भी गांधी जी पर किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं लगा रहा| मैं गांधी जी का आज भी सम्मान करता हूँ| कहानी को समझिये| गांधी जी की देश भक्ति पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं| कहीं ऐसा न हो कि अन्ना भक्तों की तरह गांधी भक्त भी मुझे राष्ट्रद्रोही करार दें| मैं केवल पुराने सन्दर्भों को आज के समय में रख रहा हूँ|

समय ही कुछ ऐसा था कि इस दुविधा की घडी में हमारे पास केवल गांधीवाद नाम का ही एक उपाय रह गया| कल तक जो देश भक्ति भारतीयों को बहुत महँगी पड़ती थी, गांधी जी ने उसे एकदम सस्ता कर दिया| आपको कुछ नही करना, केवल ठाले बैठ जाओ, सरकार का पूरा असहयोग करो, नारे लगाओं, होली जलाओ और रात को घर जा कर सो जाओ|
क्रान्ति के नाम पर देशभर में जश्न का माहौल हो गया| लोगों को तो पता भी नहीं था की आज़ादी की कीमत इतनी सस्ती है|

गांधी से तो कोई शिकायत नही, उन्होंने किसी भी प्रकार कम से कम देश को एक तो कर ही दिया था| हिन्दू हों या मुसलमान, दक्षिण भारतीय हों या उत्तर भारतीय, सभी भारत की आज़ादी के लिए एक हो गए थे| अत: गांधी से कोई शिकायत नही किन्तु क्षमा चाहूँगा कठोरता से यह कहने के लिए कि गांधीवाद ने इस देश का पौरुष नष्ट कर दिया|
आज़ादी की लड़ाई के नाम पर ठाले बैठ जाना, या गली गली जाकर गला फाड़ देना, बस यही रह गया गांधीवाद में| गांधीवाद के जो सकारात्मक कदम थे, वो तो कांग्रेस ने वैसे ही १९४७ के बाद ही मिटा दिए|
गांधी जी स्वदेशी की बात करते थे, गांधी जी स्वावलंबन की बात करते थे, गांधी जी ग्रामस्वराज की बात करते थे, गांधी जी गौ हत्या रोकने की बात करते थे, इन सब को कांग्रेस ने गांधी जी के मरते ही गांधीवाद से लुप्त कर दिया और केवल चिल्ला चोट को ही गांधीवाद बना दिया|

और आज तक परिवर्तन के नाम पर यही चिल्ला चोट चल रहा है|
हमारे ताजातरीन गांधी जी भी यही कर रहे हैं| सड़कों पर जाओ, मोमबतियां जलाओ, गला फाड़ो और लीजिये आपका देश भ्रष्टाचार मुक्त|
मुझे बताएं, क्या ये लड़ाई इतनी सस्ती है कि बिना कोई कीमत चुकाए राष्ट्र निर्माण हो जाएगा? अन्ना जी कहते हैं कि ये दूसरी आज़ादी की लड़ाई है| इस काम की बहुत बड़ी कीमत होती है| सड़क पर चिल्लाने वालों को जब यह कीमत चुकाने को कह दिया जाएगा तो अधिकतर तो उलटे पाँव अपने अपने घर लौट जाएंगे|

अन्ना ने तो फिर भी कीमत चुकाई है| साथ ही उन्होंने यह आवाहन भी किया है कि जरुरत पड़ने पर जेल भरो आन्दोलन चलाया जाए| दिल्ली में बहुतों ने जेले भरी भी हैं| इस कदम के लिए अन्ना को नमन करता हूँ| किन्तु कितने लोग ऐसा करेंगे?
यहाँ तो क्रान्ति के नाम पर जश्न का माहौल है| शाम पड़े घूमने जाते थे, अब यहाँ इकट्ठे हो रहे हैं|
किसे परवाह है इस चिल्लाहट की? आप क्या सोचते हैं कि हमारे नारे सुनकर इस कांग्रेस का ज़मीर जाग जाएगा और ये लोकपाल बना देगी?
अरे जब अंग्रेजों को ही इन चीखों से कोई फर्क नही पड़ा तो यह कांग्रेस तो अंग्रेजों से भी गयी बीती है| लोग बार बार ये क्यों भूल जाते हैं कि इन्हें आपका दिल नहीं जीतना अपितु आप पर राज करना है| आप चाहें इनसे घृणा करें अथवा प्रेम, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला|
कुछ लोग यहाँ प्रश्न उठा सकते हैं कि इस प्रकार सरकार गिराई भी तो जा सकती है, फिर कैसे राज करेंगे? 
तो मित्रों आपातकाल लाने वाली भी ये कांग्रेस ही थी| आप चाहे इन्हें चुनावों में जिताएं अथवा हराएं, राज आप पर यही करना चाहेगी| और इसकी कोशिश भी पिछले ६४ वर्षों में यही रही है| तभी तो आज तक कुछ समय को छोड़कर और किसी को शासन चलाने का मौका ही नही मिला|

दूसरी बात, क्या मेरा उपयोग केवल चिल्लाने तक सीमित है? अरे ये काम तो कोई अनपढ़ गंवार भी कर लेता| मुझ जैसे पढ़े लिखे से तो भारत निर्माण के नाम पर कोई creative काम करवा लिया जाता तो अच्छा होता|
ठीक है, आज लोकपाल के लिए यदि सड़कों पर उतर कर नारेबाज़ी ही एक रास्ता है तो वो भी करूँगा| किन्तु लोकपाल के बाद क्या? क्या लोकपाल बनने के बाद मेरी भूमिका ख़त्म हो जाएगी?

मैं विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूँ कि मुझे अन्ना व उनके अभियान से कोई तकलीफ नही है| जन लोकपाल बन जाए तो हो सकता है यह देश के हित में ही हो| मैं अन्ना साहब हजारे का ह्रदय से सम्मान करता हूँ| किन्तु अब मुझे इन तरीकों में दम नही लग रहा| 

कल ही अन्ना का तिहाड़ जेल में एक वीडियो देखा था| उसमे अन्ना काफी खुश दिखाई दे रहे हैं, किन्तु हैं तो अनशन पर| मुझे यह देखकर अच्छा नहीं लगा कि वे भारत की जनता से कह रहे हैं कि मेरी चिंता मत करों, मैं बिलकुल ठीक हूँ| मुझे आपके प्यार से ऊर्जा मिल रही है|
अन्ना कुछ भी कहें, किन्तु ७४ वर्ष के एक वृद्ध का इस प्रकार भूखा रहना आज़ाद भारत में कहाँ तक उचित है? अब हमे भूखा नहीं रहना है, भूखा मारना है उनको जिनके कारण आज अन्ना को भी भूखा रहने की नौबत आ गयी है| अन्ना भूख से मर भी जाएं तो भी भ्रष्टों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| स्वामी निगमानंद भूख से मर गए, क्या फर्क पड़ा इस भ्रष्ट सरकार को? राम लीला मैदान में बाबा रामदेव के आन्दोलन में मैं और मुझ जैसे पता नहीं कितने ही लोग लाठियां खा चुके हैं| क्या फर्क पड़ा इस भ्रष्ट सरकार को? मैं अपने पिछले लेख में भी कह चूका हूँ की अन्ना का आन्दोलन कांग्रेस द्वारा अपने पक्ष में घुमाया जा रहा है और अन्ना को इसकी खबर तक नहीं| अपने स्वार्थों के लिए कांग्रेस को अन्ना की जान भी लेनी पड़ी तो वह पीछे नहीं हटेगी|

यही वजह है जो आज मैं यह लेख लिखने बैठा हूँ|
अत: स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि गांधीवाद के नाम पर होने वाला यह आन्दोलन सफल होना थोडा कठिन है| क्योंकि इसके चलते बार बार मुझसे पूर्ण रूप से अहिंसक होने की अपेक्षा की जाती है| जबकी भ्रष्टों के इस काले राज में अब मुझ जैसों से ऐसी अपेक्षा छोड़ देनी चाहिए|
जब तक अहिंसा से काम चल रहा है, चला रहे हैं| जरुरत पड़ी तो मरने मारने का काम भी कर सकते हैं|

अंत में जाते आते यह कहना चाहता हूँ कि इस लेख से यह न समझें कि मैं हिंसा या नक्सलवाद जैसी मुहीम को बढ़ावा दे रहा हूँ| तरीके और भी बहुत हैं| सबसे पहले तो अन्ना को बाबा रामदेव से अलग होकर नहीं साथ में रहकर मुहीम चलानी होगी| साथ ही अग्निवेश व अरुंधती राय जैसे नक्सलियों से दूरी बनानी चाहिए| अन्ना और बाबा एक हो जाएं तो इस भ्रष्ट व्यवस्था को आसानी से उखाड़ कर फेंका जा सकता है| मैं तो कहता हूँ कि दुश्मन की सोच पर वार किया जाए, विजय निश्चित है|
किन्तु फिर भी अन्ना मुझ जैसों से सड़कों पर उतरने की अपेक्षा करते हैं तो मैं रोज़ सड़कों पर उतरूंगा, चिल्लाऊंगा और सरकार को गालियाँ देता रहूँगा|

Friday, August 19, 2011

मैं भी अन्ना भक्त, किन्तु आज अन्ना भक्तों से गालियाँ सुनने आया हूँ


मित्रों लेख शुरू करने से पहले यहाँ आने वाले सभी पाठकों से आग्रह है कि कृपया इस लेख को ध्यान से पढ़ें|

मित्रों अन्ना हजारे का अनशन जनलोकपाल मुद्दे को लेकर चल ही रहा है| अनशन दिल्ली में है लेकिन उसकी आग देश भर में लगी हुई दिखाई दे रही है| मैं तो यहाँ जयपुर में देख रहा हूँ कि जो कहीं नहीं हो रहा वो कल दिनांक १८ अगस्त को जयपुर में हो गया| आन्दोलनकारियों ने सुबह से ही रैली निकालनी शुरू कर दी| इसमें यहाँ के व्यापारी भी शामिल थे| उन्होंने शहर भर में घूम घूम कर आधे दिन के लिए अन्ना के समर्थन में दुकाने व बाज़ार बंद रखने की याचना लोगों से की| कोई जोर ज़बरदस्ती नहीं थी, जिसकी इच्छा हो वो बंद करे जिसकी इच्छा न हो वो न करे| अधिकतर दुकाने व बाज़ार कल बंद रहे|
इसके अतिरिक्त रोज़ शाम को शहर के मुख्य मार्गों व चौराहों पर लोग एकत्र हो जाते हैं| ये लोग किसी दल के नहीं होते, इनका कोई नेता नहीं होता, केवल अपनी इच्छा से सड़कों पर उतर आए हैं व अन्ना के समर्थन में नारे लगा रहे हैं, मोमबत्तियां जला रहे हैं|
तीन दिनों से मेरा भी टाइम टेबल कुछ ऐसा ही चल रहा है| दिन भर अपना काम करते हैं व शाम को सड़कों पर उतर आते हैं| रोज़ भीड़ बढ़ती ही जा रही है| कल तो इतनी भीड़ थी कि लग रहा था कि पूरा देश ही अन्ना के समर्थन में आ गया है| खैर अपने को तो यूपीए सरकार या कहिये कांग्रेस पार्टी को घेरने का बहाना चाहिए|

देश भर का मीडिया भी जैसे सरकार गिराने पर तुला है| जहां देखो अन्ना, अन्ना और केवल अन्ना| जब भी, जहां भी कोई समाचार देखो तो बस अन्ना|

एक नारा जो बार बार सुनाई दे रहा है, वह है - "अन्ना एक आंधी है, देश का दूसरा गांधी है|"

बिलकुल मैं भी आज यही कह रहा हूँ| अन्ना दूसरा गांधी ही है| और अंग्रेजों की संज्ञा इस कांग्रेस को दी जा सकती है| बिलकुल ऐसा ही लग रहा है जैसे १९४७ से पहले का कोई सीन चल रहा हो| देश भर में रैलियाँ प्रदर्शन हो रहे हैं, जैसे गांधी जी के समर्थन में व अंग्रेजों के विरोध में १९४७ से पहले होते थे|

किन्तु अंग्रेजों को इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता था| जिसकी प्रकृति ही अत्याचारी हो, उसे इन नारों व भाषणों से भला क्या समस्या होती? अंग्रेजों को कौनसा यहाँ भारतीयों का दिल जीतना था? उनका मकसद तो भारत को लूटना व भारतीयों पर अत्याचार करना था| और वही काम आज कांग्रेस कर रही है| इन काले अंग्रेजों ने अपने गुरु गोरे अंग्रेजों से बहुत कुछ सीखा है|

याद रखने वाली बात यह है कि आज़ादी की लड़ाई केवल गांधी ने नहीं लड़ी| लेकिन अंग्रेजों ने केवल गांधी जी को हाई लाईट कर यह दिखाया कि भारत की आज़ादी के लिए लड़ने वाला सिर्फ गांधी ही है, क्योंकि गांधी से उन्हें कोई समस्या जो नहीं थी| जिनसे समस्या थी (भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस आदि) उन्हें पीछे धकेल दिया गया| जिनसे डर था वे गुमनामी में जीते रहे, और तो और अपने ही देशवासियों से अपमानित होते रहे| यहाँ तक कि उन्होंने अपनी लड़ाई के साथ साथ गांधी का भी सहयोग किया किन्तु स्वयं गांधीवादियों ने भी उन्हें अपनी लड़ाई से दूर रखा| निश्चित रूप से गांधी जी का अभियान देश के हित में था| इसके लिए भारत सदैव गांधी जी को याद रखेगा| लेकिन साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि समस्या को जड़ से मिटाने के लिए गांधी के रास्तों के साथ साथ कोई अन्य रास्ता भी अपनाना चाहिए था|

बिलकुल वही सीन अभी दोहराया आ रहा है|

कांग्रेस को डर अन्ना का नहीं है| अन्ना का डर होता तो आज अन्ना को मीडिया में इतना कवरेज नहीं मिलता| डर है तो बाबा रामदेव का| तभी तो अन्ना की गिरफ्तारी पर हो हल्ला होने पर भी कांग्रेसियों के कान पर जून तक नहीं रेंग रही थी| लेकिन जैसे ही बाबा रामदेव दिल्ली पहुंचे कि अन्ना की रिहाई के लिए सरकार ही पलकें बिछाने लगी| जो सरकार कल तक अनशन की इजाज़त तक नहीं दे रही थी, आज अचानक अनशन की अवधी का बढ़ाकर पहले तीन दिन से सात दिन व बाद में सात दिन से बढ़ाकर १५ दिन कर देती है| अन्ना थोड़े भाव और खाते तो शायद एक महिना या एक साल की अनुमति भी मिल जाती| ऐसा लग रहा था जैसे सरकार अन्ना से गुहार लगा रही हो कि आइये आप अनशन कीजिये और हो सके तो बचाइये अपने देश को| कहीं ऐसा न हो जाए कि इस पूरे प्रकरण में बाबा रामदेव हीरो बन जाएं और हम देखते रह जाएं|

इस बात से बिलकुल भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस को डर मुख्यत: बाबा रामदेव से ही है| जहां अन्ना को मीडिया में हाई लाईट किया आ रहा है वहीँ बाबा रामदेव के किसी कार्यक्रम को टीवी चैनलों का हिस्सा एक मिनट के लिए भी नहीं बनने दिया गया| क्योंकि अन्ना भ्रष्टाचार रुपी दानव के पैरों के नाखून काटने से शुरुआत कर रहे हैं जबकि बाबा रामदेव सीधा गले पर वार कर रहे हैं|
ध्यान रहे १९४७ से पहले गांधी जी भी किसी न किसी क़ानून को लेकर अंग्रेजों से बहस किया करते थे जबकि क्रांतिकारी सीधे भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए लड़ते थे|
क़ानून बन जाने से क्या होगा? बन जाए लोकपाल, जब कपिल सिब्बल जैसे क़ानून का बलात्कार करने वाले स्वयं मंत्रिमंडल में बैठे हों तो भला कोई क़ानून क्या उखाड़ लेगा?

गांधी जी के साथ "नेहरु" था, तो यहाँ अन्ना के साथ भी एक दल्ला "अग्निवेश" है| इन जैसों की छत्र छाया में भला कोई क़ानून कैसे सुरक्षित रह सकता है?
मुझे लगता है कि अन्ना की टीम में यदि किसी पर भरोसा किया जा सकता है तो वह स्वयं अन्ना पर अथवा किरण बेदी व अरविन्द केजरीवाल पर| भूषण बाप बेटे भला कब से भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने लगे?

कांग्रेस का बाबा से डर तो उसी समय समझ आ जाना चाहिए था जब अन्ना को राम लीला मैदान में अनशन की अनुमति मिली| जिस राम लीला मैदान से बाबा रामदेव व उनके एक लाख से अधिक समर्थकों को आधी रात में ही मार मार कर भगाया गया वहां अन्ना को सरकारी खर्चे पर जल्द से जल्द मैदान की सफाई करवा कर अनशन के लिए जमीन उपलब्ध की जा रही है|
बाबा रामदेव के आन्दोलन का दमन करने का कांग्रेस के पास जो सबसे बड़ा बहाना था वह ये कि "राम लीला मैदान चांदनी चौक के निकट है और यह स्थान साम्प्रदायिक हिंसा का केंद्र रहा है|"
तो अब अन्ना को ऐसे साम्प्रदायिक हिंसा के केंद्र पर अनशन की अनुमति क्यों दी गयी? क्या दिल्ली में और कोई जगह नहीं है?


कांग्रेस का मकसद साफ़ साफ़ दिखाई दे जाना चाहिए| उसे पता है कि इतनी फजीती होने के बाद वह २०१४ के लोकसभा चुनावों में नहीं आ सकती| उसकी हालत अभी वैसी ही है, जैसी इंदिरा गांधी के आपातकाल के समय थी| अत: जितना हो सके उसे जनलोकपाल के मुद्दे को घसीटना ही पड़ेगा| और दो साल बाद यह क़ानून पारित कर दिया जाएगा, जिसमे प्रधानमंत्री भी लोकपाल का शिकार होगा| ऐसे में बाबा रामदेव से भी पीछा छुडाया जा सकेगा और आने वाली सरकार को इसी लोकपाल से गिराकर फिर से तख़्त पर बैठा जा सकेगा|
कोई आश्चर्य नहीं जो ऐसे समय में पुन: कांग्रेस सत्ता में आ जाए| जब आपातकाल के बाद केवल दो वर्षों के जनता पार्टी के शासन के बाद पुन: सत्ता में आ सकती है तो आज क्यों नहीं? दरअसल भारत देश की जनता भूलती बहुत जल्दी है| देखिये न केवल दो ही वर्षों में इंदिरा का आपातकाल भूल गयी| १९४७ पूरा होते ही अंग्रेजों के दो सौ साल के अत्याचार भूल कर इंग्लैण्ड से दोस्ती कर बैठी| पाकिस्तान द्वारा थोपे गए चार युद्ध व सैकड़ों आतंकवादी घटनाओं को भूल कर दोस्ती की बात कर बैठी|

अन्ना की गलती वही है जो गांधी ने की| अन्ना जिस प्रकार बाबा रामदेव से दूरी बना रहे हैं वह प्रशंसनीय नहीं है| बाबा रामदेव अब भी अन्ना के सहयोग के लिए दिल्ली पहुँच गए, किन्तु अन्ना ने तो उनसे मिलने से भी मना कर दिया| ये सब कांग्रेस की चाल है जो वह अन्ना व बाबा को एक नहीं होने दे रही|

अन्ना को इन धूर्तों के षड्यंत्र को समझना होगा, नहीं तो वही इतिहास दोहराया जाएगा जो १९४७ में सत्ता के हस्तांतरण द्वारा देश आज तक झेल रहा है|

इस पूरे विवाद में मैं ये बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मुझे अन्ना के आन्दोलन से कोई तकलीफ नहीं है| मैं तो खुद गला फाड़ फाड़ कर नारेबाजियां कर रहा हूँ| गला छिल गया है, ठीक से आवाज़ भी नहीं आ रही अब तो| लोकपाल के मुद्दे को लेकर देश भर में जो कुछ भी हो रहा है वह बहुत सही हो रहा है| किन्तु भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर जो हो रहा है वह सही नहीं है| यही जन आक्रोश बाबा रामदेव के समर्थन में भी चाहता हूँ| लोकपाल की लड़ाई अंतिम लड़ाई नहीं है| यह तो केवल एक शुरुआत है, अंत नहीं| ऐसा न हो कि लोकपाल का मुद्दा शांत होते ही सब अपने अपने घरों की ओर चल दें|





Wednesday, August 10, 2011

सोनिया की अमरीका यात्रा, अमरीका की आर्थिक मंदी, सोने के बढ़ते भाव !!! संयोग बैठाएं, शायद मेरा अनुमान सही हो

मित्रों अगस्त 7, 2011 के दैनिक भास्कर में अमरीका में आई आर्थिक मंदी से सम्बंधित एक लेख पढ़ा| लेख से ऊपर उठकर यह एक व्यंग प्रतीत हुआ| उसमे लिखे कुछ अंश यहाँ रख रहा हूँ|

अमरीका जो दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति माना जाता है, पर इस समय 60,22,89,88,00,00,000 रुपये का क़र्ज़ है (यह राशि मुझे कम लग रही है)|
इसको और अधिक समझाने के लिए कुछ नए तरीके दिखाए गए हैं|
पृथ्वी की उत्पत्ति को करीब 460 करोड़ साल हो चुके हैं| पृथ्वी की उत्पत्ति से अब तक प्रतिदिन 44,740 रुपये जोड़े जाएं तो अमरीका पर चढ़ा कर्जा सामने आ जाएगा|
आधुनिक मानव की उत्पत्ति को करीब दो से ढाई लाख वर्ष हो चुके हैं| मानव की उत्पत्ति के प्रथम दिवस से अब तक 1,61,06,400 रुपये के हिसाब से जोड़ें तो कुल राशि के बराबर क़र्ज़ अमरीका पर होगा|
जीसस का जन्म 2016 वर्ष पहले हुआ था| जीसस के जन्म से अब तक प्रतिदिन 8,05,32,00,000 रुपये जोड़ने पर प्राप्त राशि अमरीका पर बकाया कर्जा होगी|
अमरीका 4 जुलाई 1776 में आज़ाद हुआ था| अमरीका की आज़ादी से अब तक प्रतिदिन 26,84,40,00,00,000 रुपये जोड़ने पर अमरीका पर बकाया उधार प्राप्त होगा|   
और तो और एक तरीका और भी है| अमरीका के एक डॉलर नोट की लम्बाई 6.14 इंच होती है| यदि एक एक डॉलर के नोट लम्बाई के साथ जोड़े जाएं व एक कतार बनाई जाए तो यह कतार पृथ्वी से शुरू होकर मंगल, ब्रहस्पति, शनि को पार करती हुई वरुण गृह तक पहुँच जाएगी|    
अब ये कैलकुलेशन कितनी सही है, मुझे नहीं पता, मैंने नहीं जोड़ा| किन्तु एक बात तो साफ़ है कि इस समय अमरीका भयंकर मंदी से गुजर रहा है|

जब अमरीका जैसी महाशक्ति पर इतना बड़ा उधर हो सकता है तो यह कैसा अर्थशास्त्र चल रहा है पूरी दुनिया में?

सोनिया गांधी अमरीका गयी, क्यों? इसके भाँती भाँती के उत्तर आ रहे हैं| खैर अभी मैं इन उत्तरों पर नहीं जाता|

पूरी दुनिया से लूटा हुआ धन जमा है स्विस और उसके जैसे और दुसरे यूरोपीय देशों में| अब यह तो जगह जगह से खबर आ रही है कि विदेशी बैंकों में पड़ा सबसे अधिक काला धन भारत का ही है| इस सत्य को भी कोई नहीं झुठला सकता कि स्विस बैंकों से ही वर्ल्ड बैंक चल रहा है| और वर्ल्ड बैंक की दया पर ही अमरीका व यूरोपीय देश चल रहे हैं| इसी पैसे से ये देश इतनी तरक्की कर पाए| मतलब दुनिया के सबसे अमीर देश भारत (मानो या न मानो) के धन से सुख समृद्धि पा रहे हैं अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्विट्ज़रलैंड आदि देश| और हम मर रहे हैं भूखे|

चार साल पहले आई आर्थिक मंदी का कारण जो भी, मुझे लगता है कि शायद वह कारण चीन था| कैसे? इसकी चर्चा फिर कभी, क्योंकि ये विषय से हट जाएगा| किन्तु इस बार इसका कारण भारत ही है (मानो या न मानो)|

जब दुनिया भर से लूटा हुआ सारा काला धन भारत से लुटे गए काले धन का कुछ ही प्रतिशत होता है तो ऊपर वाले कथनों की पुष्टि स्वत: ही हो जाती है| हमारे खून पसीने की कमाई पर ऐश कर रहे थे कांग्रेसी अमरीका, व यूरोपीय देश| किन्तु बाबा रामदेव के एक आन्दोलन ने पूरी दुनिया में भूचाल ला दिया| कांग्रेस तो कांग्रेस यहाँ तक कि अब तो अमरीका की भी नींद उड़ गयी| चार जून को बाबा रामदेव व उनके साथ बैठे एक लाख से अधिक आन्दोलनकारियों ने ही पूरी दुनिया को हिला डाला| कैसे? अभी पता चल जाएगा|

चार जून के आन्दोलन के बाद दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में हडकंप मच गया| नीचे से कुर्सियां खिंचने से अधिक भय धन खो देने का था, ऊपर से बदनामी की चिंता अलग से कि किस मूंह से अब वोट मांगेंगे| और तो और कहीं भारत की जनता इस धोखादडी के लिए क्रोध में आकर कहीं एक हो गयी तो इनका क्या हाल होगा? यही सब सोच कर सोनिया गांधी का स्विट्ज़रलैंड जाना तय हुआ| आठ जून का दिन मुक़र्रर हुआ| साथ में कौन कौन गया था, अब तक सबको पता चल चूका है| सोनिया की इस यात्रा को भी गुप्त रखा गया था|

चार जून के बाबा रामदेव के आन्दोलन से बहुत पहले ही यूबीएस ने भारत का करीब 250 लाख करोड़ रुपये अपने बैंकों में जमा होने का दावा किया था| कुछ जगह 70 लाख करोड़ रुपये का ज़िक्र है| आठ जून से पंद्रह जून तक की सोनिया की यात्रा के तुरंत बाद 19 जून को यूबीएस से यह बयान आना कि "हमारे बैंकों में भारतीयों का कोई धन नहीं है" शंका उत्पन्न करता है| दरअसल संभावना यही है कि इस यात्रा के दौरान वहां जमा तकरीबन सारा काला धन निकाल लिया गया| किन्तु नोटों को रखना आसान नहीं है| क्या पता कल कौनसी मुद्रा नीचे गिर जाए? क्यंकि जो कुछ हो रहा है, उससे तो यही लगता है कि अब विश्व में कुछ भी हो सकता है| ऐसे में धन को सोने के रूप में कहीं पहुंचाया गया होगा| संभवत: इटली में ही| अन्यथा क्या कारण था कि अभी पंद्रह दिन पहले जिस सोने का भाव करीब 21,000 रुपये प्रति दस ग्राम था, आज बढ़कर करीब 27,000 रुपये प्रति दस ग्राम तक पहुँच गया है?     
अब इससे अमरीका में आई आर्थिक मंदी का कारण भी साफ़ दिखाई दे रहा है| जबकि सारा धन निकाल लिया गया है, ऐसे में स्विस तो पहले ही नंगा होने की कगार पर होगा, वर्ल्ड बैंक के सामने भी संकट है कि अब पैसा कहाँ से आएगा? अब ऐसी परिस्थिति में तो अमरीका जैसे देश के भी नंगे हो जाने की संभावना दिख ही रही है| कुछ तो कारण होगा जो अमरीकी विदेश मंत्री का भारत आगमन हुआ| अब तक हमारे नेताओं को फटकार लगाने वाला देश शायद अब गिडगिडाने की नौबत में आ गया हो| पर क्या करें, ये लुटेरे तो किसी के बाप के सगे नहीं हैं न| अमरीका को भी तभी तक बाप बनाया जब तक कि इससे कुछ फायदा हो रहा था| किन्तु अब ब्याज से अधिक जब मूल खोने का डर सताने लगा तो कौन सा बाप, किसका बाप?

अमरीका तो लुट ही रहा है अब बारी है बाकी यूरोपीय देशों (कृपया इन देशों में इटली का नाम शामिल न करें) की| 

यह अनुमान सही है या गलत, ये तो समय के साथ पता चल ही जाएगा| अभी तो केवल एक अंदाजा लगाया जा सकता है| हमारा काम तो केवल एक एक लिंक को जोड़ कर देखना है| यह कोई कठिन कार्य नहीं है| यदि पढ़े लिखे भारतवासी खुद ही सोचें कि विश्व भर में क्या क्या हो रहा है, और उसका कहाँ क्या असर हो रहा है, तो वे खुद निष्कर्ष निकाल सकते हैं| 
इससे पहले भी जब पांच सौ व हज़ार के नकली नोट अचानक से बंद हो गए व देश में आतंकवादी घटनाओं पर भी अचानक से रोक लग गयी हो तो यह सोचने वाली बात थी| इस बात पर ध्यान दिया जाए तो पता चलता है कि इन्ही नकली नोटों के दम पर भारत में आतंकी घटनाएं होती थीं| क्योंकि जब पांच सौ का नोट 75 रुपये में मिल जाए तो भारत में कहीं भी बम फोड़ देना कितना आसान काम है| सरकारी सहायता भी मिल ही रही है| किन्तु जब आरबीआई के वाल्ट में नकली नोट पकडे गए तो अचानक से नकली नोटों का गोरख धंधा भी ख़त्म करना पड़ा, जिस कारण आतंकियों को ब्लास्ट करने के लिए धन का अभाव हो गया| विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ देखें|
आवश्यकता मात्र विचार करने की है, किन्तु भारतीयों को बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण को गालियाँ देने से फुर्सत तो मिले| मिल भी जाए तो पहले अपनी पेट पूजा फिर कोई काम दूजा| सलमान खान ने रेडी में क्या किया है, अथवा आमीर खान ने देल्ही बेल्ली में कैसे डायलोग रखवाए हैं या शाहरुख की रा वन का क्या होगा, इसकी चर्चा भी तो करनी है| 

अभी भी बाबा रामदेव को गालियाँ देने वाले मूर्खों को अक्ल न आई हो तो शायद तब आएगी जब इनके भी कपडे फटने लगेंगे| खुद तो डूबेंगे ही, देश को भी डुबाएंगे| 
सोचने की बात यह है कि भारत एक इतना शक्तिशाली देश है कि केवल एक से डेढ़ लाख लोगों के केवल एक दिन के अनशन के कारण जब पूरी दुनिया में भूचाल आ सकता है तो सोचिये 121 करोड़ भारतवासी एक हो जाएं तो क्या से क्या हो सकता है| बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण पर ऊँगली उठाने वाले मूर्खों को समझाने के लिए इससे अच्छा उदाहरण कुछ हो ही नहीं सकता|


अमरीका में क्या हो रहा है, यह हमारी चिंता का विषय नहीं है| चिंता का विषय यह है कि इस सब में भारत का भी बहुत बड़ा नुक्सान है| शायद काले धन के नाम पर भारत में कुछ सौ या हज़ार रुपये ही आ पाएं| दूसरा अब तक हमारे धन से पल्लवित हो रहे थे अमरीका व यूरोपीय देश, अब होगा केवल इटली|

वैसे इस विषय से सम्बंधित एक जानकारी पर भी ध्यान देना होगा|
भारतीय क़ानून व्यवस्था के अंतर्गत एक कानून जो केवल नेताओं के लिए है-
कोई भी नेता, प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, पार्षद व अन्य राज्य एवं केन्द्रीय मंत्री जब विदेशी दौरे पर जाते हैं (चाहे राजनैतिक हो अथवा व्यक्तिगत) तो उन्हें सचिवालय को सूचित करना जरुरी है कि कहाँ जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं, कब आएँगे आदि| और RTI के अंतर्गत देश की जनता को इस विषय में सूचना मांगने का व सचिवालय को सूचना देने का अधिकार है| क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ये लोग जनता के सेवक हैं, अत: इनके विषय में जनता को जानकारी होनी चाहिए|
सोनिया गांधी के विदेशी दौरे सम्बन्धी RTI के द्वारा जानकारी मांगने पर पता चला है कि 2004 (जबसे यूपीए सरकार सत्ता में आई है) से अब तक सोनिया की एक भी विदेशी यात्रा की कोई भी जानकारी सचिवालय के पास नहीं है| 
न तो सचिवालय ने कभी पूछने की ज़हमत उठाई और सोनिया से तो उम्मीद रखना ही बेकार है कि वह ऐसी कोई जानकारी सचिवालय को देगी|
आखिर कुछ तो रहस्य है सोनिया की इन गुप्त यात्राओं का| शायद अमरीका ने सप्रेम आमंत्रण भेजा हो कि हमे लुटने से बचा लो| कुछ ऐसा किया जाए कि जिससे तुम भी सुरक्षित रहो व हमारा देश भी भूखा नंगा होने से बच जाए| भारत का क्या है? इतने सालों से यूं लूट ही रहे हो, अब हम भी तुम्हारा साथ देंगे|

इस क़ानून के विषय में विस्तार से जानने के लिए यहाँ अवश्य देखें...

Sunday, August 7, 2011

किसका महत्व अधिक है, हिना रब्बानी का या भारतीय सेना के जवानों का???


मित्रों हिना रब्बानी अब अपनी भारत यात्रा पूरी कर फिर से अपने देश पापी पाकिस्तान चली गयी है| अब तक इस विषय में कई जगह बहुत कुछ लिखा भी जा चूका है|

जिस तरह से उसे मीडिया में दिखाया जा रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे हिना रब्बानी न हुई स्वर्ग की कोई अप्सरा हो गयी| कोई उसके पर्स पर कैमरा फोकस कर रहा है, तो कोई सैंडल पर| और तो और बैकग्राउंड में गाना चल रहा था "एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा"

यहाँ तक कि हमारे माननीय(?) नेतागण भी ऐसे दीवाने हुए मानों पाकिस्तानी दूत न होकर कोई देवदूत स्वर्ग से उतर कर आया हो| हाथ मिलाने लगे तो हाथ छोड़ने का मन ही नहीं हुआ|

समझ नहीं आता किस देश से दोस्ती की वार्ता की जा रही है| उस देश से जो नफरत के कारण हमसे टूट कर अलग हुआ है? उस देश से जो अपने जन्म के समय से आतंकवाद के ज़रिये हमे परेशान करता रहा है? उस देश से जो हमारे हज़ारों लाखों भाई बहनों के हत्यारा है? उस देश से जो हमारी एकता को खंड खंड कर देने के सपने देखता है? उस देश से जितने वर्षों से हमारे सुन्दर कश्मीर को खून से लाल कर रहा है?

अभी १३ जुलाई को मुंबई में हुए आतंकी हमले को दो हफ्ते भी नहीं बीते थे कि हमारे नेता व मीडिया पाकिस्तानी विदेश मंत्री की चाटुकारी में लग गए| अब इस बात से ही इनकार हो कि वह आतंकी हमला पाकिस्तानी आतंकवाद ने करवाया हो तो बात अलग है| इसमें भी शायद इन सेक्युलरों को आर एस एस या हिन्दू आतंकवाद (?) का हाथ नज़र आए| वैसे दिग्गी ने तो इसकी भी संभावना दे ही दी थी|

भाई ऐसा भी क्या प्यार इस पापी पाकिस्तान से कि ठीक कारगिल विजय की वर्षगाँठ वाले दिन ही यह नंगा नाच शुरू कर दिया? ये तो सीधा सीधा सोच पर वार है| सीधा सीधा कारगिल विजय का अपमान है|

जिस समय हमारे नपुंसक नेता हिना रब्बानी की आवभगत में लगे थे ठीक उसी समय पाकिस्तानी आतंकियों ने दो भारतीय सैनिकों की निर्मम हत्या कर उनके सर धड से अलग कर अपने साथ पाकिस्तान ले गए, मानों जीत की ट्रॉफी ले कर गए हों| भांड मीडिया को हिना रब्बानी से फुर्सत मिलती तब तो इस खबर के बारे में चार पंक्तियाँ कहता| यहाँ तक कि हमारी आतंकी सरकार को भी फुर्सत के कुछ क्षण मिले होते तब तो इस घृणित कार्य के लिए आतंकियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही करती| किन्तु हाय रे हिना रब्बानी, तेरी सुन्दरता ने इन्हें ऐसा मोह लिया कि तेरे आने का षड्यंत्र भी न समझ पाए|
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने विदेश मंत्री न भेज कर कोई आइटम गर्ल भेज दी, और हमारे नेता व मीडिया उसके जलवों में खो कर रह गए| पीछे से पाकिस्तान ने अपनी गंदी चालें चलनी शुरू कर दीं| हिना रब्बानी के भारत आने का जो कुचक्र था वह उसने सिद्ध कर दिया| पाकिस्तान पहुँच कर उसने तो भारत के लिए वही पुराना जहर उगलना शुरू कर दिया जो  इसका पापी देश पिछले ६४ वर्षों से उगलता आया है|

काहे की दोस्ती???

ऐसी शान्ति से हमें तो कोई प्रेम नहीं है|

कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के समीप भारतीय सेना व पाकिस्तानी आतंकवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में आतंकियों ने यह घटिया काम किया| मरने वाले दोनों जवान कुमाऊं रेजिमेंट के थे| शहीदों की पहचान हवालदार जयपाल सिंह अधिकारी व लांस नायक देवेन्द्र सिंह के रूप में की गयी है| इसके साथ ही पैट्रोलिंग पार्टी का 19 राजपूत रेजिमेंट का एक अन्य जवान भी शहीद हुआ है| 

शहीद हुए जवानों के शव इतने बुरी हालत में थे कि परिज़नों को उनके शवों को देखने की आज्ञा भी नहीं दी गयी|
ऐसी घटनाओं से सेना के जवानों का मनोबल टूट रहा है जो कश्मीर घाटी में आतंकियों से लोहा लेने के लिए प्रतिक्षण मुस्तैद हैं| ऊपर से सरकार का किसी प्रकार का कोई सहयोग न मिलना आग में घी का काम कर रहा है| क्या इन वीरों को वहाँ कुत्ते की मौत मरने के लिए ही छोड़ रखा है?
ऐसी परिस्थिति में यदि सेना भी बगावत कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं| इसकी जिम्मेदार सेना नहीं, यही भ्रष्ट सरकार होगी जो आतंकियों के साथ मिलकर हमारे जवानों की बलि चढ़ा रही है|

फिर भी पता नहीं देश में यह कैसी शान्ति छाई है? मानों जो कुछ भी हो रहा है, इससे किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा| आज सुबह से ही पता नहीं कितने ही मुर्ख मुझे यहाँ वहां Friendship Day की बधाइयां दे रहे हैं| अब ऐसे लोगों से मित्रता करने के निर्णय पर भी विचार करना पड़ रहा है|


Thursday, August 4, 2011

तुम मुझे गाय दो, मैं तुम्हे भारत दूंगा


मित्रों शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत| मैं कोई नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा नारा लगाकर उनके समकक्ष बनने का प्रयास नहीं कर रहा| उनके समकक्ष बनना तो दूर यदि उनके अभियान का योद्धा मात्र भी बन सका तो स्वयं को भाग्यशाली समझूंगा|

अभी जो शीर्षक मैंने दिया, वह एक अटल सत्य है| यदि भारत निर्माण करना है तो गाय को बचाना होगा| एक भारतीय गाय ही काफी है सम्पूर्ण भारत की अर्थव्यवस्था चलाने के लिए| किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की आवश्यकता ही नहीं है| ये कम्पनियां भारत बनाने नहीं, भारत को लूटने आई हैं|

खैर अब मुद्दे पर आते हैं|
मैं कह रहा था कि मुझे भारत निर्माण के लिए केवल भारतीय गाय चाहिए| यदि गायों का कत्लेआम भारत में रोक दिया जाए तो यह देश स्वत: ही उन्नति की ओर अग्रसर होने लगेगा| मैं दावे के साथ कहता हूँ कि केवल दस वर्ष का समय चाहिए| दस वर्ष पश्चात भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे ऊपर होगी| आज की सभी तथाकथित महाशक्तियां भारत के आगे घुटने टेके खड़ी होंगी|

सबसे पहले तो हम यह जानते ही हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है| कृषि ही भारत की आय का मुख्य स्त्रोत है| ऐसी अवस्था में किसान ही भारत की रीढ़ की हड्डी समझा जाना चाहिए| और गाय किसान की सबसे अच्छी साथी है| गाय के बिना किसान व भारतीय कृषि अधूरी है| किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में किसान व गाय दोनों की स्थिति हमारे भारतीय समाज में दयनीय है|

एक समय वह भी था जब भारतीय किसान कृषि के क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था| इसका कारण केवल गाय है| भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन है| गाय का गोबर किसान के लिए भगवान् द्वारा प्रदत एक वरदान है| खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत है| इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्त्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है|

किन्तु हरित क्रान्ति के नाम पर सन १९६० से १९८५ तक रासायनिक खेती द्वारा भारतीय कृषि को नष्ट कर दिया गया| हरित क्रान्ति की शुरुआत भारत की खेती को उन्नत व उत्तम बनाने के लिए की गयी थी| किन्तु इसे शुरू करने वाले आज किस निष्कर्ष तक पहुंचे होंगे?
रासायनिक खेती ने धरती की उर्वरता शक्ति को घटा कर इसे बाँझ बना दिया| साथ ही साथ इसके द्वारा प्राप्त फसलों के सेवन से शरीर न केवल कई जटिल बिमारियों की चपेट में आया बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटी है|
वहीँ दूसरी ओर गाय के गोबर से बनी खाद से हमारे देश में हज़ारों वर्षों से खेती हो रही थी| इसका परिणाम तो आप भी जानते ही होंगे| किन्तु पिछले कुछ दशकों में ही हमने अपनी भारत माँ को रासायनिक खेती द्वारा बाँझ बना डाला|

इसी प्रकार खेतों में कीटनाशक के रूप में भी गोबर व गौ मूत्र के उपयोग से उत्तम परिणाम वर्षों से प्राप्त किये जाते रहे| गाय के गोबर में गौ मूत्र, नीम, धतुरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा खेतों को किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जा सकता है| वर्षों से हमारे भारतीय किसान यही करते आए हैं| किन्तु आज का किसान तो बेचारा रासायनिक कीटनाशक का छिडकाव करते हुए स्वयं ही अपने प्राण गँवा देता है| कई बार किसान कीटनाशकों की चपेट में आकर मर जाते हैं| ज़रा सोचिये कि जब ये कीटनाशक इतने खतरनाक हैं तो पिछले कई दशकों से हमारी धरती इन्हें कैसे झेल रही होगी? और इन कीटनाशकों से पैदा हुई फसलें जब भोजन के रूप में हमारी थाली में आती हैं तो क्या हाल करती होंगी हमारा?

केवल चालीस करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में चौरासी लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है| किन्तु रासायनिक खेती के कारण आज भारत में १९० लाख किलो गोबर के लाभ से हम भारतवासी वंचित हो रहे हैं|


किसी भी खेत की जुताई करते समय चार से पांच इंच की जुताई के लिए बैलों द्वारा अधिकतम पांच होर्स पावर शक्ति की आवश्यकता होती है| किन्तु वहीँ ट्रैक्टर द्वारा इसी जुताई में ४० से ५० होर्स पावर के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है| अब ट्रैक्टर व बैल की कीमत के अंतर को बहुत सरलता से समझा जा सकता है| वहीँ ट्रैक्टर में काम आने वाले डीज़ल आदि का खर्चा अलग है| इसके अतिरिक्त भूमि के पोषक जीवाणू  ट्रैक्टर की गर्मी से व उसके नीचे दबकर ही मर जाते हैं|

इसके अलावा खेतों की सींचाई के लिए बैलों के द्वारा चालित पम्पिंग सेट और जनरेटर से ऊर्जा की आपूर्ति भी सफलता पूर्वक हो रही है| इससे अतिरिक्त बाह्य ऊर्जा में होने वाला व्यय भी बच गया|

यदि भारतीय कृषि में गौवंश का योगदान मिले तो आज भी भारत भूमि सोना उगल सकती है| सदियों तक भारत को सोने की चिड़िया बनाने में गाय का ही योगदान रहा है|


ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भी पशुधन का उपयोग लिया जा सकता है| आज भारत में विधुत ऊर्जा उत्पादन का करीब ६७ प्रतिशत थर्मल पावर से, २७ प्रतिशत जलविधुत से, ४ प्रतिशत परमाणु ऊर्जा से व २ प्रतिशत पवन ऊर्जा के द्वारा हो रहा है|

थर्मल पावर प्लांट में विधुत उत्पादन के लिए कोयला, पैट्रोल, डीज़ल व प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाता है| इसके उपयोग से कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन वातावरण में हो रहा है| जिससे वातावरण के दूषित होने से भिन्न भिन्न प्रकार के रोगों का जन्म अलग से हो रहा है|
जलविधुत परियोजनाएं अधिकतर भूकंपीय क्षेत्रों में होने के कारण यहाँ भी खतरे की घंटी है| ऐसे में किसी भी बाँध का टूट जाना करोड़ों लोगों को प्रभावित कर सकता है| टिहरी बाँध के टूटने से चालीस करोड़ लोग प्रभावित होंगे|
परमाणु ऊर्जा के उपयोग का एक भयंकर परिणाम तो हम अभी कुछ समय पहले जापान में देख ही चुके हैं| परमाणु विकिरणों के दुष्प्रभाव को कई दशकों बाद भी देखा जाता है|



जबकि यहाँ भी गौवंश का योगदान लिया जा सकता है| स्व. श्री राजीब भाई दीक्षित अपने पूरे जीवन भर इस अनुसन्धान में लगे रहे व सफल भी हुए| उनके द्वारा बनाए गए गोबर गैस संयत्र से गोबर गैस को सिलेंडरों में भरकर उसे ईंधन के रूप में उपयोग लिया जा सकता है| आज एक साधारण कार को पैट्रोल से चलाने में करीब चार रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से खर्च होता है| जिस प्रकार से पैट्रोल, डीज़ल के दाम बढ़ रहे हैं, यह खर्च आगे और भी बढेगा| वहीँ दूसरी और गोबर गैस के उपयोग से उसी कार को ३५ से ४० पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से चलाया जा सकता है|
आईआईटी दिल्ली ने कानपुर गोशाला और जयपुर गोशाला अनुसंधान केन्द्रों के द्वारा एक किलो सी .एन.जी. से २५ से ४० किलोमीटर एवरेज दे रही तीन गाड़ियां चलाई जा रही है|
रसोई गैस सिलेंडरों पर भी यह बायोगैस बहुत कारगर सिद्ध हुई है| सरकार की भ्रष्ट नीतियों के चलते आज रसोई गैस के दाम भी आसमान तक पहुँच गए हैं, जबकि गोबर गैस से एक सिलेंडर का खर्च केवल ५० से ७० रुपये तक आँका गया है|
इसी बायोगैस से अब हैलीकॉप्टर भी जल्द ही चलाया जा सकेगा| हम इस अनुसन्धान में अब सफलता के बहुत करीब हैं|
गोबर गैस प्लांट से करीब सात करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है, जिससे करीब साढ़े तीन करोड़ पेड़ों को जीवन दान दिया जा सकता है| साथ ही करीब तीन करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई आक्साइड को भी रोका जा सकता है|

पैट्रोल, डीज़ल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्त्रोत हैं, किन्तु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्त्रोत है| जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी|


हाल ही में कानपुर की एक गौशाला ने एक ऐसा सीऍफ़एल बल्ब बनाया है जो बैटरी से चलता है| इस बैटरी को चार्ज करने के लिए गौमूत्र की आवश्यकता पड़ती है| आधा लीटर गौमूत्र से २८ घंटे तक सीऍफ़एल जलता रहेगा|
यदि सरकार चाहे तो इस क्षेत्र में सकारात्मक कदम उठाकर इससे भारी मुनाफा कमाया जा सकता है|




इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में तो भारतीय गाय के योगदान को कोई झुठला ही नहीं सकता| हम भारतीय गाय को ऐसे ही माता नहीं कहते| इस पशु में वह ममता है जो हमारी माँ में है|
भारतीय गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाड़ी होती है| सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है| गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में भी होता है|
अक्सर ह्रदय रोगियों को घी न खाने की सलाह डॉक्टर देते रहते हैं| साथ ही एलोपैथी में ह्रदय रोगियों को दवाई में सोना ही कैप्सूल के रूप में दिया जाता है| यह चिकित्सा अत्यंत महँगी साबित होती है|
जबकि आयुर्वेद में ह्रदय रोगियों को भारतीय गाय के दूध से बना शुद्ध घी खाने की सलाह दी जाती है| इस घी में विद्यमान स्वर्ण के कारण ही गाय का दूध व घी अमृत के समान हैं|
गाय के दूध का प्रतिदिन सेवन अनेकों बीमारियों से दूर रखता है|
गौ मूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, अर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी सम्बंधित रोगों का उपचार भी संभव है| ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके|


यहाँ तक कि हवन में प्रयुक्त होने वाले गाय के घी व गोबर से निकलने वाले धुंए से प्रदुषण जनित रोगों से बचा जा सकता है| हवन से निकलने वाली गैसों में इथीलीन आक्साइड, प्रोपीलीन आक्साइड व फॉर्मएल्डीहाइड गैसे प्रमुख हैं|
इथीलीन आक्साईड गैस जीवाणु रोधक होने पर आजकल आपरेशन थियेटर से लेकर जीवन रक्षक औषधियों के निर्माण में प्रयोग मे लायी जा रही है। वही प्रोपीलीन आक्साइड गैस का प्रयोग कृत्रिम वर्षा कराने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है|
साथ ही गाय के दूध से रेडियो एक्टिव विकिरणों से होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है|

यदि सरकार वैदिक शिक्षा पर कुछ शोध करे तो दवाइयों पर होने वाले करीब दो लाख पचास हज़ार करोड़ के खर्चे से छुटकारा पाया जा सकता है|

अब आप ही बताइये कहने को तो गाय केवल एक जानवर है, किन्तु इतने कमाल का एक जानवर क्या हमें ऐसे ही बूचडखानों में तड़पती मौत मरने के लिए छोड़ देना चाहिए?

कुछ तो कारण है जो हज़ारों वर्षों से हम भारतीय गाय को अपनी माँ कहते आए हैं|

भारत निर्माण में गाय के अतुलनीय योगदान को देखते हुए शीर्षक की सार्थकता में मुझे यही शीर्षक उचित लगा|