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Saturday, November 13, 2010

मै एक आम आदमी, क्या मुझे कोई अधिकार नहीं???

मित्रों पहले मै उन सब पाठकों, व टिप्पणीकारों को धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्होंने मेरे पिछले लेखों को पढ़ा और उनपर अपने विचार व्यक्त किये| मुझे तो आशा भी नहीं थी कि मुझे इतने कम समय में इतने लोगों द्वारा पढ़ा और सराहा जाएगा| मेरे कुछ मित्र तो ऐसे हैं कि जब उन्होंने मेरे लेख और उन पर आने वाली टिप्पणियों को पढ़ा तो वे मुझे हँसते हँसते कहने लगे कि भाई तू तो बड़ा आदमी बन गया है|
अब शायद यह हो सकता है कि या तो आप लोग बहुत महान हैं जो मुझ जैसे आम आदमी को पढ़कर और अपने विचार दे कर उसे प्रेरणा दे रहे हैं, या फिर आप लोग मुर्ख हैं जो मुझ जैसे आम आदमी को पढ़कर अपना समय नष्ट कर रहे हैं| क्यों कि कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि एक आम आदमी को अपने विचार रखने का अधिकार ही नहीं है|
कुछ भी हो मेरी नज़र में हर वो व्यक्ति महान है जो राष्ट्र हित में विचार करता है, मानवतावादी भाषा बोलता है और साथ ही किसी आम आदमी के विचारों को भी समझता है और उसे मार्गदर्शन देता है| और आप सब ने मुझे मार्गदर्शन दिया अत: आप भी महान हैं|
मेरे ही कुछ करीबी लोगों ने मुझे यह सलाह दी है कि मै लिखने का यह फ़ालतू काम बंद कर दूं जो मैंने अभी अभी शुरू किया है| क्यों कि जब तक मै कोई बड़ा आदमी नहीं बन जाता मेरे विचारों को सुनने वाला, उन्हें पढने वाला और उन पर विचार करने वाला कोई नहीं है क्यों कि आम आदमी की बात पर अपना समय नष्ट करने वाले मुर्ख समझे जाते हैं| और मुझे यह सलाह देने वाले सभी लोग मेरे प्रियजन हैं, जिनका मै सम्मान करता हूँ, जिन्हें मै प्रेम करता हूँ|
मुझे तो राष्ट्रहित में सोचने की शिक्षा मेरे पिता एवं मेरे अग्रज से मिली है| जब मै इंजीनीयरिंग में प्रवेश की तैयारी कर रहा था तब मुझे कईयों ने कहा कि पहले इंजीनीयरिंग में प्रवेश ले लो फिर किसी से राष्ट्र हित में चर्चा करना क्यों कि अभी वे मुझे नासमझ समझेंगे और मेरी बातों पर ध्यान नहीं देंगे| साथ ही इससे मेरी पढाई भी बाधित होगी| मै ये मानता हूँ कि उन्होंने उस समय सच ही कहा था| पढाई तो मेरी बाधित होती ही साथ ही मुझे नासमझ भी समझा गया| फिर जब मैंने इंजीनीयरिंग में प्रवेश ले लिया तब भी ऐसा ही कहा गया कि पहले इंजीनीयरिंग पूरी करो, क्यों कि जब तुम इंजीनीयर बन जाओगे तो सब तुम्हारी बात को गंभीरता से लेंगे| अब जब मैंने इंजीनीयरिंग पूरी कर ली है तो फिर कहा गया कि जब तक एक अच्छी नौकरी हाथ में नहीं होती यही समझा जाता है कि एक बेरोजगार आदमी अपने मन की पीड़ा ही बोल रहा है अत: इस पर अधिक ध्यान न दिया जाए| जब मैंने नौकरी भी पा ली तो फिर मुझसे कहा गया कि जब तुम बड़े आदमी बन जाओगे तो तुम्हारी बात को हर कोई सुनेगा| इस लिये पहले अपना करियर बनाओ| खूब पैसा कमाओ|
अब और कितनी प्रतीक्षा करूँ मै? मुझे तो बड़ा आदमी बनना ही नहीं है, मै तो अपना सारा जीवन एक आम आदमी की तरह ही बिताना चाहता हूँ| तो क्या मुझे कभी यह अधिकार ही नहीं मिलेगा कि मै अपने राष्ट्र के गौरव को बनाए रखने में अपना सहयोग दे सकूं? क्या बड़े आदमी को ही यह सौभाग्य मिलेगा?
और बड़ा आदमी क्यों बनूँ मै? मैंने बहुत से ऐसे लोगों को देखा है जो बड़े मज़े से कहते थे कि जिस दिन हम कुछ बन जाएंगे उस दिन एक नया और गौरवशाली भारत बनाएंगे| आज वे सभी बड़े आदमी तो बन गए किन्तु भारत बनाने का उनका संकल्प वे स्वयं ही भूल गए| तो अब बताएं आम आदमी को अधिकार नहीं है और बड़ा आदमी यह कार्य करता नहीं है तो कौन करेगा यह काम? और बड़े आदमी की परिभाषा क्या है? यूं तो कितनी ही सीढियां चढ़ जाओ कोई मुझे बड़ा आदमी मानता नहीं तो मै क्या करूं| क्यों कि बड़ा आदमी तो उसे ही कहा जाता है जिसके पास बहुत सारा पैसा है, चाहे वह कैसे भी कमाया जाए| और मै बड़ा आदमी यदि ५० वर्ष की उम्र तक बनते बनते बन भी गया तो यह कह दिया जाएगा कि युवा शक्ति ही क्रान्ति ला सकती है| उस समय भी मै कुछ नहीं कर सकता|
आप मुझे बताएं कि १२५ करोड़ के देश में कितने बड़े(?) आदमे हैं? शायद दो पांच हज़ार| तो बाकी करीब १२४ करोड़ ९९ लाख ९५ हज़ार लोग क्या हमेशा झक ही मारते रहेंगे?
मै यदि अपना काम ख़त्म करके कोई तथ्यपूर्ण बात, कोई राष्ट्रवादी चर्चा अपने किसी मित्र से करता हूँ तो इसमें मैंने क्या बुरा किया? ठीक है मुझे अपने ज्ञान से देश को आगे बढाने में मदद करनी चाहिए किन्तु मैंने उससे कब इनकार किया है?
एक बड़े(?) व्यक्ति द्वारा तो हमारे विचार को ईमेल कचरा ही बता दिया गया| क्या अब मुझे भी कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनना पड़ेगा या मार्क्सवाद के सिद्धांतों को अपनाना पड़ेगा या फिर कथित धर्मनिरपेक्षता का सहारा लेना पड़ेगा? क्यों कि इन सब के बिना तो मै आम आदमी ही हूँ| इन सबके बिना तो मुझे एक रूढीवादी हिन्दू समाज का एक रूढीवादी व्यक्ति ही समझा जाता है| मुझे फासीवादी समझा जाता है|
किन्तु न तो मेरा हिंदुत्व रूढीवादी है न ही मेरा भारत रूढीवादी है| न ही मै किसी अन्य सम्प्रदाय को रूढीवादी मानता हूँ|
सच बोलने के लिये मै स्वयं के बड़े आदमी बनने की प्रतीक्षा क्यों करूं? और जो व्यक्ति एक आम आदमी की बात को सच नहीं मानते वे बताएं कि सच बोलने अधिकार क्या केवल बड़े आदमी को ही है?
मै तो यह चाहता हूँ कि लोग मुझे पढ़ें, मुझे सुने न कि मेरे ओहदे को| मुझ पर वे अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं| हो सकता है कि कहीं मै भी गलत कह दूं ऐसे में आप मुझे मार्गदर्शन दें न कि मेरे बड़े आदमी बनने की प्रतीक्षा में मुझ पर ध्यान ही न दें|
मै जानता हूँ कि मै एक अच्छा लेखक नहीं हूँ| किन्तु आप मेरे लेखन पर न जाएं| मैंने कहीं से ऐसा कोई कोर्स नहीं किया है जो मुझे लेखक बनाए| किन्तु दिमाग तो मेरे पास भी है| अपने विचारों को किसी भी तरह व्यक्त तो मै कर ही सकता हूँ| भले ही वह टूटे फूटे शब्दों में हो किन्तु हैं तो मेरे विचार|
जब तक मै आम आदमी हूँ कोई मेरी बात नहीं सुनेगा, किन्तु जैसे ही मै ख़ास हो गया तो सब मेरे शब्दों को इतिहास बना देंगे| यह तो सरासर चापलूसी ही हुई|
जब बालक नरेन्द्र से उसके पिता ने पूछा कि तुम बड़े होकर क्या बनोगे तो उसने कहा कि मै कोचवान बनूँगा| उस समय शायद ही उसके शब्दों को किसी ने गंभीरता से सोचा होगा, किन्तु जब वही बालक नरेंद्र स्वामी विवेकानंद बने तो बाल्यवस्था में बोले गए उनके वचनों को ऐतिहासिक वचन बना दिया गया| उनके अन्दर छुपी उनकी महानता अचानक सब को नज़र आ गयी|
सच तो यह है कि  हर एक व्यक्ति में ताकत है वह सब कुछ कर सकता है| चाहे वह आम हो या ख़ास| मै एक आदमी हूँ और मै कुछ भी कर सकता हूँ|