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Thursday, April 28, 2011

प्रकृति ईश्वर ही तो है...


मित्रों अभी कुछ दिन पहले किसी ने मुझसे कहा कि भाई आज से मै मंदिरों में भगवान् की पूजा नहीं करूँगा, आज से मै प्रकृति की पूजा करूँगा| मैंने कहा यह तो अच्छी बात है, प्रकृति ईश्वर ही तो है| किन्तु मंदिर में रखी पत्थर की मूरत भी तो प्रकृति है| क्या पत्थर प्रकृति की देन नहीं है? और फिर हम तो मानते हैं कि कण कण में ईश्वर है, तो यह ईश्वर जब प्रकृति में है तो उस पत्थर में क्यों नहीं हो सकता?
आरम्भ में ही आपको बता देना चाहता हूँ कि आप यहाँ शीर्षक पढ़ कर अनुमान न लगाएं| मै यहाँ किसी धर्म, वर्ण, जाति, सम्प्रदाय आदि की आलोचना नहीं करूँगा| क्यों कि मेरे देश की सभ्यता एवं संस्कारों ने मुझे ऐसा नहीं सिखाया| किन्तु अपनी संस्कृति का गुणगान अवश्य करूँगा जिस पर मुझे गर्व है| झूठ कहते हैं वे लोग जो किसी आस्था के उदय को अपनी आस्था के पतन का कारण मानते हैं| कोई एक सम्प्रदाय यदि आगे है तो हमारा सम्प्रदाय खतरे में है ऐसा कहना गलत है| हमारी आस्था का पतन हो रहा है यह कहना गलत है| तुम्हारी आस्था के पतन का कारण तुम स्वयं हो, हमारी आस्था के पतन का कारण हम स्वयं हैं| आस्था तुम्हारी है, फिर वह डिग कैसे सकती है और यदि तुम्हे अपनी आस्था में ही आस्था नहीं है, विशवास नहीं है तो इसमें हमारा क्या दोष? यदि आज तुम असुरक्षा का अनुभव कर रहे हो तो कारण बाहर नहीं भीतर है और यही पतन का कारण है| यदि तुम्हारी आस्था में कोई सत्य का आधार ही नहीं है तो उसका पतन हो जाना चाहिए| सत्य तक पहुँचने के भिन्न भिन्न मार्ग हो सकते हैं| हमारे मार्ग पर जो हमारे साथ नहीं उसके मार्ग को गलत कहना अनुचित है| सम्प्रदाय तो केवल मार्ग हैं, लक्ष्य नहीं| साधक और साध्य के मध्य में साधना है| साधना भी एक मार्ग ही है और यह भी भिन्न हो सकती है| अत: साधना व सम्प्रदायों की भिन्नता से हमारी संस्कृति में भेद नहीं हो सकता| और संस्कृति तो जीवन की पद्धति है जिसके हम अनुयायी हैं| जीवन में हमारी आस्था ही हमारी संस्कृति व हमारे संस्कार हैं| हम जियो और जीने दो में विश्वास रखते हैं| भारत भूमि में जन्म लेने वाले समस्त सम्प्रदायों के मार्ग भिन्न हो सकते हैं किन्तु संस्कृति एक ही है, एक ही होनी चाहिए|
भाग्यशाली हैं वे जिन्होंने इस धरा पर जन्म लिया| जहाँ स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग है| इन्ही शब्दों में देवता भी भारत भूमि की महिमा का गान करते हैं| पवित्रता त्याग व साहसियों की भूमि| ज्ञान-विज्ञान, कला-व्यापार व औषधियों से परिपूर्ण भूमि| हमारे पूर्वजों की कर्म भूमि| यही है मेरी भारत भूमि| भारत भूमि के इस इतिहास पर हम गर्व करते हैं परन्तु मै जानता हूँ कि कुछ मैकॉले मानस पुत्रों को हीन भावना का अनुभव भी होता है| समस्या उनकी है हमारी नहीं| हम हमारी माँ से प्रेम करते हैं, उस पर व उसके पुत्रों पर गर्व करते हैं| यदि तुम्हे शर्म आती है तो यह समस्या तुम्हारी है हमारी नहीं| चाहो तो इस भूमि का त्याग कर सकते हो| जिस माँ ने अपने वीर पुत्रों को खोया है वह माँ अपने इन नालायक पुत्रों के वियोग को भी सह लेगी|
धन्य है हमारी सनातन पद्धति जिसने हमें जीना सिखाया| फिर से कह देता हूँ कि सनातन केवल कोई धर्म नहीं अपितु जीवन जीने की पद्धति है| और अब तो सभी का ऐसा मानना है कि यही सर्वश्रेष्ठ पद्दति है, जिसने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया| जियो और जीने दो का नारा दिया| इसी विश्वास के साथ हम अपनी सनातन पद्धति में जीते रहे और कभी किसी के अधिकारों का हनन नहीं किया| कभी किसी अन्य सम्प्रदाय को नष्ट करने की चेष्टा नहीं की| कभी किसी देश के संवैधानिक मूल्यों का अतिक्रमण हमने नहीं किया| बस सबसे यही आशा की कि जिस प्रकार हम प्रेम से जी रहे हैं उसी प्रकार सभी जियें| किन्तु दुर्भाग्य ही था इस माँ का जो कुछ सम्प्रदायों ने हमारी सनातन पद्धति को नष्ट करने की चेष्टा की| हज़ार वर्षों से अधिक परतंत्र रहने के बाद भी हमारी सनातन पद्धति  सुरक्षित है यही हमारी पद्धति की महानता है, यही हमारी संस्कृति की महानता है| मुझे गर्व है मेरी संस्कृति पर|
मित्रों में शीर्षक से भटका नहीं हूँ केवल भूमिका बाँध रहा हूँ|
अभी कुछ दिन पहले मैंने एक वीडियो देखा| इस वीडियो में डॉ. जाकिर नाईक से एक प्रश्न पूछा गया कि मुसलामानों को वंदेमातरम क्यों नहीं गाना चाहिए?

 उत्तर में जाकिर नाईक का कहना है कि "मुसलामानों को ही नहीं अपितु हिन्दुओं को भी वंदेमातरम नहीं गाना चाहिए| क्यों कि वंदेमातरम का अर्थ है कि मै अपने घुटनों पर बैठ कर अपनी मातृभूमि को प्रणाम करता हूँ, उसे पूजता हूँ| जबकि हिन्दू उपनिषदों और वेदों में यह लिखा है कि भगवान् का कोई रूप नहीं है, कोई प्रतिमा नहीं है, कोई मूर्ती नहीं है| फिर भी यदि हिन्दू अपनी मातृभूमि को पूजते हैं तो वे अपने ही धर्म के विरुद्ध हैं| जबकि हम मुसलमान अपनी मातृभूमि से प्रेम करते हैं, आदर करते हैं, और आवश्यकता पड़ने पर अपनी जान भी इसके लिए दे सकते हैं किन्तु इसकी पूजा नहीं कर सकते| क्योंकि यह धरती खुदा ने बनाई है और हम खुदा की पूजा करते हैं| हम रचयिता की पूजा करते हैं रचना की नहीं|"
कितना तरस आता है इनकी बुद्धि पर| मै मानता हूँ कि अधिकतर भारतीय मुसलमान इस विषय पर डॉ. जाकिर नाईक से सहमत नहीं होंगे| कितनी छोटी सी बात है और वह भी इन्हें समझ नहीं आई| केवल शब्दों पर ध्यान देना गलत है उनके पीछे छिपी भावना का भी तो कुछ मूल्य है| ऐसा कह देना कि हिन्दू ही अपनी आस्था को गलत ठहरा रहे है झूठ है|
सनातन पद्धति कहती है कि ईश्वर माँ है| माँ का अर्थ केवल वह स्त्री नहीं जिसने हमें जन्म दिया है| माँ तो वह है जिससे हमारी उत्पत्ति हुई है| जिस स्त्री ने नौ मास मुझे अपनी कोख में रखा व उसके बाद असहनीय पीड़ा सहकर मुझे जन्म दिया वह स्त्री मेरी माँ है, जिस स्त्री ने मुझे पाला मेरी दाई, मेरी दादी, मेरी नानी, मेरी चाची, मेरी ताई, मेरी मासी, मेरी बुआ, मेरी मामी, मेरी बहन, मेरी भाभी ये सब मेरी माँ है,, जिस पुरुष ने मुझे जन्म दिया वह पिता मेरी माँ है, मेरे गुरु, मेरे आचार्य, मेरे शिक्षक जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया वे सब मेरी माँ हैं, जिस मिट्टी में खेलते हुए मेरा बचपन बीता वह मिट्टी मेरी माँ है, जिन खेतों ने अपनी फसलों से मेरा पेट भरा वह भूमि मेरी माँ है, जिस नदी ने अपने जल से मेरी प्यास बुझाई वह नदी मेरी माँ है, जिस वायु में मै सांस ले रहा हूँ वह वायु मेरी माँ है, जिन औषधियों ने मेरी प्राण रक्षा की वे सब जड़ीबूटियाँ मेरी माँ हैं, जिस गाय का मैंने दूध पिया वह गाय मेरी माँ है, जिन पेड़ों के फल मैंने खाए, जिनकी छाँव में मैंने गर्मी से राहत पायी वे पेड़ मेरी माँ हैं, वे बादल जो मुझ पर जल वर्षा करते हैं वे बादल मेरी माँ है, वह पर्वत जो मेरे देश की सीमाओं की रक्षा कर रहा है वह पर्वत मेरी माँ है, यह आकाश जिसे मैंने ओढ़ रखा है वह भी मेरी माँ है, वह सूर्य जो मुझे शीत से बचाता है, अन्धकार मिटाता है वह अग्नि मेरी माँ है, वह चन्द्रमा जो मुझ पर शीतल अमृत बरसाता है वह चंदा मामा मेरी माँ है, वह शिक्षा जिसे मैंने पढ़कर उन्नति कि वह विद्या मेरी माँ है, वह धन जिससे मैंने अपना भरण पोषण किया वह मेरी माँ है, आपकी माँ भी मेरी माँ है, वह सभ्यता, संस्कृति, परंपरा, जीवन पद्धति, जीवन मूल्य जिनमे मेरा जीवन बीत रहा है ये सब मेरी माँ हैं| मेरे पूर्वज जिन्होंने मेरे कुल को जन्म दिया वे पुरखे मेरी माँ हैं, वे शूरवीर जिन्होंने मेरी रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी वे सब मेरी माँ हैं| इन सबसे मेरी उत्पत्ति हुई है अत: ये सब मेरी माँ हैं| और मेरी सनातन पद्धति यह कहती है कि माँ ईश्वर के तुल्य ही है तो मै मेरी माँ की पूजा क्यों न करूँ?
क्या प्रकृति ने हमें जन्म नहीं दिया? क्या हमारी मातृभूमि ने हमारा पालन पोषण नहीं किया? जब यह हमारी माँ है और हम मानते हैं कि हमारी माँ ईश्वर है तो हम उसकी पूजा क्यों न करे? सनातन पद्धति में माँ को ईश्वर के समकक्ष रखने के पीछे यह एक महत्वपूर्ण कारण है| तभी तो हम प्रकृति की पूजा करते हैं| हम माँ-बाप का सम्मान करते हैं, बड़े बुजुर्गों का आदर करते हैं यह हमारी उपासना ही तो है| हम मूर्ती पूजा करते हैं, हम पेड़ों की पूजा करते हैं, हम मिट्टी की पूजा करते हैं, हम खेतों की पूजा करते हैं, हम गायों की पूजा करते हैं, अन्य कई जीवों की पूजा करते हैं, हम नदियों, झरनों, पहाड़ों, फूलों की पूजा करते हैं, हम सूर्य की पूजा करते हैं, हम चन्द्रमा व तारों की पूजा करते हैं, हम आकाश व बादलों की पूजा करते हैं, हम ज्ञान व विद्या की पूजा करते हैं, हम धन की पूजा करते हैं, हम गाय के गोबर की भी पूजा करते हैं, हम जड़ीबूटियों की पूजा करते हैं, हम वायु की पूजा करते हैं, और भी बहुत उदाहरण हैं क्यों कि इन सबसे हमारी उत्पत्ति हुई है अत: हम इन सबकी पूजा करते हैं|
मित्रों मै फिर याद दिला दूं मै किसी की आस्था को ठेस नहीं पहुंचा रहा| ईश्वर की परिभाषा तो सभी धर्म एक ही देते हैं| जैसे इस्लाम भी यही कहता है कि खुदा का कोई रूप नहीं, आकार नहीं, उसी प्रकार हम भी तो ईश्वर की यही परिभाषा देते हैं| फिर हिन्दू और मुसलमान अलग कैसे? इसाइयत में भी परमेश्वर की यही परिभाषा है| गौतम बुद्ध व महावीर जैन ने भी यही परिभाषा दी है| तो फिर अलग धर्म की आवश्यकता ही क्या है| ऐसे तो राम धर्म, कृष्ण धर्म, हनुमान धर्म और पता नहीं क्या क्या धर्म बन जाते| क्या पता ५०० वर्षों बाद कोई गांधी धर्म ही बन जाए जो केवल महात्मा गांधी तक सीमित हो|
तो यह कह देना कि "हम अपनी मातृभूमि से प्रेम करते हैं, आदर करते हैं, और आवश्यकता पड़ने पर अपनी जान भी इसके लिए दे सकते हैं किन्तु इसकी पूजा नहीं कर सकते" यह कहाँ तह उचित है? जब प्रेम को भी ईश्वर का ही नाम दिया गया है तो उस प्रेम की पूजा क्यों नहीं कर सकते? मातृभूमि से प्रेम कर सकते हैं तो उसकी पूजा क्यों नहीं कर सकते?
जैसा कि ईश्वर की परिभाषा सभी धर्मों ने सामान ही दी है तो अंतर केवल इतना है कि उस ईश्वर को मानने वाले किसी एक अनुयायी का हमने अनुसरण आरम्भ कर दिया| ईसाईयों ने प्रभु येशु का अनुसरण किया, मुसलामानों ने पैगम्बर मोहम्मद का अनुसरण आरम्भ किया, जैन धर्म ने महावीर जैन का अनुसरण आरम्भ किया, बौद्ध धर्म ने गौतम बुद्ध का अनुसरण आरम्भ किया, किन्तु सनातनियों ने प्रत्येक महानता का अनुसरण आरम्भ किया| भगवान् राम, कृष्ण, हनुमान, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, साईं, गुरु नानक देव, गुरु गोविन्द सिंह, तथागत बुद्ध, महावीर जैन, प्रभु येशु, पैगम्बर मोहम्मद आदि इन सभी का अनुसरण किया| जी हाँ सभी का| सनातनी वही है जो किसी भी धर्म स्थल पर पूरी आस्था के साथ ईश्वर की उपासना करता है| फिर चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, जैन या बौद्ध मंदिर हो सभी स्थानों पर ईश्वर तो एक ही है| क्यों कि यह तो कण कण में विराजमान है|
फिर मै केवल रचयिता की पूजा करूँ किन्तु रचना की नहीं यह कैसे संभव है? मै मेरी माँ से प्रेम करता हूँ, तो जाहिर है मेरी माँ से जुडी प्रत्येक वस्तु भी मुझे प्रिय है| मेरी माँ के हाथ का भोजन जो वह मुझे प्रेम से खिलाती है, वह मुझे प्रिय है, क्यों कि यह मेरी माँ की रचना है| मेरी माँ की वह लोरी जिसे गाकर वह मुझे सुलाती है वह भी मुझे प्रिय है, मेरी माँ की वह डांट जो मेरे द्वारा कोई गलती करने पर मुझे पड़ती है वह भी मुझे प्रिय है| मेरी माँ तो रचयिता है जबकि ये सब उसकी रचनाएं हैं अत: ये सब मुझे प्रिय हैं|

अंत में मै फिर से दोहराता हूँ कि मै किसी भी धर्म, वर्ण, जाति, सम्प्रदाय आदि का विरोधी नहीं हूँ| मै मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि सभी स्थानों पर जाना पसंद करता हूँ| मै भगवान् राम, पैगम्बर मोहम्मद, प्रभु येशु, गुरु नानक आदि सभी की उपासना करता हूँ| क्यों कि यही मेरी सनातन पद्धति ने मुझे सिखाया है| आशा करता हूँ कि सभी सम्प्रदायों के अनुयायी इसे समझेंगे| अमानवीय कृत चाहे वे किसी भी धर्म में होते हों, उनकी निंदा करनी ही चाहिए| फिर चाहे वह अन्य धर्म के अनुयाइयों को पीड़ा देना हो, उनसे घृणा करना हो, निर्दोष जीवों की हत्या हो या कुछ और यह स्वीकार करने योग्य नहीं है|

नोट: इसे कोई प्रवचन न समझें, यह मेरी सनातन पद्धति है|

Sunday, April 17, 2011

अनुपम खेर आप को भी नहीं छोड़ा???

मित्रों अब लग रहा हैं कि भारत में पूरी तरह से तानाशाही आ चुकी है| ये सरकार बात करती है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की और कोई अपने विचार अथवा समर्थन अभिव्यक्त करे तो उसके घर में गुंडे भेज कर तोड़ फोड़ करवा देती है, नारेबाज़ी करवाती है, समाज में जीना मुश्किल कर देती है| जब फिल्म अभिनेता अनुपम खेर जैसे एक ख़ास आदमी की इस प्रकार दुर्गति कर सकती है तो आम आदमी का तो पता नहीं क्या हो? और ये समझ नहीं आता कि अनुपम खेर ने ऐसा क्या कह दिया जो विवादास्पद था? केवल अन्ना के आन्दोलन में शामिल हुए और उन्हें समर्थन दिया, और पूछने पर इतना कहा कि यदि संविधान में बदलाव की आवश्यकता है तो इसे बदला जाना चाहिए बस| इस पर इस भ्रष्ट कांग्रेस का इतना भड़क जाना कि "अनुपम खेर ने हमारे संविधान का अपमान किया, इसे उठाकर बाहर फेंक देने की बात कही", सरासर मुर्खता है| जैसे इन्हें बहुत प्रेम है इस संविधान से, इनके तो रात दिन जैसे सपनों में संविधान ही घूमता रहता है| और इतना कह देने पर से संविधान का किस प्रकार अपमान हुआ यह मेरी समझ में नहीं आया| आज तक संविधान में ११० से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं तो अब भी हो सकता है| संविधान में बदलाव की बात करना कोई गैर संवैधानिक तो नहीं है| साथ ही संविधान को उठाकर बाहर फेंक देने की बात तो अनुपम खेर ने कही ही नहीं|
दरअसल इन भ्रष्ट कांग्रेसियों के लिए भारत माता से बड़ी कांग्रेस माता(?) व सोनिया माता(?) है| अक्टूबर २०१० में जब दिल्ली में अरुंधती राय ने अपनी जहरीली जबान से यह देश विरोधी बयान दिया था कि "कश्मीर कभी भी भारत का अभिन्न अंग नहीं रहा", तब इन संविधान के पैरोकारों(?) के मूंह में दही जम गया था| इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कह कर पल्ला झाड लिया गया| और न केवल पल्ला झाड़ा अपितु बा इज्जत गिलानी जैसे आतंकवादी व दो कौड़ी के आदमी को कश्मीर तक का रास्ता दिखाया व इस घटना का विरोध करने वाले देश भक्तों को उठा कर जेलों में ठूंसा गया| उस समय इनका संविधान प्रेम(?) कहाँ गया था? यहाँ चटका लगाएं...
ये वो दो कौड़ी का गिलानी है जो भारत में बैठा भारत के विरोध में ज़हर उगल रहा है और स्वयं को पाकिस्तानी बता रहा है| यहाँ चटका लगाएं...
इस घटना के कुछ ही दिनों पश्चात जब संघ प्रमुख सुदर्शन जी ने सोनिया गांधी पर कुछ टिप्पणी की जिसमे उन्होंने सोनिया को केजीबी का एजेंट बताया तब देश भर में घूम घूम कर संघ कार्यालयों में तोड़फोड़ कांग्रेस द्वारा की गयी| उस समय इनका संविधान प्रेम(?) कहाँ गया था? यहाँ व यहाँ चटका लगाएं..
उदाहरण बहुत से हैं,..
और अब जब अनुपम खेर ने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का समर्थन क्या कर दिया इन भ्रष्टाचारियों के पेट में दर्द होने लगा| अनुपम खेर ने ऐसा कुछ विवादास्पद नहीं कहा फिर क्यों उनके घर व स्कूल में इस प्रकार गुंडों को भेज कर तोड़फोड़ करवाई गयी? संविधान की कौनसी धारा में ऐसी सजा लिखी गयी है? अब ये मत कहना कि यह कहाँ सिद्ध हुआ है कि ये सब कांग्रेस ने करवाया है? हम भी दाल रोटी ही खाते हैं कोई घास फूस नहीं जो इतनी सी बात को न समझ सकें|
सवाल उठाया गया है अनुपम खेर पर तो आइये उनका वह बयान भी देख लें...
पाठकों के लिए सीधा लिंक यहाँ है...
६ अप्रेल २०१० को अनुपम खेर ने IBN 7 पर यह बयान दिया था| जहाँ अनुपम के सामने कांग्रेस नेता नवाब मलिक बैठें हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप के चलते त्यागपत्र देना पड़ा (अब आप ही सोचिये कि क्यों इस आदमी को मिर्ची लगी?)| १० अप्रेल २०१० को IBN 7 पर एक कार्यक्रम दिखाया जा रहा था| जिसमे अनुपम खेर ने बताया कि किस प्रकार उनके घर व स्कूल में तोड़फोड़ की गयी| इस समय भी नवाब मलिक यहाँ उपस्थित थे एवं उनसे जब इसके बारे में पूछा गया तो जनाब ने पता नहीं क्या क्या उल जुलूल कहा| इस पर अनुपम का वह छ: तारीख वाला बयान दोबारा दिखाया गया| तब ये मुर्ख प्राणी (इस प्रकार देश के एक नेता को मुर्ख कहने के लिए मै कोई क्षमा नहीं मांगूंगा, भले ही किसी भी विचारधारा वाले किसी भी व्यक्ति की भावना क्यों न आहत हो, क्यों कि इसकी मुर्खता अभी आपको भी दिख जाएगी|) इस प्रकार बौखलाया कि इस मुद्दे के बीच में संघ व भाजपा को बीच में लाया और साथ ही साथ सवर्ण-दलित जैसा जातिवाद बीच में लाया| अब बताएं इस में संघ, भाजपा व जातिवाद कहाँ से आया? (ध्यान दें इस वीडियो में ९:०० से ९:२० मिनट तक)...
जब अनुपम खेर के घर तोड़फोड़ हो रही थी उसके कुछ देर बाद वहां पुलिस पहुंची| देखिये आप पुलिस इन प्रदर्शन कारियों से कितने प्रेम से बात कर रही है जैसे कि इनके ससुराल वाले हों| (ध्यान से देखें वीडियो में १०:०० से १०:३० मिनट तक)...
एक और नेता कोई तारिक भाई नाम से भी यहाँ बैठा था| इसकी बातें तो बिलकुल बचकाना है| वो कहता है कि "अन्ना कौन होते हैं हमें भ्रष्ट कहने वाले? जो आदमी कभी मुखिया का चुनाव कभी नहीं लड़ा क्या वो हमें सर्टिफिकेट देगा?" अब आप बताएं क्या ये बचकाना बातें नहीं हैं? क्या केवल उसी व्यक्ति को अपनी मांग रखने का अधिकार है जो चुनाव लड़कर नेता बन जाए? क्या बाकी जनता भाड़ में जाए? बाद में यही प्राणी चिल्ला भी रहा है कि जनता की अदालत से बड़ी कोई अदालत नहीं होती| और वो जवाब दे कि मनमोहन सिंह ने कौनसा चुनाव लड़ा है कि वो हमारे देश का प्रधान मंत्री बन गया? ( देखिये ११:०० से ११:१० मिनट तक)...
इन्हें भ्रष्टों को आपत्ति है कि अनुपम खेर ने अन्ना का समर्थन किया और अन्ना से आपत्ति है कि उन्होंने भ्रष्टाचार का विरोध व नरेन्द्र भाई मोदी का समर्थन किया| उन्हें समस्या इस बात से भी है कि अनुपम खेर की पत्नी भाजपा की सदस्य है|
अब एक वीडियो देखिये जब अनुपम खेर ने अन्ना के आन्दोलन का समर्थन किया व सचिन तेंदुलकर. शाहरुख खान व अमिताभ बच्चन से यह अपील की कि उन्हें भी अन्ना के समर्थन में आगे आना चाहिए| वीडियो देख कर तो ऐसा नहीं लगता कि इसमें भी अनुपम खेर ने कुछ विवादास्पद बयान दिया हो|
पाठकों के लिए सीधा लिंक यहाँ है...
अब देख लीजिये यह तानाशाही नहीं तो और क्या है???
स्वामी रामदेव ने एक आशा की किरण दिखाई है| पर मुझे पूरा विश्वास है कि सभी देश विरोधी ताकतें स्वामी रामदेव को भी साप्रदायिक करार देंगी| उन्हें भी सवर्ण-दलित जैसी जातिवादी राजनीति से जोड़ा जाएगा| क्यों कि यह देख कर इन राष्ट्र्विरोधियों के पेट में मरोड़े उठ रहे हैं कि देश के बहुत से मुस्लिम मौलवी बाबा रामदेव के समर्थन में खड़े हैं|

Friday, April 15, 2011

आर बी आई में नकली नोट, पाकिस्तान और स्विस के साथ साथ इटली का भी हाथ...

मित्रों अब मुझे पूरी तरह से विश्वास हो गया है की इस देश को कोई माफिया ही चला रहा है| आज सुबह ही चौथी दुनिया पर मैंने डॉ. मनीष कुमार (सम्पादक चौथी दुनिया) व श्री विश्व बंधू गुप्ता (पूर्व आयकर आयुक्त) की वार्ता देखी| चर्चा का मुख्य विषय था...
१.रिजर्व बैंक के खजाने तक नकली नोट कैसे पहुंचे?
२.सीबीआई ने रिजर्व बैंक में क्यों छापा मारा?
३.इस खुलासे के बाद यूरोप के देशों में क्यों भूचाल आया?

मेरे विचार से यह मामला नकली नोटों पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा है| जो श्री विश्व बंधू गुप्ता जी के कठिन परिश्रम और ईमानदारी से सामने आया है|
सबसे पहले बात करते हैं की रिजर्व बैंक के खजाने तक नकली नोट कैसे पहुंचे?
अगस्त २०१० को सीबीआई ने मुंबई के रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के वाल्ट पर छापा मारा| उसे वहां पांच सौ व हज़ार के नकली नोट मिले (ध्यान दें इस घटना को एक वर्ष पूरा होने वाला है किन्तु कहीं किसी को इस बात की खबर भी नहीं है)| जांच में सीबीआई ने वहां के अधिकारियों से पूछताछ की| इस छापे का मुख्य कारण दरअसल यह था कि इससे पहले सीबीआई ने नेपाल सीमा पर देश के करीब साठ-सत्तर बैंकों पर छापा मारा| जांच एजेंसियों को सूचना मिली थी कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई नेपाल के रास्ते भारत में नकली नोटों का कारोबार चला रही है| नेपाल-भारत सीमा पर सभी बैंकों में नकली नोटों का लेन देन हो रहा है| आईएसआई के द्वारा ५०० का नोट २५० में बेचा जा रहा है| छापे में बैंकों के खजाने में ५०० व १००० के नकली नोट मिले| बैंक अधिकारियों की धर पकड़ व पूछताछ में उन्होंने रोते हुए अपने बच्चों की कसमें खाते यह कहा कि हम इस विषय में कुछ नहीं जानते| हमें तो यह नोट रिजर्व बैंक से प्राप्त हुए हैं| यदि यह किसी एक बैंक का मामला होता तो सीबीआई इन बैंक अधिकारियों को बंदी बना लेती, किन्तु यहाँ तो सभी बैंकों का यह हाल था| अत: इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता था की ये नोट रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया से आये हैं|
इसकी जांच के लिए सीबीआई ने जब रिजर्व बैंक के वाल्ट पर छापा मारा तो उसके होश उड़ गए| रिजर्व बैंक के खजाने में ५०० व १००० के नकली नोट मिले| इसकी और अधिक जांच करने पर पता चला कि ये वही नकली नोट हैं जो आईएसआई के द्वारा नेपाल के रास्ते भारत में पंहुचाये जा रहे हैं|
ये नकली नोट देखने में बिलकुल असली लगते हैं, केवल एक मामूली सा अंतर है जिसे पकड़ पाना बेहद कठिन है| दरअसल जब उत्तर प्रदेश व बिहार के बैंकों में छापा मारा गया तो केस अदालत पहुंचा, जहाँ इन नोटों को जांच के लिए सरकारी लैबों में भेजा गया| वह से रिपोर्ट आई कि ये नोट असली हैं| अब सीबीआई परेशान हो गयी कि यदि ये नोट असली हैं तो ५०० का नोट २५० में कैसे मिल सकता है? इसके बाद इन्हें जांच के लिए टोक्यो व हांगकांग की सरकारी लैबों में भेजा गया, वहां से भी यही रिपोर्ट आई कि नोट असली हैं| फिर इन्हें अमरीका भेजा गया और अमरीकी जांच में पता चला की यह नोट नकली हैं| अमरीकी लैब ने यह बताया कि इन नकली नोटों में एक छोटी सी छेड़छाड़ की हुई है जिसे कोई छोटी मोटी संस्था नहीं कर सकती बल्कि नोट बनाने वाली कोई बेहतरीन कंपनी ही ऐसे नोट बना सकती है| अमरीकी लैब ने भारतीय जांच एजेंसियों को पूरे प्रूफ दे दिए और असली नकली नोट में अंतर को पहचानने का तरीका भी सिखाया|
अब सवाल यह था कि आईएसआई द्वारा नेपाल के रास्ते भारतीय बैंकों में पहुंचाए गए ५०० व १००० के नकली नोट बिलकुल वैसे ही हैं जैसे रिजर्व बैंक के खजाने में मिले, तो क्या आईएसआई की पहुँच रिजर्व बैंक तक है? क्योंकि दोनों नोटों का पेपर, इंक व उनकी छपाई एक जैसी ही थी|
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के ५०० व १००० के नोटों की डिजाइन व क्वालिटी कुछ ऐसी है जो की आसानी से नहीं बनाई जा सकती| फिर आईएसआई ने यह नोट कैसे बना लिए क्योंकि पाकिस्तान के पास तो वैसी टेक्नोलॉजी ही नहीं है|
अब या तो जो संस्था आईएसआई को यह नोट पहुंचा रही है वही रिजर्व बैंक तक भी अपनी पहुँच रखती हो, या फिर आई एस आई की पहुँच रिजर्व बैंक तक हो गयी है| दोनों ही परिस्थितियों में देश के लिए एक bahut बड़ा खतरा है| और उससे भी गंभीर बात यह है कि ये नोट कौनसी कंपनी बना रही है?
जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि ये नकली नोट डे ला रू नाम की कंपनी बना रही है| जी हाँ वही कंपनी जो भारत के लिए नोट छापती है| विश्व बंधू गुप्ता की बात सही है कि दुनिया में केवल ६-७ ऐसे देश हैं जो चाँद तक अपने उपगृह पहुंचाने में सफल हुए हैं| चंद्रयान छोड़ने के बाद भारत भी इन देशों में शामिल हो गया है| इतने आधुनिक तकनीक होने के बाद भी क्या हम अपनी कोई कंपनी नहीं बना सकते जो नोट छापे? उसके लिए भी विदेशों के पास जाना पड़ेगा?
डे ला रू की कमाई का २५ प्रतिशत हिस्सा भारत से कमाया जाता है| डे ला रू का सबसे बड़ा करार रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के साथ है| यह कंपनी आरबीआई को स्पेशल वाटर मार्क वाला बैंक पेपर नोट सप्लाई करती थी| यह खबर आते ही यूरोप में हंगामा मच गया| डे रा रू के शेयर नीचे गिरने लगे|आरबीआई से अपनी डील को बचाने के लिए कंपनी ने अपनी गलती मानी और १३ अगस्त २०१० को कंपनी के चीफ एक्ज़ीक्यूटिव जेम्स हसी को इस्तीफा देना पड़ा| कंपनी में अभी तक जांच चल रही है किन्तु आरबीआई खामोश है, हमारी संसद आज तक खामोश है| और इतनी खामोश है कि देश की मीडिया से यह बात छुपी रह गयी या मीडिया के मूंह में बोटी ठूंस कर उसे चुप करा दिया | और इतना बड़ा काण्ड देश के जनता के सामने आने से रह गया|
सबसे सनसनीखेज व शर्मांक बात जो इस तहकीकात में सामने आई वह यह है कि २००५ में सरकार की अनुमति से डे ला रू कैश इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड के नाम से यह कंपनी दिल्ली में रजिस्टर्ड हुई थी| २००४ में यूपीए  प्रथम की सरकार केंद्र में आई थी| आपको पता होगा कि क्वात्रोची छिपा बैठा है| सीबीआई उसे ढूंढ रही है| किन्तु २००५ में उसके बेटे मलुस्मा को अंडमान निकोबार में तेल की खुदाई का ठेका इसी सरकार ने दिया है| ईएनआई इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड नाम से उसकी कंपनी भारत में रजिस्टर्ड है| जिस इटैलियन माफिया क्वात्रोची व उसके बेटे मलुस्मा को गिरफ्तार करना है, उसका दफ्तर दिल्ली के मैरेडियन होटल में है| किसी की इतनी हिम्मत नहीं जो उसे हाथ भी लगा दे| आखिर इटली से आया है न| देश के कुछ जिम्मेदार नागरिकों को याद होगा कि २००५ में ही इटली के आठ बैंक व स्विट्ज़रलैंड के चार बैंकों को भारत में व्यापार करने की अनुमति केंद्र सरकार ने दी थी| ये इटली के वो बैंक हैं जिन्हें वहां का माफिया चला रहा है| और ये स्विट्जरलैंड के वो बैंक हैं जिन्हें यूबीएस चला रहा है| अर्थात देश के गद्दार नेताओं का जामा किया हुआ काला धन व अंतर्राष्ट्रीय माफिया द्वारा कमाया गया काला धन मुंबई के स्टॉक मार्केट में पहुंचाया गया और उससे सट्टा खेला गया| और यह सब हुआ यूपीए सरकार की परमीशन से| मतलब सत्ता में आते ही इस भ्रष्ट सरकार ने अपना खेल खेलना शुरू कर दिया| देश को लूटने की इन्हें इतनी जल्दी थी कि ये खुद को एक साल के लिए भी रोक नहीं पाए|
मित्रों कांग्रेस को गालियाँ बाद में देंगे पहले बात करते हैं डे ला रू की| २००५ में यह कंपनी भारत में रजिस्टर्ड हुई| यह कंपनी करंसी पेपर के अलावा पासपोर्ट, हाई सिक्योरिटी पेपर, सिक्योरिटी प्रिंट, होलोग्राम और कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशन में भी डील करती है| इसके अलावा यह भारत में असली नकली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बनाकर बेचती है| मतलब जो कंपनी नकली नोट भारत में भेज रही है वही नकली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बेच रही है, तो बताइये कैसे भरोसा किया जाए इन मशीनों पर? और इसी प्रकार यह पैसा आरबीआई के पास पहुंचा, देश के बैंकों व एटीएम तक पहुंचा| और आरबीआई के गवर्नर व हमारा वित्त मंत्रालय इन सब से अनभिज्ञ रहा| संभावनाएं दो ही हैं, कि या तो हमारा वित्त मंत्रालय निहायत ही मुर्ख व नालायक है या फिर वह भी इस लूट में शामिल है| सीबीआई के सूत्रों ने बताया कि डे ला रू का मालिक इटालियन रैकेट के साथ मिलकर देश में नकली नोट सप्लाई कर रहा है और पाकिस्तान के साथ मिलकर आतंकवादियों तक नकली नोट पहुंचा रहा है| यही नोट आईएसआई के द्वारा नेपाल के रास्ते से भारत में आ रहे हैं और आतंकवादी अपनी गतिविधियों को भी इन्ही के द्वारा अंजाम दे रहे हैं| यह सब किसके इशारे पर हो रहा है आप सोच सकते हैं| हमारी जांच एजेंसियां नकली नोटों के इस व्यापार को इस लिए नहीं रोक पा रही थी क्यों कि   वे पाकिस्तान, नेपाल, हांगकांग व मलेशिया आदि से आगे सोच नहीं पा रहे थे| किन्तु यूरोप में इतना कुछ घटित हो गया और आरबीआई चुप है, वित्त मंत्रालय चुप है और भारत सरकार भी चुप है| सच्चाई यही है की देश में आतंकवादी गतिविधियों में मरने वालों के खून से सोनिया, मनमोहन, चिदंबरम व प्रणव मुखर्जी के हाथ रंगे हुए हैं| वरना क्या वजह रही कि डे ला रू की धोखाधडी उजागर होने के बाद भी उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी केवल उसके साथ डील तोड़ने के अलावा? क्यों इसे संसद में नहीं उठाया गया? डे ला रू से डील तोड़ कर चार अन्य कंपनियों के साथ डील कर ली गयी किसी को पता क्यों नहीं चला? किस्से पूछ कर यह डील की गयी? इसके लिए संसद में बहस क्यों नहीं हुई?
डे ला रू का नेपाल व आईएसआई से क्या कनेक्शन है यह भी सुन लो| कंधार विमान अपहरण का मामला वैसे तो पुराना हो गया किन्तु एक व्यक्ति इस विमान में ऐसा था जिसके बारे में जानकार हैरानी हो सकती है| उसका नाम है रोबेर्तो गयोरी| यही आदमी डे ला रू कंपनी का मालिक है जिसे यह कंपनी अपने पिता से विरासत में मिली है| यह कंपनी दुनिया के ९० देशों के लिए नोट छपती है और आईएसआई के लिए भी काम करती है| इस आदमी की एक भी तस्वीर किसी के पास नहीं है| केवल एक तस्वीर है, अपहरण से छूटने के बाद उस विमान से उतरते हुए| रोबेर्तो गयोरी के पास एक ऐसा रसायन है जिसे वह अपने चेहरे पर लगा लेता है और उसके बाद कोई भी कैमरा उसकी तस्वीर नहीं उतार सकता| विमान अपहरण के समय दो दिन विमान में रहने के बाद उसका वह रसायन ख़त्म हो गया और उसकी तस्वीर कैमरा में आ गयी| उस विमान में यह आदमी दो महिलाओं के साथ यात्रा कर रहा था| दोनों महिलाओं के पास स्विट्ज़रलैंड की नागरिकता थी| स्वयं रोबेर्तो गयोरी के पास भी दो देशों की नागरिकता है, एक स्विट्ज़रलैंड व दूसरा इटली (देख लीजिये इन दो देशों का नाम तो हमेशा ही आता है)| नेपाल से उड़ान भरने के बाद जब विमान का अपहरण हुआ तो स्विट्ज़रलैंड के एक विशिष्ट दल ने भारत सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया कि वह हमारे नागरिकों की सुरक्षा करे| इसी दल को स्विट्ज़रलैंड सरकार ने हाईजैकर्स से बातचीत करने कंधार भी भेजा| सभी यात्री विमान में घबराए हुए थे जबकि रोबेर्तो गयोरी विमान के पिछले हिस्से में बैठा आराम से अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था| उसके पास  सेटेलाईट पेनड्राइव व फोन भी था| अब यह आदमी उस विमान में क्या कर रहा था, उसके पास यह सामान आतंकवादियों ने क्यों छोड़ दिया, नेपाल में ऐसा क्या था जो स्विटज़र लैंड का सबसे अमीर आदमी (जिसे दुनिया में करंसी किंग के नाम से जाना जाता है, क्यों की दुनिया में इतने बड़े लेवल पर वह करंसी निर्माण कर रहा है) वहां क्यों गया था, क्या नेपाल जाने से पहले वह भारत में भी आया था? आदि कई सवाल हैं जिनके जवाब शायद आप खुद ही जान सके हों|
मित्रों इतना सब कुछ होने के बाद भी यदि इस भ्रष्ट कांग्रेस, व एंटोनिया मायनों पर आपका विश्वास है तो भगवान् ही बचाए इस देश को| यह तो भला हो विश्व बंधू गुप्ता का जिन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर इतना बड़ा सच देश के सामने ला दिया| भगवान् उन्हें दीर्घायु प्रदान करे|
विश्व बंधू गुप्ता से डॉ. मनीष कुमार की बातचीत देखने के लिए यहाँ चटका लगाएं|

Wednesday, April 13, 2011

अन्ना आप फंस गए: नरेन्द्र मोदी

मित्रों आज मुझे एक ई मेल मिला, जिसमे एक पत्र की चर्चा है जो नरेन्द्र भाई मोदी ने अन्ना हज़ारे को लिखा| इसमें सच्चाई कितनी है यह तो मै नहीं जानता, किन्तु पत्र अच्छा लगा अत: इसे आपके साथ बांटना चाहता हूँ| मोदी जी ने भले ही यह पत्र न लिखा हो किन्तु यह व्यथा उनके मन की ही है इसमें कोई शंका नहीं|

तो प्रस्तुत है देश के सर्वश्रेठ मुख्यमंत्री का ख़त अन्ना हजारे के नाम

आदरणीय अन्नाजी,

सादर प्रणाम.

नवरात्रि के मेरे आठवें उपवास पर आज सुबह पांच बजे आपको यह पत्र लिखने के लिए प्रेरित हुआ हूं।

आप जब दिल्ली में अनशन पर बैठे थे, उन्हीं दिनों में नवरात्रि के मंगल अवसर पर शक्ति-उपासना के मेरे भी उपवास चल रहे थे। और मुझे सहज आनंद भी था कि मां जगदम्बा की कृपा से, परोक्ष रूप से आपके इस उम्दा उद्देश्य का मैं भी सहयात्री बना हूं।

नवरात्रि के उपवास और चुनावों की भागदौड़ के बीच असम में मां कामाख्या देवी के दर्शन का मुझे अवसर मिला। आपके उपवास जारी थे, इसलिए स्वाभाविक रूप से ही मां कामाख्या देवी के समक्ष आपके उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना का भाव मुझमें प्रकट हुआ। इसमें भी किसी सद्शक्ति का ही आशीर्वाद होगा, ऐसा मेरा मानना है।

केरल के चुनाव दौरे से कल रात 2 बजे वापस गांधीनगर लौटा। कल ही केरल में मुझे उत्साहवर्धक समाचार मिले कि, गुजरात के विकास और मेरे लिए अच्छे भाव जताए गए हैं।

आपके इस आशीर्वाद के लिए मैं आपका आभारी हूं।

आदरणीय अन्नाजी, आपके प्रति मेरा आदर दशकों पुराना है। राजनीति की दुनिया में प्रवेश करने से पूर्व मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में कार्यरत था। उस वक्त आरएसएस के राष्ट्रीय स्तर के जो भी अग्रणी आते, वह हमारी बैठक में आपके ग्राम विकास के कार्यों का अनुसरण करने और आपके प्रेरक कार्यों की जानकारी अवश्य देते थे। इसका मेरे मन पर गहरा असर था। भूतकाल में मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य भी हासिल हुआ था।

गुजरात और मेरे मामले में अच्छी भावना व्यक्त करते हुए सार्वजनिक तौर पर दृढ़तापूर्वक जो हिम्मत आपने दिखलाई है, इसके लिए पूरा गुजरात आपका आभारी है। आपकी इस हिम्मत में, आपकी सत्यनिष्ठा और सैनिक जैसी प्रतिबद्घता के दर्शन हुए हैं। इसी वजह से आपके मंतव्य को व्यापक रूप से स्वीकृति मिली है।

आपने मेरी प्रशंसा की है, लेकिन इससे मैं अहंकारी न हो जाऊं, कोई भूल न कर बैठूं, ऐसा आशीर्वाद भी आप मुझे दें, आपसे यह आग्रह है।

आपके आशीर्वाद ने मुझे सच्चा और अच्छा करने की नई हिम्मत दी है। इसके साथ ही मेरी जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। आपके बयान के कारण देश के करोड़ों युवक-युवतियां बड़ी अपेक्षा रखेंगे। ऐसे में मेरी कोई छोटी सी भूल भी सभी को निराश न कर दे, और मैं निरंतर जागृत रहूं, ऐसा आशीर्वाद प्रदान करें।

आदरणीय अन्नाजी, इस नाजुक घड़ी में मुझे कहना चाहिए कि मैं एक अत्यन्त सामान्य परिवार से आया एक आम आदमी हूं। मेरे परिवार में दूर-दूर

तक भी किसी के राजनीति या सत्ता के साथ लेश मात्र भी सम्बंध नहीं है। एक मनुष्य के तौर पर मैं कभी सम्पूर्ण होने का भ्रम नहीं रखता। मुझमें भी मानव सहज कमियां हो सकती हैं। गुण भी हो सकते हैं और अवगुण भी।

परन्तु मैं प्रार्थना करता रहता हूं कि मुझे निरन्तर मां जगदम्बा का आशीर्वाद मिलता रहे, जिससे मेरे अवगुण या मेरी कमियां मुझ पर हावी न हो जाए। सदैव बेहतर करने की इच्छा के साथ, गुजरात के विकास को समर्पित होकर गरीब के आंसू पोंछने में मुझे आप जैसे बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलता रहे, ऐसी कामना है।

आदरणीय अन्नाजी, आप तो गांधी के रंग में रंगे हुए एक फौजी हैं। कल केरल के मेरे चुनाव दौरे में आपके द्वारा मुझे आशीर्वाद दिए जाने की खबर आई, उसी पल मेरे मन में एक शंका जाग उठी कि अब अन्नाजी की बन आई। गुजरात विरोधी स्थापित हितों के लिए काम करने वाली एक टोली आप पर टूट पड़ेगी। आपके त्याग, तपस्या और सत्यनिष्ठा को दाग लगाने के लिए इस मुद्दे का दुरुपयोग करेगी। मेरे और गुजरात के नाम पर आपको गलत साबित करने का कोई भी मौका वह जाया नहीं करेगी।

दुर्भाग्य से मेरी आशंका सही साबित हुई। फिर एक बार पूरी टोली मैदान में आ गई है। नवरात्रि के पावन पर्व पर मैं मां जगदम्बा को प्रार्थना करता हूं, कि आपकी सत्यनिष्ठा को आंच भी न आए।

आप तो जानते ही होंगे कि गुजरात के बारे में सच बोलने वाले, अच्छा बोलने वाले छोटे-बड़े सभी पर कैसे-कैसे मानसिक अत्याचार करने का फैशन हो गया है।

भूतकाल में केरल के कुनुर क्षेत्र के साम्यवादी पार्टी के मुस्लिम सांसद श्री पी. अबदुल्ला कुट्टी ने सार्वजनिक तौर पर गुजरात के विकास कार्यों की सराहना की थी तो ऐसे सीनियर नेता को पार्टी से बाहर कर दिया गया।

इस सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन ने गुजरात के टूरिज्म विकास के लिए निःशुल्क उम्दा सेवा दी तो यह टोली श्री बच्चन के पीछे पड़ गई। चारों ओर हल्ला मचाकर उन पर गुजरात के साथ सम्बंध तोड़ने के लिए दबाव बनाया गया। दुष्प्रचार की आंधी चलाई। मुंबई के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में निमंत्रण होने के बावजूद उनको प्रवेश नहीं दिया गया।

गुजरात के अग्रणी गांधी विचारक श्री गुणवंतभाई शाह गुजरात की गौरव गाथा के पक्ष में स्पष्ट बात करते हैं इसलिए उनको भी अछूत बनाने के प्रयास होते रहे हैं।

दारुल उलुम देवबंद संस्था के प्रमुख के रूप में निर्वाचित गुजरात के श्री मौलाना गुलाम वस्तानवी ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि, गुजरात में बहुत विकास हो रहा है, और यहां धर्म के आधार पर कोई

भेदभाव नहीं किया जाता। विकास का फल सभी को मिलता है। यह कहने के साथ ही उन पर जैसे आसमान फट पड़ा। स्थापित हितों की टोली ने उनको परेशान कर डाला।

हाल ही में भारतीय सेना के एक उच्च अधिकारी, गोल्डन कटार डिवीजन के जी.ओ.सी. मेजर जनरल आई.एस. सिन्हा ने गुजरात के विकास की प्रशंसा की। तब भी इसी टोली ने कोहराम मचा डाला और उनके खिलाफ अनुशास्नात्मक कार्यवाही करने की मांग तक कर डाली।

यह तो कुछ ही उदाहरण हैं। लेकिन गुजरात की सही दिशा की विकासयात्रा ऐसे स्थापित हितों की टोली की आंख की किरकिरी बनी है। गुजरात का नाम आने के साथ ही झूठ और दुष्प्रचार की आंधी चलाई जाती है।

आदरणीय अन्नाजी, गुजरात के छह करोड़ नागरिक भाई-बहन नहीं चाहते कि यह टोली आपको भी दुखी करे।

मुझे अब भी डर है कि यह टोली आपको आफत में डालेगी ही। प्रभु आपको शक्ति दे।

देश के लिए आपके त्याग और तपस्या को आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ईश्वर आपको उत्तम स्वास्थ्य दे। मेरे जैसे अनेकानेक लोगों को आपका मार्गदर्शन मिलता रहे, यही प्रार्थना है।

आपका


नरेन्द्र मोदी...

Friday, April 8, 2011

अन्ना हजारे! अनशन हमारा भी है...

मित्रों अभी कुछ दिन पहले भारतीय खिलाड़ियों ने विश्व कप जीत कर देश का सम्मान बढ़ाया था| हर तरफ ख़ुशी का वातावरण था| मैंने पहली बार एक ही दिन होली और दिवाली साथ में मनाई गयी देखी| गाँव, शहर, कस्बों की सड़कों पर लोग उतर आये| ख़ुशी से नाच रहे थे, गा रहे थे, भारत माता की जय, हिन्दुस्तान जिंदाबाद, वंदेमातरम जैसे नारों के साथ वातावरण गुंजायमान था| मैं भी इन सबमे में शामिल था| नारे लगा लगा कर मेरा गला बैठ गया था| किन्तु ख़ुशी का वो समय ही कुछ ऐसा था की रोके नहीं रोक सका स्वयं को| अब तक लोगों के दिलों में ख़ुशी है| किन्तु अब ऐसा लगता है की क्या भारतीयों का राष्ट्र प्रेम केवल क्रिकेट के मैच तक ही सीमित है? हमारे खिलाड़ियों ने तो अपना वचन निभाया है| विश्व कप जीतने का जो वचन उन्होंने भारतीयों को दिया था, वह उन्होंने भली प्रकार निभाया है और अपने कर्त्तव्य का निर्वाह किया है| यदि वे पाकिस्तान से हार कर आ जाते तो सौ फीसदी उनके विरोध में यहाँ प्रदर्शन होता, पुतले जलाए जाते, धोनी हाय हाय के नारे लगाए जाते| यह केवल संभावना नहीं है, ऐसा हमाए देश में बहुत बार हो चूका है जब खेल को खेल न समझ कर उसे व्यक्तिगत ले लिया जाता है, जब क्रिकेट को खेल न समझ कर उसे धर्म बना दिया जाता है| क्रिकेट में भारत की हार का मतलब समूचे राष्ट्र की हार समझा जाता है| और तब शुरू होता है हमारे भारत देश के तथाकथित देश भक्तों का तांडव| यहाँ पुतले फूंके, वहां नारे लगाए और पता नहीं क्या क्या| ऐसे में वे खिलाड़ी बेचारे स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं जिन्होंने अपनी तरफ से पूरी जान लगा दी थी किन्तु किसी कारणवश हार गए थे|
आज जब ये सरकार अपना वचन नहीं निभा रही है तो सब शांत क्यों हैं? क्या आपकी देश भक्ति क्रिकेट विश्वकप जीतने के साथ ही ख़त्म हो गयी? खिलाड़ी तो अपना पूरा योगदान टीम को जिताने में लगा ही देते हैं, किन्तु ये सरकार तो जानबूझ कर हमें लूट रही है, यह तो जानबूझ कर अपना वचन भंग कर रही है| तब हम चुप क्यों हैं| जब हम ख़ुशी मनाने सड़कों पर आ सकते हैं तो विरोध जताने क्यों नहीं? सड़कों पर आना जरूरी है किन्तु इसका मतलब यह नहीं होता कि हम आम जन को परेशान करें| हमारा विरोध मर्यादित हो|
अन्ना हजारे जन लोकपाल विधेयक पारित करने के लिए ५ अप्रेल को अनशन पर बैठे थे| आज उनका चौथा दिन है| चार दिन भूखा रहना सरल नहीं है| बहुत सारे लोग उनके साथ अनशन पर बैठे हैं| बहुत से लोग अपने अपने शहरों में इसी प्रकार का आयोजन कर अनशन पर बैठ गए| मेरी प्रबल इच्छा है कि मै भी उनके साथ वहां जाकर अनशन पर बैठ जाऊं| प्रयास भी बहुत किया किन्तु किसी कारणवश दिल्ली नहीं जा सका| पिछले तीन दिनों से फेसबुक, ट्विटर पर व अन्य वेबसाइटों पर अन्ना हजारे को समर्थन मिलता देख रहा हूँ| यह देख कर ख़ुशी है की लोगों तक अन्ना की आवाज पहुँच रही है|
किन्तु अन्ना के साथ अनशन पर बैठने की इच्छा मन में ही रह गयी| किन्तु अब सोचा कि अनशन तो यहाँ भी हो सकता है| हमारे देश में तो यह परंपरा रही है कि यदि हमारा नेता हमारी मांगों के लिए कष्ट झेल रहा है तो हम मज़े कैसे मार सकते हैं?
भगत सिंह एवं उनके साथी जब जेल में कठोर भूख हड़ताल झेल रहे थे तब देश के कई परिवारों ने अपने चूल्हों को ठंडा कर दिया था| उनका कहना था की जब तक हमारे क्रांतिकारी भूखे रहेंगे हम भी अन्न का दाना नहीं खा सकते|
१९६५ की लड़ाई के समय जब भारतीय सेनाएं लाहौर तक पहुँच गयी थीं, तब अमरीका ने लाल बहादुर शाह्त्री जी को यह धमकी दी थी यदि आपकी सेनाएं पीछे नहीं हटी तो अमरीका की तरफ से भारत को दी जाने वाली गेंहूं आपूर्ति रोक दी जाएगी| उस समय भारत में गेंहूं का अभाव था और अमरीका से उसकी आपूर्ति की जाती थी| ऐसे में शास्त्री जी ने अमरीका को खुली चुनौती दी कि रोक लो गेंहूं, हम भारतवासी तो सप्ताह में दो दिन उपवास रखते ही हैं दो दिन और रख लेंगे, किन्तु राष्ट्र का सम्मान तुम्हारे आगे नहीं रखेंगे| और तब शास्त्री जी ने देशवासियों से यह गुजारिश की थी कि अपने खर्चे कम से कम कर दो, और भोजन की कमी होने पर सप्ताह में १ दिन, २ दिन या अपनी इच्छानुसार उपवास रखें| इस कठिन समय में हम झुक सकते हैं किन्तु राष्ट्र को नहीं झुकने देंगे| शास्त्री जी का कहना था कि अगले ही दिन से देश में उपवास शुरू हो गए थे| मज़े की बात तो यह है कि आज तक कई लोग सप्ताह में १ दिन उपवास रखते आ रहे हैं| किसी भगवान् के लिए नहीं शास्त्री जी के लिए| उनसे उपवास का कारण पूछो तो कहते हैं की सन पैंसठ में शास्त्री जी ने कहा था आज तक निभाते आ रहे हैं|
१९७५ में कांग्रेस के आपातकाल के समय जब जय प्रकाश नारायण ने सरकार के विरुद्ध क्रान्ति छेड़ी थी उस समय भी पता नहीं कितने ही लोग उनके साथ इस लड़ाई में कूद पड़े, जेल भी गए, भूखे भी रहे|
हमारे देश की स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु की कामना में हज़ारों लाखों वर्षों से करवाचौथ का उपवास करती आ रही हैं|
विकट समय में एक हो जाना तो मेरे देश की परंपरा रही है|
स्थिति आज भी सामान ही है| इस सरकार की लूटनीति को रोकने के लिए अन्ना हजारे अनशन पर बैठे हैं| समस्या केवल अन्ना हजारे की नहीं है, वे हम सबकी समस्या का समाधान चाहते हैं| हमें भी तो उनका सहयोग करना चाहिए| दिल्ली तो नहीं पहुँच सका किन्तु आज से यहाँ जयपुर में ही अपना अनशन शुरू कर रहा हूँ| आज जब अपने ऑफिस में था तो दोपहर के भोजन के समय मैंने भोजन करने से मना कर दिया| कारण जानने पर मेरे एक सीनियर ने कहा की यह तो अच्छी बात है किन्तु इस प्रकार गुपचुप भूखे रहने से किसी को क्या पता चलेगा की तुम अनशन पर हो? तब मैंने उनसे यही कहा कि जाना तो मुझे दिल्ली था किन्तु ऑफिस के कारण छुट्टी नहीं मिली मुझे|
किन्तु जब अन्ना हजारे भूखे हैं तो मै कैसे कोई निवाला गले से उतार सकता हूँ?
जब अन्ना हजारे मेरे आत्मसम्मान की रक्षा के लिए भूखे हैं तो मै स्वयं का सम्मान क्यों न करूँ?
जब अन्ना हजारे ७२ वर्ष की आयु में राष्ट्रहित में भूखे रह सकते हैं तो मै २६ वर्ष की आयु में अपना पेट कैसे भर सकता हूँ?
अत: आज से मेरा भी अनशन शुरू है| केवल अन्ना हजारे अकेले भूखे नहीं रहेंगे| हजारों-लाखों-करोड़ों भारतवासी आज अन्ना के साथ इस अनशन में शामिल हैं| और बहुत से ऐसे भी हैं जो अपना अनशन अकेले में बिना किसी को बताये कर रहे हैं|
यहाँ यह सब लिखने का मेरा उद्देश्य केवल इतना ही था कि जैसे भी हो सके इस आन्दोलन को आगे बढ़ाना है| जिससे जो योगदान हो सके वह करे| केवल भूखा रहना ही एक मात्र विकल्प नहीं है| किसी भी प्रकार सरकार पर दबाव बनाया जाना चाहिए| जो लोग दिल्ली में हैं या जो लोग दिल्ली जा सकते हैं वे अन्ना के साथ १ दिन, २ दिन या अपनी योग्यता अनुसार भूख हड़ताल पर बैठें| जो लोग दिल्ली से बाहर हैं वे लोग अपने निकट के व्यक्तियों को इस शुभ कार्य के लिए प्रेरित करें| जब सरकार यह देखेगी कि अन्ना के साथ इतने लाख लोग दिल्ली में अनशन पर बैठे हैं, इतने करोड़ लोग अपने अपने शहरों में भूख हड़ताल कर रहे हैं, इतने करोड़ लोग हमारे विरुद्ध सड़कों पर उतर आये हैं तो इस बर्बर सरकार को भी झुकना पड़ेगा| आज अन्ना अकेले हैं कल पूरा देश उनके साथ खड़ा होगा यही आशा है|