मित्रों यह तो विदित ही है कि अभी अन्ना हजारे ने अपने गुजरात दौरे में मोदी सरकार के विषय में कुछ आपत्तिजनक शब्द कहे हैं| अभी अप्रेल के महीने में ही अन्ना ने मोदी जी के समर्थन में बहुत कुछ कहा था| उनका प्रबंधन व गुजरात के विकास को लेकर अन्ना आश्वस्त थे| मोदी जी ने भी अन्ना को एक पत्र में कहा था कि मैंने तो यह प्रबंधन रालेगन सिद्दी में आपके काम को देखकर ही सीखा है|
फिर अभी ऐसा क्या हो गया कि अचानक अन्ना, मोदी जी से इतने खफा हो गए? शायद वे भी इस तथाकथित महान परिवार के षड्यंत्र का शिकार उसी प्रकार हुए हैं जिस प्रकार महात्मा गांधी हुए थे| महात्मा गांधी को नेहरु ने घुट्टी पिलाई और अन्ना को मायनों (सोनिया गांधी) ने| हैं तो दोनों एक ही परिवार के|
ध्यान रहे कि गांधी जी ने किस प्रकार नेहरु पर विश्वास कर उस समय के मोदियों को रास्ते से हटाया था|
गांधी जी दरअसल बुरे नहीं थे| मैं तो उनका आज भी सम्मान करता हूँ| उन्हें महान मानता हूँ| उनकी देशभक्ति की भावना पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकता| उनकी कमी थी तो केवल इतनी कि वो कुछ ज्यादा ही महान थे| इतने महान कि अपने शत्रु से भी प्रेम करने लगे| इतनी महानता अच्छी नहीं| आचार्य चाणक्य भी कह गए हैं कि "अति सर्वत्र वर्ज्यते"...
सबसे पहले रास्ते से हटाया गया नेताजी सुभाष बाबू को| नेताजी को गांधी जी का समर्थन उस समय भी मिला था जब अंग्रेज़ सरकार ने नेताजी को देश निकाला दे दिया था| वहीँ गांधी जी ने उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था| किन्तु १९३९ में जब नेताजी खुद पार्टी के बहुमत से जीत कर इस पद पर पहुंचे तो गांधी जी ने ही उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया| सुभाष बाबू केवल अपना अपराध जानना चाहते थे| इस पर गाँधी जी ने कहा कि वे नेताजी के आज़ाद हिंद फ़ौज द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ने से सहमत नहीं हैं| क्यों कि एक तो वे हिंसा का सहारा ले रहे हैं और दूसरी बात इस समय अंग्रेज़ सरकार पहले से ही द्वीतीय विश्व युद्ध के कारण मुश्किलों में थी| गांधी जी का कहना था कि मुसीबत के समय शत्रु पर आक्रमण करना वीरता नहीं कायरता है| नेताजी अपनी बात गांधी जी को समझाते ही रह गए किन्तु गांधी जी नहीं माने|
इसी प्रकार सरदाल पटेल को भी रास्ते से हटाया गया| १९४६ में भारत में कांग्रेस के १५ प्रदेश अध्यक्ष थे| उनमे से १४ ने स्वतंत्र भातर के प्रथम प्रधानमंत्री के लिए सरदार पटेल के नाम पर अपना मत दिया था| केवल एक मत नेहरु को मिला था| फिर भी गांधी जी ने सरदार पटेल को अपने पद से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया| सरदार पटेल ने भी यही कहा था कि "बापू मैं तो आपका सेवक हूँ| आप कहते हैं तो मैं इस पद से त्याग्पात्र दे देता हूँ| मुझे विश्वास है कि आप देश के लिए कोई गलत निर्णय नहीं लेंगे|"
स्मरण रहे कि एक बार भगत सिंह देश में गांधी जी का दूसरा विकल्प बन गए थे| देश के युवाओं को गांधी जी से अधिक भगत सिंह में विश्वास होने लगा था| उस समय भी गांधी जी ने भगत सिंह का ही विरोध किया था| अन्यथा भगत सिंह तो वो इंसान था जो गांधी जी की एक आवाज पर ग्यारह वर्ष की छोटी सी आयु में अपनी किताबों को आग लगा कर गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़ा था| और गांधी जी ने क्या किया? असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया| भगत सिंह जैसे कितने ही बच्चे व नौजवान थे जो इस आन्दोलन में शामिल होने के कारण बरबाद हो गए थे| सरकारी स्कूलों व कॉलेजों में उन्हें दाखिला भी नहीं मिल रहा था| ऐसे में लाला लाजपतराय ने उनके लिए नेशनल कॉलेज की स्थापना की|
पूरा सार यह है कि उस समय नेहरु के रास्ते की हर रुकावट को गांधी जी ने ख़त्म किया और वही काम आज अन्ना हजारे क्यों कर रहे हैं? क्या अन्ना ने इतिहास से इतना भी नहीं सीखा?
व्यक्तिगत रूप से मैं अन्ना हजारे का बहुत बड़ा समर्थक हूँ| उनकी देशभक्ति की भावना पर भी कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता| मैं तो अन्ना हजारे के आमरण अनशन में भी शामिल था|
अन्ना हजारे के व्यक्तिगत जीवन पर नज़र डालें तो एक आदर्श भारतीय ही देखने को मिलेगा| रालेगन सिद्दी जैसे उनके काम को नकारा नहीं जा सकता| रालेगन सिद्दी वह स्थान है जहाँ अन्ना के जाने से पहले शराब की नदिया बहती थीं| महाराष्ट्र के इन गाँवों में चालीस बूचडखाने थे| गाँवों में अपराध चरम पर था| हत्या, बलात्कार, अपहरण व हफ्ता वसूली जैसी वारदातें वहां आम थीं| किन्तु अन्ना ने पता नहीं क्या किया कि एकदम वहां से यह गंदगी साफ़ हो गयी| आज गाँवों में एक भी बूचडखाना नहीं है| सभी लोग शाकाहारी हैं| गाँव में पहले शराब के अवैध ठेके थे| किन्तु आज वहां एक भी ठेका नहीं है| गाँव का कोई भी नागरिक शाराब तो क्या सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, तम्बाकू आदि का सेवन भी नहीं करता| गाँवों में कोई चोरी, हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसी वारदातें सुनने में भी नहीं आतीं| एक आदर्श भारतीय गाँवों का नमूना अन्ना ने सामने रखा|
महाराष्ट्र में सूचना के अधिकार के क़ानून के लिए अन्ना ने बारह दिन का अनशन रखा था| और क़ानून पारित होने पर ही अपना अनशन तोडा था|
और अन्ना का खुद का क्या स्वार्थ है इसमें? कुछ भी नहीं| सम्पति के नाम पर केवल देश प्रेम व स्वाभिमान ही उनके खातों में है| निवास गाँव के मंदिर का एक कमरा ही है| परिवार के नाम पर पूरा देश है| उनका अपना कोई परिवार नहीं है|
अन्ना के कार्यों को गिनाने बैठें तो पता नहीं कितना समय लग जाए? कुल मिलाकर एक आदर्श भारतीय के दर्शन करने हों तो अन्ना के दर्शन कर लेने चाहिए|
फिर क्या कारण है कि आज अन्ना गांधी की राह पर चल पड़े हैं? मायनों के रास्ते में आने वाली हर रुकावट को अन्ना क्यों कोस रहे हैं?
दरअसल यह सारा कुचक्र भी मायनों, कांग्रेस व सेक्यूलरवादियों का ही रचा हुआ है| देश में एक तबका ऐसा है जो हमेशा देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त रहा है| यदि किसी व्यक्ति द्वारा नरेंद्र मोदी की तारीफ़ में दो शब्द भी कह दिए जाएं तो यह तबका उस पर हर दिशा से आक्रमण बोल देता है|
कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं...
भूतकाल में केरल के कुनूर क्षेत्र के साम्यवादी पार्टी के मुस्लिम सांसद श्री पी. अब्दुल्ला कुट्टी ने सार्वजनिक रूप से गुजरात के विकास कार्यों की सराहना की थी| उस समय ऐसे सीनियर नेता को इस तबके द्वारा पार्टी से ही बाहर कर दिया गया|
इस सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन ने गुजरात के टूरिज्म विकास के लिए निशुल्क उम्दा सेवा दी तो यह टोली उन पर भी टूट पड़ी| चारों और हल्ला मचाकर उनसे गुजरात के साथ सम्बन्ध तोड़ने के लिए दबाव डाला गया| दुष्प्रचार की आंधी चलाई| मुंबई के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में निमंत्रण होने पर भी उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया|
गुजरात के अग्रणी गांधीवादी विचारक श्री गुणवंत भाई शाह गुजरात की गौरवगाथा के पक्ष में स्पष्ट बातें करते हैं इसलिए उनको भी अछूत बनाने के प्रयास होते रहे हैं|
दारूल उलूम देवबंद संस्था के प्रमुख के रूप में निर्वाचित गुजरात के श्री मौलाना गुलाम वस्तान्वी ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि गुजरात में बहुत विकास हो रहा है| यहाँ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता| विकास का फल सभी को मिलता है| इतना कहने मात्र से ही उनपर आसमान टूट पड़ा| इस टोली ने उनको भी परेशान करना शुरू कर दिया|
भारतीय सेना के एक उच्च अधिकारी, गोल्डन कटार डिविज़न के जी.ओ.सी. मेजर जनरल आई.एस सिन्हा ने गुजरात के विकास की सराहना की| तब भी इस टोली ने कोहराम मचा डाला| उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की मांग तक कर डाली|
उदाहरण बहुत हैं, कितने गिनाएं? दरअसल गुजराज का विकास इस तबके की आँख की किरकिरी बना हुआ है| और नरेंद्र मोदी तो वह मिर्ची है जो इन सेक्यूलरवादियों को पता नहीं कहाँ-कहाँ जलाती रहती है|
इसी तबके में शामिल कुछ लोगों मल्लिका साराभाई, तीस्ता जावेद सीतलवाद, मुकुल सिन्हा, जाकिया जाफरी ने अपने संगठन जन संघर्ष मंच का एक कार्यक्रम रखा अहमदाबाद में| इस कार्यक्रम में अन्ना को भी बुलाया गया| इस दौरान अन्ना को कुछ दुकानें दिखाई गयीं जहाँ लोग सुबह सुबह दूध लेने के लिए लाइन में खड़े थे| दरअसल सुबह सुबह वहां दूध एक रूपये प्रति लीटर सस्ता मिलता है क्योंकि दुकानदार को दूध फ्रिज में नहीं रखना पड़ता| अन्ना को बताया गया कि यह शराब की लाइन है| गुजरात में शराब पर पाबंदी है| अन्ना को लाइन में खड़े किसी व्यक्ति से नहीं मिलवाया गया|
दूसरी ओर अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे "रिवर फ्रंट" नाम का एक प्रोजेक्ट चल रहा है जो अपने आप में एशिया का पहला इस प्रकार का प्रोजेक्ट है| इस प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री व संयुक्त राष्ट्र की और से विशेष पुरस्कार मिल चूका है| नदी के किनारों पर कुछ लोग अवैध रूप से कब्ज़ा कर रह रहे थे जिन्हें गुजरात हाई कोर्ट ने वहां से हटा दिया| अन्ना को किसी विस्थापित व आम आदमी से नहीं मिलवाया गया व यह बताया गया कि देखो गुजरात सरकार केवल अमीरों के विकास के लिए काम कर रही है| गरीबों को तो उनके स्थान से भी हटा दिया जाता है|
अहमदाबाद में आयोजित इस कार्यक्रम से सम्बंधित खबर का स्त्रोत यहाँ है|
अहमदाबाद में आयोजित इस कार्यक्रम से सम्बंधित खबर का स्त्रोत यहाँ है|
स्पष्ट है कि जन संघर्ष मंच द्वारा एक प्रोग्राम अहमदाबाद में आयोजित किया गया और उसमे अन्ना को बुलाया गया व उनके समक्ष मोदी के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया| साफ़ है कि यह सब एक षड्यंत्र के तहत किया गया होगा| किसके इशारे, पर यह बताने की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है|
इन भ्रष्टों व सेक्यूलरवादियों का मकसद केवल बाबा रामदेव के आन्दोलन में फूट डालना है| अन्ना को ये अपने पाले में लाकर यह कुचक्र चलाना चाहते थे किन्तु सफल ना हो सके|
अन्ना से केवल इतनी ही विनती है कि "अन्ना आपसे देशवासियों की बहुत आशाएं जुडी हैं| कृपया उनकी उम्मीदों को ना तोड़ें| कृपया आप इन भ्रष्टाचारियों के षड्यंत्र को समझे व सोच समझ कर कोई निर्णय लें| क्यों आप वही गलती दोहरा रहे हैं जो वर्षों पहले गांधी जी ने की थीं? जिसका दुष्परिणाम यह वर्णसंकर परिवार की गुलामी के रूप में देश के सामने है| अत: हे अन्ना, आप कृपया गांधीवादी ही बने रहें, गांधी बनने का प्रयास न करें|"