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Saturday, July 30, 2011

देशभक्त का पासपोर्ट फर्जी,, और देशद्रोही का ??? आचार्य बालकृष्ण बनाम रौल विन्ची

मित्रों बाबा रामदेव पर शिकंजा कसने के लिए उनके दायें हाथ आचार्य बालकृष्ण को अब कांग्रेस ने साधना शुरू कर दिया है| जब हर तरफ से विफल हो गए और मुद्दों का अभाव हो गया तो पता नहीं कहाँ कहाँ से अर्जी फर्जी मुद्दे उठाकर ला रहे हैं| आचार्य बालकृष्ण का पासपोर्ट यदि फर्जी है तो क्या कल ही फर्जी हो गया? अभी इतने दिन उनके पासपोर्ट की याद क्यों नहीं आई? काले धन के लिए मूंह क्या खोल दिया, उनका पासपोर्ट ही फर्जी हो गया?

जब बाबा रामदेव चार जून की काली रात के बाद भी अनशन पर डटे रहे व स्वास्थ्य खराब होने के कारण कुछ नहीं कर पा रहे थे, ऐसे में आचार्य बालकृष्ण ने कमान संभाल रखी थी| अब इतना बड़ा दुस्साहस करने का दंड तो उन्हें मिलना ही था| उनकी हिम्मत कैसे हो गयी भ्रष्टों के सिंहासन को हिलाने की?

बहरहाल न्यायालय ने फिलहाल उन्हें ज़मानत पर छोड़ रखा है| अब आचार्य को चार अगस्त को सी बी आई (कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) के समक्ष पूछताछ के लिए उपस्थित होना है|

प्रश्न यह है की आखिर आचार्य बालकृष्ण के साथ ऐसा क्यों? यदि वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आवाज़ नहीं उठाते तो कोई कुत्ता भी नहीं भौंकता उन पर| किन्तु इतना बड़ा दुस्साहस करने पर अब सरकार में बैठे अव्वल दर्जे के कुत्तों ने भौंक भौंक कर पूरे वातावरण का ध्वनि प्रदुषण कर रखा है|
आरोप भी कैसे कैसे, सुने तो हंसी आ जाए|
एक आरोप यह है कि आचार्य की डिग्रियां फर्जी हैं| किन्तु जब उनके विश्वविद्यालय के प्राधानाचार्य ने भी यह साफ़ कर दिया है कि आचार्य बालकृष्ण की डिग्रियां फर्जी नहीं हैं| वे यहाँ पढ़ चुके हैं| किन्तु कुत्तों को यह बात कहाँ समझ आने वाली थी?
जैसे तैसे अगला आरोप मढ़ डाला कि आचार्य की जन्मतिथि वह नहीं है जो उनकी डिग्रियों में लिखी है| मतलब बाल की खाल निकालनी हो तो केवल देशभक्तों पर ही निशाना लगाया जाए, खुद तो जैसे दूध के धुले हैं| संसार में जैसे इनसे बड़ा कोई सत्यवादी हरीश्चन्द्र कोई हुआ ही नहीं|
अब आप ही बताएं कि भारत में कितने ऐसे विद्यार्थी हैं जिनके जन्म प्रमाणपत्र पर एकदम सही तिथि लिखी है? स्कूल में दाखिला लेते समय अपनी जन्म तिथि दो चार महीने आगे पीछे कर देना कोई अपराध नहीं है| दूसरी बात जन्म प्रमाण पत्र को ही जन्म तिथि का अंतिम प्रमाण माना जाता है| इसके आगे यदि भगवान् भी आकर कह दें कि इसका जन्म इस दिनांक को इस समय नहीं हुआ था, तो भी सरकारी मामलों में इस जन्म तिथि को ही सही माना जाता है| फिर किस कारण आचार्य पर यह आरोप लगाया जाता है? क्या आचार्य के जन्म के समय दिग्गी राजा वहां मौजूद थे, कि इन्हें जन्म की दिनांक व समय एकदम सही सही याद है|
मेरे दोनों भाइयों के जन्म प्रमाणपत्र पर गलत दिनांक लिखी है| क्या उनके पासपोर्ट भी फर्जी हैं? फिर तो इस देश में आधे से ज्यादा पासपोर्ट फर्जी ही निकलेंगे|

बार बार इसी प्रकार देशभक्तों को प्रताड़ित किया जा रहा है| कभी बाबा रामदेव के ट्रस्ट की संपत्ति को लेकर तो कभी आचार्य बालकृष्ण के पासपोर्ट को लेकर| भ्रष्टाचार व काले धन के मुद्दे से पहले बाबा रामदेव की संपत्ति भी सफ़ेद थी व आचार्य का पासपोर्ट भी| पता नहीं अचानक ये काले कैसे हो गए?

और सवाल उठाने वाले भी कौन? इन्हें क्या अधिकार है, आचार्य पर इस प्रकार का आरोप लगाने का? यदि जांच करनी ही है तो पहले रौल विन्ची के पासपोर्ट की जांच करो| डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने यह सिद्ध कर दिया है कि विन्ची के पास इतालवी पासपोर्ट है, भारतीय नहीं| अर्थात वह भारतीय नागरिक नहीं, इटली का नागरिक है| यहाँ तक कि उस पर उसका नाम राहुल गांधी नहीं अपितु रौल विन्ची लिखा है| फिर किस अधिकार से उसे भारत का भावी प्रधानमंत्री घोषित कर रखा है?
यदि डिग्रियों की जांच करनी है तो पहले विन्ची की डिग्रियों की जांच की जाए| जो आदमी पांच विश्वविद्यालयों में पढ़कर भी आज तक B.A. पास न कर सका, किस अधिकार से स्वयं को M.Phil. कहता है? और किस अधिकार से उसे भारत का भावी प्रधान मंत्री घोषित कर रखा है?
वह आदमी जो बलात्कारी है| नीचे देखें...



क्यों न पहले इसकी जांच कर ली जाए? इसके जुर्म के आगे तो आचार्य बालकृष्ण के तथाकथित अपराध कुछ भी नहीं हैं|

जब इतनी जांच हो ही रही है तो लगे हाथ सोनिया व राजिव गांधी की डिग्रियों की भी जाँच करवा ली जाए| वो औरत जो केवल पांचवीं पास है, किस आधार पर स्वयं को अंग्रेजी में स्नातक कहती आई है?
और वो आदमी जिसे केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पहले ही वर्ष में तीन बार फेल होने के कारण निकाल दिया गया था, किस आधार पर स्वयं को मैकेनिकल इंजिनियर कहता रहा?

और तो और इसी बहाने असम के कांग्रेस के सांसद एम्. के. सुब्बा राव के पासपोर्ट की जांच भी करवा ली जाए| सुब्बा राव की नागरिकता पर सी बी आई चार्ज शीट तक दायर कर चुकी है| आचार्य के मामले में सी बी आई ने उनके भारतीय नागरिक होने पर कोई सवाल नहीं उठाया था, केवल पासपोर्ट कार्यालय में जमा किये गए दस्तावेजों पर ही जांच की मांग की है| किन्तु सुब्बा राव के विरुद्ध तो सी बी आई ने उनकी नागरिकता पर सवाल उठाते हुए मामला दर्ज किया था| फिर क्या कारण है कि सुब्बा राव की जांच में एक दशक से भी अधिक का समय लग गया और आचार्य बालकृष्ण के मामले में इतनी जल्दबाजी की जा रही है? सुब्बार राव आज भी आसानी से भारत में अपना व्यापार चला रहा है और पूर्व सांसद होने के सुख भी भोग रहा है|
इसका अर्थ साफ़ है कि सी बी आई कोई स्वतंत्र जांच एजेंसी न रहकर कांग्रेस के इशारों पर नाचने वाली संस्था मात्र रह गयी है|

और अंत में कादिर मौलाना की भी जांच करवा ली जाए| इन महानुभाव के विषय में कुछ लिखकर अपने लैपटॉप के कीबोर्ड को कलंकित करने से अच्छा है, आप यह चित्र ही ध्यान से देख लें|

इस तस्वीर को देखकर तो यही कगता है कि कांग्रेस का यह कुत्ता जरुर आई एस आई का सदस्य होगा अथवा लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद या हिजबुल या फिर अलकायदा का कोई आतंकी ही होगा|


इन सब के विपरीत न्यायालय ने यह कह कर आचार्य को ज़मानत पर छोड़ दिया है कि पासपोर्ट विभाग ने ही अभी तक उनकी डिग्रियों को लेकर कोई शिकायत दर्ज नहीं की है तो जांच की आवश्यकता ही क्या है?

अब यदि आचार्य बालकृष्ण दोषी भी हैं तो मेरे विचार से उनका अपराध तो इन सब के सामने कुछ भी नहीं है| अच्छा यही होगा कि आचार्य से पहले इन सब बागड़ बिल्लों की जांच हो|
यदि इनकी जांच नहीं हो सकती तो आचार्य की जांच भी नहीं होगी| इस देश का संविधान सभी को बराबर के अधिकार देता है| यदि संविधान की कमियों का फायदा कांग्रेस उठाना जानती है तो हम भी जानते हैं|

दरअसल ये दुष्ट सरकार, बेशर्म सरकार भारतवासियों का ध्यान भ्रष्टाचार के मुद्दे से भटका कर, इसके विरुद्ध लड़ने वालों को ही कटघरे में खड़ा कर रही है|
इस भ्रष्ट सरकार का देशवासियों को सीधे सीधे यह सन्देश है कि हम भ्रष्टाचार करते रहेंगे, देश में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम भी देते रहेंगे, यदि किसी ने हमारा विरोध किया तो चार जून की काली रात की तरह उसका दमन कर देंगे| फिर भी यदि किसी ने सर उठाया तो उस पर व्यक्तिगत कार्यवाही करेंगे, जैसी इस समय आचार्य बालकृष्ण व बाबा रामदेव के साथ की जा रही है|
सरकार के हौंसले बुलंद हैं क्योंकि भारतीयों का पौरुष नष्ट हो गया है| ऐसा लगता है कि अचानक सभी भारतीय नपुंसक हो गए हैं| भारत में रहने वाले वीरों की संख्या कुछ लाख या एक आध करोड़ ही रह गयी है| जो आज भी अपनी मातृभूमि व उसकी संतानों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं|
भारतवासियों का पौरुष कहाँ लुप्त हो गया? क्यों आज देश में केवल बुद्धिजीवी (?) (असल में इन्हें बुद्धूजीवी कहा जाना चाहिए) ही बचे हैं? भारत के वे रणबांकुरे कहाँ गए, जिनकी दहाड़ सुनकर यवन भी इस देश को छोड़कर अपनी जान बचाने पुन: यूनान भाग गए थे? कहाँ गयीं महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी महाराज, रानी झांसी की संतानें? क्या उत्तर दोगे मृत्यु के पश्चात अपने पितरों को? स्वर्ग में बैठी उनकी आत्माएं भी अपनी डरपोक संतानों पर लज्जा कर रही होंगी|
कहाँ गयी भारत की वे महिलाएं जो कभी वीरों को जन्म देती थीं? क्या इनके दूध में अब milk powder मिल गया है, जो आजकल इनकी कोख से नपुंसकों का जन्म हो रहा है?
अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना क्या पाप है? आपके बाबा रामदेव, अन्ना हजारे या आचार्य बालकृष्ण से व्यक्तिगत मतभेद हो सकते हैं| किन्तु उनके विरुद्ध सरकार का यह आचरण न्यायसंगत नहीं है| जिस प्रकार यह देशद्रोही सरकार उनपर अत्याचार कर रही है, आपका मौन रहना सरकार को समर्थन दे रहा है| जिन लोगों ने आपके अधिकारों की रक्षा के लिए आन्दोलन खड़ा किया है उन पर होने वाले अत्याचार को आप मौन रहकर मूक सहमती दे रहे हैं| यह भी एक प्रकार का देशद्रोह ही है| अत्याचारियों का विरोध करने की आपकी शक्ति कहाँ लुप्त हो गयी? क्या आप केवल मैं, मेरा घर, मेरा परिवार की मानसिकता से बंध गए हैं? क्या आप इन सब से ऊपर उठकर "मेरा राष्ट्र" की मानसिकता को नहीं अपना सकते?

यदि नहीं तो इस देश में ऐसे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए| नपुंसकों, डरपोकों व कायरों के लिए हमारे देश में एक इंच भूमि भी नहीं है| यह वीरों का देश है और यहाँ केवल वीरों को ही स्थान मिलेगा|
इस देश में ऐसी व्यवस्था लानी होगी, जहाँ इस देश में जीने का अधिकार केवल उसी को मिलेगा जो इस देश पर मर मिटने के लिए सदैव तत्पर रहे|

जय हिंद
वंदेमातरम 

Wednesday, July 27, 2011

चाहे कुछ भी हो जाए, हिमालय का सर नहीं झुकेगा

मित्रों २६ जुलाई २०११, कारगिल विजय की बारहवीं वर्षगाँठ| यह भारत के लिए एक सम्मान से कम नहीं है|
भारत माँ के उन वीर सपूतों को नमन, जिन्होंने अपने प्राणों की आहूति देकर भारत का गौरव खोने नहीं दिया|

कारगिल युद्ध मेरे जीवन में एक ऐसा युद्ध रहा जिसके बारे में मुझे लगता है कि जैसे मैंने अपनी आँखों से इस युद्ध को देखा| जैसे मैंने यह युद्ध लड़ा| क्योंकि इससे पहले हुए युद्धों के समय तो मेरा जन्म ही नहीं हुआ था|

बचपन से ही मैं फौजी बनना चाहता था| बहुत प्रयास भी किया| बहुत से दोस्तों व वरिष्ठ सेना अधिकारियों से मिलने पर उन्होंने भी यही कहा कि मुझमे सेना का एक अफसर बनने के गुण हैं| साथ ही मैं एक मुक्केबाज़ भी रह चूका हूँ| अत: मुझे इसके लिए सतत प्रयासरत रहना चाहिए|

किन्तु एक कारण ऐसा रहा जिसने सभी प्रयासों को विफल कर दिया|
करीब पांच-छ: वर्ष पहले एक सड़क दुर्घटना में सर में चोट आने की वजह से मेरी आँखों का कॉर्निया कुछ घूम गया व इसकी मोटाई भी कुछ घट गयी| इस कारण मैं सेना के लिए अयोग्य साबित हो गया| इसका दुःख तो बहुत हुआ, किन्तु नियति को शायद यही स्वीकार था| सेना में न सही, सेना से बाहर रहकर भी हिमालय को झुकने से बचाया जा सकता है| अत: अब इसी प्रयास में लगा हूँ|

कारगिल युद्ध के वीरों पर कई साहित्य पढ़ा| बहुत से सैनिकों के शौर्य का वर्णन देखा| वैसे तो इनमे किसी भी प्रकार की तुलना इनके बलिदान का अपमान होगी, अत: सभी का बराबर सम्मान करता हूँ| किन्तु गोरखा रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने कुछ विशेष आकर्षित किया| इनके विषय में जब पढ़ रहा था तो एक अजीब सा सुख व गौरव का अनुभव किया| किस प्रकार उन्होंने एक के बाद एक चोटियों पर तिरंगा लहराया| पहले कूकर्थान, फिर जहान्बाग और अंत में टाइगर हिल की चढ़ाई करते हुए शहादत| किन्तु मरते मरते दुश्मन का एक पूरा बंकर उन्होंने नष्ट कर दिया व उसमे बैठे सात दुष्ट पाक पापियों को मार डाला| टाइगर हिल की चढ़ाई से पहले दुश्मन के ठिकानों का पता लगाने भी वे अकेले निकल पड़े थे| चढ़ाई से पहले उन्होंने अपने अफसर से कहा था कि मैं दुश्मन की छाती पर पाँव रखकर टाइगर हिल पर तिरंगा लहराऊंगा| तिरंगा तो वे नहीं लहरा सके, यह सौभाग्य 18 ग्रेनेडियर्स को मिला था| किन्तु 18 ग्रेनेडियर्स के लिए उन्होंने रास्ता साफ़ कर दिया था व सच में दुश्मन की छाती पर कदम रख कर उन्होंने चोटी की अंतिम चढ़ाई की|

मित्रों कारगिल युद्ध के बारे में तो आप भी बहुत कुछ जानते ही होंगे| एक ऐसा युद्ध जिसे जीत पाना असंभव सा लग रहा था| क्योंकि दुश्मन की स्थिति, संख्या, सामर्थ्य आदि का कोई ज्ञान हमे नहीं था| दुख्मन कहीं भी हो सकता है, संख्या में कितना भी हो सकता है, किसी भी प्रकार के हथियारों से युक्त हो सकता है| ऐसे में उसके ठिकानों का पता लगाना व उसे परास्त करना एक बहुत ही कठिन कार्य था| किन्तु हमारे वीरों ने उस असंभव को भी संभव बनाया|

मैं राजस्थान के बीकानेर जिले से हूँ| कारगिल युद्ध के समय बीकानेर में ही रहता था| बीकानेर जिला पाक सीमा को छूता है| हमारा शहर भारत पाक सीमा से शायद केवल सौ किलोमीटर की दूरी पर ही है| अत: सुरक्षा की दृष्टि से कई बार वहां रात में ब्लैकआउट करवाया गया| मैंने अपने जीवन में पहली बार ब्लैक आउट देखा था| सारा शहर अँधेरे में डूबा हुआ व वायु सेना के विमान बहत नीचे काफी तेज़ गति से शहर के ऊपर मंडराते रहते थे| यह भी अपने आप में एक रोमांच था|

मेरे ताऊजी (पिता के बड़े भाई) मेजर जनरल यश नारायण शर्मा अभी दो वर्षों से यहाँ जयपुर में ही पोस्टेड हैं| अभी वे यहाँ छावनी क्षेत्र में अकेले ही रहते हैं| कई बार उनसे मिला व  कारगिल युद्ध की कहानी उनसे सुनी| कारगिल युद्ध के समय वे कर्नल थे व अखनूर सेक्टर में तैनात थे| उनसे कारगिल युद्ध की उनकी आँखों देखी सुनी| वे खुद कर्नल थे अत: फ्रंट में जाने की आज्ञा तो उनके बराबरी के अफसरों को नहीं मिलती, किन्तु अपनी आँखों से युद्ध उन्होंने भी देखा है| उन्होंने बताया कि ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी हम इस युद्ध को जीत पाने में सफल हुए| हाँ यह भी सत्य है कि भारतीय सेना उस समय नियंत्रण रेखा पार करना चाहती थी| क्योंकि मौका अच्छा था, सामने से युद्ध का आमंत्रण मिला था, जिसका फायदा उठाकर पाक अधिकृत कश्मीर को मुक्त कराया जा सकता था| युद्ध में तत्कालीन भारत सरकार ने सेना की बहुत सहायता की| रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज़ ने सेना के लिए हथियारों का भण्डार खोल दिया था| किन्तु नियंत्रण रेखा को पार करने से रोकना शायद एक बहुत बड़ी भूल थी|

२६ जुलाई २०११, दिन भर प्रतीक्षा की कि शायद भारत सरकार का कोई मंत्री आज के दिन के सन्दर्भ में उन वीरों की वीरता व इस ऐतिहासिक विजय के लिए देशवाशियों को कोई बधाई दे व शहीदों को श्रद्धांजलि| मैंने तो ऐसा कोई समाचार नहीं देखा| यदि दिया भी है तो कहाँ दिया कि हम तक खबर भी नहीं पहुंची?
खैर अब इस देशद्रोही सरकार से ऐसी अपेक्षाएं रखना केवल मुर्खता है| हमारे भ्रष्ट, खुनी व आतंकी मंत्रिमंडल को सोनिया माता (?) की चमचा गिरी से कुछ फुर्सत मिले तब तो वे भारत माता के विषय में कुछ सोचें| मैं तो शुक्र मनाता हूँ कि कारगिल युद्ध के समय वाजपेयी जी की सरकार थी| यदि मनमोहन जी होते तो इन्हें युद्ध की खबर उस समय मिलती जब हम युद्ध हार चुके होते| क्योंकि ऐसी भ्रष्ट सरकार व नपुंसक प्रधान मंत्री के होते हुए क्या भारतीय सेना को किसी प्रकार की सहायता मिलती? देश की जनता जो कुछ भी सेना के लिए चंदा इकठ्ठा करती वह सब स्विस खातों में जमा हो गया होता| ऐसे में सेना कैसे दुश्मन से लड़ सकती है?

अंत में जाते जाते श्रद्धांजलि उन वीरों को जिनके त्याग व बलिदान के कारण हमे यह गौरव प्राप्त हुआ| नमन उन वीरों को जिन्होंने असंभव को भी संभव कर दिखाया| नमन उन वीरों को जिन्होंने पापी पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दी|

कारगिल युद्ध में करीब ६०० से अधिक जवान शहीद हुए थे| सबके विषय में तो मैं नहीं जानता, किन्तु कुछ नाम यहाँ दे रहा हूँ|

लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन
लेफ्टिनेंट कर्नल विजय राघवन
लेफ्टिनेंट कर्नल सचिन कुमार
मेजर अजय सिंह जसरोटिया
मेजर कमलेश पाठक
मेजर पध्मफानी आचार्य
मेजर मारियप्पन सर्वानन
मेजर राजेश सिंह अधिकारी
मेजर हरमिंदर पाल सिंह
मेजर मनोज तलवार
मेजर विवेक गुप्ता
मेजर सोनम वांगचुक
मेजर अजय कुमार
कैप्टन अमोल कालिया
कैप्टन कीशिंग क्लिफ्फोर्ड नोंग्रुम
कैप्टन सुमित रॉय
कैप्टन अमित वर्मा
कैप्टन पन्निकोट विश्वनाथ विक्रम
कैप्टन अनुज नायर
कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन जिन्तु गोगोई
कमांडेंट जॉय लाल
लेफ्टिनेंट विजयंत थापर
लेफ्टिनेंट एन. केनगुरुसे
लेफ्टिनेंट हनीफ उद्दीन
लेफ्टिनेंट सौरव कालिया
लेफ्टिनेंट अमित भारद्वाज
लेफ्टिनेंट बलवान सिंह
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा
स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर
फ्लाईट लेफ्टिनेंट एस मुहिलन
फ्लाईट लेफ्टिनेंट नचिकेत राव
सार्जंट पीवीएनआर प्रसाद
सार्जंट राज किशोर साहू
नायक चमन सिंह
नायक आर कामराज
नायक कुलदीप सिंह
नायक बीरेंद्र सिंह लाम्बा
नायक जसवीर सिंह
नायक सुरेन्द्र पाल
नायक राजकुमार पूनिया
नायक एस एन मालिक
नायक सुरजीत सिंह
नायक जुगल किशोर
नायक सुच्चा सिंह
नायक सुमेर सिंह राठौड़
नायक सुरेन्द्र सिंह
नायक किशन लाल
नायक रामपाल सिंह
नायक गणेश यादव
नायक दिगेंद्र कुमार
हवालदार मेजर यशवीर सिंह
लांस नायक अहमद अली
लांस नायक गुलाम मोहम्मद खान
लांस नायक एम् आर साहू
लांस नायक सतपाल सिंह
लांस नायक शत्रुगन सिंह
लांस नायक श्याम सिंह
लांस नायक विजय सिंह
हवलदार बलदेव राज
हवलदार जय प्रकाश सिंह
हवलदार महावीर सिंह
हवलदार मणि राम
हवलदार राजबीर सिंह
हवलदार सतबीर सिंह
हवलदार अब्दुल करीम
हवलदार दलेर सिंह बाहू
सूबेदार भंवर सिंह राठौड़
रायफलमैन लिंकन प्रधान
रायफलमैन बच्चन सिंह
रायफलमैन सतबीर सिंह
रायफलमैन जगमाल सिंह
रायफलमैन रतन चन्द
रायफलमैन मोहम्मद फंद
रायफलमैन मोहम्मद असलम
रायफलमैन योगेन्द्र सिंह
रायफलमैन संजय सिंह
ग्रेनेडियर मनोहर सिंह
गनर उद्दभ दास
कॉन्स्टेबल सूरज भान
सिपाही अमरदीप सिंह
सिपाही विजय पाल सिंह
सिपाही वीरेंद्र कुमार
सिपाही यशवंत सिंह
सिपाही संतोख सिंह
सिपाही दिनेश भई
सिपाही हरेन्द्रगिरी गोस्वामी
सिपाही अमरीश पाल बानगी
सिपाही लखबीर सिंह
सिपाही बजिन्द्र सिंह
सिपाही दीप चन्द
सिपाही दोंदिभा देसाई
सिपाही केवलानंद द्विवेदी
सिपाही हरजिंदर सिंह
सिपाही जसवंत सिंह
सिपाही जसविंदर सिंह
सिपाही लाल सिंह
सिपाही राकेश कुमार (राजस्थान)
सिपाही राकेश कुमार (डोगरा)
सिपाही रस्विंदर सिंह
सिपाही बीर सिंह
सिपाही अशोक कुमार तोमर
सिपाही आर सेलवाकुमार

श्रद्धांजलि इन शहीदों को, श्रद्धांजलि उन शहीदों को भी जिनके नाम यहाँ नहीं हैं|

जय हिंद...जय हिंद की सेना...


Tuesday, July 19, 2011

मायनों, विन्ची या कांग्रेस, कोई अंतर है? एक दृष्टि डालें और बताएं, क्या इन्हें सत्ता सौंपी जानी चाहिए?

मित्रों पीड़ा सहने की शक्ति अब नहीं रही| अब जो करना है, वो कर डालें| आज के बाद मेरा क्या अंत होगा, अब यह सोचने का समय नहीं है|
कुछ विशेष बातें आपके समक्ष रख रहा हूँ| शायद कुछ विषय में तीखी भाषा का उपयोग हो जाए| इसकी मुझे चिंता नहीं|

अब देश में काला धन चाहे आए या न आए, भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन सफल हो या न हो, जन लोकपाल बने या न बने| सब बातें पीछे हैं| सबसे पहले एक ऐसी हस्ती का चरित्र देश के सामने आना आवश्यक है, जिसके सामने प्रधान मंत्री हो या राष्ट्रपति, सब बौने हैं| जो इस देश की बागडोर पूरे तरीके से अपने हाथ में ले चुकी है| जिसके कारनामों के कारण भारत देश का नीति निर्धारण, यहाँ तक कि अर्थव्यवस्था तक पर इटैलियन माफिया का कब्ज़ा हो गया है| जो हस्ती भारत के सुरक्षा मामलों तक घुस चुकी हो| और तो और ख़ुफ़िया तंत्र तक उसके क़दमों में लोट चूका हो|

समझ रहे होंगे किसकी चर्चा हो रही है...

वैसे तो मायनों का दखल भारत की राजनीति में उस समय से है, जब राजीव गांधी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी पहुँच गया था| अब ये कहानी तो पुरानी हो चुकी है कि किस प्रकार वह रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी की एजेंट बनी, कब उसने भारत की नागरिकता स्वीकार की, इंदिरा गांधी की मृत्यु के समय उसकी क्या भूमिका रही, भारतीय पिता होने के बाद भी राहुल व प्रियंका आज तक इतालवी नागरिक क्यों हैं, किस आधार वे आज भारत में रह रहे हैं, आदि आदि?

आज मैं अपने मन की कुछ शंकाएँ यहाँ रख रहा हूँ| कृपया कहीं कोई गलती हो तो संशोधन करें|

बोफोर्स घोटाले के समय राजीव गांधी का नाम एक फ्रांसीसी मैगजीन में उनके चित्र के साथ छापा था| चित्र के नीचे कुछ राशि लिखी थी, जो उनके स्विस खाते में जमा हुई| यह राशि थी 2.5 BILLION FRENKEN (130 BILLION in Rupee)

यह किस्सा तो अब भारत के जागरूक नागरिक जानते ही हैं, किन्तु अभी तक इस परिवार को इसके लिए कटघरे में खडा नहीं किया गया|
खैर यह बाद की बात है| पहले तो यह देखा जाना चाहिए कि कुअत्रोची का इसमें क्या हाथ था?
इस समय भारत की सुपर प्राइम मिनिस्टर, इटली के ट्यूरिन शहर से हैं| इन कुअत्रोची महाशय का स्थान भी यहीं हैं| बोफोर्स की खरीद इसी के द्वारा क्यों करवाई गयी? यह व्यक्ति बीच में क्यों दल्ला बना? इस सबके बाद राजीव गांधी मायनों से क्यों खफा हुए?

दरअसल फ्रांसीसी मैगजीन में अपना नाम आने के कारण राजीव गांधी इस सब से खफा थे| किन्तु क्या करें, प्यार का मारा था| अब प्यार का मारा था या पत्नी से प्रताड़ित था, यह राज तो उनके साथ ही चला गया| प्रताड़ित इसलिए कि जब बोफोर्स सौदे में उनका नाम आया तो उनकी नाराजगी मायनी के लिए एक बहुत बड़ा खतरा थी| यह व्यक्ति उसके रास्ते का काँटा बन रहा था|
यह नहीं भूलना चाहिए कि खच्चरों के इस परिवार में वह अकेला ऐसा व्यक्ति था, जिसने यह स्वीकार किया था कि वह एक रुपये की सहायता देता है तो जनता तक पंद्रह पैसे पहुँचते हैं|

शंका यहाँ यह है कि जिस परिवार से निकली एक प्रधानमंत्री को उसके सुरक्षा कर्मियों द्वारा ही गोली मार कर हत्या करने पर अपराधियों को शीघ्र ही मृत्यु दंड दिया गया, वहीँ उस महिला के सुपुत्र की हत्या की कड़ी अभी तक उलझी हुई क्यों है? आजतक उसका रहस्य क्यों नहीं पता चल रहा?

बस इतना पता चल सका कि राजीव गांधी लिट्टे द्वारा एक बम विस्फोट में मरा|
किन्तु राजीव की हत्या से एक दिन पहले कुअत्रोची लिट्टे के जन कमांडो से क्यों मिला था?
बोफोर्स का सारा मामला साफ़ होने के बाद भी आज तक कुअत्रोची क्यों नहीं पकड़ा गया?

केजीबी की धूर्त एजेंट, क्या डायन भी है? सास और पति की हत्या की गुत्थी पूरी तरह से अभी तक क्यों नहीं सुलझी? किस आधार पर इसे भारतीय स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है?


कुछ समय पहले तक पूरी दुनिया में केवल एक ही हिन्दू राष्ट्र था, नेपाल| आज वह भी हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा|
नेपाल के एक मंदिर में जब पुजारी ने मायनों को अन्दर प्रवेश करने से रोका तो इस बात पर राजीव गांधी नेपाल से ही खफा हो गए|
यह आदमी शायद इतना बुरा नहीं था, किन्तु भारत में इससे बड़ा मुर्ख कोई नहीं हुआ| मंदिर के नियमानुसार वहाँ केवल शुद्ध शाकाहारी सनातनी ही प्रवेश कर सकते थे| अत: इन्हें एक इसाई महिला (जो पता नहीं क्या क्या खाती हो) का प्रवेश स्वीकार नहीं था| इसका दंड पूरे नेपाल को भुगतना पडा| धरती का सबसे शांत एवं एक बहुत ही सुन्दर व सुखी देश आज सेक्युलर बन चूका है| आज यह देश हिंसा की आग में जल रहा है|
राजीव गांधी की नाराजगी के चलते उन्हें ज्ञानेंद्र जैसा व्यक्ति मिल गया, जो नेपाल के पूरे राजघराने को ही नष्ट कर देना चाहता था और एक धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक नेपाल बनाना चाहता था|
आज के नेपाल की हालत पर तो आप भी तरस खाते होंगे| क्या से क्या हो गया?
नेपाल की ऐसी दुर्दशा होगी, यह तो नेपाल ने भी नहीं सोचा होगा| इसमें ज्ञानेंद्र तो केवल एक मोहरा था, सूत्रधार तो कोई और ही रहा|


योजना बड़ी गहरी थी मायनों की|
लम्बे समय से अफगानिस्तान पर रूसी और अमरीकी दृष्टि पड़ी हुई थी| अरब देशों से आने वाली तेल सप्लाई के लिए अफगानिस्तान सबसे उपयुक्त क्षेत्र है| सोवियत संघ से सटे होने के कारण रूस के लिए अफगानिस्तान किसी तेल के कूएँ से कम नहीं था| वर्षों तक अफगानिस्तान पर रूसी कब्ज़ा रहा| रूस की बढती शक्ति अमरीका के लिए चिंता का विषय थी| ओसामा जैसे आतंकी को अमरीका ने ही खडा किया था, ताकि वह अफगानिस्तान से रूसी सेनाओं को भगाने के लिए लड़े| किन्तु ओसामा द्वारा अमरीका में ही आतंकी हमले करने के कारण अमरीका ने अफगानिस्तान पर भारी बमबारी शुरू कर दी| सोवियत संघ तो पहले ही टूट चूका था| चेचन्या के विद्रोह का कारण भी अमरीका ही रहा|
इधर रूस की नज़र नेपाल पर भी पड़ी| मायनों को तो पहले से ही नेपाल से खुन्नस थी| और आगे की कहानी आप जानते ही हैं|
पाकिस्तान तो पहले से ही अमरीकी प्रभाव में जी रहा है|

इन सबके बीच एक और देश चीन भी है, जो नेपाल को समाप्त कर वहाँ अपना वर्चस्व ज़माना चाहता है| ताकि भारत को घेरने के लिए सारे द्वार खुल जाएं|
भारत अब तीन ओर से असुरक्षित है| एक ओर पाकिस्तान, उधर रूस, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार|| बांग्लादेश भी इसी श्रेणी में गिना जाएगा| श्रीलंका पहले से ही अस्थिर है| बंगाल की खाड़ी तक चीन कब्ज़ा जमा चूका है| उधर बढ़ता चीनी साम्राज्य भारत के लिए खतरा हो सकता है| ताइवान पहले से ही चीन का उपनिवेश बन चूका है| तिब्बत को चीन पहले ही कब्ज़ा चूका है| भारत के अन्दर ही अरुणाचल प्रदेश पर चीन अपना अधिकार जता रहा है| इसके लिए वह सतत प्रयास भी कर रहा है| इन्ही प्रयासों का परिणाम है कि आज पूर्वोत्तर का पूरा क्षेत्र भारत विद्रोह के लिए खडा हो चूका है| अब मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापूर, मॉरिशस व इंडोनेशिया का नंबर भी लगने वाला है| ऐसे में भारत सभी दिशाओं से शत्रुओं से घिरा होगा| अमरीका को भी अपना मित्र राष्ट्र समझने की भूल कदापि न करें| वह भी कश्मीर समस्या को केवल इसलिए नहीं सुलझा रहा, ताकि इस बहाने वह कश्मीर में अपने सैन्य शिविर स्थापित कर सके, जैसे अफगानिस्तान, ईराख व ईरान आदि देशं में किये हैं| इनके द्वारा वह धरती की तीन महाशक्तियों रूस, चीन और भारत तीनों पर दृष्टि रख सकता है|
ऐसे समय में मायनों को हर ओर से मलाई मिल रही है| फिर भारत हो या नेपाल, दोनों जाएं भाड़ में, इसे इन सबसे कोई लेना देना नहीं है|
भारत के गुप्तचर विभाग को दोष देना बेमानी होगा| RAW विश्व के श्रेष्ठतम ख़ुफ़िया विभागों में से एक है| इसकी सूचनाए कभी गलत नहीं हुईं| जब जब RAW  ने चीन व पाकिस्तान के सम्बन्ध में कोई सूचना दी है, तो वह सत्य ही सिद्ध हुई, किन्तु इस पूतना ने कभी इस पर ध्यान ही नहीं दिया| भारत के ख़ुफ़िया विभागों को तो बाबा रामदेव व अन्ना हजारे तक सीमित कर दिया| वरना क्या वजह रही कि ख़ुफ़िया तंत्रों द्वारा प्राप्त समस्त जानकारियों को अनदेखा कर  दिया गया? इतने वर्षों में भारत की सुरक्षा को लेकर क्या प्रयास किया गया? क्यों नहीं कोई कदम पाकिस्तान व चीन के विरुद्ध उठाया गया?

जब जब कांग्रेस शासन में रही, सारे आतंकी हमले सार्वजनिक स्थानों पर हुए| भारत की आम जनता ही इन हमलों का शिकार हुई| किन्तु भाजपा के शासन में तो संसद पर ही आतंकी हमला हो गया|
अर्थात जब सत्ता में हैं तो आम नागरिकों को मारेंगे किन्तु जब सत्ता के बाहर हैं तो सत्ता में बैठे मंत्रियों को ही निशाना बना डाला|


एक बात ध्यान में रखें, पूरी पृथ्वी पर भारत का कोई भी मित्र राष्ट्र इस समय नहीं है| क्योंकि हर ओर से लुटने के बाद भी भारत निरंतर सोना उगा रहा है| भौगोलिक दृष्टि से भारत आज भी सबसे अमीर देश है| चाहे वह खनीज सम्पदा की बात हो, चाहे वह खेती की बात हो, चाहे वह ज्ञान की बात हो| भारत देश की जलवायु ही कुछ ऐसी है|

मायनों तो है ही विदेशी, वह तो अपना काम कर ही रही है, बाकी मंत्री क्या बोलेंगे? ऐसा लगता है कि इसने शायद मंद मोहन सिंह का कोई MMS बना रखा है| धमकी देती होगी कि मेरी बात नहीं मानी तो सबको दिखा दूँगी|
इस व्यक्ति को सरदार कहना सरदारों का अपमान है| ये मर जाएगा लेकिन मरते मरते भारत को डूबा जाएगा|, ठीक उसी प्रकार जैसे राजस्थान में मरते मरते भैरो सिंह शेखावत भाजपा को डूबा गया|

उत्तर प्रदेश में पग पग पर मदरसे खुल गए हैं| बच्चे बच्चे के हाथ में आधुनिक हथियार हैं| विशेषकर गोरखपुर में AK47 भी मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं|
नेपाल के रास्ते भारत में नकली नोटों का कारोबार ISI के द्वारा चलाया ही जा रहा है| वहां भारत का 500 का नोट 150 रुपये में मिल रहा था और वही नोट उत्तर प्रदेश में 250 का मिल रहा था| इस पूरे प्रकरण में भी मायनों का ही हाथ है| इस विषय  से सम्बंधित मैं एक पोस्ट पहले ही लिख चूका हूँ|                    यहाँ देखें...



अभी चिदंबरम महाशय कहते हैं कि मुंबई में 31 महीने बाद कोई धमाका हुआ है| इसका अर्थ यह कदापि न निकालें कि बाकी हमले इन्होने रोक लिए|
दरअसल नेपाल के रास्ते भारत में नकली नोटों के कारोबार का पर्दाफ़ाश होने के कारण ISI के पास इतना पैसा ही नहीं था कि वह भारत में आतंकी हमले करवाए|

यह औरत भारत के लिए डायन का रूप लेकर आई है| इसने अपने पूत विन्ची में भी वही इतालवी संस्कार भरे हैं, जो इसे प्राप्त हैं| इसका यहाँ टिका रहना भारत के लिए बर्बादी का सबसे बड़ा कारण बन सकता है|
और बेचारी भारत की जनता, इसे तो इतना कुछ पता भी नहीं चलता| वे भी क्या करें? अपना खर्चा पानी जुगाड़ने में ही इनका पूरा जीवन निकल जाता है| वहाँ से मुक्त हों तभी तो भारत के नाम पर विचार करें|


अब इतना कुछ होने के बाद भी क्यों मैं रौल विन्ची के नाम पर विचार करूँ?
वह आदमी जो अपने बाप का उपनाम (गांधी) छोड़, अपने मौसा का सरनेम (विन्ची) का उपयोग करता है| वह व्यक्ति जो बलात्कारी है| कुछ कुछ याद आ रहा है, २००६ में अमेठी के एक गेस्ट हाउस में अपने छ: फिरंगी दोस्तों के साथ मिलकर...
बलात्कार की शिकार लड़की एवं उसका परिवार आज तक गायब है| पुलिस में कोई केस कभी दर्ज ही नहीं हो पाया|
वह व्यक्ति जो भारत की तुलना अफगानिस्तान व पाकिस्तान से करता है|
कहता है कि वहां तो रोज़ हे बम धमाके होते हैं, यहाँ तो एक दो ही होते हैं| ऐसा आदमी क्या देश चलाएगा, जो पहले ही बता चूका है कि उसके राज में कभी कभी बम धमाके होते रहेंगे?
हम भारत को महाशक्ति बनाने की बात सोच रहे हैं और वो अफगानिस्तान व पाकिस्तान की तुलना में भारत की स्थिति कुछ बेहतर जानकर संतुष्ट है|
उत्तर प्रदेश में चुनावों का मौसम हो तो वहां के किसानों से यारी दोस्ती बढाता है, किन्तु यह भूल जाता है कि महाराष्ट्र में उसकी अपनी सरकार है| महाराष्ट्र का विदर्भ वह क्षेत्र है, जहाँ भारत की सबसे अधिक किसान आत्म हत्याएं होती हैं| क्या विन्ची कभी इन किसानों से अपनी यारी दिखाएगा?


चिदमबरम साहब (?) का कहना है कि मुंबई में ३१ महीने बाद कोई धमाका हुआ है|
महाशय, ये भी बता दें कि अगला धमाका अब कहाँ और कितने समय बाद होगा? ताकि हम पहले से सचेत हो जाएं और स्वयं अपनी प्राण रक्षा कर लें| क्योंकि आपसे तो हमारी सुरक्षा होनी नहीं| हमारी जान के दुश्मन पाकिस्तान बाद में पहले तो आप ही हैं|


यह कांग्रेस केवल हमारी खून पसीने की कमाई से ही नहीं, हमारे खून से भी खेलती है|
निठारी काण्ड, जिसके अंतर्गत छोटे छोटे मासूम बच्चों को किडनैप कर उनके शरीर के अंगों (किडनी, लीवर आदि) विदेशों में बेचने जैसे घृणित कृत्य को एक बलात्कार का केस बनाकर इसकी सम्पूर्ण जांच को एक अलग ही दिशा में मोड़ दिया| इससे जुड़े सभी पुराने केसों की सारी फाइलों को जला दिया गया, जिसे मीडिया में भी दिखाया गया था, किन्तु अगले ही दिन ये सारी ख़बरें मीडिया से गायब हो गयीं|

मैं पहले भी कह चूका हूँ, फिर कह रहा हूँ कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी यदि विन्ची को देश की जनता युवराज के रूप में देखती है, उसके अन्दर भारत का अगला प्रधान मंत्री देखती है तो यह जनता बम धमाकों में मरने योग्य ही है| जो खुद अपनी जान का दुश्मन बन बैठा हो, उसे भला कौन बचा सकता है?


मित्रों इस सम्पूर्ण विवरण में कुछ बेतुके बिंदु भी दिखाई पड़ सकते हैं, जैसे अफगानिस्तान नेपाल आदि देशों का ज़िक्र, अमरीका, रूस व चीन का खतरा आदि| अब इनसे मायनों का क्या सम्बन्ध? किन्तु सभी बिन्दुओं को मिलाकर देखा जाए तो परिणाम एक ही निकलता है, जो बहुत भयंकर होगा|

अंत में जाते जाते दिग्गी सिंह के लिए एक चेतावनी...



ये दिग्गी तो पागल हो गया यार...
सच में इतना पागल हो गया  अपनी जान दाँव पर लगा के बैठा है|
इसका पागलपन देखो.. बुद्धिहीनता देखो कि जिस कांग्रेस और मायनों के तलवे चाटता हुआ इतना बोल रहा है, ये अभी तक उन्हें नहीं पहचान पाया..
वो मायनों जो अपने ख़ास पति की ना हुई, पता नहीं ये कैसे उस पर भरोसा करे बैठा है..
ऐसा लगता है कि अब यदि कोई नेता किसी धमाके की भेंट चढ़ेगा तो शायद यही होगा| और धमाका करवाने वाले कौन होंगे, यह बताने की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है|

क्योंकि जब राजीव के समय भाजपा लहर चल रही थी, तब कांग्रेस के पास केवल एक ही हथियार था, सहानुभूति के वोट| उस समय की जरुरत और मायनों की महत्वाकांक्षा के आगे राजीव खड़ा था, और उसकी मौत से अच्छा विकल्प और क्या था? सो राजीव गाँधी बना बलि का बकरा..
आज फिर हवा कांग्रेस के खिलाफ है.. एक और बाबा, दूसरी और अन्ना, फिर आतंकवाद .. इन सब के बीच आखिरी सांस लेती कांग्रेस| अब मरती क्या न करेगी ... कोई तो भेंट चढ़ेगा इसकी जिसके जरिये ये सांस लेने की कौशिश करे|

अब कांग्रेस की पहली कौशिश होगी कि किसी तरह लोगों का ध्यान बाबा और आतंकवाद से हटायें.. और कैसे न कैसे भाजपा और संघ को भी लपेटे में लें|
कांग्रेस को साफ़ दिख रहा है कि मध्य प्रदेश में ये न तो चुनाव जीत सकता है न ही कांग्रेस में जान फूंक सकता है| इस धटना के द्वारा एक तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को पुनः जीवित करने के लिए नया विकल्प दिया जा सकता है, दूसरा इसकी मौत का ठीकरा सीधा संघ पर फोड़ दे| संघ को अगर कटघरे में लायेंगे तो साथ साथ भाजपा भी आएगी और दुश्मन कमजोर हो जाएगा| एक तीर से दो शिकार|
 कांग्रेस पूरी मिडिया को सारी चीजों से हटा के संघ के खिलाफ खड़ा कर देगी, और भारत के बुद्धूजीवी मेन मुद्दे (काला धन और आतंकवाद) से हट के इसी में उलझ के रह जाएंगे|
दिग्गी को ये तो पता है कि रौल बेवक़ूफ़ है, पर लगता है की वो ये भूल गया की इसकी माँ एक चालाक लोमड़ी है..
तात्पर्य यही है कि भारत के वो बुद्धूजीवी लोग जो मिडिया की कही बातों पर ही विश्वास करते हैं कहीं कांग्रेस के इस झांसे में ना आ जाएँ| वो ये जान लें की आज की स्थिति ये साफ़ बता रही है की इस दिग्गी का असर हम पर ना हो... ना तो इसके जीते जी और ना इसके मरने पर....


Friday, July 15, 2011

भारत में ख़ुफ़िया तंत्र किसलिए बनाया गया है???

मित्रों एक बार फिर मुंबई दहल गयी| यह तो अब मुंबई के दैनिक जीवन में आदत सी हो गयी है| और मुंबई ही क्यों, अब तो पूरा भारत ही इसे अपनी आदत में शामिल करने वाला है| कितने मरे, कहाँ मरे, कितने घायल हुए, इन बातों पर विचार करना मेरे विचार से अब व्यर्थ की बातें हैं| हम हर बार मरने वालों की संख्या ही गिनते रह जाते हैं और मारने वाले मार कर चले जाते हैं|
विचार करना ही है तो इस बात पर करों कि आखिर कब तक हम भारतीयों को इस वर्णसंकर खच्चरों वाली सरकार की राजनैतिक इच्छाओं की बेदी पर बार बार बम धमाकों में मरना पड़ेगा? क्या हमने यहाँ केवल फटने के लिए ही जन्म लिया है?

By the way खच्चर से याद आया कि, भोदू युवराज राउल विन्ची ने कहा है कि "एक दो हमले तो होंगे ही, हम हर एक हमले को तो रोक नहीं सकते न| पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो आतंकी हमले रोजमर्रा की बात है|"



शायद विन्ची को इसी बात का इंतज़ार है कि जल्दी ही  भारत के लोगों को भी इन धमाकों की आदत हो जाए| या विन्ची इस बात से तसल्ली किये बैठे हैं कि चलो पाकिस्तान में तो धमाकों में १०० लोग मरते हैं, हमारे यहाँ तो अभी ३५-४० ही मरे हैं|
शायद विन्ची यह चाहता है कि पाकिस्तान में तो लोगों की माँ और बहन दोनों का बलात्कार होता है, किन्तु भारत में यदि केवल बहन का ही बलात्कार हो रहा है तो हम भारतवासियों को तसल्ली कर लेनी चाहिए न कि अपनी बहन को बचाना चाहिए|
शायद विन्ची यह चाहता है कि पाकिस्तान में तो भाई और बाप दोनों की हत्याएं होती हैं, किन्तु भारत में केवल भाई की हो रही है तो हमे इस बात से तसल्ली कर लेनी चाहिए न कि अपने भाई को बचाना चाहिए|


और तो और विन्ची के G.K. का तो जवाब ही नहीं| उसका कहना है कि "अमरीका में भी ऐसे हमले होते रहते हैं|"
पता नहीं सोनिया मम्मी इसे कौनसा ज्ञान देती हैं? ऐसी कौनसी किताबे पढ़ाती हैं कि ऐसा अद्भुत(?) ज्ञान किसी और के पास है ही नहीं?

अब जब शीर्षक से भटककर चर्चा छिड़ ही चुकी है तो बाकियों को भी कटघरे में खड़ा कर लिया जाए|
विन्ची के बाद हमारे गृहमंत्री चिदंबरम साहब(?) का तो कहना ही क्या? उनका कहना है कि "मुंबई कि धरती पर इकत्तीस महीने बाद कोई आतंकी हमला हुआ है|"
मतलब यदि आतंकवादी किसी निश्चित समय अंतराल में यहाँ बम फोड़ते रहें तो यह उचित है| रोज़ रोज़ न सही, कभी कभी तो चलता है|



और दिग्गी की तो बात ही छोडिये| वैसे तो इनकी बात करना ही बेकार है, किन्तु जब ज़िक्र छेड़ ही दिया है तो कदम पीछे हटाने का मन ही नहीं कर रहा|
अभी शायद दो-चार दिन पहले ही इन्होने बयान दिया था कि "जब से प्रज्ञा ठाकुर जेल में है, भारत में एक भी आतंकी कार्यवाही नहीं हुई|"
लो भाई दिग्गी राजा, आपकी यह इच्छा भी पूरी हो गयी| आपको शायद इसी बात का इंतज़ार होगा| अब कहो कि इसमें भी आरएसएस व भाजपा का ही हाथ है|
वैसे यदि कल दिग्गी ऐसा बयान दे भी दे तो कोई आश्चर्य मत करना|

अंत में हमारे आदरणीय(?), माननीय(?), सम्माननीय(?), पूजनीय(?) प्रधानमन्त्री जी श्री श्री.........१००००००००८ मन्दमोहन सिंह जी की भी बारी लगा ही देते हैं|

मेरी पिछली पोस्ट पर आई आदरणीय मदन शर्मा जी की टिपण्णी इस सम्बन्ध में एकदम सटीक बैठती है| उनकी टिपण्णी के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ|
"कैसी है आज की हमारी नकारी सरकार ?
कि मनमोहन सिंह अब भी वही रटा रटाया वाक्य कह रहे हैं की 
कोई हमारे धैर्य की परीक्षा न ले | 
ना जाने कब इनका धैर्य टूटेगा ? क्या चाहते हैं ये? 
हर कोई सब कुछ जानता है फिर भी ये सरकार चुप्पी लगा कर बैठी हुई है |"
मुझे नहीं लगता की मन्दमोहन के विषय में इससे अच्छी कोई टिपण्णी हो सकती है| इससे अधिक तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है|


खैर अब मुद्दे से बहुत भटक लिए, कांग्रेस व कांग्रेसियों को बहुत गालियाँ दे लीं| इनको कोसते रहे तो पूरी रात निकल जाएगी| अब असली मुद्दे पर आते हैं|
मुद्दा यह है की हमारे देश में ख़ुफ़िया एजेंसियां किसलिए बनाई गयी हैं? इनकी नाक के नीचे मुंबई में तीन धमाके हो गए और इन्हें पता भी नहीं चला|
 पता चले भी तो कहाँ से? ये तो कहीं और व्यस्त थे|

केंद्र सरकार के अनुसार, बाबा रामदेव के आन्दोलन के समय तो सरकार को इन ख़ुफ़िया तंत्रों द्वारा यह जानकारी मिली थी कि दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव व अन्य आन्दोलनकारियों पर आतंकी हमला होने वाला है|
मतलब बाबा रामदेव पर होने वाले आतंकी हमले की जानकारी तो जुटा ली, लेकिन मुंबई में फेल हो गए| सरकार की इस संभावना के पीछे तीन संभावनाएं और छिपी हैं|

१. या तो हमारे ख़ुफ़िया तंत्र केवल हवा में तीर मारते हैं| क्योंकि उनकी दी गयी जानकारी तो गलत ही सिद्ध हुई| न तो बाबा रामदेव के आन्दोलन में कोई आतंकी हमला हुआ जबकि मुंबई में हो गया, जहां की इन्हें कोई जानकारी ही नहीं थी|
२. या फिर सरकार ने केवल आतंकी हमले का बहाना बनाकर, बाबा रामदेव के आन्दोलन का दमन किया| निर्दोष लोगों को बर्बरता से पीटा और भारत के ख़ुफ़िया तंत्र को यूँही बदनाम किया|
३. या फिर सरकार ने सारे ख़ुफ़िया तंत्रों को बाबा रामदेव के पीछे लगा रखा है| इस कारण मुंबई में होने वाले आतंकी हमलों की कोई सूचना नहीं जुटा पाए| मतलब बाबा रामदेव से अपनी लाज बचाने के लिए दिल्ली में तो निर्दोष आन्दोलनकारियों को तो पीटा ही मुंबई में भी निर्दोष लोग मरवा दिए|

तीनों ही अवस्थाओं में सरकार को कटघरे में लेना चाहिए कि आखिर खुफिया तंत्रों का उपयोग क्या है? किसलिए भारत में ये खुफिया तंत्र खड़े किये गए हैं?


मनमोहन सिंह (इन्हें सरदार कहने में मुझे आपत्ति है) आखिर कब तक आप अपने उत्तरदायित्वों से भागेंगे?
आखिर कब तक आप ये कहेंगे कि मुझे तो कुछ मालुम नहीं, मुझे किसी ने बताया ही नहीं, हम जांच कर रहे हैं, हम कड़ी कार्यवाही करेंगे आदि आदि?
अब आपके जवाब देने की बारी आ गयी है| यदि देश नहीं संभल रहा तो कुर्सी छोड़ देनी चाहिए|
शायद लोगों को यह शंका हो कि मनमोहन सिंह ने यदि प्रधान मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया तो राहुल गांधी को प्रधान मंत्री बना दिया जाएगा|
क्या फर्क पड़ता है? दोनों ही अवस्थाओं में सत्ता तो सोनिया की ही रहनी है|


अब भी यदि भारतवासी भोंदू युवराज को भारत के अगले प्रधानमन्त्री के रूप में देख रहे हैं, तो ये बम धमाकों में ही मरने लायक हैं|
यदि किसी ने आत्महत्या करने की ठान ही ली है तो उसे तो भगवन शिव भी नहीं बचा सकते|



इस लेख को लिखने की प्रेरणा देने के लिए भाई भुवन का आभार...

Thursday, July 14, 2011

मैं मेरे ही देश में कब तक फटता रहूँगा???

मित्रों अब तक तो सभी को पता चल गया है कि १३ जुलाई को शाम करीब ६:४५ बजे मुंबई फिर से दहल गयी| सिलसिलेवार तीन धमाकों में करीब २५ लोग मारे गए हैं और करीब सवा सौ लोग घायल हो गए हैं|

ये सरकारी आंकड़े हैं, अत: इनकी विश्वसनीयता पर मुझे संदेह है| निश्चित ही असलियत तो और भी भयंकर होगी|

कौनसा बम कहाँ फटा और उसमे कितने लोग मारे गए, यह मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है| मैं कोई News Channel नहीं चलाता| सबसे अधिक पीड़ादाई यह है कि फिर से किसी बम धमाके में हमारे अपने भी बमों के साथ फट गए| इससे पहले भी कई बार फट चुके हैं|

मित्रों एक सरकारी दामाद अजमल कसाब के जन्मदिवस के अवसर पर जिहादियों द्वारा यह तो केवल एक आतिशबाजी की गयी थी| एक चेतावनी कि हम तो अपनी ख़ुशी भी ऐसे ही मनाएंगे| तुम क्या कर लोगे?


उनकी ख़ुशी मनेगी और हमारी......

कहाँ गया राहुल गांधी? अब इधर आकर मरने वालों का दुःख बाँट| इसके अलावा तुम और कर भी क्या सकते हो? क्योंकि सरकारी महलों में बैठे अफजल और कसाब तो तुम्हारे अब्बा जान के चचा जान लगते हैं न| उनको खरोंच भी आ जाए तो देश की सुरक्षा व्यवस्था पर खतरा मंडराने लगता है| और हम, हमारा क्या है? हमने तो यहाँ इस देश में जन्म ही इस लिए लिया है कि तुम्हारी राजनैतिक इच्छाओं की वेदी पर बमों के साथ हम भी फटते रहें|


पहले भी फटे थे, अब भी फट रहे हैं| पता नहीं कब तुम्हारी इच्छाएँ पूरी होंगी और पता नहीं कब तक हम यूं ही फटते रहेंगे?

अब तो आदत सी हो गयी है| कोई बड़ी बात नहीं है, बम धमाके में ही तो मारा गया है, कौनसा कैंसर से या हार्ट अटैक से मरा है?

कहो राहुल गांधी, क्या अब तुम्हे शर्म आती है, खुद को भारतीय कहते हुए? हमे पता है कि महाराष्ट्र में अभी चुनाव नहीं हैं, और वहाँ तुम्हारी ही सरकार है|
खैर तुम्हे क्या शर्म आएगी? शर्म बेचकर ही तो तुम्हारे परिवार ने चंदा जमा किया है| उसी चंदे को विदेशी बैंकों में जमा किया है| शर्म तो हमे अपने आप पर आती है, कि तुम जैसे नेताओं को झेल रहे हैं|

कहाँ गए दिग्गी? आज कहीं आरएसएस या भाजपा का हाथ नहीं दिखाओगे? हाथ तो केवल कांग्रेस का ही है और निश्चित ही वह हमारे साथ तो कतई नहीं है|


खैर यह रोना तो इस देश में लगा ही रहेगा| महत्वपूर्ण यह है कि अब हमे क्या करना है? सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की आशा न रखें|
मैं तो चाहता ही यही हूँ कि कोई भी आतंकवादी न पकड़ा जाए, सभी फरार हो जाएं| चौकिये मत अगर आतंकवादी फरार हो गए तो कम से कम तसल्ली तो रहेगी कि हमारे हाथ नहीं लगे वरना वह दुर्दशा करते कि इस देश की तरफ कोई आँख उठाकर भी नहीं देखता| यदि गलती से एक भी पकड़ा गया  तो एक और राजमहल बनाना पड़ेगा| हमारे खून पसीने की कमाई तो उसके एक टाइम के चिकन-शिकन में ही लगा दी जाएगी|


हमारी इस नपुंसक सरकार से इससे अधिक मुझे तो और कोई उम्मीद नहीं है| अत: जो करना है वह हमे ही करना है| सरकार गिरेगी, नहीं गिरेगी, कब गिरेगी, क्यों गिरेगी, अगली सरकार क्या करेगी ये सब बेकार की बातें लगने लगी हैं अब| सरकारों के भरोसे बैठे रहे तो हो लिया भारत उदय|

सबसे पहले तो हमे वही करना है जो आतंकवादी हमसे नहीं चाहते थे| कई लोग कहते रहेंगे कि घरों से बाहर न निकलें, किसी अनजान व्यक्ति से बात न करें आदि आदि|
क्यों बैठ जाऊं मैं अपने घर में छुप कर?

१३ मई २००८ को जयपुर में भी सात धमाके हुए थे| एक धमाका तो मुझसे केवल डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर ही हुआ था| उस समय तो अफरा तफरी मचनी ही थी| हर ओर भय का माहौल था| वह समझ आता है, किन्तु अगले दिन जब बाहर आकर देखा तो पूरा शहर घरों में छिपा बैठा है|
सड़कों पर गिने चुने लोग ही मंडरा रहे थे| बाज़ार दुकाने सभी बंद| मुझे भी बहुतों ने कहा कि आज बाहर कहीं मत जाना| कहीं आज भी कोई धमाका न हो जाए| मेरे घर (बीकानेर) से भी बार बार फोन आ रहा था कि आज कहीं बाहर मत निकलना| क्यों न निकलूं मैं बाहर?
अरे ये जिहादी इतने मुर्ख है क्या जो एक दिन पहले जिस शहर में धमाके किये हैं उसी शहर में आज भी हाथ आजमाएंगे, जहाँ रेड अलर्ट जारी हो गया है? फिर क्यों लोग अपने अपने घरों में छिपे बैठे हैं? पुलिस ने कर्फ्यू लगाया होता तो बात अलग थी| ऐसी अवस्था में बाहर नहीं निकलना चाहिए|
मैं तो उसदिन भी आवश्यकता नहीं होने पर भी बाहर गया और शहर की सड़कों पर भटकता रहा| रक्तदान केंद्र जाकर रक्तदान किया क्योंकि समाचारों में बार बार बताया जा रहा था कि जयपुर के ब्लड बैंकों में रक्त की भारी कमी आई है| अत: जयपुर वासियों से अनुरोध है कि वे कृपया रक्तदान करें ताकि इस विकट परिस्थिति से बाहर निकला जा सके| बम धमाकों में घायल लोगों को रक्त की आवश्यकता थी|

रक्तदान केंद्र जाकर ख़ुशी हुई कि वहाँ युवाओं की लम्बी कतार लगी थी| ये वही युवा थे जो बिना डरे यहाँ तक आए| 
अरे यदि डर कर घर में छुप जाते हैं तो इससे तो आतंकवादियों का मकसद हल हो जाएगा| उनका मकसद था आतंक फैलाना और लोगों को अपने घरों में छुपाकर उनका मकसद तो हल हो जाएगा| हमे आतंकित नहीं होना है| हमे आतंकवादियों को अपने बुलंद हौंसले से हराना है| ये क्या बात हुई कि मैं मेरे ही देश में डरा सहमा अपने घर में छिपा बैठा रहूँ और वे बाहर से आकर भी बेख़ौफ़ घुमते रहें?

सरकार के हौंसले तो बुलंद हैं नहीं, कम से कम जनता का पौरुष तो नष्ट न हो|

अत: मुंबई वासियों से भी यही अनुरोध है कि यदि शहर में कर्फ्यू नहीं है तो बिना डरे बाहर आएं व अपने अपने काम पर जाएं|
वैसे मुंबई शहर को अपने घरों में कैद करना इन जिहादियों के बस की बात नहीं है| मुंबई में ही हुए रेल धमाके के अगले दिन भी लोकल ट्रेनों में उतनी ही भीड़ थी, जितनी हमेशा होती है|

अब बेचारे वे भी क्या करें? यहाँ तो अब यह आम बात हो गयी है| घरों में छिपे बैठे रहे तो कामधाम कौन करेगा?

सरकार से तो उम्मीद रखना ही बेकार है कि वह कोई सख्त कदम उठाएगी| हमारा क्या है? आज २५ मरे हैं, कल ५० मर जाएंगे| कमी थोड़े ही न है| एक सौ बीस करोड़ हैं|

जाते जाते इन बम धमाकों में मरने वालों को श्रद्धांजलि| इश्वर उनके परिजनों को इस भारी दुःख को सहने की शक्ति दे| साथ ही हमारी सरकारों को सद्बुद्धि भी|

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नोट : मुझे इस सरकार पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है| ये सरकार किसी आतंकवादी से कम नहीं है| किसी विशेष मुद्दे से जनता का ध्यान हटाने के लिए भी यह धमाका किया जा सकता है| अब वह मुद्दा क्या है, आप लोग समझ सकते हैं|


Sunday, July 3, 2011

स्विस के लिए खतरा बने बाबा रामदेव, चीन व रूस में भी रामदेव इफेक्ट



मित्रों इन दिनों स्विस सरकार व स्विस बैंक एसोसिएशन के लिए बाबा रामदेव सबसे बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं| ध्यान दिया जाए तो पता चलता है कि बाबा रामदेव स्विस सरकार के लिए दुश्मन नंबर १ बन गए हैं|

UBS व स्विस सरकार ने बताया है कि इन दिनों स्विस बैंकों में जमा काले धन में पंद्रह लाख करोड़ डॉलर की भारी कमी आई है| इससे स्विस इकोनोमी को खतरा तो पैदा हुआ ही है, साथ ही आने वाले समय में भी संकट दिख रहा है| वहां की मीडिया में इसे रामदेव इफेक्ट के नाम से दिखाया जा रहा है|

स्विट्ज़रलैंड की चिंता लाज़मी है, क्यों कि अमरीका पहले ही अपना काला धन मंगवा चूका है| यहाँ तक कि पाकिस्तान जैसे देश ने भी मुहीम चला दी है| किन्तु अकेले भारत के काले धन से ही स्विस इकोनोमी चल सकती है| क्योंकि स्विट्ज़रलैंड में सबसे ज्यादा काला धन भारत का ही है| और बाबा रामदेव ने इस काले धन को पुन: भारत में लाने के लिए जन आन्दोलन खड़ा कर दिया है| स्विस सरकार की चिंता यह है कि यह आन्दोलन निरंतर मज़बूत होता जा रहा है|

इतना क्या कम था कि अब चीन व रूस ने भी कालेधन को वापस लाने के लिए मुहीम छेड़ दी है| चीन व रूस भी स्विस बैंकों में काला धन जमा करने वाले देशों की अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं| अब ऐसे में एशिया के इन तीन बड़े देशों द्वारा जमा किया काला धन यदि स्विस बैंकों के हाथ से निकल गया तो स्विट्ज़रलैंड के बिकने की नौबत आ सकती है|

और यह सब संभव होता दिख रहा है बाबा रामदेव के अभियान से|

पिछले कई दिनों से रूस में लेनिन स्क्वायर पर रूसी लोग सामाजिक कार्यकर्ता ब्लादिमीर इलिनोइच के नेतृत्व में काले धन के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं| उनके इस प्रदर्शन से तंग आकर रूसी सरकार ने दो माह के भीतर काला धन वापस लाने का लिखित आश्वासन दिया है| ब्लादिमीर इलिनोइच ने बाबा रामदेव को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर यह आन्दोलन शुरू किया है|

उधर चीन की सरकार भी चिंतित है| दरअसल मिस्र व लीबिया में हुई क्रान्ति के चलते चीनी सरकार को यह भय सता रहा है कि यदि देश का जनमत जाग जाए तो तानाशाहों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है| अत: चीनी सरकार ने क़ानून बना कर स्विस सरकार से काले धन के सन्दर्भ में पूरा ब्यौरा माँगा है| साथ ही भ्रष्टाचारियों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान भी रखा है|

दुनिया के तानाशाह देश भी अब जनता से घबरा रहे हैं| किन्तु यहाँ भारत में लोकतंत्र होते हुए भी सरकार न केवल भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार कर रही है अपितु इसके विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों पर बर्बर अत्याचार भी कर रही है| 

और यह सब तब तक चलता रहेगा जब तक इस देश के बुद्धूजीवी अपना अपना बुद्धू कर्म करते रहेंगे| इन्हें अक्ल तब आएगी जब यह कांग्रेस इनके घरों में घुस कर इन्हें लूटना व पीटना शुरू करेगी| यही सब बुद्धू कर्म चलता रहा तो वह समय भी जल्दी ही आने वाला है| अभी NAC ने Communal Violence Bill संसद में पारित करवाने के लिए पेश कर दिया है| इन भ्रष्टों से भरी संसद में यह पारित भी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं| इस विधेयक के बहाने ये हमें हिंसा का शिकार भी बनाएंगे, हमारी माँ-बहनों का बलात्कार भी करेंगे व हमारे खून पसीने की कमाई भी लूटेंगे|

परन्तु सरकार अपने इन घोर षड्यंत्रों में सफल नहीं हो सकेगी क्योंकि अब कांग्रेस को भी कहीं न कहीं देश की अवाम के जागने से चिंता हो ही रही है| कहीं न कहीं उसे भी Common Man का भय सता रहा है| अरब देशों में हुई क्रान्ति इस बात का सबूत है कि इंटरनेट के माध्यम से भी एक बहुत बड़ा व ताकतवर जनांदोलन खड़ा किया जा सकता है| भारत में भी इन दिनों फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग व अन्य वेब पोर्टल पर बाबा रामदेव के सुर से सुर मिलते दिखाई दे रहे हैं| देश का एक बहुत बड़ा पढ़ा लिखा व ताकतवर वर्ग इन दिनों सरकार के विरुद्ध एक अभियान चला रहा है| यह सब देखकर हम आश्वस्त हैं कि सरकार अपने काले षड्यंत्रों में कभी सफल नहीं हो सकेगी|

नोट : चीन और रूस से पहले ताइवान में भी बाबा रामदेव से प्रेरित होकर ऐसा ही जनांदोलन खड़ा हो चूका है| ये तो वे देश हैं जो मेरी जानकारी में हैं, इनके अतरिक्त और भी कई देश हो सकते हैं|

अंत में जाते हुए एक सरकारी पहल - बाबा रामदेव ने Currency Recall का भी एक मुद्दा उठाया है, जिसके अंतर्गत बड़े नोट (पांच सौ व हज़ार के) बंद होने चाहिए| सरकार ने चवन्नी से शुरुआत कर दी है| आज शायद बाज़ार में चवन्नी से कोई चीज़ खरीद पाना असंभव है, यह असम्भावना इसी कांग्रेस सरकार ने इस देश को महंगाई के रूप में दी है|