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Saturday, May 28, 2011

अन्ना आप गांधीवादी ही बने रहें, गांधी बनने का प्रयास न करें...

मित्रों यह तो विदित ही है कि अभी अन्ना हजारे ने अपने गुजरात दौरे में मोदी सरकार के विषय में कुछ आपत्तिजनक शब्द कहे हैं| अभी अप्रेल के महीने में ही अन्ना ने मोदी जी के समर्थन में बहुत कुछ कहा था| उनका प्रबंधन व गुजरात के विकास को लेकर अन्ना आश्वस्त थे| मोदी जी ने भी अन्ना को एक पत्र में कहा था कि मैंने तो यह प्रबंधन रालेगन सिद्दी में आपके काम को देखकर ही सीखा है|
फिर अभी ऐसा क्या हो गया कि अचानक अन्ना, मोदी जी से इतने खफा हो गए? शायद वे भी इस तथाकथित महान परिवार के षड्यंत्र का शिकार उसी प्रकार हुए हैं जिस प्रकार महात्मा गांधी हुए थे| महात्मा गांधी को नेहरु ने घुट्टी पिलाई और अन्ना को मायनों (सोनिया गांधी) ने| हैं तो दोनों एक ही परिवार के|
ध्यान रहे कि गांधी जी ने किस प्रकार नेहरु पर विश्वास कर उस समय के मोदियों को रास्ते से हटाया था|
गांधी जी दरअसल बुरे नहीं थे| मैं तो उनका आज भी सम्मान करता हूँ| उन्हें महान मानता हूँ| उनकी देशभक्ति की भावना पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकता| उनकी कमी थी तो केवल इतनी कि वो कुछ ज्यादा ही महान थे| इतने महान कि अपने शत्रु से भी प्रेम करने लगे| इतनी महानता अच्छी नहीं| आचार्य चाणक्य भी कह गए हैं कि "अति सर्वत्र वर्ज्यते"...
सबसे पहले रास्ते से हटाया गया नेताजी सुभाष बाबू को| नेताजी को गांधी जी का समर्थन उस समय भी मिला था जब अंग्रेज़ सरकार ने नेताजी को देश निकाला दे दिया था| वहीँ गांधी जी ने उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था| किन्तु १९३९ में जब नेताजी खुद पार्टी के बहुमत से जीत कर इस पद पर पहुंचे तो गांधी जी ने ही उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया| सुभाष बाबू केवल अपना अपराध जानना चाहते थे| इस पर गाँधी जी ने कहा कि वे नेताजी के आज़ाद हिंद फ़ौज द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ने से सहमत नहीं हैं| क्यों कि एक तो वे हिंसा का सहारा ले रहे हैं और दूसरी बात इस समय अंग्रेज़ सरकार पहले से ही द्वीतीय विश्व युद्ध के कारण मुश्किलों में थी| गांधी जी का कहना था कि मुसीबत के समय शत्रु पर आक्रमण करना वीरता नहीं कायरता है| नेताजी अपनी बात गांधी जी को समझाते ही रह गए किन्तु गांधी जी नहीं माने|

इसी प्रकार सरदाल पटेल को भी रास्ते से हटाया गया| १९४६ में भारत में कांग्रेस के १५ प्रदेश अध्यक्ष थे| उनमे से १४ ने स्वतंत्र भातर के प्रथम प्रधानमंत्री के लिए सरदार पटेल के नाम पर अपना मत दिया था| केवल एक मत नेहरु को मिला था| फिर भी गांधी जी ने सरदार पटेल को अपने पद से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया| सरदार पटेल ने भी यही कहा था कि "बापू मैं तो आपका सेवक हूँ| आप कहते हैं तो मैं इस पद से त्याग्पात्र दे देता हूँ| मुझे विश्वास है कि आप देश के लिए कोई गलत निर्णय नहीं लेंगे|"

स्मरण रहे कि एक बार भगत सिंह देश में गांधी जी का दूसरा विकल्प बन गए थे| देश के युवाओं को गांधी जी से अधिक भगत सिंह में विश्वास होने लगा था| उस समय भी गांधी जी ने भगत सिंह का ही विरोध किया था| अन्यथा भगत सिंह तो वो इंसान था जो गांधी जी की एक आवाज पर ग्यारह वर्ष की छोटी सी आयु में अपनी किताबों को आग लगा कर गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़ा था| और गांधी जी ने क्या किया? असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया| भगत सिंह जैसे कितने ही बच्चे व नौजवान थे जो इस आन्दोलन में शामिल होने के कारण बरबाद हो गए थे| सरकारी स्कूलों व कॉलेजों में उन्हें दाखिला भी नहीं मिल रहा था| ऐसे में लाला लाजपतराय ने उनके लिए नेशनल कॉलेज की स्थापना की|

पूरा सार यह है कि उस समय नेहरु के रास्ते की हर रुकावट को गांधी जी ने ख़त्म किया और वही काम आज अन्ना हजारे क्यों कर रहे हैं? क्या अन्ना ने इतिहास से इतना भी नहीं सीखा?

व्यक्तिगत रूप से मैं अन्ना हजारे का बहुत बड़ा समर्थक हूँ| उनकी देशभक्ति की भावना पर भी कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता| मैं तो अन्ना हजारे के आमरण अनशन में भी शामिल था|
अन्ना हजारे के व्यक्तिगत जीवन पर नज़र डालें तो एक आदर्श भारतीय ही देखने को मिलेगा| रालेगन सिद्दी जैसे उनके काम को नकारा नहीं जा सकता| रालेगन सिद्दी वह स्थान है जहाँ अन्ना के जाने से पहले शराब की नदिया बहती थीं| महाराष्ट्र के इन गाँवों में चालीस बूचडखाने थे| गाँवों में अपराध चरम पर था| हत्या, बलात्कार, अपहरण व हफ्ता वसूली जैसी वारदातें वहां आम थीं| किन्तु अन्ना ने पता नहीं क्या किया कि एकदम वहां से यह गंदगी साफ़ हो गयी| आज गाँवों में एक भी बूचडखाना नहीं है| सभी लोग शाकाहारी हैं| गाँव में पहले शराब के अवैध ठेके थे| किन्तु आज वहां एक भी ठेका नहीं है| गाँव का कोई भी नागरिक शाराब तो क्या सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, तम्बाकू आदि का सेवन भी नहीं करता| गाँवों में कोई चोरी, हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसी वारदातें सुनने में भी नहीं आतीं| एक आदर्श भारतीय गाँवों का नमूना अन्ना ने सामने रखा|

महाराष्ट्र में सूचना के अधिकार के क़ानून के लिए अन्ना ने बारह दिन का अनशन रखा था| और क़ानून पारित होने पर ही अपना अनशन तोडा था|

और अन्ना का खुद का क्या स्वार्थ है इसमें? कुछ भी नहीं| सम्पति के नाम पर केवल देश प्रेम व स्वाभिमान ही उनके खातों में है| निवास गाँव के मंदिर का एक कमरा ही है| परिवार के नाम पर पूरा देश है| उनका अपना कोई परिवार नहीं है|
अन्ना के कार्यों को गिनाने बैठें तो पता नहीं कितना समय लग जाए? कुल मिलाकर एक आदर्श भारतीय के दर्शन करने हों तो अन्ना के दर्शन कर लेने चाहिए|

फिर क्या कारण है कि आज अन्ना गांधी की राह पर चल पड़े हैं? मायनों के रास्ते में आने वाली हर रुकावट को अन्ना क्यों कोस रहे हैं?

दरअसल यह सारा कुचक्र भी मायनों, कांग्रेस व सेक्यूलरवादियों का ही रचा हुआ है| देश में एक तबका ऐसा है जो हमेशा देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त रहा है| यदि किसी व्यक्ति द्वारा नरेंद्र मोदी की तारीफ़ में दो शब्द भी कह दिए जाएं तो यह तबका उस पर हर दिशा से आक्रमण बोल देता है|
कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं...

भूतकाल में केरल के कुनूर क्षेत्र के साम्यवादी पार्टी के मुस्लिम सांसद श्री पी. अब्दुल्ला कुट्टी ने सार्वजनिक रूप से गुजरात के विकास कार्यों की सराहना की थी| उस समय ऐसे सीनियर नेता को इस तबके द्वारा पार्टी से ही बाहर कर दिया गया|

इस सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन ने गुजरात के टूरिज्म विकास के लिए निशुल्क उम्दा सेवा दी तो यह टोली उन पर भी टूट पड़ी| चारों और हल्ला मचाकर उनसे गुजरात के साथ सम्बन्ध तोड़ने के लिए दबाव डाला गया| दुष्प्रचार की आंधी चलाई| मुंबई के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में निमंत्रण होने पर भी उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया|

गुजरात के अग्रणी गांधीवादी विचारक श्री गुणवंत भाई शाह गुजरात की गौरवगाथा के पक्ष में स्पष्ट बातें करते हैं इसलिए उनको भी अछूत बनाने के प्रयास होते रहे हैं|

दारूल उलूम देवबंद संस्था के प्रमुख के रूप में निर्वाचित गुजरात के श्री मौलाना गुलाम वस्तान्वी ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि गुजरात में बहुत विकास हो रहा है| यहाँ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता| विकास का फल सभी को मिलता है| इतना कहने मात्र से ही उनपर आसमान टूट पड़ा| इस टोली ने उनको भी परेशान करना शुरू कर दिया|

भारतीय सेना के एक उच्च अधिकारी, गोल्डन कटार डिविज़न के जी.ओ.सी. मेजर जनरल आई.एस सिन्हा ने गुजरात के विकास की सराहना की| तब भी इस टोली ने कोहराम मचा डाला| उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की मांग तक कर डाली|

उदाहरण बहुत हैं, कितने गिनाएं? दरअसल गुजराज का विकास इस तबके की आँख की किरकिरी बना हुआ है| और नरेंद्र मोदी तो वह मिर्ची है जो इन सेक्यूलरवादियों को पता नहीं कहाँ-कहाँ जलाती रहती है|

इसी तबके में शामिल कुछ लोगों मल्लिका साराभाई, तीस्ता जावेद सीतलवाद, मुकुल सिन्हा, जाकिया जाफरी ने अपने संगठन जन संघर्ष मंच का एक कार्यक्रम रखा अहमदाबाद में| इस कार्यक्रम में अन्ना को भी बुलाया गया| इस दौरान अन्ना को कुछ दुकानें दिखाई गयीं जहाँ लोग सुबह सुबह दूध लेने के लिए लाइन में खड़े थे| दरअसल सुबह सुबह वहां दूध एक रूपये प्रति लीटर सस्ता मिलता है क्योंकि दुकानदार को दूध फ्रिज में नहीं रखना पड़ता| अन्ना को बताया गया कि यह शराब की लाइन है| गुजरात में शराब पर पाबंदी है| अन्ना को लाइन में खड़े किसी व्यक्ति से नहीं मिलवाया गया|
दूसरी ओर अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे "रिवर फ्रंट" नाम का एक प्रोजेक्ट चल रहा है जो अपने आप में एशिया का पहला इस प्रकार का प्रोजेक्ट है| इस प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री व संयुक्त राष्ट्र की और से विशेष पुरस्कार मिल चूका है| नदी के किनारों पर कुछ लोग अवैध रूप से कब्ज़ा कर रह रहे थे जिन्हें गुजरात हाई कोर्ट ने वहां से हटा दिया| अन्ना को किसी विस्थापित व आम आदमी से नहीं मिलवाया गया व यह बताया गया कि देखो गुजरात सरकार केवल अमीरों के विकास के लिए काम कर रही है| गरीबों को तो उनके स्थान से भी हटा दिया जाता है|
अहमदाबाद में आयोजित इस कार्यक्रम से सम्बंधित खबर का स्त्रोत यहाँ है|

स्पष्ट है कि जन संघर्ष मंच द्वारा एक प्रोग्राम अहमदाबाद में आयोजित किया गया और उसमे अन्ना को बुलाया गया व उनके समक्ष मोदी के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया| साफ़ है कि यह सब एक षड्यंत्र के तहत किया गया होगा| किसके इशारे, पर यह बताने की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है|
इन भ्रष्टों व सेक्यूलरवादियों का मकसद केवल बाबा रामदेव के आन्दोलन में फूट डालना है| अन्ना को ये अपने पाले में लाकर यह कुचक्र चलाना चाहते थे किन्तु सफल ना हो सके|

अन्ना से केवल इतनी ही विनती है कि "अन्ना आपसे देशवासियों की बहुत आशाएं जुडी हैं| कृपया उनकी उम्मीदों को ना तोड़ें| कृपया आप इन भ्रष्टाचारियों के षड्यंत्र को समझे व सोच समझ कर कोई निर्णय लें| क्यों आप वही गलती दोहरा रहे हैं जो वर्षों पहले गांधी जी ने की थीं? जिसका दुष्परिणाम यह वर्णसंकर परिवार की गुलामी के रूप में देश के सामने है| अत: हे अन्ना, आप कृपया गांधीवादी ही बने रहें, गांधी बनने का प्रयास न करें|"


Thursday, May 26, 2011

भ्रष्टाचार का विरोध-अब युवाओं की बारी...

 मित्रों २१ मई को जयपुर में विद्यार्थी परिषद् द्वारा गठित  Youth Against Corruption संगठन के राजस्थान प्रदेश  इकाई का शुभारम्भ हुआ| जयपुर के Pinkcity Press Club में  यहाँ एक सभा बुलाई गयी थी| पिछले कुछ दिनों से फेसबुक  पर कुछ राष्ट्रवादी मित्रों द्वारा इस सभा में उपस्थित होने  का आमंत्रण देख रहा था| मैंने भी वहां जाने का निश्चय  किया| करीब दो सप्ताह की प्रतीक्षा के बाद यह दिन आया|  शाम को अपने ऑफिस से निकलकर मैंने अपने कुछ  सहकर्मियों से साथ में चलने का आग्रह किया| किन्तु हाय रे  नियति, सभी को कुछ न कुछ काम था|
 इन बातों को छोड़ते हैं| तो फिर मैं अकेला ही सभा में  उपस्थित होने के लिए चला गया|
 इस कार्यक्रम का विवरण मैं अगले ही दिन लिखना चाहता   था, किन्तु Field Work में बाहर जाना पड़ा| अत:  समयाभाव के चलते लिख न सका|
 सभागार में जब पहुंचा तो देखा करीब डेढ़ हज़ार युवाओं से  सभागार भरा हुआ था| देख कर अच्छा लगा, किन्तु थोड़ी ही  देर में विचार आया कि करीब चालीस लाख की आबादी वाले  जयपुर शहर में कम से कम पच्चीस लाख युवा तो होंगे ही|   फिर केवल डेढ़ हज़ार, कुछ जमा नहीं| खैर शाम के सात  बजे सभा आरम्भ हुई|
सबसे पहले माँ भारती के समक्ष दीप प्रज्वलित किये गए व  माँ भारती की वंदना की गयी|
फिर सबसे पहले Youth Against Corruption के जयपुर संयोजक श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी जी ने अपने विचार रखे|  पूरे पूरे भाषण तो मुझे याद नहीं किन्तु कुछ मुख्य बातें जो याद हैं वे यहाँ रख रहा हूँ|

सुरेन्द्र चतुर्वेदी : एक समय आज से करीब पच्चीस-तीस वर्ष पहले वह था जब हम किसी सरकारी कार्यालय में जाते थे तो वहां के कर्मचारी किसी व्यक्ति विशेष की ओर इशारा करके कहते थे कि यह आदमी रिश्वत खाता है| किन्तु आज जब हम वहां जाते हैं तो सभी कर्मचारी किसी एक की ओर इशारा कर कहते हैं कि वह आदमी घूस नहीं खाता| यह है परिवर्तन भ्रष्टाचार में| मैंने एक बार मनमोहन सिंह से पूछा कि "आपकी वर्तमान यूपीए द्वितीय सरकार में तीन बड़े घोटाले हुए हैं| पहला सबसे बड़ा घोटाला 2G Spectrum जिसमे करीब १,७६,००० करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है, दूसरा घोटाला राष्ट्रमंडल खेलों का जिसमे करीब ७०,००० करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है, तीसरा घोटाला आदर्श सोसायटी का जिसमे करीब ५०,००० करोड़ का घोटाला हुआ है| कुल मिलाकर लघभग तीन लाख करोड़ वो भी केवल दो वर्षों में| ऐसा क्या है आपकी सरकार में जो भ्रष्टाचारी इतने बेख़ौफ़ होकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं?"
 इस पर मनमोहन सिंह ने कहा कि "इस बार हमारी सरकार थोड़ी कमजोर साबित हुई है और हम कड़ी कार्यवाही कर रहे हैं| आगे से एक भी घोटाला देश में नहीं होगा| और हम भ्रष्टाचारियों को कठोर दंड देंगे| केवल इस बार हुए इन घोटालों ने हमारी सरकार को बदनाम किया है|"
 इस पर मैंने कहा कि "इस बार तो केवल तीन लाख करोड़ का ही घोटाला हुआ है| पिछले ६४ वर्षों में से ५५ वर्ष आपकी पार्टी की सरकार रही है जिसमे करीब चार सौ लाख करोड़ के घोटाले हो चुके हैं क्या उनसे आपकी सरकार की बदनामी नहीं हुई है? और आप भ्रष्टाचारी को दंड कहाँ से देंगे? हमारे संविधान में भ्रष्टाचार करने वाले के लिए अधिकतम सात वर्ष कारावास का प्रावधान है और वसूली का तो कोई प्रावधान ही नहीं है| हज़ारों करोड़ रुपये लेकर तो कोई भी सात वर्ष जेल में रह लेगा|"
इसका मनमोहन सिंह के पास कोई जवाब नहीं था|"

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इसके बाद आये राष्ट्रीय संयोजक श्री सुनील बंसल जी| सुनील बंसल ने बड़ी ही बेबाकी से अपने विचारों को रखा व युवाओं से अधिक से अधिक इस आन्दोलन में शामिल होने का आग्रह किया|

सुनील बंसल : सन २००१ में जब NDA की सरकार थी तब 1G Spectrum का आबंटन हुआ था, तब Spectrum का मूल्य १८०० करोड़ रुपये लगाया गया था| उस समय देश में केवल चालीस लाख मोबाइल उपभोक्ता थे| २००८ में जब देश में सत्तर करोड़ मोबाइल उपभोक्ता थे तब भी 2G Spectrum का मूल्य केवल १८०० करोड़ ही लगाया गया| यह सरासर गलत है| कुल ८६ कम्पनियों ने आवेदन किया था| उनमे से अधिकतर को तो मान्यता भी प्राप्त नहीं थी| राजा ने कहा था कि हम इसी मूल्य पर आबंटन करेंगे| जो भी आवेदन करना चाहें वे एक घंटे के अन्दर ड्राफ्ट के द्वारा पैसा जमा करवा दें| आप भी जानते हैं कि जब हम बैंकों में सौ या दो सौ रुपये का ड्राफ्ट बनवाते हैं तो वहां घंटों लाइन में लगना पड़ता है| किन्तु यहाँ हज़ारों करोड़ों के ड्राफ्ट मिनटों में बन गए| इससे यह साफ़ है कि पहले से ही Spectrum १८०० करोड़ की सस्ती दर पर कुछ कंपनियों को बेच दिया गया था| इन कम्पनियों ने फिर महँगी दर पर किसी अन्य कंपनी को बेच दिया व उसने और महँगी दर पर किसी अन्य को| इस प्रकार करीब एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ का नुकसान सरकार को हुआ| घोटाला करीब साठ हज़ार करोड़ का हुआ था| शेष तो इन कम्पनियों के खातों में था| इस पर सरकार ने राजा को दोषी ठहरा दिया| अभी कुछ दिन पहले मेरा डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी जी मिलना हुआ| उन्होंने बताया कि मेरे पास ठोस सबूत हैं कि यह घोटाले का पैसा किस किस के पास है| राजा के खाते में तो केवल दस प्रतिशत (छ: हज़ार करोड़) धन ही है| तीस प्रतिशत (अठारह हज़ार करोड़) करूणानिधि के पास है, शायद उनकी तीन पत्नियों की वजह से| और शेष छत्तीस हज़ार करोड़ सोनिया गांधी के खाते में जमा हुआ है| इसी प्रकार राष्ट्रमंडल खेलों में भी कलमाड़ी के पास तो कुल सात हज़ार करोड़ धन ही पहुंचा| शेष धन तो शीला दीक्षित व सोनिया गांधी के खाते में जमा हुआ है|

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इसके बाद आये योगी रमननाथ जी महाराज| योगी रमननाथ जी पेशे से शिक्षक रह चुके हैं और अभी वे सद संस्कार समिती नामक संस्था चलाते हैं| योगी रमननाथ जी ने भी अपने पावन विचारों को कुछ इस प्रकार रखा...

योगी रमननाथ : मैं एक संस्था चलाता हूँ| जिसके द्वारा हम सेवा कार्य चलाते हैं| इस संस्था के लिए हम कोई भी सरकारी सहायता नहीं लेते| समिती के सदस्य अपने बूते पर ही धन एकत्र कर यह कार्य करते हैं| NGO तो आजकल धंधा हो गया है| मुझे तो NGO शब्द एक गाली के जैसा लगता है| मैं यह नहीं चाहता कि हमारी संस्था को सरकार सौ रुपये का दान दे जिसे पाने के लिए हमें अधिकारी को पचास रुपये की रिश्वत देनी पड़े| शेष पचास रुपये में से केवल दस रुपये से मैं सेवा करूं व चालीस रुपये अपनी जेब में डाल लूं? यह काम मुझसे तो नहीं होगा| ऐसा करने के लिए तो मुझे मेरी संस्था का नाम बदलकर कुछ और रखना होगा|
एक बार एक विद्यार्थी परिषद् के एक नेता से मेरी मुलाक़ात हुई| उसने एक बहुत ही अच्छी बात कही| उसने कहा कि "जब रात में हमें मच्छर काटते हैं तो एक एक मच्छर को ताली बजा कर मारते हैं या कमरे में गुडनाईट या ऑलआउट लगा कर सो जाते हैं| किन्तु हम कभी भी इस बात पर ध्यान नहीं देते कि ये मच्छर कहाँ से पैदा हुए हैं| क्यों न उस गन्दगी को ही साफ़ कर दिया जाए तो कभी भी कोई मच्छर हमें नहीं काटेगा| एक बार काम करना होगा फिर हमें कभी भी कोई गुडनाईट या ऑलआउट नहीं लगाना पड़ेगा ना ही ताली पीट-पीट कर मच्छरों को मारना पड़ेगा|"
ठीक इसी प्रकार राजा और कलमाड़ी तो केवल मच्छर हैं| क्यों न इस कांग्रेस नामक गन्दगी को ही साफ़ कर दिया जाए जहाँ ये मच्छर पैदा होते हैं|

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इसके बाद एक पांच वर्ष की बच्ची ने एक सुन्दर सी कविता भ्रष्टाचार के विषय पर सुनाई| कविता सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई कि इस छोटी सी बच्ची में भी कितना साहस है कि वह इस बिमारी के खिलाफ लड़ रही है|

अंत में श्रोताओं से आग्रह किया गया कि जो कोई भी कुछ कहना चाहता है वह मंच पर आकर पांच मिनट में अपनी बात रखें|
श्रोताओं  में से उठकर मंच पर जाने वाला पहला व्यक्ति मैं ही था| मैं आपको बता दूं कि मैं एक अच्छा लेखक तो नहीं हूँ किन्तु लोग कहते हैं कि एक अच्छा वक्ता हूँ| मुझे यह गुण मेरे पिता से विरासत में मिला है| उनके भाषण मैंने बहुत सुने हैं| उनकी भाषा व बोलने की शक्ति से लोग मुग्ध हो जाया करते थे|
कॉलेज के दिनों में मैं कई बार Paper Presentation दे चूका हूँ| यह बात और है कि वहां मेरे ज्ञान को दरकिनार कर केवल मेरी अंग्रेजी पर ध्यान दिया जाता था|
जिस कंपनी में मैं काम करता हूँ वहां भी मैंने कई Seminar दिए हैं| किन्तु अपने देश के लिए सबके सामने बोलने का यह मेरा पहला अवसर था|
मंच पर जाकर मैंने सबसे पहले यही मुद्दा उठाया कि हमारा उद्देश्य क्या है? क्या केवल किसी भ्रष्टाचारी को दंड देना हमारा उद्देश्य है या भ्रष्टाचार को जड़ समूल नष्ट कर देना हमारा उद्देश्य है?
भ्रष्टाचार है क्या? क्या केवल पैसे का लेनदेन ही भ्रष्टाचार के अंतर्गत आता है? भ्रष्टाचार तो भ्रष्ट आचार है| जो कि हमारे मानस पटल में भीतर तक घुस गया है| हमें तो उसे मिटाना है| अभी कुछ दिन पहले दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा की उसके सहपाठी ने बीच सड़क पर गोली मार कर हत्या कर दी| कारण केवल इतना सा था कि उस लड़के ने इस लड़की को I LOVE YOU बोला, बदले में लड़की ने उसे मना कर दिया| बस गोली चली और एक लड़की वहीँ ढेर| क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? जिस लड़की से वह प्रेम करता था (हालांकि वह कोई प्रेम नहीं करता था) उसे ही मार डाला|
दोषी को दंड देना परम आवश्यक है किन्तु देश के नागरिकों को इस भ्रष्टाचार से मुक्त करवाना उससे भी अधिक आवश्यक है| हत्या के विरोध में धारा ३०२ का क़ानून है फिर भी देश में हत्याएं होती हैं| तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध भी केवल कोई क़ानून बना देने से क्या भ्रष्टाचार रुक जाएगा? सबसे जरुरी है लोगों को नैतिकता सिखाना कि यह गलत है| जिस दिन लोगों को यह आभास हो जाएगा भ्रष्टाचार उसी दिन मिट जाएगा| इसके लिए हमें अपनी शिक्षा पद्धति में भी कुछ परिवर्तन करना पड़ेगा|
दूसरी बात भ्रष्टाचार का एक कारण भय भी है|और यह भय इतना अधिक फ़ैल चूका है कि व्यर्थ ही हमें सताता रहता है| भ्रष्टाचार का एक कारण भय अवश्य है किन्तु भय का एक कारण भ्रष्टाचार भी है| अब जैसे कि मैं यहाँ मंच पर खड़ा हूँ और मुझे भय है कि कहीं कोई बाहर मेरी गाडी न चुरा ले जाए|

(सभा में बैठे केवल डेढ़ हज़ार युवाओं की संख्या से मैं थोडा विचलित था| इस कारण लोगों के सामने मैंने कुछ विद्रोही बातें भी कह दीं जिससे शायद मेरा विरोध हो सकता था| किन्तु जानकर आश्चर्य व ख़ुशी हुई कि जिनका मैं विरोध कर रह था वे मुझसे सहमत थे|)

मैंने कहा कि अभी इस समय देश के महिलावादी  संगठन कहाँ घास चरने चले गए? अभी कोई महिला आरक्षण की चर्चा होती तो यहाँ महिलाओं की भीड़ लग जाती कि यह हमारा अधिकार है और हम इसे लेकर ही रहेंगे|
मतलब फ़ोकट में मिलने वाला अधिकार लेने तो सबसे आगे हैं किन्तु कर्तव्य की बारी आई तो इस सभा में डेढ़ हज़ार की भीड़ में केवल आठ युवतियां, तीन महिलाएं व एक पांच वर्ष की बच्ची ही उपस्थित हुए हैं|
किन्तु आशा के विपरीत मेरे इस विद्रोही कथन के लिए मुझे समर्थन मिला|

(मैं यहाँ स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मुझे परेशानी केवल महिलावादी संगठनों से है ना कि महिलाओं से| क्यों कि अरुंधती राय, बरखा दत्त, तीस्ता सीतलवाड़, शबाना आज़मी और तो और राखी सावंत, मल्लिका शेरावत जैसी खरपतवार इन्ही संगठनों की पैदाइश हैं| यदि किसी छिछोरी फिल्म अभिनेत्री पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लग जाए तो इनके पेट में जलन होने लगती है किन्तु जब साध्वी प्रज्ञा देवी को किसी आरोप की पुष्टि ना होने पर भी केवल शंका के आधार पर जेल में कड़ी यातनाएं दी जाति हैं तो ये सभी मौन धारण कर लेते हैं| जी हाँ बिलकुल यही सत्य है इन महिलावादी संगठनों का| मेरे मन में महिलाओं के लिए क्या है यह जानने के लिए यहाँ देख सकते हैं| महिलावादी ही नहीं मुझे उस प्रत्येक संगठन से परेशानी है जो केवल किसी वर्ग विशेष के अधिकारों की बात करता है| चाहे वह महिलावादी संगठन हो या पुरुषवादी, कोई जातिवादी हो या धर्मवादी, कोई क्षेत्रवादी हो या रंगवादी| जातिवाद का असली चेहरा क्या है मेरी नज़र में, यदि जानना चाहते हैं तो एक लेख पर मेरी कुछ टिप्पणियाँ देख लीजिये| तीव्र भाषा में की गयी इन टिप्पणियों से कईयों को मरोड़े उठे थे| इन्हें आप यहाँ देख सकते हैं| अत; कोई भी यह ना समझें कि मैं कोई महिला विरोधी हूँ| मैं तो आज ही एक देहाती स्त्री से गुरु ज्ञान लेकर आ रहा हूँ|)

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मेरे बाद एक महिला ने बड़े ही बुलंद हौंसले के साथ अपनी दो पंक्तियाँ कहीं| उसके बाद एक सज्जन ने दो सुन्दर शेर सुनाए|

सभा विसर्जन से पहले वन्देमातरम गाया गया| माँ भारती का जय घोष किया गया| और हम सब अपने-अपने घर को चल दिए|

अब २७ मई को जयपुर के बिड़ला सभागार में Youth Against Corruption द्वारा फिर से एक सभा बुलाई गयी है, जिसे भाजपा के नेता श्री अरुण जेटली संबोधित करेंगे|

अंत में आपको अपने मन की एक बात और बता देना चाहता हूँ| सभागार से बाहर आते समय मेरे मन में विचार आया की यहाँ आने वाले युवा कहाँ कहाँ से आये होंगे? कुछ लोगों से पूछने पर पता चला कि उनमे से कई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक थे| कुछ लोग बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान संगठन के कार्यकर्ता थे| कुछ लोग मीडिया की तरफ से थे| कुछ लोग अन्ना हजारे के आन्दोलन India Against Corruption से थे| कुछ लोग डॉ. स्वामी की जनता पार्टी के कार्यकर्ता थे| Youth Against Corruption के लोग तो होने ही थे| विश्व हिन्दू परिषद् के भी कुछ लोग उपस्थित थे| कुछ लोग स्वतंत्र रूप से आये थे| स्वतंत्र रूप से आये लोग भाँती-भाँती के हो सकते हैं| कुछ लोग जयपुर में चलने वाली गौशालाओं से सम्बंधित थे|
भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों से मिलने के बाद याद आया कि इस समय भारतीय जनता पार्टी कहाँ मूंह छिपाए बैठी है? पिछले कुछ आन्दोलनों पर ध्यान दिया जाए तो दिल्ली के राम लीला मैदान में बाबा रामदेव की महारैली में भी यह दल नदारद था| उसके बाद अन्ना हजारे के आन्दोलन India Against Corruption के समय भी लगभग इसकी अनुपस्थिति रही| डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा विभिन्न न्यालालयों में कांग्रेस व नेहरु-गांधी परिवार के विरुद्ध दायर किये गए मुकदमों के समय भी यह पार्टी पता नहीं कहाँ लापता हो गयी थी| डॉ. स्वामी ने अकेले अपने दम पर दुनिया भर में घूम-घूम कर मायनों, राजिव गांधी, चिदम्बरम, प्रणव मुखर्जी व अन्य कई कांग्रेसी नेताओं के विरुद्ध प्रमाण इकट्ठे किये| एक अकेला आदमी अपने दम पर इतना कुछ कर सकता है तो इस समय देश की मुख्य विपक्ष पार्टी क्या नहीं कर सकती? किन्तु लगता है कि श्रीमान लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज व गडकरी आदियों को फुरसत नहीं है| मुद्दों की तो कोई कमी ही नहीं है, सहयोगियों की भी कोई कमी नहीं है| विपक्ष चाहे तो एक झटके में ही देश व देशवासियों को इस भ्रष्टाचारी सरकार से मुक्त करवा सकती है| अरे इस कार्य के लिए तो अकेले नरेंद्र मोदी ही काफी हैं जिन्होंने कांग्रेस की नाक में दम कर रखा है| फिर भाजपा शान्त क्यों है? वह चाहती क्या है? आखिर क्या चल रहा है आडवाणी जी के दिमाग में? उनसे हमें बहुत उम्मीदें थीं किन्तु अब विश्वास डगमगा रहा है|
अच्छी बात है की अब २७ मई को अरुण जेटली आ रहे हैं| चलो कुछ तो किया भाजपा ने भी| शायद अरुण जेटली कुछ कमाल करें| शायद अबकी बार भाजपा हमारी उम्मीदों पर खरी उतरे|

नोट : मेरे द्वारा लिखी गयी कुछ सामग्री से यदि किसी को कोई पीड़ा हो तो क्षमा चाहूँगा| मेरा ऐसा कोई उद्देश्य नहीं है| दरअसल इधर उधर के हाल देखकर पीड़ा हो रही है| इसी के चलते जबान व कलम भी कडवाहट उगल रही है|


Saturday, May 21, 2011

शायद, सब कुछ गोल है...

मित्रों मैं बीकानेर (राजस्थान) का मूल निवासी हूँ| वैसे मेरे पुरखे हरियाणा से आये थे किन्तु मेरा बचपन तो इस रेगिस्तान की मिटटी में खेल कर ही बीता है|
विद्यालय की शिक्षा पूरी कर मैं जयपुर इंजीनियरिंग करने आया| विज्ञान व तकनीक से बड़ा प्रेम रहा है हमेशा से ही इसलिए इंजीनियरिंग को चुना| चार साल इंजीनियरिंग में कैसे निकल गए कुछ पता भी नहीं चला| अब सोच रहा हूँ कि नौकरी करते करते साथ में M.Tech भी कर लूं|
पहली नौकरी दिल्ली में लगी अत: यहाँ से दिल्ली चला गया| मेरी माँ मुझे कहती है कि "तेरे पाँव में चक्कर है, तू हमेशा भटकता ही रहता है|" क्यों कि नौकरी ही कुछ ऐसी थी| यहाँ से वहां तो वहां से यहाँ भटकना| मैं Field में काम करने वाला इंजिनियर था| Field Work कुछ ऐसा ही होता है| मुझे हमेशा से ही ऐसा काम करने की इच्छा थी| कॉलेज में भी मैं अपने मित्रों से यही कहता था कि मुझे बंद ए.सी. कमरे में बैठकर कीबोर्ड के बटन नहीं दबाने|
दरअसल मैं भारतीय सेना में जाना चाहता था किन्तु किसी कारण से नहीं जा सका| वो एक अलग कहानी है, कभी बाद में सुनाऊंगा|
तो उस नौकरी में भारत भ्रमण पर निकल पड़ा| कुछ महीनों काम करने के बाद जयपुर आ गया| यहाँ टेलीकॉम में काम कर रहा हूँ| इस नौकरी में भी भटकना ही लिखा है| मेरी माँ सही ही कहती है कि मेरे पांवों में चक्कर है| सो गोल चक्कर ही काट रहा हूँ|
अरे हाँ याद आया, यह मैं कहाँ भटक गया मुझे भी पता नहीं चला| अपने को तो गोल पर विचार करना है ना|
पिछले कुछ ६-७ वर्षों से घर से दूर अकेला ही रह रहा हूँ| इसलिए अकेलेपन में प्रत्येक वस्तु गोल ही दिखाई दे रही है| मुझे तो यही लगता है कि हर चीज़ मूलत: गोल ही है|
अभी यहाँ आधी रात के डेढ़ बजे हैं| थोड़ी देर पहले मैं अपने घर की छत पर अकेले में टहल रहा था| पता नहीं आज दिन भर इतनी गर्मी होने के बाद भी रात में ठंडी हवाएं कैसे चल गयीं? उन्ही का मज़ा लेने चला गया| अब रात में छत पर आया तो सितारों ने स्वागत कर ही दिया| वैसे तो शहर के प्रदुषण ने धरती के साथ-साथ इन बेचारे सितारों का भी मूंह काला कर दिया| पता नहीं आजकल दिखते ही नहीं| कुछ थोड़े बहुत थे तो उन पर ध्यान गया|
ब्रह्माण्ड मुझे बचपन से ही आकर्षित करता रहा है| शायद इसी कारण Telecommunication में काम करते समय मेरा ध्यान Satellite Communication में अधिक रहता है|
सबसे पहले एक तारे पर ध्यान लगाया| क्या सच में वह तारा ही था| तारा तो वह आकाशीय पिंड है जिसके बारे में हमें कुछ जानकारी नहीं है| किन्तु वह चमकती हुई चीज़ कुछ तो है| अत: हमने उसे तारा या सितारा कुछ नाम दे दिया| अब कहीं ज्ञात आकाशीय पिंड कहीं नाराज़ न हो जाएं इसलिए सभी पिंडों को तारा कह डाला| सूरज भी एक तारा है, पृथ्वी भी एक तारा है आदि आदि| किन्तु यह मूल सत्य नहीं है| "तारा" शब्द के पीछे छुपी भावना तो कुछ और ही है|
सूरज के बारे में हम बहुत कुछ जानते हैं| जैसे कि सूरज एक बहुत बड़ा आकाशीय पिंड है जो हमारे सौर परिवार का केंद्र है| इसका तीन चौथाई भाग Hydrogen  व शेष एक चौथाई से कुछ कम Helium है| बचा हुआ करीब दो प्रतिशत भाग Oxygen, Carbon, Neon, Iron आदि अन्य भारी तत्वों से भरा है| इसका व्यास करीब १३,९२,००० किमी है जो कि हमारी धरती के व्यास से करीब एक सौ दस गुणा है|
धरती व सौर परिवार के अन्य आठ गृह सूरज के चारों ओर चक्कर काट रहे हैं| इनके बारे में भी हम बहुत कुछ जानते हैं|
कुछ उपगृह भी हैं जो गृहों के चारों ओर चक्कर काट रहे हैं| इनमे से एक हमारा चन्द्रमा है|
सभी साले गोल ही हैं और गोल गोल घूमते हुए गोल गोल चक्कर भी काट रहे हैं साथ ही मुझे गोल कर रहे हैं| ये सभी ज्ञात आकाशीय पिंड हैं|
तो फिर तारे कौन हैं, क्या हैं? क्योंकि हैं तो अज्ञात, तभी तो नाम तारा पड़ा है|
तो जिस तारे को मैं देख रहा था उसके बारे में ही सोच रहा था| क्या सचमुच वह तारा ही है| आज अज्ञात है किन्तु कल किसी वैज्ञानिक ने इसकी कोई खोज खबर कर ली कि यह सौर परिवार का दसवां गृह है तब तो यह तारा नहीं रहेगा| और गृह ही क्यों यह भी तो हो सकता है कि वह भी सूरज के जैसा कोई बड़ा आकाशीय पिंड ही हो| जिसका अपना एक और सौर परिवार है| हो सकता है उसके चारों ओर भी कुछ गृह चक्कर काट रहे हैं|
मुझे ऐसा लगता है कि इस पूरे ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं हैं| यह भी संभव है कि हमारे सौर परिवार की ही तरह ब्रह्माण्ड में अन्य कई सौर परिवार हों|
जिस तारे को मैं देख रहा था वह चमक रहा था| अब तारा है तो चमकेगा तो सही| अब वह खुद चमक रहा था या कोई इसे चमका रहा था, यही तो रहस्य है|
जिस प्रकार सूरज एक आग का गोला है जो स्वयं चमकता है| रात के समय हमारे सौर परिवार के अन्य गृह भी तो चमकते हुए दिखाई देते हैं| किन्तु वे तो आग के गोले नहीं हैं| उन्हें तो सूरज चमका रहा है| कैसे? अरे भाई सभी गृहों के चारों ओर अपना एक वायुमंडल होता है| जिसमे भिन्न भिन्न प्रकार के कण पाए जाते हैं| सूरज का प्रकाश पड़ने पर वे चमकते हैं| इनके चमकने के पीछे एक कारण है जो आप जानते होंगे| कोई भी वस्तु किसी विशिष्ट रंग की दिखाई देती है, क्यों? वही कारण यहाँ पर भी लागू होता है| इसलिए वह गृह चमकता है|
किन्तु जो तारा चमकता हुआ दिखाई दे रहा है जरुरी तो नहीं कि वह भी हमारे सूर्य या किसी अन्य सूर्य के प्रकाश से चमक रहा है| ऐसा हो सकता है किन्तु एक संभावना यह भी तो है कि शायद वह खुद ही जल रहा हो| इसलिए चमक रहा है| संभावनाएं बहुत हैं, कुछ भी हो सकता है| प्रभु की लीला वही जाने|
फिर से भटका दिया आपने| गोल पर ध्यान देना है|
अब यह तो सत्य ही है कि वह तारा भी गोल ही है| कैसे? क्योंकि उसके केंद्र में भी तो गुरुत्वाकर्षण बल होगा| जो उस तारे के सभी कणों पर सामान रूप से कार्य करेगा| इसलिए सभी उसकी ओर खींचे चले आएँगे| और ऐसे में वह तारा भी गोल ही होगा| अब यदि वह कोई गृह है तो किसी न किसी सूर्य के चारों ओर अपनी अक्ष पर गोल गोल घूमता हुआ गोल गोल चक्कर काट रहा होगा| यदि वह उपगृह है तो किसी न किसी गृह के चारों ओर गोल गोल घूमता हुआ चक्कर काट रहा होगा| केवल एक ही स्थिति को छोड़कर वह गोल गोल घूमता हुआ गोल गोल चक्कर काट रहा होगा| वह एक स्थिति यह है कि यदि वह कोई सूरज है तो शायद स्थिर हो| शायद इसलिए लगाया कि मुझे पूरी तरह से पता नहीं कि सूरज स्थिर है या वह भी गोल गोल घूमता हुआ गोल गोल चक्कर काट रहा है| अभी बहुत कुछ जानना बाकी है| क्या पता कल किसी नयी खोज में पता चले कि सूरज से भी सैकड़ों गुणा बड़ा कोई पिंड है जिसके चारों ओर कई सूरज गोल गोल घुमते हुए गोल गोल चक्कर काट रहे हैं| ऐसी परिस्थिति में यह माना जाएगा कि एक सबसे बड़ा आकाशीय पिंड है जिसके चारों ओर कई सूरज गोल गोल घुमते हुए गोल गोल चक्कर काट रहे हैं| अब इन सूर्यों के चारों ओर अपने अपने सौर परिवार हैं, जिनमे कुछ गृह हैं| ये गृह अपने अपने सूर्य के चारों ओर गोल गोल घुमते हुए गोल गोल चक्कर काट रहे हैं| प्रत्येक गृह के अपने कुछ उपगृह भी हो सकते हैं जो अपने अपने गृहों के चारों ओर गोल गोल घुमते हुए गोल गोल चक्कर काट रहे हैं| हालांकि ऐसी संभावना कम ही है| क्यों कि अगर कोई सबसे बड़ा आकाशीय पिंड होता तो कहीं तो दिखाई देता| वह अदृश्य क्यों होता? अदृश्य तो इश्वर है|
कुल मिलाकर है तो सब कुछ गोल|
आधी रात में लिखे इस जो कुछ भी के लिए मैं क्षमा चाहूँगा| जो कुछ भी इसलिए कहा क्यों कि इसे लेख तो किसी हालत में भी नहीं कहा जा सकता| क्षमा इसलिए मांग रहा हूँ कि जो कुछ मैं लिख रहा हूँ, इसे लिखते लिखते मैं भी गोल हो गया हूँ| पता नहीं आपका क्या हाल हो रहा होगा?
अभी तक तो बात केवल ब्रह्माण्ड की हुई है| अभी तो बहुत कुछ बाकी है|
अब धरती पर चलते हैं| धरती पर पता नहीं कितने ही तत्व हैं, जिनसे मिलकर धरती बनी है| कोई १०९ तत्वों की खोज वैज्ञानिकों ने कर ली है, जो कि आवर्त सारिणी में दिए गए हैं| आवर्त सारिणी नीचे दी गयी है|

सभी तत्व बड़े अजीब हैं| सॉरी अजीब नहीं गोल हैं| किसी तत्व का सबसे छोटा कण परमाणु (Atom) होता है जो कि गोल है| क्यों कि वह भी कुछ कुछ हमारे सौर परिवार के जैसा ही है| इसका सूर्य, नाभिक (Nucleus) होता है व गृह, ऋणकण (Electron) होते हैं| ऋणकण नाभिक के चारों ओर गोल गोल चक्कर लगाते रहे हैं| इस प्रकार बनता है एक परमाणु| जिसे आँख से देख पाना असंभव है| आँख से क्या अच्छे से अच्छा सूक्ष्मदर्शी भी इसे नहीं देख सका| यह तो मात्र कल्पना है| किन्तु कल्पना ऐसी ही थोड़ी हो जाती है, इसका कुछ तो आधार होता ही है| शायद वह आधार गोल ही है| वैज्ञानिक भी समझ गए कि सब कुछ एक ही सिद्धांत पर हो रहा है| शायाद सब कुछ गोल ही है|
एक परमाणु दुसरे परमाणु से जुड़ा होता है| क्यों? अरे भाई प्रेम है| सब इंसान थोड़े ही ना हैं कि आपस में नफरत करते रहें| इसी प्रकार बहुत से परमाणु मिलकर एक तत्व का निर्माण करते हैं|
अब जीव विज्ञान का मुझे अधिक ज्ञान नहीं है| इतना जानता हूँ कि किसी जीव के शरीर का सबसे छोटा कण कोशिका (Cell)है| शायद वह भी गोल ही हो| इसका केंद्र केंद्रिका है| शायद वह इसका सूर्य हो| अब गृह कौन हैं इसका मुझे कुछ ख़ास ज्ञान नहीं है| शायद गुणसूत्र (Chromosome) जैसे कुछ शब्द काम आएं, ऐसा कुछ याद आ रहा है| अरे भाई भूल गया बहुत पहले पढ़ा था, दसवीं कक्षा में| कृपया कोई जीव विज्ञानी सहायता करें|

तो यह लगभग सिद्ध हो चूका है कि हर चीज़ गोल है| अब शायद आप और मैं भी गोल ही हैं| तो यह नयी खोज मैं अपने खाते में दर्ज समझूं? चलो इस बहाने देश को एक और महान विज्ञानी मिल गया|
और हाँ मुझे किसी प्रकार का मानसिक रोगी न समझें| ना ही मैं किसी प्रकार का नशा करता हूँ| हमेशा देशभक्ति की बात करूँगा तो आप कहीं बोर ना हो जाएं| देश भक्ति तो दिल में है, उसकी चर्चा भी करेंगे|



नोट : आधी रात में अकेले छत पर घूमना हानिकारक हो सकता है|

Wednesday, May 18, 2011

मांसाहार क्यों घृणित है???


मित्रों लेख प्रारम्भ करने से पहले मैं आपको अपने विषय में भी कुछ बताना चाहूँगा| मैं एक विद्रोही प्रकृति का व्यक्ति हूँ| कोई व्यक्ति, वस्तु, कार्य या किसी तंत्र में यदि मुझे किसी प्रकार की गड़बड़ नज़र आए तो मैं उसका विरोध करना अवश्य चाहूँगा| चाहे कोई मुझसे सहमत हो या असहमत किन्तु यह मेरा अधिकार है| केवल प्रशंसा ही नहीं अपितु आलोचना करने में मैं अधिक माहिर हूँ|
यह सब मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि विषय ही कुछ ऐसा है जिसमे प्रशंसा एवं आलोचना दोनों का स्थान है|
बात करते हैं यदि शाकाहार- मांसाहार की, जीव दया या जीव हत्या की अथवा इसको बढ़ावा देने वाले या इसका विरोध करने वाले किसी भी समुदाय, जाती, समाज या धर्म की तो यहाँ प्रशंसा व आलोचना साथ-साथ में चल सकती हैं|
इस विषय पर चर्चा करने वाले जीव दया की प्रशंसा कर सकते हैं एवं जीव हत्या की आलोचना भी|
इस विषय पर बहुत से लेख पढ़े| मैं भी अपने लेख में शाकाहार की प्रशंसा कर सकता हूँ किन्तु यहाँ मांसाहार की आलोचना अधिक करूँगा| शायद यह मेरी विद्रोही प्रकृति का ही परिणाम है|
शाकाहार क्यों उचित है इस प्रश्न के लिए शाकाहार की प्रशंसा में बहुत कुछ कहा जा सकता है और बहुत कुछ कहा भी गया है| जैसे कि शाकाहार सेहत के लिए अधिक अच्छा है, इसमें सभी प्रकार के गुण हैं आदि|
इसके अतिरिक्त कुछ और भी दृष्टिकोण हैं| जैसे पेट भरने के लिए किसी पशु की हत्या करना| मान लीजिये कि यहाँ हत्या गाय की हो रही है| तो गाय की प्रशंसा में भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है जैसे कि गाय हमारी माता है, इसके दूध से हमारा पालन होता है, इसके मूत्र से कई प्रकार की औषधियां बनाई जाती हैं, इसके गोबर को किसान खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं साथ ही इसे हम ईंधन के रूप में भी काम ले सकते हैं| ऐसा कुछ मैंने भी अपने एक लेख में लिखा है| किन्तु अब लगता है कि इसकी हत्या के विरोध में कुछ आलोचना भी करनी ही पड़ेगी| मैं नहीं चाहता कि कोई व्यक्ति मांसाहार इसलिए छोड़े कि शाकाहार अधिक अच्छा है या वह जीव अधिक लाभकारी है यदि वह जीवित रहे तो| यह भी तो एक प्रकार का लालच ही है| लालच में आकर मांसाहार छोड़ना पूर्णत: सही नहीं है| हिंसा का त्याग व दया ही उद्देश्य होना चाहिए| मांसाहारियों के मन से हिंसा को नष्ट करना है, यही उद्देश्य होना चाहिए| उन्हें इसका आभास कराना है कि यह एक हिंसक एवं घृणित कृत्य है, यह एक पाप है|
इसीलिए मैंने शीर्षक "शाकाहार क्यों उचित है?" के स्थान पर "मांसाहार क्यों घृणित है?" उपयोग में लिया है| शाकाहार की महिमा किसी अन्य लेख में गा दूंगा|
मांसाहार एक घृणित कृत्य है इसके लिए सबसे बड़ा कारण तो यही है कि इसके लिए निर्दोष जीवों की हत्या की जा रही है| किन्तु मांसाहारियों को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता यह मैं देख चूका हूँ| क्यों कि वे मांसाहार करते करते दया भावना का त्याग कर चुके हैं| और करेंगे भी क्यों नहीं, इसका कारण भी है|
मित्रों आप जानते ही हैं कि किसी भी जीव को मार कर खा जाने से उसमे व्याप्त कोई भी बीमारी खाने वाले को भी कुछ प्रभावित करती है| बर्ड फ्लू व स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियाँ ऐसे ही तो आई हैं| इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति मांसाहार करता है तो उसमे वह सभी भाव भी आते हैं जो मरते समय उस जीव में आ रहे थे जिसे वह खा रहा है| अब आप जानते ही हैं कि मांसाहार के लिए इन निर्दोष जीवों को किस प्रकार बेदर्दी से मारा जाता है| तो जिस समय वह मर रहा है उस समय वह दर्द से तड़प भी रहा है| उस समय वह दुखी है| उस समय वह क्रोधित भी है कि काश जिस प्रकार यह हत्यारा मुझे मार रहा है इसी प्रकार इसका भी अंत हो, उसका सर्वनाश हो जाए| काश मैं भी इसे इसी प्रकार मार सकता| मैंने इसका क्या बिगाड़ा है जो यह मुझे इस प्रकार बेरहमी से मार रहा है? उस समय जीव पीड़ित भी होता है| उस समय जीव प्रतिशोध की अग्नि में भी जल रहा होता है| उस समय वह जीव भी क्रूर हो जाता है| कहने का अर्थ यह है कि उस समय वे समस्त नकारात्मक भाव उस जीव के मन में आते हैं जिस समय वह दर्दनाक मृत्यु को पा रहा है| और इन सब भावों को भी मांसाहारी व्यक्ति उस जीव के साथ खा जाता है| सुनने में यह थोडा अजीब है किन्तु है एकदम वैज्ञानिक सत्य|
दया भावना मानवता की पहचान है अत: जो व्यक्ति दयालु नहीं है वह मानव ही नहीं है| मांसाहार के घृणित होने का यह सबसे बड़ा कारण है|
दूसरी ओर कई लोग इसे धर्म से जोड़ कर देखते हैं| इसके उत्तर में यदि कोई भी धर्म, जाती या सम्प्रदाय जीव हत्या को जायज ठहराता है तो उसे नष्ट कर देना चाहिए, उसे नष्ट होना ही चाहिए|
किसी भी धर्म में ऐसी कोई आज्ञा नहीं दी गयी है| फिर भी इस्लाम में बकरीद नामक त्यौहार मनाया जाता है| मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि मैं इस्लाम विरोधी नहीं हूँ| किन्तु इन कथित इस्लामियों को खुद ही अपने धर्म के बारे में नहीं पता| कुरआन मैंने भी पढ़ी है| कुछ दिनों पहले एक मुस्लिम फ़कीर से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| उनसे बैठकर बात करने में बड़ा आनंद आया| कुछ धर्म पर भी चर्चा हुई| उन्होंने बताया कि इस्लाम में बकरीद नामक कोई भी त्यौहार नहीं है| इस्लाम में ऐसा कोई त्यौहार नहीं है जिसमे किसी जीव को खुदा के लिए कुर्बान कर दिया जाए| किन्तु फिर भी खुदा के नाम पर सैंकड़ों वर्षों से यह पाप किया जा रहा है|
हिन्दू धर्म में भी कुछ जाति के लोग देवी के सामने बलि चढाते हैं| आजकल ही ऐसा हो रहा है| पिछले शायद कुछ सौ वर्षों से| प्राचीन समय में भारत में ऐसा कुछ नहीं होता था| सनातन धर्म एक महान जीवन पद्धति है| जीभ के स्वाद के लिए अथवा भगवान् को प्रसन्न करने के लिए हमारा सनातन धर्म इस प्रकार के पाप की कभी आज्ञा नहीं देता| और देवी के सामने बलि चढाने का औचित्य ही क्या है? एक तो जीव हत्या कर के वे पहले ही पाप कर रहे हैं, ऊपर से देवी को इसमें पार्टनर बना कर उसे भी बदनाम कर रहे हैं| वे जो अधर्मी हैं, अनाचारी हैं, वे क्या जाने कि धर्म क्या है?
आप मुझे बताएं कि क्या भगवान् यह चाहेगा कि मेरा एक बच्चा मेरे दुसरे बच्चे की हत्या कर दे केवल मुझे खुश करने के लिए?
इसी प्रकार इस्लाम में होता रहा है| बकरीद के दिन मुसलमान बकरे को हलाल करते हैं| जिसके कारण वह बकरा तड़प तड़प कर मरता है, और यह सब होता है धर्म की आड़ लेकर| कौनसा खुदा किसी जीव को इस प्रकार तड़पता देख कर खुश हो जाएगा, मुझे तो आज तक यही समझ नहीं आया|
दरअसल यह सब जीभ के स्वाद के लिए धर्म को बदनाम किया जा रहा है|
इसाइयत में भी यही सब चल रहा है| वहां भी धर्म के नाम पर अनेकों निर्दोष पशु किसी न किसी त्यौहार में मार दिए जाते हैं|
आजकल कुछ मैकॉले मानस पुत्र मैकॉले द्वारा रचित इतिहास (आजकल इसे कांग्रेसी या वामपंथी साहित्य का नाम दिया जा सकता है) पढ़कर कहते हैं कि प्राचीन समय से ब्राह्मण गौमांस का भक्षण कर रहे हैं और कहते हैं कि ऐसा हिन्दू वेदों में लिखा है| मैं भी एक ब्राह्मण हूँ| मैंने भी वेदों का अध्ययन किया है| मुझे एक बात समझ नहीं आई कि यदि प्राचीन समय से ऐसा हो रहा है तो आज क्यों नहीं होता? मैंने तो कम से कम अपने से बड़ी चार पीढ़ियों को ऐसा करते कभी भी नहीं पाया| गौमांस तो दूर वे तो मुर्गी का अंडा फोड़ देना भी पाप समझते हैं| यदि भारत में ऐसा ही होता था तो गाय को माता की उपाधि इस देश ने कैसे दे दी? उस देश में जहाँ ब्राह्मण को धर्म गुरु की उपाधि दी गयी, वह ब्राह्मण गौमांस कैसे खा सकता है? भगवान् कृष्ण के देश में भला कोई गौमांस खा सकता है? और गौमांस ही क्यों किसी भी जीव का मांस खाना हिन्दू धर्म में वर्जित है|
हम कोई जंगली नहीं हैं| भगवान् ने हमें सोचने की शक्ति दी है| इसी शक्ति के आधार पर हमने सबसे पहले खेती करना सीखा| स्वयं अपना खाना तैयार करके खाना सीखा| प्रकृति इतनी दयालु है कि हमें भोजन उपलब्ध करवा देती है| फिर हम इतने निर्दयी कैसे हुए?
मैंने इस पोस्ट में कुछ ऐसे ही पापी चित्र लगाए हैं जिनमे इन निरीह पशुओं पर होने वाले अत्याचार दिखाए गए हैं| मैं आपसे इस क्रूरतापूर्ण लेख के लिए क्षमा चाहता हूँ| अपनी एक पोस्ट में मैंने एक वीडियो भी लगाया था, जिसे आप यहाँ देख सकते हैं| यकीन मानिए मैंने इस वीडियो को देखा है| देखते हुए रो पड़ा| मेरी आँखों में आंसू नहीं आते, पता नहीं क्यों? किन्तु दिल अन्दर तक रो सकता है| दुःख भी बहुत होता है| चाहता तो इस वीडियो को बीच में ही बंद कर देता और इसे इस पोस्ट में नहीं लगाता| किन्तु अब लगता है कि यह तो सत्य है| मैं नहीं देखूंगा तो भी होगा| देखूंगा तो कम से कम इसका विरोध करने लायक तो रहूँगा|
किन्तु यह आभास भी हो गया है कि अब कभी ऐसे वीडियो नहीं देख सकता| निर्दोष पर अत्याचार सहन नहीं होता| अब ऐसा लगने लगा है कि मुझे सुख की कामना छोड़ दुःख के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, क्यों कि यही मुझे गतिशील रखता है|
मेरी इच्छा शक्ति बढती जा रही है| अब मेरे मन में एक इच्छा है कि जिस प्रकार ये पापी इन निर्दोष जीवों को तडपा रहे हैं, इनका भी अंत इसी प्रकार हो| इन पापियों का ऐसा अंत करने में मुझे भी ख़ुशी होगी| यह पुण्य कर्म मैं भी करना चाहूँगा| हाँ मैं मानता हूँ कि इस समय मैं क्रूर हो रहा हूँ, किन्तु ऐसा होना आवश्यक भी है| यदि कोई इस प्रकार मेरे किसी प्रियजन के साथ करता तो भी क्या मैं चुप बैठा रहता?
आज लिखते समय मुझे अत्यधिक पीढ़ा हो रही है| किन्तु विश्वास है कि एक दिन यह सब रोक सकूँगा| मेरे जैसे असंख्य लोग इस कार्य में लगे हैं| उन सबका साथ दूंगा, वे सब मेरा साथ देंगे|


नोट : आने वाले समय में कभी भी भावनाओं में बहकर कुछ नहीं लिखूंगा| ऐसा करना शायद विषय के साथ न्याय नहीं कर पाता| यहाँ आवश्यकता थी अत: इसे अपनाया|

Sunday, May 15, 2011

यह कैसा नरक बन गया है उत्तर प्रदेश???

मित्रों यह तो सर्वविदित ही है की उत्तर प्रदेश के आठ जिलों में मायावती सरकार द्वारा केंद्र सरकार की स्वीकृति से दस यांत्रिक पशु वधशालाएँ खोली गयी हैं| जहाँ पर दस से पंद्रह हज़ार निर्दोष पशुओं को प्रतिदिन एक वधशाला में ही काट दिया जाएगा| कुल मिलाकर इन दस वधशालाओं में प्रतिदिन एक से डेढ़ लाख निर्दोष पशु दर्दनाक मौत मारे जाएंगे|
इसके विरोध में जैन मुनि श्री मैत्री प्रभु सागर २६ अप्रेल से बडौत में आमरण अनशन पर बैठे हैं| इस अभियान में उन्हें भारी जनसमर्थन मिल रहा है| केवल बडौत या उत्तर प्रदेश से ही नहीं अपितु देश भर से लोग उन्हें समर्थन दे रहे हैं| सरकार पूरी कोशिश में लगी है कि किसी भी प्रकार इस अनशन को तोडा जाए| इसीलिए १२ मई की अर्ध रात्री में उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस ने जबरन गिरफ्तार कर लिया और उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया जहां जबरदस्ती उन्हें ग्लूकोज़ दे दिया गया| इससे महाराज श्री का क्रोध और बढ़ गया और उन्होंने कहा की मेरा अनशन अभी टूटा नहीं है, मैंने मूंह से अभी तक कुछ नहीं खाया है अत: मेरा अनशन जारी रहेगा|
महाराज श्री के समर्थकों ने उनकी गिरफ्तारी का विरोध किया तो पुलिस ने उन्हें बर्बरता से पीटा| उन पर लाठी चार्ज व फायरिंग की गयी| बहुत से लोग घायल हो गए| कर्नाटक के संत स्वामी दयानंद भी जैन मुनि का समर्थन कर रहे थे| उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया किन्तु उनकी गिरफ्तारी नहीं दिखाई गयी|
इसी बीच छपरौली कस्बे के एक युवक एवं वंचित जमात पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तर सलमानी ने महाराज श्री का समर्थन किया व उनकी गिरफ्तारी के विरोध में यह चेतावनी दी कि यदि ३६ घंटों के भीतर महाराज श्री की मांगों को स्वीकार नहीं किया गया तो वे १५ मई को पुलिस थाने के सामने आत्मदाह कर लेंगे| उनका कहना है कि महाराज श्री को इस प्रकार जबरन अनशन से उठाकर प्रदेश सरकार ने जन भावनाओं को आहत किया है|
अस्पताल से महाराज श्री को सीधे दिल्ली के दिलशान गार्डन ले जाया गया| महाराज श्री ने चेतावनी दी है कि जब तक सरकार इन पशु वधशालाओं को बंद नहीं कर देती तब तक हमारा आन्दोलन जारी रहेगा|
१९ मई को राजघाट से जंतर-मंतर तक महाराज श्री के नेतृत्व में अहिंसा रैली निकाली जाएगी|

इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में पशुओं पर होने वाली क्रूरता एवं इसके परिणाम स्वरुप होने वाले नुक्सान का एक और उदाहरण देखिये|
मेरठ में हापुड़ रोड पर एक कमेला है जहाँ पशु वधशालाओं में प्रतिदिन ६००० हज़ार पशुओं को काटा जाता है| वहां हड्डी व चमड़ा गोदाम हैं| जानवारों के अवशेषों व हड्डियों से चर्बी निकालने के लिए भट्टियां लगी हुई हैं, जिनसे निकलने वाले धुएं की बदबू से वहां के निवासीयों का जीना दूभर हो गया है| इस कमेले के प्रदूषित जल को काली नदी में बहा दिया जाता है, जिससे नदी पूरी तरह प्रदूषित हो गयी है| इसके अतिरिक्त धरती में बोरिंग करके ३०० फुट नीचे तक इस प्रदूषित जल को भूगर्भ में भी डाला जा रहा है| जिससे नगर निगम की २५ कॉलोनियों का जल पीने लायक नहीं रहा| इस इकाई में चार वधशालाएँ हैं| ६०० भट्टियां व १० हड्डी व चमड़ा गोदाम हैं| प्रतिदिन ६००० हज़ार पशुओं की हड्डियों को पकाने के लिए ८८० टन लकड़ियों को भी जलाया जाता है| इस पूरे कारोबार में ९२० टन पानी का उपयोग होता है, जिसके लिए पानी का कोई कनेक्शन नहीं लिया गया है यह सारा पानी बोरिंग के द्वारा भूगर्भ से निकाला जा रहा है| इससे प्रतिदिन १०१२ लीटर प्रदूषित जल (जिसमे १२० किलो पशुओं का रक्त भी शामिल है) की निकासी के लिए इसे काली नदी व भूगर्भ में छोड़ दिया जाता है| इसके परिणाम स्वरुप शहर में प्रतिदिन सवा लाख किलोग्राम मांस की खपत शहर में हो रही है|
मेरठ की सबसे बड़ी समस्या यह कमेला है| जहाँ प्रतिदिन हज़ारों निर्दोष पशुओं को बड़ी बेदर्दी से मारा जा रहा है| इसके द्वारा शहर का पर्यावरण व जल प्रदुषण भी हो रहा है| इस कमेले के आसपास बांग्लादेशी बसे हुए हैं जो इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं| ये बांग्लादेशी देश के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं| यह कमेला कमाई का मोटा साधन होने के कारण राजनीति को प्रभावित करता है जिसके कारण कई बार शहर का वातावरण खराब हो चूका है| और सबसे बड़ी बात यह कमेला नगर निगम की जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर के बनाया हुआ है| फिर सरकार इसे बंद क्यों नहीं करती है?

इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के नरक बन जाने का एक और प्रमुख कारण इन दिनों चर्चा में है| हमारे भारत देश का अन्न दाता किसान किस प्रकार यहाँ ठगा जा रहा है यह अब किसी से छिपा नहीं है| यमुना एक्सप्रेस हाइवे के नाम पर किसानों से उनकी ज़मीनों को छीना जा रहा है| अब यमुना एक्सप्रेस हाइवे का किसानों के लिए क्या उपयोग होगा? वे तो बेचारे इस सड़क पर चलने के लिए टोल टैक्स भी नहीं दे सकते| इसके अतिरिक्त किसानों से उनकी जमीन कौड़ियों के भावों में सरकार द्वारा हडपी जा रही है और महंगे दामों पर बड़ेबड़े उद्योगपतियों को सौंपी जा रही है| और यह सब कुछ अंग्रेजों के बनाए क़ानून के अंतर्गत हो रहा है जिसे आज तक बदला नहीं गया| यह भूमि अधिग्रहण विधेयक १८९४ में अंग्रेज़ सरकार द्वारा किसानों की भूमि हड़प कर ईस्ट इण्डिया कंपनी को सौंपने के लिए बनाया गया था, जिसका आज तक उसी प्रकार उपयोग हो रहा है| अंतर है तो केवल इतना की पहले अंग्रेजों द्वारा किसानों की ज़मीन को हड़प कर ईस्ट इण्डिया कंपनी के नाम किया जाता था किन्तु आज इन काले अंग्रेजों द्वारा किसानों से उसी प्रकार उनकी भूमि छीन कर बड़े बड़े उद्योग पतियों को बेचा जा रहा है| और विरोध करने पर सरकार पुलिस के द्वारा लाठियां बरसा रही है एवं निर्दोष किसानों पर गोलियां चलवा रही है|

अब आप ही सोचें कि भगवान् श्री राम व श्री कृष्ण की जन्मभूमि उत्तर प्रदेश को इस मोह "माया" ने कैसा नरक बना डाला???

नोट : इस लेख को लिखने में पशु वधशालाओं से सम्बंधित बहुत सी जानकारियाँ फेसबुक पर एक बहन श्रीमती लहर जैन के द्वारा प्राप्त हुई हैं| अत: इसका श्रेय उन्हें जाता है| हम उनके आभारी हैं जो उन्होंने यह जानकारी हम तक पहुंचाई...

Wednesday, May 11, 2011

जैन मुनि श्री मैत्री प्रभा सागर दिला रहे हैं निर्दोष पशुओं को जीने का अधिकार

मित्रों अब तो भारत देश कहने को ही भगवान् कृष्ण का देश रह गया है| जहाँ कभी गाय को माँ कहा जाता था आज उसी माँ को काट कर उसका मांस विदेशों में बेच कर पैसा कमाया जा रहा है इन लुटेरे नेताओं द्वारा|
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार के द्वारा प्रदेश में दस यांत्रिक बूचडखाने खोले जाने को स्वीकृति दी गयी है| यहाँ एक बूचडखाने में दस से पंद्रह हज़ार पशु प्रतिदिन मारे जाएंगे| अर्थात पूरे प्रदेश में एक दिन में एक से डेढ़ लाख पशु प्रतिदिन काट दिए जाएंगे| इन पशुओं में मुख्यत: गाय व भैंस शामिल हैं| अब बताइये भगवान् कृष्ण की जन्म भूमि उत्तर प्रदेश में यह हाल है तो बाकी पूरे देश में क्या होगा?
इसके विरोध में जैन मुनि श्री मैत्री प्रभा सागर पिछले तेरह दिनों से बडौत में आमरण अनशन पर बैठे हैं| उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता जा रहा है किन्तु सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही| जैन मुनि का उत्तर प्रदेश से कोई लेना देना भी नहीं है| वे तो कुछ दिन पहले गुजरात से मेरठ पहुंचे तो वहां उन्हें मायावती सरकार के इस दुश्चक्र का पता चला कि सरकार प्रदेश के आठ जिलों में ये बूचडखाने खोलने जा रही है| ये बूचडखाने मेरठ, मुरादाबाद, सहारनपुर, झांसी, लखनऊ, कानपुर, अलीगढ एवं आगरा में खोले जाने हैं| जैन मुनि मेरठ में ही इसके विरोध में आन्दोलन करना चाहते थे किन्तु लोगों ने इस कार्य में उन्हें सहयोग नहीं दिया| अत: उन्होंने बडौत से अपना आन्दोलन शुरू किया| वहां उन्हें भारी जन समर्थन मिल रहा है| धीरे धीरे यह आन्दोलन पूरे प्रदेश में फ़ैल रहा है| किन्तु राज्य सरकार तो कान में तेल डाल कर सो रही है| केंद्र सरकार ने भी इस विषय में अपना मूंह बंद कर रखा है| सरकार की तरफ से कोई झुकाव न देख कर उन्होंने १० मई को मेरठ में एक ऐतिहासिक आन्दोलन किया| वहां भी उन्हें भारी समर्थन मिल रहा है| किन्तु सरकार पर कोई असर नहीं हुआ|
इसका अर्थ यह निकाला जाए कि सरकार अब चाहती है कि हमारी संस्कृति व हमारी भावनाएं जाएं तेल लेने, हमारी माँ को गला काट कर मार दिया जाए और उसका मांस इनके आकाओं को बेचा जाए और हम चुप चाप बैठे तमाशा देखते रहें|
बात केवल गौ हत्या तक ही सीमित नहीं है| अपनी जीभ के स्वाद के लिए किसी भी प्रकार की जीव हत्या कर देना मैं गलत मानता हूँ|
आप जानते ही होंगे कि इन बूचडखानों में किस प्रकार पशुओं को तडपा तडपा कर मारा जाता है| नहीं पता है तो यह वीडियो देखें|

वीडियो के लिए सीधा लिंक यहाँ उपलब्ध है...
ऐसा भी क्या चटकारा जीभ का कि उसे मिटाने के लिए जंगली बनना पड़े? मानव को मानवता की हद में ही रहना चाहिए| निर्दोष पशुओं पर क्रूरता मानवता का गुणधर्म नहीं है| इन बेजुबान जीवों का कुछ तो दर्द हमें समझना ही होगा| ऐसा तो है नहीं कि भगवान् ने केवल मनुष्य को ही समस्त पृथ्वी पर अधिकार के सूत्र दिए हैं| जिनता अधिकार मानव का है उतना ही इन जीवों का भी है| और इनसे इनका अधिकार छीनना पकृति के नियमों के विरुद्ध जाना है|
मैं जानता हूँ कि बहुत से महानुभाव मेरे इस कथन से सहमत नहीं होंगे| कहेंगे कि यह तो एक जीवन चक्र है, उसको इसी प्रकार मरना था, यदि हम नहीं खाएंगे तो कोई और खाएगा अथवा यदि इन्हें हम नहीं खाएंगे तो इनकी संख्या धरती पर इतनी बढ़ जाएगी कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा आदि आदि|
इन सब दलीलों का कोई औचित्य नहीं है| यदि देश में गाय व भैसों की संख्या बढ़ जाए तो यह देश उन्नति के शिखर को छूने लगेगा| जितना अधिक पशुधन होगा उतनी अधिक उन्नति होगी|
एक गाय अपने पूरे जीवन में क्या नहीं देती हमें? भारतीय गाय के दूध और गोबर के लाभ तो हम सभी जानते हैं| इसके मूत्र से होने वाले लाभों से भी हम परिचित हैं| प्राय: गाय के मूत्र को एक औषधि के रूप में काम में लिया जाता है| इसके अलावा हिन्दू धार्मिक कर्मों में भी इसकी महत्ता है| किन्तु इन सबके अलावा भी गौ मूत्र काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है| कानपुर की एक गौशाला में काम करने वाले लोगों ने एक ऐसे सीएफएल बल्ब का निर्माण किया है जिसे जलाने के लिए एक विशेष बैटरी की आवश्यकता होती है| इस बैटरी को गौ मूत्र के द्वारा चार्ज किया जाता है| आधा लीटर गौ मूत्र से यह बल्ब २८ घंटों तक जलता रहता है| जो कि अपने आप में एक अद्भुत खोज है| 
इस खबर का स्त्रोत यहाँ है...
 कानपुर की ही एक गौशाला ने गाय के गोबर से गोबर गैस बनाई और उसे गाड़ियों में उपयोग में आने वाली सीएनजी (CNG- Compressed Natural Gas) की तरह काम में लिया| परिणाम आश्चर्य जनक थे| इस गैस से एक टाटा इंडिका पर इंधन पर होने वाला औसत व्यय ३५ से ४० पैसे प्रति किलोमीटर था| इतना उपयोगी पशु क्या हमें यूँही मार देना चाहिए| गाय को ऐसे ही तो माता नहीं कहते, इसके पास वह प्रेम है जो एक माँ के मन में अपने बच्चे के लिए होता है|
मान लीजिये कि गाय बूढी हो गयी और उसने दूध देना बंद कर दिया तो भी उसे कसाई को बेच देने से तो अच्छा है कि उसके मूत्र व गोबर से ही लाभ उठाया जाए| और बेशक यह लाभ गाय के मांस से होने वाली आमदनी से कहीं अधिक होगा| मरने के बाद भी यह काफी उपयोगी सिद्ध होगी| एक शोध के अनुसार गाय के मरने पर उसका चमड़ा उतारने से अच्छा है कि उसे किसी स्थाम पर भूमि में गाढ़ दिया जाए व उस भूमि पर एक आम का पेड़ लगा दिया जाए| यह पेड़ अन्य पेड़ों से अधिक तेज़ी से बढेगा व फल भी अधिक देगा|
तो अब बताइये कि उसे मार कर उसका मांस व चमड़ा बेचना अधिक लाभकारी है या उसे बचाना?
बात केवल गौ हत्या तक ही सीमित नहीं है| मनुष्य को कोई अधिकार नहीं कि वह अपनी जीभ के स्वाद के लिए किसी जीव की हत्या कर दे| आपका एक समय का भोजन होगा और एक जीव अपनी जान से गया| हम कोई जंगली जानवर नहीं है| समाज में रहने वाले सभ्य लोग हैं| अत: सभ्य लोगों सा आचरण भी तो करना चाहिए|
और जहाँ तक प्रश्न है इन जीव जंतुओं की संख्या बढ़ जाने का तो इसे एक उदाहरण से बताना चाहूँगा कि यह किस प्रकार गलत है|
बूचड़खाने में मारी जाने वाली मुर्गियां ऐसे ही नहीं आ जाती| इसके लिए पोल्ट्री फ़ार्म में इनकी खेती की जाती है| जी हाँ बिलकुल खेती ही की जाती है| इन्हें फसल की ही तरह अपने गोदामों में भरा जाता है| एक पिजरे में दस दस मुर्गियां ठूंस दी जाती हैं| इनका पूरा जीवन इसी प्रकार निकल जाता है| जब तक वे अंडे देती हैं तब तक तो इसी प्रकार जीवन जीती रहती हैं| बाद में एक दर्दनाक मौत को प्राप्त होती हैं| तो इनकी संख्या बढ़ने का तो कोई सवाल ही नहीं है| इनकी तो संख्या खुद इन्हें मारने वाले बढ़ा रहे हैं|
इन निर्दोष जीवों की सुरक्षा के लिए जैन मुनि श्री श्री मैत्री प्रभा सागर जी मैदान में उतर आये हैं| हमें उन्हें सहयोग देना चाहिए|
अंत में बताना चाहूँगा कि आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर मांसाहार के लिए नहीं बना है| अत: दया कीजिये इन जीवों पर और इन्हें अपना जीवन शान्ति से जीने दीजिये|

Saturday, May 7, 2011

अरे ओ ओसामा, तू तो निरा मुर्ख निकला रे...

मित्रों आतंकवादी सरंगना ओसामा बिन लादेन की मृत्यु को लेकर भाँती भाँती के विचार सुनने एवं पढने में आ रहे हैं| कोई कहता है कि अमरीका ने आखिर दस साल बाद अपने अपमान का प्रतिशोध ले ही लिया, तो कुछ का कहना है कि मरने वाला लादेन नहीं कोई और है| भाँती भाँती के लोग, भाँती भाँती के दिमाग, भाँती भाँती की सोच, भाँती भाँती के विचार और भाँती भाँती के निर्णय|
अब सच क्या है यह तो भगवान् ही जाने, किन्तु इन सब प्रकरणों में एक बात जो मुझे समझ आई वह यह कि यदि मरने वाला ओसामा ही था तो यह तो निरा मुर्ख था जो पाकिस्तान में जाकर छिप गया| अरे पाकिस्तान में भला कोई सुरक्षित रह सकता है| वह देश तो बेचारे अपने नागरिकों को भी सुरक्षा नहीं दे सकता| पता नहीं कब तो वहां सत्ताएं पलट जाती हैं| कभी लोकतंत्र तो कभी सैनिक शासन| जनता तो बेचारी इन सब झमेलों से बाहर निकल ही नहीं पाती| अब ऐसे में पाकिस्तान में जाकर छिपना मुर्खता नहीं तो और क्या है| देखलो अब मारा गया न|
अरे भाई इससे तो अच्छा होता कि वह भारत में ही शरण ले लेता| कम से कम सुरक्षा तो मिलती उसे| हमारे देश की सभी सेक्युलर रुदालियाँ (वामपंथी एवं कांग्रेसी) उसे अपना घर जमाई बना कर रखते| खाने को रोज चिकन शिकन मिलता| रहने के लिए आलिशान जेल (हालांकि इसे जेल कहना सरासर गलत होगा) मिलती| सुरक्षा के बहाने पता नहीं कितना करोड़ रुपया देश की जनता के खून पसीनें की कमाई से खर्च हो जाता| कुल मिला कर ऐश करता यहाँ पर|
इसकी मुर्खता पर तो हंसी आती है| कम से कम इतना अंदाजा ही लगा लेता कि अफजल गुरु व कसाब जैसों को भी यहाँ विलास की सामग्रियां मिल रही हैं तो वह तो इन सब का बाप ही था| उसके लिए तो शायद दस जनपथ पर अलग से एक महल बनाया जाता, हालांकि उसे जेल की ही संज्ञा दी जाती| जहाँ पर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त होते| खाने में शायद रोज किसी काफिर का गोश्त मिल जाता| वो बात और है कि मालेंगाव बम धमाकों की आरोपी (?) और हिन्दू आतंकवादी (अव्वल तो यह शब्द आया कौनसी डिक्शनरी से यह किसी को नहीं पता) साध्वी प्रज्ञा देवी पर आरोप सिद्ध न होने एवं केवल शंका होने पर भी जेल में यातनाएं दी जा रही हैं| एक स्त्री पर इस प्रकार के अत्याहार करके इन सेक्युलरों को मर्दानगी का भ्रम हो रहा है| सभी महिला मुक्ति संगठन कान में तेल दाल कर सो रहे हैं| सभी मानवाधिकारी (सॉरी सॉरी दानवाधिकारी) इन गर्मियों में भी रजाई में मूंह घुसेड के सो रहे हैं| किन्तु लादेन के साथ ऐसा नहीं हो सकता| आखिर सेक्युलरिज्म नाम की चिड़िया की रक्षा भी तो करनी हैं न| इसके लिए तो महिला मुक्ति, दलित मुक्ति, मानवाधिकारी सभी संगठन बचाव में आ जाते| सबसे पहले तो खुद कांग्रेसी और झोला छाप बुद्धिजीवी वामपंथी आते|
और क्या पता इसके लिए दिग्गी राजा का जो प्रेम इसके मरने की बाद फुंकार मार रहा है वह पहले ही सामने आ जाता| दिग्गी शायद अपना खुद का बेडरूम अपने हाथों से सजा कर उसके शयन का इंतजाम करता| अमरीका के हाथों मरना तो दूर कभी कोई मच्छर भी काट लेता तो इसमें संघ का षड्यंत्र (?) कहकर वोटबैंक की राजनीति खेली जाती| और क्या पता आजमगढ़ से उसे टिकट दिलवाने के लिए सभी दलों में होड़ मच जाती| विधानसभाएं उसके आगे पीछे चक्कर काटतीं| और क्या पता बिग बॉस के अगले सीज़न में भी एंट्री मिल जाती|
अब बताइये मुर्ख नहीं था तो और क्या था? यूँही पवित्र भारत की धरती को छोड़कर पाक सरजमीं पर मरने गया| अरे उसके लिए तो ये सेक्युलर अमरीका से भी लड़ लेते| अमरीका महाशक्ति होगा अपने देश में हमारे यहाँ तो शर्मनिरपेक्षता से बढ़ कर कुछ नहीं है| आखिर उसकी रक्षा के लिए तो शायद इन नपुंसकों का पौरुष भी जाग उठता| वो बात और है कि कश्मीर की हालत देख कर पाकिस्तान जैसे दो कौड़ी (शायद कुछ ज्यादा ही मूल्य लगा दिया इसका) के देश के सामने इनके मूंह में दही जम जाता है किन्तु ओसामा के लिए तो यूं एन भी इनके पांवों की धूल ही होता| शायद कल को ये सेक्युलर उसके लिए अलकायदा का हैड ऑफिस दिल्ली में ही खोल देते| अरे भाई उसे अपना काम धाम भी तो संभालना होता न| बाहर कहाँ इधर उधर भागता फिरता? कभी सऊदी अरब, कभी अफगानिस्तान तो कभी पाकिस्तान| आराम से दिल्ली में बैठकर अपना पूरा नेटवर्क संभालता| और यहाँ की जनता तो पैदा ही बम धमाकों में मरने के लिए होती है| जितने जी में आये उतने बम फोड़ता, हम तो इसे हाथ भी नहीं लगाते| और अगर गलती से कोई मुक़दमा चल भी जाता तो इस देश में आलिशान जेलें लादेन जैसों जिहादियों के लिए ही तो बनी हैं| और वैसे तो मुझे पूरा विश्वास है कि ये सेक्युलर लादेन का बाल भी बांका नहीं होने देते किन्तु मृत्यु तो एक अटल सत्य है| जब कभी भी लादेन का इससे सामना होता तो दिग्गी अपने घर के पिछवाड़े में ही उसके लिए मकबरा बनवा देता, जहाँ बाबरी मस्जिद टाइप कोई लादेन मस्जिद भी बन जाती|
अरे ओ ओसामा, बड़ा जिहादी बना फिरता था, तू तो निरा मुर्ख निकला रे...